कैशलेस अर्थव्यवस्था की ओर भारत

punjabkesari.in Thursday, Feb 23, 2017 - 01:19 PM (IST)

एक प्रचलित कहावत है ‘जिसकी जेब नोटों से भरी हो, वही ध्नी होता है’ परंतु सूचना तकनीक इस कहावत को मिथ्या साबित करने के काफी करीब पहुंच चुकी है। अब लोग रूपया या डाॅलर के स्थान पर स्मार्ट कार्डों से अपने बटुए को भरना चाहते हैं। भुगतान या विनिमय की प्रणाली वस्तु विनिमय से आरंभ होकर आहत सिक्के, सिक्के, हुंडी, कागजी मुद्रा तथा विटक्वाइन जैसी डिजिटल या आभासी मुद्रा तक पहुंच चुकी है। यदि अर्थव्यवस्था उन्नत हो, तो समाज भी उन्नत होता है। जिस देश की अर्थव्यवस्था मजबूत होती है, वह देश एवं समाज, ज्ञान एवं तकनीक में भी उन्नत होता है। यह बात नार्डिक देशों नाॅर्वे, डेनमार्क, आइसलैंड एवं स्वीडन के संदर्भ में सटीक प्रतीत होती है। इन देशों मे तकनीक के प्रति अत्यध्कि लगाव है इसलिए तकनीक के प्रत्येक क्षेत्रा में नए अनुप्रयोगों को वहां की जनता हाथों-हाथ लेती है।

स्वीडिश बैंकों में सूचना तकनीक का पहले से ही बड़े पैमाने पर प्रयोग होता रहा है, कई स्वीडिश बैंकों की सभी शाखाएं शत-प्रतिशत डिजिटल हैं। इस वजह से स्वीडिश मुद्रा क्रोन का प्रचलन बाजार में न्यूनतम हो गया है। स्वीडिश क्रोन केवल तीन-चार प्रतिशत की लेन-देन में प्रयुक्त होती है जबकि 96-97 प्रतिशत भुगतान बैंकिंग के इलेक्ट्राॅनिक माध्यमों से हो रहा है। स्मार्ट फोन के आ जाने से मोबाइल पेमेंट सिस्टम सर्व सुलभ हो गया है। वैश्वीकरण के दौर में किसी भी ज्ञान या तकनीक का प्रसार शीघ्रता से विश्व भर में हो जाता है। इसलिए कैशलेस अर्थव्यवस्था को भी सभी देशों में स्वीकृति मिल रही है। भारत में भी स्वदेश रूपे कार्ड से भुगतान हो रहा है। यूं तो अर्थशास्त्रा बेहद गूढ़ विषय माना जाता रहा है, किन्तु हालिया नोटबंदी से उपजे हालातों ने तमाम नागरिकों को अर्थशास्त्रा की कई शब्दावलियों से परिचित कराया है।

‘कैशलेस इकाॅनमी’ इन दिनों खूब सुना जा रहा है, जिसका सीध मतलब यही है कि ‘टेक्नोलाॅजी’ की सहायता से आप प्रत्येक लेन देन करें, जिसमें कैश के आदान-प्रदान की कोई आवश्यकता नहीं। क्रेडिट/डेबिट कार्ड के साथ-साथ इन्टरनेट बैंकिंग, मोबाइल बैकिंग, डिजिटल वाॅलेट जैसी सुविधओं को इसमें गिनाया जा सकता है, हालाँकि, तमाम प्रचार के बावजूद देश की आबादी का बड़ा हिस्सा आज भी कैश पर ही डिपेंडेंट है। लोगों के पास क्रेडिट/डेबिट कार्ड जरूर हैं, किन्तु उसका प्रयोग लोग एटीएम से पैसा निकालने के लिए ही ज्यादा करते हैं, सीधी खरीददारी के लिए कम! इसके पीछे जो मुख्य कारण हैं, उनमें हर जगह प्लास्टिक मनी लेने की सुविध नहीं होना और डेबिट/क्रेडिट कार्ड से जुड़ी असुरक्षा की भावना है। आखिर, डेबिट/क्रेडिट  की तमाम खबरें यूं ही तो नहीं आती हैं न! चूंकि, भारत अब इस दिशा में कदम बढ़ा चुका है। आजाद भारत के इतिहास में आज का वक्त ऐसा बिरला है कि हर नागरिक उन बातों को सुन रहा है जो हकीकत नहीं है।

