‘भ्रष्टाचार क्या सिर्फ भाषण का विषय है’

punjabkesari.in Monday, Mar 01, 2021 - 02:46 AM (IST)

पश्चिम बंगाल के चुनाव सिर पर हैं। राजनीतिक गतिविधियां जोर पकडऩे लग चुकी हैं। राजनीतिक पार्टियां एक -दूसरे पर भ्रष्टाचार का आरोप लगा कर जनता के बीच एक दूसरी की छवि खराब करने पर जुटी हुई हैं। राजनीति में छवि का महत्व बहुत ज्यादा होता है। एक बार जो छवि बन जाए उसे बदलना सरल नहीं होता। चुनाव किसी भी राज्य में हों या फिर लोकसभा के चुनाव हों हर दल अपने विरोधियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हैं और खूब शोर मचाते हैं। पर इससे निकलता कुछ भी नहीं है। न तो भ्रष्ट राजनीतिक व्यवस्था सुधरती है और न ही देश की जनता को राहत मिलती है। 

दरअसल राजनीति से जुड़ा कोई भी व्यक्ति नहीं चाहता कि किसी भी घोटाले की ईमानदारी से जांच हो और दोषियों को सजा मिले क्योंकि वह जानते हैं कि आज जो आरोप उनके विरोधी पर लग रहा है कल वह उन पर भी लग सकता है। हर दल की यही मंशा होती है कि वे अपने विरोधी दल के भ्रष्टाचार के कांड को जनता के बीच उछाल कर ज्यादा से ज्यादा वोटों को बटोर लें। इस प्रक्रिया में मूर्ख जनता ही बनती है। आज नैतिकता पर शोर मचाने वाले हर दल से पूछना चाहिए कि जिस काण्ड में सबूत न के बराबर हैं उसपर तो आप इतने उत्तेजित हैं पर जिस जैन हवाला कांड में हजारों सबूत मौजूद थे उसकी जांच की मांग के नाम पर हर दल क्यों चुप रहा? आपको भ्रष्टाचार पर शोर मचाने की हकीकत खुद ब खुद पता चल जाएगी। 

कोई भी पार्टी हो या कोई भी सरकार, सभी भ्रष्टाचार को जड़ से उखाड़ फैंकने का दावा समय-समय पर करते रहते हैं। देश के कई प्रधानमंत्रियों ने भी घोषणा की है कि उनकी सरकार भ्रष्टाचार उन्मूलन के लिए कटिबद्ध है। भ्रष्टाचार के मामले में कुछ रोचक तथ्यों को ध्यान में रखना जरूरी है। सभी घोटाले प्राय: चुनाव के पहले ही उछाले जाते हैं। चुनाव के दौरान जनसभाआें में उत्तेजक भाषण देकर अपने प्रतिद्वंद्वियों पर करारे हमले किए जाते हैं। दोषियों को गिरफ्तार करने और सजा देने की मांग की जाती है। 

यह सारा तूफान चुनाव समाप्त होते ही ठंडा पड़ जाता है। फिर कोई उन घोटालों पर ध्यान नहीं देता। अगले चुनाव तक उसे ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है। इसका सबसे बढिय़ा उदाहरण बोफोर्स कांड है। पिछले कई सालों से हर लोकसभा चुनाव से पहले इस कांड को उछाला जाता है और फिर भुला दिया जाता है। आज तक इसमें एक चूहा भी नहीं पकड़ा गया। दूसरी तरफ जैन हवाला कांड था जिसे किसी भी चुनाव में कोई मुद्दा नहीं बनाया गया क्योंकि इस कांड में हर बड़े दल के प्रमुख नेता फंसे थे तो शोर कौन मचाए? 

