विकास की दौड़ में मेवात पिछड़ गया या पछाड़ दिया गया?

punjabkesari.in Thursday, Apr 05, 2018 - 03:32 AM (IST)

पिछले सप्ताह से यह सवाल मेरे मन में बार-बार घूम रहा है। पिछले सप्ताह नीति आयोग ने देश के सबसे पिछड़े 101 जिलों की सूची जारी की। इस सूची में सबसे ऊपर यानी देश का सबसे पिछड़ा जिला होने का श्रेय हरियाणा के मेवात जिले को जाता है (आजकल इसका सरकारी नाम जिला मुख्यालय के नाम पर नूंह कर दिया गया है)। बिहार के अररिया, छत्तीसगढ़ के सुकमा, उत्तर प्रदेश के श्रावस्ती और तेलंगाना के असिफाबाद जैसे जिलों से भी पिछड़ा जिला है-मेवात। गौरतलब है कि हरियाणा का कोई और जिला इस 101 की सूची में कहीं नहीं है। 

सिर्फ और सिर्फ दिल्ली की नाक के नीचे खड़ा मेवात, गुडग़ांव की हाईटैक सिटी से सटा हुआ मेवात, दिल्ली-एन.सी.आर. की चकाचौंध के बीच बुझा हुआ मेवात। हरियाणा का 2005 में बना एक नया जिला। आबादी ज्यादा नहीं, 11 लाख थी। नाम के वास्ते कुछ छोटे-छोटे शहर हैं जैसे नूंह, फिरोजपुर झिरका, पुनहाना आदि लेकिन 88 प्रतिशत आबादी गांव में ही रहती है। मेवात नाम इसे मेव समुदाय से जोड़ता है जो पड़ोस के राजस्थान में भी बसा है। कुछ दलित और शहरी हिन्दू भी रहते हैं लेकिन 80 प्रतिशत आबादी मेव मुस्लिम समाज की है। 

मेवात के पिछड़ेपन का अनुमान लगाने के लिए आपको आंकड़े देखने की जरूरत नहीं है। बस गाड़ी में गुडग़ांव जिले को पार करते ही सड़क के हालात से आपको पता लग जाता है कि आप मेवात में आ गए हैं। आंखें खोलकर इधर-उधर घुमाइए, चारों तरफ बदहाली, नंग-धड़ंग घूमते हुए कमजोर बच्चे, चारों ओर बेरोजगार नौजवानों का झुंड। नूंह शहर में खड़े होकर आप कह नहीं सकते कि यह हरियाणा के किसी जिले का मुख्यालय है। आज से 12 साल पहले सच्चर समिति ने पाया था कि देश का सबसे पिछड़ा मुस्लिम समुदाय बिहार या उत्तर प्रदेश में नहीं बल्कि हरियाणा के मेवात जिले में है। 

फिर भी नीति आयोग द्वारा पूरे देशभर के जिलों की समीक्षा के बाद जारी की गई इस रिपोर्ट को पढ़कर अनुभव की पुष्टि हुई। अपनी इस सूची में हर जिले को शामिल करते वक्त नीति आयोग ने शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, बैंकिंग तथा वित्तीय सेवाओं और बुनियादी इंफ्रास्ट्रक्चर के तमाम आंकड़ों को शामिल किया है। इस सबकी दृष्टि से मेवात को 26 प्रतिशत अंक मिले हैं। यानी कि अगर देश के सबसे विकसित जिलों से मेवात की तुलना की जाए तो वह विकास की तराजू में उनसे एक-चौथाई ही है। शिक्षा और स्वास्थ्य दोनों में मेवात की अवस्था दयनीय है। आज भी इस जिले में कुल साक्षरता सिर्फ 56 प्रतिशत है और महिलाओं में तो महज 36 प्रतिशत ही। जिले के लगभग 70 प्रतिशत बच्चे एनीमिया यानी खून की कमी के शिकार हैं। सिर्फ 27 प्रतिशत बच्चों का टीकाकरण हुआ है। यहां का किसान मुश्किल से एक फसल ले पाता है और उसका भी दाम सही नहीं मिलता, मवेशी-पालन यहां के ग्रामीण जीवन का आधार रहा है। हरियाणा के किसी भी जिले की तुलना में यहां गौपालन ज्यादा होता है लेकिन अब वह भी ठप्प होने की कगार पर है। 