सब तरफ एक प्रचार है कि बिना नकदी के जीवन जीया जा सकता है। जेब में पैसे की जरूरत नहीं है क्योंकि फोन है, विभिन्न प्रकार के कार्ड है तो उससे लेन-देन करें। मेरा और आपका मोबाइल फोन बात करते-करते नेटवर्क न होने से कटता है। दिल्ली और एनसीआर में इंटरनेट घंटो गायब रहता है लेकिन हम नागरिकों की यह आदत बनाने की कोशिश है कि वैसे जीयो जैसे स्वीडन, डेनमार्क, योरोप, अमेरिका में लोग जीते हैं। 8 नवम्बर को नोटबंदी की घोषणा के बाद कैशलेस आर्थिकी के प्रचार का जो महाअभियान चला है उससे नकदीरहित लेन देन कितनी बढ़ी इसका प्रमाणिक आंकड़ा अभी नहीं है। मगर पूरे देश ने यह जरूर जान लिया है कि ऐसा कुछ है जो नोट का, नकदी का विकल्प है। सो सरकार कह सकती है कि वह जागरूकता बना रही है। पर जागरूकता क्या हकीकत बनवा सकती है? क्या भारत के सवा सौ करोड़ लोगों में बिना नकदी के लेन-देन का व्यवहार बनेगा? नोटबंदी की घोषणा से पहले भारत के 80 से लेकर 90 प्रतिशत लोगों के नकदी में लेन-देन करने के अनुमान थे।

प्रधनमंत्राी नरेन्द्र मोदी ने कहा है कि नकद नोट होना भी भ्रष्टाचार की वजह है। नकदी और नोटों में व्यवहार नहीं होगा तो भ्रष्टाचार नहीं होगा। सो कैशलेस आर्थिकी बनाने का मकसद भ्रष्टाचार से जोड़ा है। भारत सरकार के मंत्राी दावा कर रहे हैं कि डिजिटल लेनदेन और कैशलेस खरीद फरोख्त में चार सौ से लेकर एक हजार फीसदी तक का इजाफा हुआ है। प्रधनमंत्राी नरेंद्र मोदी अपनी सभाओं में लोगों को समझा रहे हैं कि उनका मोबाइल ही उनका बैंक है। वे लोगों को प्रेरित कर रहे हैं कि उन्हें मोबाइल बैंकिंग करनी चाहिए, आॅनलाइन बैकिंग करनी चाहिए और डिजिटल लेनदेन की ओर बढ़ना चाहिए। सरकार ने नोटबंदी का अभियान काले ध्न को खत्म करने, आतंकवाद और नक्सलवाद पर लगाम लगाने, भ्रष्टाचार रोकने और जाली नोट की समस्या को दूर करने के लिए शुरू किया था।

भारत की अर्थव्यवस्था में 86 फीसदी कैश हजार और पांच सौ के नोट के रूप में थे। नोटबंदी के फैसले का एक असर यह हुआ कि पेटीएम आदि जैसे माध्यमों से भुगतान का चलन बढ़ा है। मोबाइल से भुगतान करने के मामले में पेटीएम भारत की सबसे बड़ी कंपनी है। पेटीएम का कहना है कि उसके व्यवसायिक लेन-देन में सात सौ फीसदी का इजाफा हुआ है और हर दिन होने वाला लेन-देन पचास लाख तक पहुंच चुका है। पेटीएम का यह भी दावा है कि एप डाउनलोड करने वालों की संख्या में तीन सौ फीसदी का इजाफा हुआ है। कुछ दिन पहले तक पेटीएम के जरिए 85,000 व्यापारी जुड़े हुए थे। कंपनी का लक्ष्य मार्च 2017 तक पचास लाख व्यापारी जोड़ने का है। पेटीएम का चीन की बड़ी ई-काॅमर्स कंपनी अलीबाबा के साथ एलायंस है। नोटबंदी की घोषणा के बाद से उसके व्यवसाय में बढ़ोत्तरी हुई है।

