क्या भाजपा और अन्नाद्रमुक के बीच अलगाव स्थायी है
punjabkesari.in Tuesday, Oct 03, 2023 - 05:03 AM (IST)

क्या अन्नाद्रमुक और भाजपा के बीच अलगाव स्थायी हो सकता है? यदि ऐसा है तो इससे तमिलनाडु में भाजपा की जीत की संभावना को नुक्सान हो सकता है क्योंकि 2016 में जे. जयललिता के निधन के बाद से अन्नाद्रमुक ने उन्हें समर्थन दिया था। राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर एन.डी.ए. के साथ अपनी सांझेदारी खत्म करने का निर्णय भाजपा को नुक्सान में डाल सकता है। भविष्य के राजनीतिक परिदृश्य का असर आगामी 2024 के लोकसभा चुनावों पर पड़ सकता है। इससे तमिलनाडु की पार्टियों और उनके गठबंधनों के बीच सत्ता में बदलाव हो सकता है। इसके परिणामस्वरूप अन्नाद्रमुक को मोदी सरकार का समर्थन खोना पड़ सकता है जिसने एक शक्तिशाली सहयोगी के रूप में काम किया है।
जानकारों के मुताबिक भाजपा और अन्नाद्रमुक के बीच अलगाव अस्थायी रहने की उम्मीद है। दोनों दलों के नेताओं ने अपने सदस्यों को एक-दूसरे के बारे में नकारात्मक टिप्पणी करने से बचने की सलाह दी है। भाजपा दक्षिणी क्षेत्र में अधिक समर्थन चाहती है और सांझेदारी के माध्यम से अतिरिक्त सीटें सुरक्षित करने की उम्मीद करती है। पिछले हफ्ते अन्नाद्रमुक के पूर्व मंत्री मुन्नुस्वामी ने घोषणा की थी कि उनकी पार्टी भाजपा और एन.डी.ए. से नेता तोड़ रही है। उन्होंने भाजपा के राज्य प्रमुख अन्नामलाई पर पूर्व मुख्यमंत्री सी.एन. अन्नादुरै और जयललिता सहित सम्मानित पार्टी सदस्यों की प्रतिष्ठा को जान-बूझकर धूमिल करने का आरोप लगाया।
इस फैसले का राज्य और राष्ट्रीय राजनीति पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है। अन्नाद्रमुक राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा की एकमात्र प्रमुख भागीदार है। पहले एन.डी.ए. में शिवसेना, अकाली दल, तेलुगू देशम और अन्नाद्रमुक जैसी बड़ी पार्टियां शामिल थीं। अब गठबंधन में सिर्फ अन्नाद्रमुक ही बची है। भाजपा के लिए यह नुक्सान ज्यादा बड़ा है। गंभीर प्रयासों के बावजूद इसने तमिलनाडु में पर्याप्त उपस्थिति स्थापित नहीं की है। 1967 से द्रमुक और अन्नाद्रमुक के बीच सत्ता परिवर्तन हुआ है। अन्नाद्रमुक ने अपने 50 वर्षों में से 30 वर्षों तक शासन किया है। तमिलनाडु में 2 प्रमुख राजनीतिक दल अन्नाद्रमुक और द्रमुक हैं। अन्नाद्रमुक 2 करोड़ लोगों की बड़ी सदस्यता के साथ एक लोकप्रिय पार्टी है और राज्य में यह द्रमुक का विकल्प प्रदान करती है। 2 मुख्य द्रविड़ पार्टियों द्रमुक और अन्नाद्रमुक ने अलग-अलग समय पर भाजपा का समर्थन किया है।
