सूचना मीडिया न केवल गिनती में, बल्कि गुणों में भी मजबूत हो

punjabkesari.in Friday, May 13, 2022 - 05:08 AM (IST)

वैश्विक स्तर पर प्रैस की स्वतंत्रता का धीरे-धीरे क्षरण हो रहा है। यूनेस्को द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार, वैरायटीज ऑफ डैमोक्रेसी (वी-डेम) इंस्टीच्यूट के स्वतंत्रता पर एक आंकड़ों के मुताबिक करीब 85 प्रतिशत लोग उन देशों में रहते हैं जहां गत 5 वर्षों के दौरान प्रैस की स्वतंत्रता में कमी आई है। रिपोर्टर्स विदाऊट बॉर्डर्स, अंतर्राष्ट्रीय गैर-लाभकारी संगठन जो विश्व प्रैस स्वतंत्रता सूचकांक (डब्ल्यू.पी.एफ.आई.) जारी करता है, का कहना है कि देशों के भीतर तथा बीच व्यापक ध्रुवीकरण का मीडिया की स्वतंत्रता पर विपरीत असर पड़ा है। 

यह अफसोसनाक है कि 2022 डब्ल्यू.एफ.पी.आई. में भारत की स्थिति 8 बिंदू गिर कर एक वर्ष के दौरान 150 पर पहुंच गई है। उद्घाटन 2002 डब्ल्यू.पी.एफ.आई. रिपोर्ट में भारत का दर्जा 80वां था। यह निश्चित तौर पर भारत जैसे एक जीवंत लोकतांत्रिक देश के लिए खुशगवार स्थिति नहीं है तथा भारत के विश्व भ्रमण करने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को अच्छा प्रतिबिंबित नहीं करता जो संघ-भाजपा की सफलता की कहानियां गिनाने में सफल रहे हैं। 

ऐसा दिखाई देता है कि मोदी अधिष्ठान प्रधानमंत्री के तीन देशों के हालिया यूरोपियन दौरे के दौरान भारतीय प्रवासियों से प्रधानमंत्री मोदी को मिली प्रशंसा से काफी खुश है। हालांकि भारत की लोकतांत्रिक राजनीति मोदी सरकार के अंतर्गत बेहतर गुणवत्तापूर्ण प्रशासन देखना चाहेगी। अकेला अच्छा प्रशासन ही एक गरीबीमुक्त स्वस्थ समाज के निर्माण में मदद कर सकता है। इस व्यवस्था में उन लोगों के खिलाफ कार्रवाइयों के लिए कोई स्थान नहीं होना चाहिए जो बिना किसी डर के सिस्टम की खामियों का पर्दाफाश करते हैं, चाहे कोई भी सरकार सत्ता में हो। 

भारतीय पत्रकार तथा वाशिंगटन पोस्ट में कालमनवीस राणा अयूब का मामला लें। वह ‘गुजरात फाइल्स : एनाटॉमी ऑफ ए कवरअप’ की भी लेखिका हैं। टाइम मैग्जीन ने अयूब की एक स्टोरी प्रकाशित की जिसमें उन्होंने महामारी के कुप्रबंधन के लिए भारतीय प्रधानमंत्री को जवाबदेह ठहराया। इसके बाद राणा की समस्याएं शुरू हो गईं। मोदी के समर्थकों द्वारा राणा के खिलाफ कई आधारहीन आरोप लगाए गए। भारतीय स्वतंत्र पत्रकारिता उन लोगों के लिए बोलती है जिनकी कोई जन आवाज नहीं है। सच तथा तथ्य आवश्यक तौर पर पवित्र होने चाहिएं। यही चीज कुछ पत्रकारों को अलग, लोगों का प्रिय बनाती है, उन्हें लोगों की नजर में नैतिक अधिकार भी प्रदान करती है। 