अब यह कंपनी छोटे शहरों और कस्बों में अपने दफ्रतर खोल रही है ताकि अपना व्यवसाय और बढ़ा पाए। मोबीक्विक जैसी मोबाइल सेवाओं के ग्राहकों में भी इजाफा हुआ है। लेकिन ये सिर्फ मोबाइल एप कंपनियां ही नहीं हैं जो ग्राहकों को लुभाने में लगी हुई हैं। बल्कि बड़े पैमाने पर भारतीय बैंक भी लोगों को कैश-लेस लेन-देन के लिए आॅनलाइन बैकिंग और मोबाइल सेवाओं की मदद लेने को कह रहे हैं। स्मार्टफोन के लिहाज से चीन के बाद भारत दूसरा बड़ा बाजार है। इसके साथ ही इंटरनेट यूजर्स की संख्या में भी इजाफा हुआ है। फिलहाल देश में 40 करोड़ से भी ज्यादा इंटरनेट यूजर्स हैं। उम्मीद है कि 2020 तक यह संख्या 70 करोड़ तक पहुंच जाएगी। इसके बावजूद अभी भी देश में आॅनलाइन और मोबाइल सेवा से खरीददारी करने वालों की संख्या देश की सवा अरब आबादी की तुलना में बहुत कम है। भारत की आधी से ज्यादा आबादी देहाती इलाकों में रहती है। इन इलाकों में मोबाइल कवरेज मिलना अभी भी एक मसला है और यह कैशलेस इंडिया की चुनौती को और बढ़ाने वाला है।

भारत में पिछले दो सालों के अंदर लाखों बैंक अकाउंट खोले गए हैं, देश में अभी भी 65 करोड़ के पास डेबिट कार्ड हैं और ढाई करोड़ के पास क्रेडिट कार्ड हैं। डेबिट कार्ड की संख्या में तेजी से इजाफा हो रहा है। भारत में 1000 और 500 की नोटबंदी के फैसले ने देश की कुल नगदी के 86 फीसदी को रद्दी कर दिया। वित्त मंत्राी अरूण जेटली के अनुसार काले धन और कर चोरी पर नकेल कसने के अलावा देश की अर्थव्यवस्था को नगदविहीन ;कैशलेसद्ध अर्थव्यवस्था बनाने की ओर यह एक बड़ा कदम है। डिजिटल लेनदेन हर लिहाज से सुरक्षित है। इसके जरिए सरकार कर चोरी और भ्रष्टाचार पर कड़ी नजर रख सकती है। एक्सपोर्ट बिजनेस कंसलटेंट वासिक नदीम खान का कहना है कि कैशलेस व्यवस्था मेट्रो शहरों में कामयाब हो सकती है लेकिन हाथरस, दादरी, बुलंदशहर, रेवाड़ी, मेवात आदि जैसे कस्बों में नहीं चल सकेगी। अर्थात् छोटे-छोटे शहरों में संभव नहीं है। पश्चिमी देश तो काफी पहले से डिजिटल लेनदेन कर रहे हैं। दूसरे मुल्क भी इसकी तैयारी कर रहे हैं। दक्षिण कोरिया ने 2020 तक देश की अर्थव्यवस्था को पूरी तरह से नगदविहीन करने का लक्ष्य रखा है। स्वीडन में 89 फीसदी, ब्रिटेन में 89 फीसदी, कनाडा में 90 फीसदी,  और बेल्जियम में 93 प्रतिशत कारोबार, लेन-देन डिजिटल आधरित है लेकिन भारत में 85 फीसदी से भी ज्यादा कारोबार नगद में होता है।

भारत में नगदविहीन अर्थव्यवस्था इसलिए भी चुनौतिपूर्ण है क्योंकि यहां की रीढ़ की हड्डी यानी कृषि अर्थव्यवस्था पूरी तरह से नगद पर टिकी है। नगदविहीन अर्थव्यवस्था में सबसे बड़ा रोड़ा है डेटा प्राइवेसी और साइबर सुरक्षा कानून का न होना। देश के जानेमाने साइबर सुरक्षा कानून विशेषज्ञ एडवोकेट पवन दुग्गल बताते हैं कि नगदविहीन अर्थव्यवस्था बनाने का विचार सही दिशा में सही कदम है लेकिन बिना तैयारी के। बेशक रिजर्व बैंक आॅफ इंडिया ने भारत की सबसे बड़ी माॅबिकविक और आॅक्सीजन जैसे ई-वाॅलेट को मान्यता दे दी है लेकिन इनके जरिए लेन-देन समझौते के तहत होता है जबकि यह कानून के तहत होना चाहिए। आज कड़े साइबर सुरक्षा कानून की जरूरत है। आज डिजिटल नेटवकिंग हो रही है, तो हाल ही में 32 लाख एटीएम हैक होना यह चेताता है कि साइबर सुरक्षा के नाम पर अलग कानून हो। ज्यादातर बैंक एटीएम अभी भी 15 वर्ष पुराना विंडोज एक्सपी का प्रयोग कर रहे हैं जो सुरक्षा के लिहाज से कमजोर हैं।