अगर आप हरियाणा में अफसरों और नेताओं से पूछें तो मेवात के पिछड़ेपन के लिए खुद मेव समाज को दोष देने वाले बहुत मिल जाएंगे। मेव समाज के खिलाफ आस-पड़ोस में खूब पूर्वाग्रह मिल जाएंगे। दिल्ली में अगर किसी और इलाके के लोग चोरी-चकारी या गुंडागर्दी करें तो उसे कुछ व्यक्तियों या एक गिरोह का काम बताया जाएगा लेकिन अगर यही काम मेवात के लड़के करें, तो मीडिया इसे मेवाती गैंग की करतूत बताकर बदनाम करेगा। खुद मेवात के शुभचिंतक भी कभी-कभी गुस्से में स्थानीय समुदाय को दोष दे देते हैं? परन्तु अगर ध्यान से देखें तो मेव समाज मेवात के पिछड़ेपन का शिकार है, गुनहगार नहीं। दुनिया भर में जो भी समुदाय पिछड़ेपन के दंश सहता है, वो साथ में इस तोहमत को भी झेलता है। 

सच यह है कि मेवात का पिछड़ापन संयोग नहीं है। यह नियोजित पिछड़ापन है। इस पिछड़ेपन की बुनियाद में ऐतिहासिक घटनाएं हैं, सामाजिक पूर्वाग्रह हैं और राजनीतिक बेरुखी है। मेवाती समाज शायद हमारे देश का वह एकमात्र समुदाय है जिसने पहले मुगल आक्रमणकारियों से लोहा लिया और फिर अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी। मुगल राजाओं और ब्रिटिश साम्राज्य ने इसकी सजा मेवात को दी। आजाद भारत में उस ऐतिहासिक अन्याय को ठीक करने का अवसर आया था। विभाजन के समय जब दंगों और ङ्क्षहसा के कारण मेव भारत छोड़कर पाकिस्तान की ओर जा रहे थे, उस समय स्वयं महात्मा गांधी ने मेवात आकर मेव समाज से अनुरोध किया था कि वह भारत ही में रहे लेकिन आजादी के बाद न तो वह ऐतिहासिक अन्याय याद रहा, न ही गांधी जी का वायदा। लगभग हर सरकार ने मेवात के साथ सौतेला बर्ताव किया। 

अगर आज मेवात शिक्षा और स्वास्थ्य में पिछड़ा हुआ है तो उसकी वजह पिछले 70 साल की सरकारी बेरुखी है। आज भी इस जिले में पूरे हरियाणा की तुलना में स्कूलों की संख्या, अध्यापकों की संख्या, अस्पतालों की संख्या और डाक्टरों की संख्या बेहद कम है। आज भी हरियाणा के मेवात में ट्रांसफर होने को काला पानी समझा जाता है। आज भी इस इलाके में न तो कोई विश्वविद्यालय है, न ही यहां के लोगों ने रेलगाड़ी का मुंह देखा है। सूखा इलाका होने के बावजूद सिंचाई की व्यवस्था नगण्य प्राय: है। और जो मुख्य नहर गुजरती है वह दिल्ली से  गंदगी और कैमीकल लेकर आती है। मेवात के निवासियों को लगता है कि इस सौतेले बर्ताव की जड़ में उनका अल्पसंख्यक होना है। मेव समाज की त्रासदी यह है कि देश के अधिकांश मुसलमानों ने उन्हें पूरा मुसलमान नहीं माना और हिन्दू समाज ने उन्हें हिन्दुस्तानी के रूप में स्वीकार नहीं किया। मेवात इस दोहरी उपेक्षा की मार झेल रहा है। आज भी हरियाणा के अफसरों और नेताओं में मेव समाज के प्रति तिरस्कार और पूर्वाग्रह साफ देखा जा सकता है।

दुर्भाग्यवश खुद मेव समाज का नेतृत्व भी समाज के दुख-दर्द से कटा रहा है। चन्द ठेकेदारों के हाथ में मेवात का राजनीतिक नेतृत्व रहा जिन्होंने इस इलाके की बेहतरी के लिए कुछ भी नहीं किया। लेकिन अब एक नई पीढ़ी का नेतृत्व उभर रहा है। यह नई पीढ़ी सड़क और कागज दोनों की लड़ाई करना जानती है। ये नौजवान मेवात के दुख को बाकी देश के दर्द से जोडऩे को तैयार हैं और समाज के पुराने ठेकेदारों को चुनौती दे रहे हैं। पिछले 16 सालों में न जाने कितनी बार इस इलाके की बदहाली पर बोल चुका हूं, इन युवा साथियों के साथ बैठकर न जाने कितनी योजनाएं बनाई हैं, न जाने कितनी बार सोचा है कि आंखें बंद होने से पहले इस इलाके के लिए कुछ करना है। नीति आयोग के प्रयास में तो पता नहीं कितना भरोसा है, लेकिन मुझे मेवात की इस नई पीढ़ी से बड़ी आस है।-योगेन्द्र यादव


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Pardeep

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