अगर कोई नेता रिश्वत लेता है तो इसमें कोई नई बात नहीं। देश में रिश्वत लेना इतना आम हो चुका है कि एेसी खबरों पर किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता। लोग तो मान ही चुके हैं कि राजनीति भ्रष्टाचार का पर्याय है। यहां तक कि भारत के प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए श्री इंद्र कुमार गुजराल ने कहा था कि वे भ्रष्टाचार को रोकने में असहाय हैं। उधर भारत के मुख्य न्यायाधीश पद पर रहते हुए न्यायमूर्ति एस.पी. भरूचा ने भी स्वीकारा था कि उच्च न्यायपालिका में 20 फीसदी भ्रष्टाचार है। विधायिका और न्यायपालिका के शिखर पुरुष अगर एेसी बात कहते हैं तो कार्यपालिका के बारे में तो किसी को कोई संदेह ही नहीं कि वहां ऊपर से नीचे तक भारी भ्रष्टाचार व्याप्त है। 

लोकतंत्र के तीन स्तंभ इसमें बुरी तरह भ्रष्टाचार के कैंसर से ग्रस्त हैं कि किसी को कोई रास्ता नहीं सूझता। एेसे माहौल में जब कभी कोई घोटाला उछलता है तो दो-चार दिन के लिए चर्चा में रहता है और फिर लोग उसे भूल जाते हैं। अगर केंद्र सरकार वाकई भ्रष्टाचार को दूर करना चाहती है तो क्या वह यह बताएगी कि जिन आला अफसरों के खिलाफ सी.बी.आई. ने मामले दर्ज कर रखे हैं उसके खिलाफ सी.बी.आई. को कार्रवाई करने की अनुमति आज तक क्यों नहीं दी गई? सरकार के प्रमुख नेता क्या ये बताएंगे कि आतंकवाद से जुड़े मामलों में सी.बी.आई. के जिन अफसरों ने अपराधियों की मदद की, उन्हें सजा के बदले पदोन्नति या विदेशों में तैनाती देकर पुरस्कृत क्यों किया गया? 

क्या वे बताएंगे कि उनके दल के सभी नेता पद संभालते समय अपनी अपनी संपत्ति का पूरा ब्यौरा जनता को क्यों नहीं देते? क्या वे बताएंगे कि सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बावजूद केन्द्रीय सतर्कता आयोग को यह अधिकार क्यों नहीं दिया गया कि आयोग उच्च पदासीन अफसरों और नेताआें के विरुद्ध भ्रष्टाचार के मामले में जांच करने के लिए स्वतंत्र हों? क्या वे बताएंगे कि उन्होंने अपने कार्यकाल में भ्रष्टाचार के आरोपित व्यक्तियों को महत्वपूर्ण पदों पर तैनात क्यों किया? क्या देश में उसी अनुभव और योग्यता के ईमानदार अफसरों की कमी हो गई है? क्या सरकार बताएगी कि सी.बी.आई. के पास भ्रष्टाचार के जो बड़े मामले ठंडे बस्ते में पड़े हैं, उनकी जांच में तेजी लाने के लिए उन्होंने क्या प्रयास किए? अगर नहीं तो क्यों नहीं? 

दरअसल कोई राजनेता देश को भ्रष्टाचार से मुक्त नहीं करना चाहता। केवल इसे दूर करने का ङ्क्षढढोरा पीटकर जनता को मूर्ख बनाना चाहता है और उसके वोट बटोरना चाहता है। यही वजह है कि चुनाव के ठीक पहले बड़े-बड़े घोटाले उछलते हैं। जब भारत के मुख्य न्यायाधीश ही मान चुके हैं कि उच्च न्यायपालिका में बीस फीसदी लोग भ्रष्ट हैं, तो कैसे माना जाए कि सैंकड़ों करोड़ों रुपए के घोटाले करने वाले राजनेताआें को सजा मिलेगी। दिवंगत हास्य कवि काका हाथरसी कहा करते थे-क्यों डरता है बेटा रिश्वत लेकर, छूट जाएगा तू भी रिश्वत देकर।-विनीत नारायण


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