विश्व बैंक अनुसार 2011 से 2014 तक बैंक अकाउंट पैनिटेशन 35 फीसदी से बढ़कर 53 फीसदी हो गया था। इसकी वजह अगस्त 2014 में लागू जनध्न योजना है। योजना के तहत 97 फीसदी खाते पब्लिक बैंक में खोले गए लेकिन, 2 फीसदी खाते शून्य हैं। विश्व बैंक की रिपोर्टानुसार खाताधरकों में से केवल 39 फीसदी लोगों के पास डेबिट कार्ड या एटीएम हैं। भारत में दूसरे देशों के मुकाबले बैंक अकाउंट पेनिट्रेशन काफी कम हैं और बैंक अकाउंट के जरिए लेन-देन उससे भी कम, महज 15 फीसदी जबकि ब्राजील और चीन में यह 40 फीसदी है। बावजूद इसके देश अब डिजिटल मीडियम में बदलने की तैयारी कर रहा है। सरकार के हालिया कदम के बाद छोटे कारोबारियों में प्वाइंट आॅफ सेल ;पीओएसद्ध टर्मिनल्स की मांग डबल हो गई है। पांच सौ और 1,000 रूपये के पुराने नोटों पर प्रतिबंध् के बाद देश की तीन सबसे बड़ी टेलिकाॅम कंपनियों-भारती एयरटेल, वोडाफोन की बढ़ोतरी होने का अनुमान है।

नोटबंदी के बाद उपजी स्थिति से निपटने और कैशलेस अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ने के लिए सरकार ने एक समिति गठित की है। 13 सदस्यों वाली इस समीति में 6 राज्यों के मुख्यमंत्रियों को शामिल किया गया है। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्राी एन चन्द्रबाबू नायडू इस समीति के संयोजक होंगे। उनके अलावा ओडिशा के मुख्यमंत्राी नवीन पटनायक, मध्य प्रदेश के शिवराज सिंह चैहान, सिक्किम के पवन चामलिंग, पुद्दुचेरी के वी नारायणसामी और महाराष्ट्र के देवेंद्र फडणवीस इसमें शामिल होंगे। मुख्यमंत्रियों के अतिरिक्त नीति आयोग के उपाध्यक्ष अरविंद पनगडिया, सीईओ अमिताभ कांत इसके सदस्य हैं। वहीं विशिष्ट पहचान प्राध्किरण के पूर्व चेयरमैन नंदन नीलेकणि, बोस्टन कंसल्टिंग समूह के चेयरमैन जनमेजय सिन्हा, नेटकोर के प्रबंध् निदेशक राजेश जैन, आईस्पिरिट के सह-संस्थापक शरद शर्मा और भारतीय प्रबंध्न संस्थान अहमदाबाद में वित के प्रोफेसर जयंत वर्मा इस समीति में विशेष आमंत्रित होंगे।

यह समिति कैशलेस लेनदेन की दिशा में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनाए जा रहे तौर तरीकों के आधर पर भारत में अपनाए जाने वाले उपयुक्त कदम की पहचान करेगी। समिति उसके आधर पर राज्यों में प्रशासनिक ढांचा तैयार करने के सुझाव भी देगी। इसके अलावा  प्रीपेड कार्ड, डिजिटल वालेट, इंटरनेट बैकिंग, एकीकृत भुगतान इंटरफेस, बैकिंग एप इत्यादि डिजिटल भुगतान माध्यमों के तेजी से विस्तार और अपनाने पर भी विचार करेगी और एक साल में इस कार्य को लागू करने के लिए एक रूप रेखा तैयार करेगी।

