भारत से आंखें फेरने में देर नहीं लगाते भारतवंशी नेता

punjabkesari.in Monday, Nov 07, 2022 - 03:57 AM (IST)

भारतवंशी ऋषि सुनक के ब्रिटेन का प्रधानमंत्री बनने पर भारत को कोई गलतफहमी नहीं पालनी चाहिए। ब्रिटेन और अमरीका के भारतवंशी राजनेताओं ने संवेदनशील मसलों पर कभी भारत का समर्थन नहीं किया, बल्कि कुछ मौकों पर तो भारत का विरोध इसलिए किया ताकि यह साबित कर सकें कि वे सच्चे ब्रिटिश या अमरीकी नागरिक हैं। भारत में उनका या उनके पुरखों का जन्म बेशक हुआ हो किंतु इस देश से उनका कोई सरोकार नहीं है।

आश्चर्य की बात यह है कि विभिन्न मौकों पर जहां भारतवंशी नेता भारत के साथ खड़े दिखाई नहीं दिए, वहीं ब्रिटिश और अमरीकी मूल के नेता -सांसद भारत के पक्ष में खड़े नजर आए। यह बात दीगर है कि भारत की तरह वोटरों को लुभाने के लिए विदेशी नेता भी धार्मिक तीज-त्यौहार मनाकर धार्मिक भावनाएं भुनाने में पीछे नहीं रहते। 

व्हाइट हाऊस ने इस बार दीपावली मना कर यही साबित किया है कि उन्हें अमरीका में बसे भारतीयों की भावनाओं का कितना ख्याल है। यह अलग बात है कि ये भावनाएं सिर्फ वहीं तक सीमित रहती हैं। जब भारत के पक्ष की बात आती है, तो विदेशी नेता आंखें फेरने में भी देर नहीं लगाते। यही वजह है कि कमला हैरिस के उपराष्ट्रपति बनने के बावजूद अमरीका की नीति में भारत को लेकर कोई बदलाव नहीं आया। हैरिस ने कभी भी भारत के पक्ष में समर्थन नहीं दिया, मुद्दा चाहे पाकिस्तान का हो या आंतरिक वीजा नियमों का। इसके विपरीत भारत में मानवाधिकारों का उल्लंघन हो या कश्मीर मसले पर पाकिस्तान का विरोध, कमला हैरिस अमरीका सरकार की पक्षधर ही बनी रहीं। 

भारत के विरोध के बावजूद अमरीका ने पाकिस्तान को 45 करोड़ डालर की मदद एफ 16 लड़ाकू विमानों की मैंटीनैंस के लिए स्वीकृत कर दी। अमरीका द्वारा दलील यह दी गई कि इस सैन्य सहायता से पाकिस्तान को आतंकियों के विरुद्ध कार्रवाई करने में मदद मिलेगी जबकि अमरीका भी इस सच्चाई से अच्छी तरह वाकिफ है कि पाकिस्तान एफ 16 लड़ाकू विमानों का इस्तेमाल भारत के विरुद्ध ही करेगा। बालाकोट स्ट्राइक के दौरान यह साबित भी हो चुका है। भारत की ओर से की गई हवाई कार्रवाई की जवाबी कार्रवाई में पाकिस्तान ने इन लड़ाकू विमानों का इस्तेमाल किया था। अमरीका की सैन्य मदद पर भारत ने विरोध जताया किंतु अमरीका का एक भी भारतवंशी नेता भारत के समर्थन में नहीं आया। 

कश्मीर और खालिस्तान के मसले पर भी इन दोनों देशों का रवैया एक जैसा रहा है। कश्मीर और खालिस्तान की मांग करने वाले पृथकतावादियों ने कई बार धरने-प्रदर्शन किए, दोनों देशों की सरकारों ने इन्हें रोकने के प्रयास नहीं किए। यू.के. सांसद तनमनजीत सिंह ढेसी ने ब्रिटिश संसद में किसानों के आंदोलन का मुद्दा उठाया। इससे पहले ढेसी ने 2020 में लंदन में खालिस्तान के जनमत संग्रह को लेकर हुई एक रैली में शिरकत की। भारत ने ब्रिटेन से इस रैली को निरस्त करने का आग्रह किया था, किंतु ब्रिटेन ने ऐसा करने से साफ इंकार कर दिया। 

भारत ने ब्रिटेन के समक्ष कई बार भारत विरोधी ताकतों के सक्रिय होने का मुद्दा उठाया है। भारतवंशी नेताओं के विपरीत सत्तारूढ़ कंजर्वेटिव पार्टी के सांसद बॉब ब्लेकमैन ने अपनी पार्टी के कश्मीरी ग्रुप समर्थक सांसदों की खिंचाई की। जबकि इसी पार्टी के सांसद के तौर पर मौजूदा प्रधानमंत्री सुनक चुप रहे। सुनक ने न सिर्फ कश्मीर-खालिस्तान बल्कि अन्य मुद्दों पर भी भारत के समर्थन में एक लाइन तक नहीं कही। ब्रिटिश संसद में कुल 15 भारतवंशी सांसद हैं। जब कभी भारत के पक्ष में बोलने का मौका आया, सभी भारतवंशी सांसद मिट्टी के माधो बने रहे। 

इसी तरह पाकिस्तान समर्थक और डैमोक्रेटिक पार्टी की सांसद इल्हान उमर ने अमरीका की प्रतिनिधि सभा में अल्पसंख्यकों खासकर मुसलमानों के मानवाधिकारों के हनन के लिए भारत की आलोचना का प्रस्ताव पेश किया था। अमरीकी सांसद रशीदा तालिब और जुआन वर्गास द्वारा सह-प्रायोजित इस प्रस्ताव में विदेश मंत्रालय से अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर अमरीकी आयोग की सिफारिशों को लागू करने का आग्रह किया गया और अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम के तहत भारत को विशेष चिंता वाला देश घोषित करने की मांग की गई।

इसके बावजूद किसी भी भारतवंशी सांसद ने इसका विरोध नहीं किया। जबकि बाइडेन प्रशासन में करीब 130 भारतवंशी महत्वपूर्ण पदों पर कार्यरत हैं। यह निश्चित है कि भारत को घरेलू या विदेशी मुद्दे पर भारतवंशी नेताओं की तरफ ताकने की बजाय खुद को समर्थ बनाना होगा, तभी ब्रिटेन और अमरीका जैसे मतलबपरस्त देश भारत को गंभीरता से लेंगे।-योगेन्द्र योगी
 


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