दरअसल लोगों के लोकतंत्र के हित में सच तथा स्वतंत्र प्रैस का साथ चलना आवश्यक है। स्वतंत्र प्रैस के पास भ्रष्ट प्रथाओं, निरकुंशता के साथ-साथ लोगों के नागरिक अधिकारों के साथ छेड़छाड़ का पर्दाफाश करने का अधिकार होता है। आज प्रैस की ताकत खतरे में दिखाई देती है। यद्यपि इससे ईमानदार पत्रकारों को बिना किसी डर अथवा पक्षपात के जन मुद्दों पर खुल कर बोलने से नहीं डरना चाहिए। यह संतोषजनक है कि भारतीय मीडिया ने लोकतंत्र के रखवाले के तौर पर ईमानदारीपूर्वक कार्य किया है। इसने न्याय न देने के मामलों बारे रिपोर्ट की है। इसने आमतौर पर सामंती तत्वों तथा सरकारी अधिकारियों द्वारा समाज के कमजोर वर्गों के खिलाफ की गई ज्यादतियों का खुलासा किया है। इसने भ्रष्टाचार तथा रिश्वत के लिए देश में कुछ सर्वाधिक ताकतवर लोगों का पर्दाफाश किया है। 

भारतीय मीडिया को यह जानने की ख्याति हासिल है कि कैसे और कब लोगों के सूचना के अधिकार तथा अपनी स्वतंत्रता को बचाने के लिए अधिकारियों पर झपटना है। भारतीय लोकतंत्र निश्चित तौर पर जीवंत है। ऐसा ही मीडिया है जो आमतौर पर लोकतंत्र के रखवाले के तौर पर विपक्ष की भूमिका का बदल बनता है। चौथे स्तंभ की बढ़ती हुई ताकत को हालांकि भय के साथ देखा जाता है। तो क्या? मेरा मानना है कि राजनीति में उतार-चढ़ाव की स्थिति में भय का एक तत्व होना चाहिए, हालांकि कई बार ऐसा दिखाई देता है कि खुद मीडिया में एक भय है। इसलिए, यह अक्सर राजनीतिक हत्याओं के लिए एक माध्यम के रूप में मीडिया के बढ़ते दुरुपयोग के बारे में कुलबुलाता है।

हालांकि, भारतीय लोकतंत्र को समाज के सभी वर्गों के लिए सार्थक बनाने के लिए हमें विचारों और संचार की अपनी लड़ाई को और साथ ही अनुभव सांझा करने की ललक को भी जारी रखना होगा। इसके लिए संचार देश के कोने-कोने तक पहुंचना चाहिए। शुक्र है कि इन दिनों यही हो रहा है। यह एकमात्र तरीका है जिससे हम मानसिक बाधाओं और पूर्वाग्रहों को सफलतापूर्वक ध्वस्त कर सकते हैं। इस कार्य में, हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सूचना मीडिया न केवल मात्रात्मक रूप से, बल्कि गुणात्मक रूप से भी मजबूत हो। 

इस उच्च लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए हमें सुनिश्चित करना होगा कि अधपके बुद्धिजीवियों के हाथी दांत नीचे खींचे जाएं। यह समझने की जरूरत है कि सूचना प्रवाह आज राजनीतिक, सामाजिक, आॢथक और सांस्कृतिक बाध्यताओं के साथ एक महत्वपूर्ण स्रोत है। अर्थव्यवस्था का विकास और स्वास्थ्य, संस्थानों का सुचारू कामकाज और व्यक्तियों की गुणवत्ता सूचना प्रवाह की गुणवत्ता पर निर्भर करेगा। एक प्रबुद्ध नेतृत्व निश्चित रूप से बुद्धिमानी से स्थिति का लाभ उठा सकता है और देश में परिवर्तन की नई लहरों को गति प्रदान कर सकता है। असल में, एक स्वस्थ जातिविहीन और वर्गविहीन समाज के निर्माण के लिए ‘न्यू इंडिया’ यही चाहता है। निश्चय ही यह आज एक सपना है, लेकिन ईमानदार प्रयासों से हम इस सपने को जरूर साकार कर सकते हैं!-हरि जयसिंह
    


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