आजादी की लड़ाई के बाद संभवतः नोटबंदी ही ऐसा कदम है, जिसमें समूचा भारत व्यापक स्तर पर प्रभावित हुआ है, क्या गरीब, क्या अमीर, क्या छोटा, क्या बड़ा, क्या बुजुर्ग, क्या महिलाएं हर एक व्यक्ति को नोट बंदी के फैसले ने गहराई तक प्रभावित किया है, अगर हम बात करते हैं इसके फायदे और नुकसान के बारे में तो इसका आकलन एक शब्द में,हां या ना के रूप में करना न्यायोचित नहीं होगा। इसी के साथ लोग बड़ी संख्या में बैकिंग की ओर मुड़े हैं, तो देश की आधी आबादी यानी, महिलाएं भी बैंकिंग से सीधे तौर पर जुड़ी हैं, निश्चित रूप से इसके अन्य लाभों में बड़ी संख्या में नकली नोटों की रोकथाम है तो काफी हद तक आतंकवाद और अंडरवल्र्ड की फंडिग को भी एकबारगी बड़ा झटका लगा है हालाँकि, सबसे बड़े मुद्दे काले धन की समानांतर अर्थव्यवस्था पर जिस कंट्रोल की बात कही गई थी वह कितना सफल हुआ है इस बारे में बड़ा विवाद है, तो भ्रष्टाचार पर भी किस कदर अंकुश लगा है या अंकुश लगेगा। इस बात की ठोस तसवीर सामने नहीं आ रही है।

प्रधनमंत्राी मोदी का यह फैसला भले ही शुरूआती दिनों के लिए अच्छा हो लेकिन करीब सवा अरब की आबादी वाले देश में इसे लेकर तमाम चुनौतियां और खतरे भी हैं, जिन्हें किसी भी तरह से नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है, खासकर ऐसे देश में जिसमें 80 फीसदी बाजार और उसकी अर्थव्यवस्था की लेन-देन नगदी पर टिकी है। यह सबसे बड़ा सवाल है कि अगर नकद लेन-देन को खत्म करके लोग कैशलैस सोसायटी की ओर ध्यान देते हैं तो कितने लोगों को इसका लाभ मिलेगा, भारत की पूरी आबादी करीब सवा अरब है, ट्राई द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार देश में 70 करोड़ के करीब लोगों के पास मोबाइल कनेक्शन हैं।

भारतीय करेंसी का दर्शन आने वाले वक्त में दुर्लभ होने वाला है। नोटों की गड्डिायां तो दूर पाॅकेट और पर्स तक में नोट नजर नहीं आने वाले। असल में केन्द्र सरकार की मंशा कैशलेस ट्राजंक्शन को कल्चर में लाना चाहती है। कोशिश होगी भारतीय अर्थव्यवस्था को कैशलेस बनाने की। इसके लिए लुभावनी योजनाएं या यूं कह लीजिए डिजिटल ट्राईजंक्शन पर डिस्काऊंट देने की स्कीम लांच कर दी गई है। वित मंत्राी अरूण जेटली ने आज मीडिया को आमंत्रित कर डिजिटल ट्राजंक्शन पर जोर दिया। उन्होंने कहा, हमारी कोशिश है कि ज्यादा से ज्यादा लेन देन डिजिटल हो जाए। बैंक भी यह प्रयास कर रही है। क्रेडिट कार्ड, डिजीटल वाॅलेट को प्रोत्साहित किया जाए। सरकार इसे और प्रोत्साहित करने की कोशिश कर रही हैं।

वित मंत्राी ने डिजिटल पेमेंट करने पर कई तरह के डिस्काऊंट की घोषणाएं की। इन छूट के जरिये सरकार कैशलेस अर्थव्यवस्था की तरफ कदम बढ़ा रही है। सरकार ने इसी दिशा में तमाम खास फैसले लिए। वित मंत्राी ने कहा, कई फैसले तुरंत लागू होंगे और कुछ को लागू होने में थोड़ा वक्त लगेगा, हमारी कोशिश है कि मौजूदा स्थिति में कैशलेस लेनदेन को तेज किया जाए।नोटबंदी के बाद देश को कैशलेस अर्थव्यवस्था बनाने के लिए सरकार ने कमर कस ली है इसी सिलसिले में सरकार डिजिटल पेमेंट से जुड़ी एक नई योजना लाने वाली है। नीति आयोग ने डिजिटल पेमेंट करने वालों को प्रोत्साहित करने के लिए लकी ड्राॅ निकालने की सिफारिश की है। इस लकी ड्राॅ के जरिए विजेता को बड़े इनाम दिए जाएंगे। गरीबों, छोटे कारोबारियों और निम्न मध्यवर्गीय लोगों के लिए इस योजना की शुरूआत की जाएगी। आयोग ने कहा है कि हम इस बात को पुख्ता करेंगे कि 8 नवंबर को हुए नोटबंदी के एलान के बाद जिन लोगों ने डिजिटल भुगतान को अपनाया है, वे सारे लोग इस योजना का हिस्सा बनने के काबिल हों।

