भारत-यू.ए.ई. सहयोग का नारा है त्रिपक्षवाद

punjabkesari.in Thursday, Dec 15, 2022 - 06:09 AM (IST)

शांतिकाल में एक वर्ष में 2 विदेश मंत्रियों के बीच 8 बैठकें कूटनीति के इतिहास में दुर्लभ मानी जाती हैं। 22 नवम्बर को नई दिल्ली में भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर और संयुक्त अरब अमीरात (यू.ए.ई.) के विदेश मामलों और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग मंत्री शेख अब्दुल्ला बिन जायद अल नाहयान के बीच पिछले 18 महीनों में निजी तौर पर 8वीं संरचित बैठक थी। पिछले एक वर्ष में किसी अन्य विदेश मंत्री ने भारत के साथ शेख अब्दुल्ला बिन जायद के जितना जुड़ाव नहीं रखा है। पिछले कैलेंडर वर्ष में संयुक्त अरब अमीरात के विदेश व्यापार राज्य मंत्री थानी बिन अहमद अल जायोदी भारत आने वाले सबसे अधिक आधिकारिक आगंतुक थे।

भारत के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल द्वारा अल जायोदी की यात्राओं के कारण इस फरवरी में दोनों पक्षों के बीच एक व्यापक आॢथक सांझेदारी समझौते (सी.ई.पी.ए.) पर हस्ताक्षर किए गए। सी.ई.पी.ए. की वजह से माल में द्विपक्षीय व्यापार को 5 सालों के भीतर 100 अरब डालर तक ले जाने का लक्ष्य रखा गया है। अब यह 73 बिलियन डालर का है। सेवाओं में व्यापार 15 बिलियन डालर का होने वाला है। अगस्त 2015 में यू.ए.ई. की अपनी पहली यात्रा के बाद खाड़ी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पथ-प्रदर्शक पहुंच का परिणाम दोनों पक्षों के बीच एक गहन और चौतरफा जुड़ाव रहा है जिसके पिछले 8 वर्षों में भारतीय कूटनीति में कोई सामांतर नहीं है।

मोदी से पहले संयुक्त अरब अमीरात का दौरा करने वाली आखिरी प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी थीं जिन्होंने 1981 में वहां की यात्रा की थी। 2019 में यू.ए.ई. के सुल्तान बिन अहमद अल जाबेर किसी भी देश के एकमात्र मंत्री थे जिन्होंने नई दिल्ली की सबसे ज्यादा यात्राएं कीं। उनकी यात्राएं अक्सर कुछ घंटों से अधिक नहीं चलती थीं। उद्योग और उन्नत प्रौद्योगिकी मंत्री के रूप में अल जाबेर के वर्तमान पोर्टफोलियो की तुलना में भारत के लिए अधिक महत्वपूर्ण राष्ट्रीय तेल समूह, अबू धाबी नैशनल आयल कंपनी (ए.डी.एन.ओ.सी.) के प्रबंध निदेशक और समूह सी.ई.ओ. के रूप में उनकी भूमिका है। अल-जाबेर के साथ भारत के जोरदार जुड़ाव ने यू.ए.ई. के साथ अपने ऊर्जा संबंधों को खरीददार-विक्रेता से ऊर्जा सुरक्षा भागीदार में बदल दिया।

आज ए.डी.एन.ओ.सी. से तेल भारत के सभी सामरिक पैट्रोलियम भंडारों में संग्रहित है और पहली बार भारतीय कंपनियां परस्पर सहमत रियायत समझौतों के तहत अबू धाबी में तेल के लिए ड्रिङ्क्षलग कर रही हैं। ठोस परिणामों के संदर्भ में जिसे कि अक्सर भारत के सार्वजनिक संवाद में कम करके आंका जाता है, अमरीका के साथ परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर किए जाने के बाद से यू.ए.ई. विदेशी मामलों में भारत की सबसे बड़ी सफलता की कहानी है। अबू धाबी ने भारत के बुनियादी ढांचा क्षेत्र में 75 बिलियन डालर का निवेश करने के लिए प्रतिबद्धता जताई है।

इससे संयुक्त अरब अमीरात प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के मामले में भारत में सातवां सबसे बड़ा निवेशक बन गया है। दोनों देशों ने ऐसे समय में खाद्य सुरक्षा पर रणनीति बनाई है जब दुनिया भर में भोजन की उपलब्धता एक प्रमुख ङ्क्षचता का विषय है। यूक्रेन में रूसी हमले के बाद ऐसी चिंता और गहरी हो गई थी। इस रणनीति के तहत यू.ए.ई. में संस्थानों ने यह घोषणा की है कि अगले 3 वर्षों में भारत के साथ खाद्य क्षेत्र में 7 बिलियन डालर तक का निवेश किया जाएगा।

यू.ए.ई. के राष्ट्रपति शेख मोहम्मद बिन जायद अल नाहयान के साथ मोदी की नियमित बातचीत की सबसे महत्वपूर्ण कूटनीतिक उपलब्धि, पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को इस्लामिक सहयोग संगठन (ओ.आई.सी.) के 2019 में अबू धाबी के पूर्ण सत्र में सम्मानित अतिथि के रूप में आमंत्रित करना था। सर्वव्यापी भारत-यू.ए.ई. रिश्तों में सबसे महत्वपूर्ण क्षण तब था जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 3 वर्ष पूर्व तत्कालीन राष्ट्रपति शेख खलीफा बिन जायद अल नाहयान द्वारा यू.ए.ई. का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार ‘आर्डर ऑफ जायद’ प्रदान किया गया था।  वर्तमान यू.ए.ई. के राष्ट्रपति 2017 में भारत में गणतंत्र दिवस पर मुख्यातिथि थे।

भारत-यू.ए.ई. सहयोग के लिए  अगला फ्रंटियर क्या है? : दोनों देश वर्तमान में अपने द्विपक्षीय जुड़ाव को त्रिपक्षीय और बहुपक्षीय स्तरों पर उन्नत करके भूगोल और बाजार विषमता की अंतनिर्हित सीमाओं को दूर करने के लिए कार्य कर रहे हैं। यू.ए.ई. और इसराईल के बीच अब्राह्म समझौते पर हस्ताक्षर करने के दो वर्ष बाद भारत इस देश के वित्तीय और रसद संसाधनों के साथ इस देश के विशाल बाजार के लिए इसराईल की अत्याधुनिक उन्नत तकनीक का उपयोग करने के लिए आगे बढ़ा है।

पिछले वर्ष एक इसराईली कंपनी इकोपिया द्वारा भारत में स्वायतत: जलमुक्त रोबोट बनाने का निर्णय लिया गया है जिसे अमीरात में सौर सफाई परियोजनाओं में तैनात किया जाएगा। ऐसी और त्रिपक्षीय पहलें भविष्य में होने की संभावनाएं हैं। पूरे अफ्रीका में बड़े भारतीय व्यापारिक समुदाय हैं जिन्हें महत्वाकांक्षी लक्ष्य के लिए यू.ए.ई. के वित्तीय संसाधनों के साथ उपयोग किया जाएगा। मोदी ने 7 साल पहले जो शुरू किया था उसके अगले चरण में ‘त्रिपक्षवाद’ भारत-यू.ए.ई. सहयोग का नारा है। -के.पी. नैय्यर (साभार ‘आई.ई.’)


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News