क्या शादी की जरूरत खत्म होती जा रही है?

punjabkesari.in Monday, Sep 30, 2024 - 06:39 AM (IST)

अपने देश के काफी लोग बॉलीवुड के चलन को फॉलो करते हैं। पिछले कुछ वर्षों से बॉलीवुड सितारों में तलाक की घटनाओं में इजाफा देखा जा रहा है। हाल ही में बॉलीवुड की रंगीला फेम अभिनेत्री अपने तलाक को लेकर चर्चा में है। समाज में तलाक की घटनाओं को लेकर यह साफ है कि आज के दौर में शादी की धारणा में बदलाव आ रहा है। पहले शादी को एक पवित्र बंधन माना जाता था। एक बार शादी हो जाने के बाद पति-पत्नी के अलग होने की कल्पना भी नहीं की जाती थी। लेकिन समय के साथ-साथ शादी और तलाक दोनों की संख्या बढ़ रही है। कई मामलों में पति-पत्नी के बीच की छोटी-मोटी अनबन भी तलाक का कारण बन रही है। वहीं दूसरी ओर अवैध संबंध, लिव-इन रिलेशनशिप, डेटिंग और अमीर वर्ग में पत्नियों की अदला-बदली जैसे मामलों में वृद्धि हो रही है। यह सब पहले केवल विदेशों में ही देखे जाते थे, जिन्हें भारत में घृणित और अश्लील माना जाता था, लेकिन अब ये सभी तौर-तरीके और रिश्ते भारत में भी फैल चुके हैं। इसी कारण से महिलाएं अब स्वतंत्र रहना चाहती हैं और शादी नहीं करना चाहतीं। क्या यह ठीक सोच है? 

यदि यह ट्रैंड ऐसे ही आगे बढ़ता गया तो इन सबका परिणाम यह होगा कि आने वाले छह से सात दशकों में, यानी लगभग 2100 तक शादी की अवधारणा ही समाप्त हो जाएगी। इस बिन्दू पर मनोविज्ञान के विशेषज्ञों द्वारा एक ङ्क्षचताजनक रिपोर्ट सामने आई है, जिसमें बताया गया है कि शादी जैसे रिश्ते कैसे आकार ले रहे हैं।  सामाजिक बदलाव, बढ़ता व्यक्तिवाद और विकसित होती लैंगिक भूमिकाओं के चलते पारंपरिक विवाह अब टिक नहीं पाएंगे। आज की युवा पीढ़ी अब करियर, व्यक्तिगत विकास और अनुभवों पर अधिक ध्यान केंद्रित कर रही है। साथ ही लिव-इन रिलेशनशिप और अपरंपरागत रिश्तों में भी वृद्धि हो रही है। इससे शादी की आवश्यकता ही समाप्त होती जा रही है। इसके अलावा, तकनीक और आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस में प्रगति भी एक कारण है। विशेषज्ञ मानते हैं कि इस प्रगति से भविष्य में मानवीय संबंध अलग तरह के दिख सकते हैं। इसके अलावा जीवनयापन की बढ़ती लागत जैसे आर्थिक कारण भी लोगों को शादी के प्रति कम आकॢषत कर रहे हैं। खासकर महिलाएं अब आत्मनिर्भर जीवन जीना चाहती हैं। उन्हें शादी के बंधन की आवश्यकता महसूस नहीं होती। 

तलाक के मामले भारत में बाकी देशों के मुताबिक कम देखने को मिलते हैं, लेकिन पिछले कुछ सालों में भारत में तलाक के मामलों की संख्या तेजी से बढ़ी है। भारत में  तलाक के मामले 1.1 प्रतिशत से भी कम हैं, यानी दुनिया के बाकी देशों के मुकाबले भारत में अब भी सबसे कम तलाक के किस्से देखने को मिलते हैं। संयुक्त राष्ट्र की हाल ही में आई रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले कुछ सालों में भारत में तलाक के मामले तेजी से बढ़े हैं। इसमें सबसे ज्यादा हैरानी की बात यह है कि यह ट्रैंड उन कपल में ज्यादा बढ़ा है, जो अपनी जिंदगी के 2 या 2 से ज्यादा दशक एक साथ बिता चुके हैं। यानी 10 या 20 साल साथ रहने के बाद इनकी शादी टूट रही है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर इसका कारण क्या है? पहले के समय में संयुक्त परिवार में एक-दूसरे पर सब निर्भर रहते थे। संयुक्त परिवार में रहने वाले कपल की शादीशुदा जिंदगी का भी एक प्रभाव हुआ करता था, लेकिन आज की ‘न्यूक्लियर फैमिली’ में कहीं न कहीं वह निर्भरता खत्म हो रही है। हालांकि यह पॉजीटिव भी है क्योंकि निर्भरता  न होने के चलते कोई भी पार्टनर अपनी ‘विषैली’ शादी से आसानी से बाहर आ सकता है। लेकिन इसका नैगेटिव असर भी है, निर्भरता न होने की वजह से कपल के बीच रिश्ते मजबूत नहीं हो पाते। 

इसके अलावा आजकल की शादियों में जाति, धर्म और संस्कृति को पीछे रखा जाता है लेकिन शादी के बाद अक्सर पार्टनर में इन्हें लेकर टकराव होने लगता है, जो कि स्वाभिमान के टकराव  में बदल जाता है। इस दौरान आर्थिक तौर पर आजाद पॉर्टनर सहमति के लिए तैयार नहीं होता। ज्यादातर मामलों में लोग प्रोफैशनल लाइफ और पर्सनल लाइफ के बीच टाइम का बैलैंस नहीं बना पाते, जिसकी वजह से पार्टनर्स को एक-दूसरे के साथ कुछ भी शेयर करने का मौका नहीं मिलता। इससे दोनों में दूरियां बन जाती हैं। इसके अलावा लोगों को आजकल पहले से ज्यादा आजादी मिली हुई है। औरत हो या मर्द, हरेक का रोजाना बाहर नए लोगों से मिलना-जुलना रहता है, जिससे कई बार लोग अपने रिश्ते में बेवफाई करने लगते हैं, जिससे पार्टनरों के बीच तलाक हो जाता है। आजकल लोग अपनी प्रोफैशनल लाइफ में अच्छी कारगुजारी  के लिए अपनी पर्सनल लाइफ से समझौता करने लगते हैं, जिससे भी तलाक के मामले बढ़ रहे हैं। 

आज बहुत से लोग सोचते हैं कि शादी एक बंधन है, जिसमें आजादी नहीं होती, भविष्य नहीं होता और करियर में भी आगे नहीं बढ़ा जा सकता। ऐसे विचार रखने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है, जिससे आजकल बहुत से लोग शादी करने के लिए तैयार नहीं हैं। शादी के बाद बच्चे पैदा करने से भी लोग कतराने लगे हैं। यदि यही प्रवृत्ति बनी रही, तो इस शताब्दी के अंत तक शादी जैसा कोई संबंध ही नहीं बचेगा। हमें गंभीरता से सोचना चाहिए कि भारत में तलाक के मामले इतनी तेजी से क्यों बढ़ रहे हैं? क्यों भारतीय अपनी शादी के साथ न्याय नहीं कर पा रहे? क्यों उनकी शादियां उनकी आकांक्षाओं  पर खरी नहीं उतर पा रहीं? क्या भारत में लोगों का शादी से विश्वास उठ गया है या फिर लोगों के अंदर शादी की कमिटमैंट को लेकर मनोविकार पैदा हो गया है?-डा. वरिन्द्र भाटिया 
 


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