वित मंत्रालय की ओेर से डिजिटल भुगतान करने वालों को प्रोत्साहित करने के लिए रकम और छूट का एलान किया गया था। इसके बाद नीति आयोग ने ‘नेशनल पेमेंट्स काॅरपोरेशन आॅफ इंडिया’ को लकी ड्राॅ निकालने की सिफारिश की है। आयोग ने डिजिटल भुगतान करने वालों के लिए साप्ताहिक, मासिक या त्रौमासिक लकी ड्राॅ निकालने की बात कही है। यह योजना खासतौर पर गरीबों, छोटे कारोेबारियों और निम्न मध्यम वर्गीय लोगों में डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देने पर केंद्रित रहेगी। आयोग ने लकी ड्राॅ के लिए सप्ताह में लेनदेन की एक खास पहचान चिन्हित कर उसे त्रौमासिक पुरस्कार दी जाने की बात कही है। डिजिटल भुगतान के लिए अपनाए जाने वाले अनस्ट्रक्चर्ड सर्विस डाटा ;यूएसएसडीद्ध, आधर एनेबल्ड पेमेंट सिस्टम ;एईपीएसद्ध, यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस ;यूपीआईद्ध और रूपे कार्ड जैसे सारे तरीके इस योजना में शामिल किए जाएंगे। कारोेबारियों की ओर से ‘प्वाइंट आॅफ सेल मशीन’ से हुए भुगतान पर भी विचार किए जाने की बात कही गई है।

इससे पहले वित्त मंत्रालय ने डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देने के लिए पेट्रोल-डीजल की खरीद, बीमा प्रीमियम, हाइवे टोल और सीजनल रेल टिकट वगैरह में छूट का एलान किया था। रू. डेबिट एवं क्रेडिट कार्ड अथवा ऐसे ही किसी अन्य डिजिटल तरीके से आप यदि पेट्रोल या डीजल खरीदते हैं, बीमा पाॅलिसी का भुगतान करते हैं या फिर रेलवे टिकट लेते हैं तो आपको कुछ छूट दी जायेगी। वित्त मंत्राी अरूण जेटली ने नकदीरहित आर्थिक गतिविध्यिों को बढ़ावा देने के लिए खरीद फरोख्त में डिजिटल भुगतान करने पर रियायत और सेवा कर में छूट के बारे में जानकारी दी। सरकार ने कालेध्न को निकाल बाहर करने के लिए 500 और 1,000 रूपए का पुराना नोट बंद कर दिया जिसके बाद अर्थव्यवस्था में नकदी की भारी तंगी आ गयी है। इस स्थिति से निपटने के लिए सरकार डिजिटल भुगतान को तेजी से बढ़ावा दे रही है। जेटली ने कहा है, हम लोग जरूरत से ज्यादा लेनदेन नकदी में करते हैं, आठ नवंबर की स्थिति के मुताबिक बहुत ही कम भुगतान डिजिटल तरीके से किया जाता रहा है, उन्होंने कहा कि नकदी में लेनदेन पर लागत आती है जिसकी कीमत अर्थव्यवस्था को चुकानी पड़ती है।