दशकों से भाजपा को तमिलनाडु में मतदाताओं पर जीत हासिल करने में कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ा है। द्रविड़ आंदोलन की शुरूआत ई.वी. रामास्वामी नायकर ने की थी जिसकी जड़ें द्रमुक और अन्नाद्रमुक जैसी पार्टियों के रूप में हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में पार्टी को केवल 3 प्रतिशत वोट मिले थे। इसकी तुलना में दोनों द्रविड़ पाॢटयों के पास ठोस 25 प्रतिशत का आधार है। 2016 के बाद से अन्नाद्रमुक पार्टी को सभी चुनावों में लगातार हार का सामना करना पड़ा है। इसमें जयललिता या संस्थापक एम.जी. रामाचंद्रन जैसा कोई करिश्माई नेता नहीं है। 2021 के विधानसभा चुनावों में पार्टी की सीटों को 136 से घटाकर 75 कर दिया गया। द्रमुक-कांग्रेस गठबंधन ने सरकार पर नियंत्रण पा लिया है।
2019 के लोकसभा चुनावों में अन्नाद्रमुक को केवल एक सीट हासिल हुई जो उनकी पिछली 37 सीटों की तुलना में एक महत्वपूर्ण गिरावट है। इस बीच द्रमुक गठबंधन की सीटें 0 से बढ़कर 39 हो गई हैं। अन्नाद्रमुक कैडर भाजपा के साथ अपने संबंध को एक बाधा के रूप में देखते हैं। अलग-अलग विचारधाराओं के कारण तमिलनाडु में मतदाताओं को अपने पक्ष में करने की भाजपा की कोशिश विफल रही। द्रविड़ पार्टियां अविश्वासी हैं जबकि भाजपा की प्राथमिक चुनाव रणनीति पहले अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण और अब सनातन धर्म के आसपास केंद्रित है। आगामी लोकसभा चुनाव भाजपा के लिए महत्वपूर्ण हैं जबकि अन्नाद्रमुक का ध्यान 2026 के विधानसभा चुनावों पर है। परिणाम काफी हद तक दो द्रविड़ पाॢटयों द्वारा बनाए गए गठबंधन पर निर्भर करेगा। प्रधानमंत्री मोदी 2024 के चुनावों में तीसरा कार्यकाल हासिल करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
अंदरूनी सूत्रों का सुझाव है कि अन्नामलाई का व्यवहार दोनों पार्टियों में विभाजन का मुख्य कारण नहीं था। कई शिकायतों के बावजूद अन्नाद्रमुक इस बात से नाखुश है कि भाजपा ने अन्नामलाई के खिलाफ कार्रवाई नहीं की। वहीं सीटों के बंटवारे को लेकर और भी बड़ी असहमति है। सांझा विचारधारा की कमी के कारण दोनों दल 2019 के चुनावों में तमिलनाडु में सीटें जीतने में विफल रहे। अन्नामलाई ने स्वतंत्र रूप से चुनाव लडऩे का सुझाव दिया है और कुछ भाजपा सदस्य उसकी अवधारणा पर विचार कर रहे हैं। अन्नामलाई छोटी पार्टियों के साथ गठबंधन बनाना चाहते हैं।
अन्नाद्रमुक प्रमुख पलानीस्वामी ने पार्टी को सफलतापूर्वक एकजुट किया है और शशिकला, टी.टी.वी. दिनाकरण और पूर्व मुख्यमंत्री ओ. पनीरसेल्वम की दोबारा एंट्री को रोकने के लिए वरिष्ठ नेताओं के साथ काम किया है। भले ही भाजपा उन्हें अपने कोटे से सीटें मुहैया करवा दे लेकिन उनके लिए यह कोई बड़ी बात नहीं है। कुछ का सुझाव है कि कांग्रेस को अन्नाद्रमुक के साथ गठबंधन करना चाहिए। नतीजे प्रत्येक गठबंधन द्वारा जीती गई सीटों की संख्या पर निर्भर करेंगे। आगामी लोकसभा चुनाव द्रमुक, अन्नाद्रमुक, कांग्रेस और भाजपा के लिए महत्वपूर्ण हैं। इनमें भाजपा को सबसे ज्यादा फायदा या नुक्सान हो सकता है। जाति, वित्तीय, संसाधन और राजनीतिक प्रभाव जैसे कारक भी चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।-कल्याणी शंकर
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