चीन-पाकिस्तान के साथ कूटनीतिक तरीके से सुलझाने चाहिएं मसले

punjabkesari.in Friday, Sep 23, 2022 - 06:18 AM (IST)

उज्बेकिस्तान के ऐतिहासिक शहर समरकंद में शंघाई सहयोग संगठन का शिखर सम्मेलन रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान 15-16 सितम्बर, 2022 को आयोजित किया गया। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रूस के राष्ट्रपति पुतिन के साथ द्विपक्षीय वार्ता में भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति का अनुसरण करते हुए कहा कि वर्तमान युग युद्ध का नहीं है, बल्कि आपसी समस्याओं का समाधान कूटनीतिक और सौहार्दपूर्ण बातचीत के जरिए करना चाहिए। वास्तव में विश्व शांति, मानवता के कल्याण और आर्थिक विकास के लिए यह संदेश सर्वप्रिय और सर्वश्रेष्ठ है। 

इस संगठन का मुख्य लक्ष्य विभिन्न देशों में आपसी विश्वास और सद्भावना को मजबूत बनाना, अर्थव्यवस्था को पुख्ता करने के लिए सकारात्मक और कारआमद कदम उठाना, व्यापार को बढ़ावा देना, प्रौद्योगिकी और अनुसंधान में सहयोग देकर वर्तमान अंतर्राष्ट्रीय प्रगति में इजाफा करना है। प्रशासनिक पद्धति को सुदृढ़ करना, ऊर्जा, परिवहन, शिक्षा, पर्यटन और पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए आपस में विचार-विमर्श करना तथा सहयोग से आपसी संबंधों को मजबूत बनाना है। इसके साथ ही क्षेत्रीय शांति, सुरक्षा और स्थिरता को कायम रखना भी है। इस संगठन में वैश्विक जनसंख्या का 40 प्रतिशत हिस्सा है, जी.डी.पी. का 30 प्रतिशत और कुल भू-भाग का 22 प्रतिशत। 

संगठन के स्थायी सदस्य रूस, चीन, भारत, पाकिस्तान, कजाखस्तान, उज्बेकिस्तान, किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान हैं। इनके साथ पर्यवेक्षक देश हैं मंगोलिया, अफगानिस्तान, बेलारूस और ईरान। डायलाग पार्टनर हैं आर्मेनिया, अजरबैजान, तुर्की, श्रीलंका, कंबोडिया और नेपाल। शंघाई सहयोग संगठन में रूस और चीन के बाद भारत सबसे बड़ा देश है। भारत के रूस के साथ बहुत पुराने रिश्ते हैं और समय के साथ-साथ इनमें मधुरता और प्रगाढ़ता आ रही है। 

रूस और भारत पिछले 75 वर्षों से एक-दूसरे के साथ शाना-ब-शाना खड़े हैैं और भविष्य में भी इन रिश्तों में और मजबूती आएगी। यद्यपि भारत रूस से हथियार ही मंगवा रहा है, परंतु रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान जब अमरीका ने कई देशों पर प्रतिबंध लगा दिया, जिस कारण भारत ने ईरान से तेल मंगवाना बंद कर दिया और दूसरी तरफ रूस ने भारत को अंतर्राष्ट्रीय दरों से 35 प्रतिशत कम दर पर तेल बेचना शुरू किया। भारत 80 प्रतिशत तेल बाहर से मंगवाता है और केवल 20 प्रतिशत ही भारत में उत्पादन होता है। विश्व में व्यापारिक लेन-देन केवल डॉलर के जरिए किया जाता है, जबकि रूस रूबल के जरिए एक नई अर्थव्यवस्था कायम करना चाहता है। 

अमरीका, यूरोपियन यूनियन और नाटो इस संगठन को शक की दृष्टि से देखते हैं। इसलिए इस शिखर सम्मेलन से कुछ समय पहले उसने ताइवान को एक बड़ा पैकेज देकर चीन को एक करारा झटका दिया। दूसरा, यूक्रेन ने एक बड़ा पैकेज देकर रूस के लिए एक नई मुसीबत खड़ी की है। तीसरा, अमरीका के भारत से अच्छे संबंध होने के बावजूद उसने पाकिस्तान को 450 मिलियन डॉलर के एफ-16 जहाज देने का फैसला किया, जबकि पूर्व राष्ट्रपति ट्रम्प ने भारत के कहने पर यह सौदा रद्द कर दिया था। दूसरी तरफ भारत क्वाड का सदस्य है, जिसमें अमरीका, जापान और ऑस्ट्रेलिया हैं, जिनका मुख्य लक्ष्य चीन की विस्तारवादी नीति को रोकना है। 

विश्व में परिवर्तन की एक जबरदस्त लहर चल रही है। एशिया के कई देश पश्चिम के वर्चस्व से छुटकारा पाना चाहते हैं। इनमें सऊदी अरब, यू.ए.ई., ईरान, कुवैत, कतर, बहरीन और कई अन्य देश शामिल हैं। ये शंघाई सहयोग संगठन के सदस्य बनने के इच्छुक हैं क्योंकि जब अमरीका ने इन देशों को रूस और चीन के खिलाफ गुट बनाने का सुझाव दिया तो इन्होंने स्पष्ट तौर पर इंकार कर दिया और जब सऊदी को तेल के उत्पादन में बढ़ौतरी करने के लिए कहा गया तो उसने भी अमरीका के सुझाव को दरकिनार करते हुए कम तेल बेच कर अधिक मुनाफा हासिल किया। दूसरी तरफ रूस, चीन, नॉर्थ कोरिया, पाकिस्तान और ईरान एक नए गुट के रूप में उभर कर सामने आ रहे हैं। 

हकीकत में विश्व में मल्टीपल पावर सैंटर बन रहे हैं, जो यू.एन. को कमजोर कर सकते हैं। अमरीका यूक्रेन को रूस के लिए दूसरा अफगानिस्तान बनाना चाहता है। पुुतिन यूक्रेन को एक सप्ताह में ही जीतने का दावा करते थे, पर वह 7 महीने से बुरी तरह इसमें फंसे हुए हैं और अब सर्दियों की इंतजार में हैं, जब यूरोप में ठिठुरन की सर्दी होगी तो वह इन देशों की गैस बंद कर देंगे, ताकि वे यूक्रेन पर मजबूर होकर पुनर्विचार कर सकें। 

हकीकत में आपस में मिलजुल कर मतभेदों को दूर करने, समस्याओं के समाधान निकालने, तनाव को कम करने के लिए सौहार्दपूर्ण वार्तालाप की जरूरत होती है, जिसे आज भी कई राष्ट्राध्यक्ष नजरअंदाज कर रहे हैं। भारत को चीन और पाकिस्तान के साथ अपने मसले हल करने के लिए कूटनीतिक और सौहार्दपूर्ण तरीका अपनाना चाहिए। पाकिस्तान और चीन को भी कड़वाहट दूर करने के लिए आगे आना चाहिए। सम्मेलनों के इस सुनहरी अवसरों पर किसी को दरकिनार करना भी बुद्धिमता नहीं है। प्रसिद्ध शायर निदा फाजली का शे’र इस संबंध में बिल्कुल सटीक बैठता है- दिल मिले या न मिले, हाथ मिलाते रहिए,बात बने या न बने, बात चलाते रहिए।-प्रो. दरबारी लाल पूर्व डिप्टी स्पीकर, पंजाब विधानसभा
 


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