2,000 रूपए से कम के लेनदेन पर सेवाकर छूट देने का राजस्व पर असर पड़ेगा क्योंकि वर्तमान में 70 प्रतिशत से अध्कि लेनदेन इससे कम राशि में ही होता है। निजी क्षेत्रा की सेवाओं में भी रियायत दी जायेगी के सवाल पर जेटली ने कहा, यह सार्वजनिक उपक्रमों ने निर्णय लिया है, निजी क्षेत्रा को प्रतिस्पर्ध के इस दौर पर खुद फैैसला लेना है। वह महंगा पेट्रोल, डीजल बेचने के लिए स्वतंत्रा हैं। जेटली ने कहा कि देश भर में पेट्रोल पंपों पर करीब साढ़े चार करोड़ ग्राहक 1,800 करोड़ रूपए के डीजल पेट्रोल की खरीद करते हैं। इसका केवल 20 प्रतिशत भुगतान कार्ड से किया जाता था। पिछले एक महीने में डिजिटल भुगतान का अनुपात बढ़ कर 40 प्रतिशत हो गया है। वित्त मंत्राी ने कहा कि सरकार चाहती है कि पेट्रोल पंपों पर कार्ड या इ वालेट से होने वाला भुगतान 70 प्रतिशत तक पहुंच जाएगा इससे वर्ष में नकद भुगतान में दो लाख करोड़ रूपए की कमी आएगी।

नाबार्ड पात्रा बैंकों को 10.10 हजार से कम की आबादी वाले एक लाख गांवों में दो-दो पीओएस मशीनों की सुविध का विस्तार करने के लिए वित्तीय मदद देगा। ये मशीनें प्राथमिक सहकारी समितियां, दुग्ध् समितियां कृषि साध्न विक्रेताओं को दी जाएगी ताकि उनके माध्यम से खेती से संबंध्ति लेन देन किया जा सके। आर्थिक मामलों के सचिव, शक्ति कांत दास ने डिजिटल भुगतान के प्रोत्साहन के इन निर्णयों को पास पलटने वाली पहल बताया। मोदी सरकार ने नगदीरहित यानी कैशलेस अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए दो तरह के पुरस्कारों की घोषणा की है। इसके तहत एक करोड़ का इनाम रखा गया है। उपभोक्ताओं के लिए ‘लकी ग्राहक योजना’ और व्यापारियों के लिए ‘डिजी ध्न व्यापारी योजना’ शुरू की है। उपभोक्ता और कारोबारियों को आॅनलाइन भुगतान के लिए प्रोत्साहित करने के लिए सरकार ने 340 करोड़ रूपये के बजट की दो योजनाएं पेश की हैं। डिजिटल भुगतान को प्रोत्साहन देने के प्रयास के तहत सरकार ने उपभोक्ताओं और व्यापारियों के लिए दो योजनाओं की घोषणा की।

नीति आयोग के मुख्य कार्यकारी अध्किारी ;सीईओद्ध अमिताभ कांत ने यह जानकारी दी कि आॅनलाइन 50 रूपए से लेकर अध्कितम 3000 हजार रूपये के लेनदेन पर ‘लकी ग्राहक योजना’ के तहत रोजाना के साथ-साथ साप्ताहिक ड्राॅ के आधर पर अध्कितम एक लाख रूपये का पुरस्कार दिया जाएगा। ‘डिजि ध्न योजना’ व्यापारियों को लक्ष्य करके लाई गई है, उसे अध्कितम 50 हजार रूपये का पुरस्कार दिया जाएगा, यह दोनों योजनाएं 25 दिसबंर 2016 से शुरू होकर 14 अप्रैल 2017 तक चलेगी। 14 अप्रैल को उपभोक्ताओं को ‘महापुरस्कार’ क्रमशः एक करोड़, 50 लाख और 25 लाख रूपये का दिया जाएगा, जबकि व्यापारियों को 50 लाख, 25 लाख और 5 लाख रूपये दिये जाएंगे। ‘लकी ग्राहक योजना’ के तहत रोज 15000 विजेताओं का चयन होगा और हर विजेता को 1000 रूपए का इनाम दिया जाएगा। यह योजना 100 दिन तक चलेगी। ‘डिजिटल ध्न व्यापारी योजना’ के तहत हर हफ्रते 7 हजार इनाम दिए जाएंगे और अध्कितम राशि 50 हजार रूपए होगी।

नोटबंदी की बहस के बीच डिजिटल क्रांति शुरू हो चुकी है। नोटबंदी के 50 दिन बाद नफा और नुकसान की गणना तो सरकार कर ही लेगी, लेकिन जो बात वाकई तारीफ के काबिल है वो ये कि 50 दिनों में ही भारत ने डिजिटल पेमेंट में कई गुना तरक्की कर ली है। ये किसी भी देश के लिए गर्व की बात हो सकती है। सरकार देश की कैशलेस अर्थव्यवस्था की तरफ ले जाने की बात कह रही है, लेकिन यह काम आसान नहीं है। वित्तीय मामलों की संसद की स्थायी समीति ने नोटबंदी पर बैठक की और महसूस किया कि इसके लिए आईटी नेटवर्क को और मजबूत करनेे की जरूरत है। सरकार सिर्फ तीन फीसदी की कैशलेस अर्थव्यवस्था से सीधे 100 फीसदी कैशलेस की छलांग लगाने की बात कर रही है। संसद की स्थाई समीति की बैठक में इस बात पर विशेष तौर पर चर्चा हुई कि भारतीय अर्थव्यवस्था को कैश से कैशलेस की तरफ ले जाने के रास्ते में एक बड़ी अड़चन मौजूदा आईटी नेटवर्क को लेकर है। जब बरसों की मशक्कत के बाद दस फीसदी से भी कम अर्थव्यवस्था कैशलेस हो पाई है तो इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस राह पर आगे बढ़ना कितना मुश्किल होगा।

लाइन में लगना छोड़ना है तो कैशलेस अर्थव्यवस्था जरूरी है। इससे कालाध्न, जाली नोट तो रूकेंगे साथ ही अर्थव्यवस्था मजबूती की ओर बढ़ेगी जिसके चलते रूपये की अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कीमत बढ़ेगी। रूपये की कीमत बढ़ने से लोगों का जीवन स्तर और सुध्रेगा तथा महंगाई दोगुना कम हो जाएगी। नोटबंदी के बाद देश का पहला कैशलेस गांव बना महाराष्ट्रा का ध्सई गांव। आप यहां अपने कार्ड से एक रूपये की चाॅकलेट खरीद सकते हैं और लांड्री पर कपड़े भी धुलवा सकते हैं। सब्जी और दूध् वाले के पास भी यहां स्वाइप मशीन है। जनध्न योजना जब शुरू हुई तब यहां से सभी लोग इस योजना से जुड़ गए थे और सब सभी के खाते तो हैं ही साथ ही सभी के पास एटीएम और मोबाइल भी हैं। अब इस गांव के लोग व्यापारियों से लेकर सब्जी वाले तक को एटीएम कार्ड से पैसे का भुगतान करते हैं। लोगों की जेब में रूपया नहीं होता बस कार्ड होता है। ठाणे जिले के ध्सई गांव के 15 हजार निवासियों ने नकद लेन-देन को खत्म करने का फैसला करके एक नई मिसाल पेश की है। इस गंाव के हर घर के सभी व्यस्क सदस्यों के पास कार्ड है और गांव में कम से कम 40 कार्ड स्वाइप मशीनें हैं। मिड-डे की खबर के मुताबिक गांववाले नाई से लेकर डाॅक्टर तक को एटीएम कार्ड से भुगतान करते हैं।

उल्लेखनीय है कि प्रधनमंत्राी जनध्न योजना का मुख्य उद्देश्य भारत की वित्तीय सेवाओं जैसे बैकिंग, पैसे के लेन-देन, लोन, बीमा और पेंशन को उपयोगी और सुविधजनक बनाना था। इस अभियान को अगस्त 2014 में शुरू किया गया था, जिसमें अब तक लगभग 25.68 करोड़ जन ध्न खातों में 72,834.72 करोड़ रूपये जमा हुए हैं। यह अपने आप में एक बड़ा कदम था। नोटबंदी के बाद सरकार चाहती है कि लोग कैशलेस लेन-देन को अपनाएं ताकि कालेध्न और नाजायज ध्ंधें पर रोक लगे। इसका सीध मतलब ये हुआ कि लोग पेमेंट और फंड टंªास्फर के लिए यूपीआई, पेमेंट ई-वाॅलेट, प्रीपेड, डेबिट और क्रेडिट कार्ड, यूएसएसडी यानि अनस्ट्रक्चर्ड सप्लीमेंट्री सर्विस डाटा और आधर लिंक्ड पेमेंट व्यवस्था को अपनाएं। नगद रूपये का बाजार में ज्यादा प्रचलन होता है कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। पहला यह कि जाली नोटों की संख्या बढ़ने लगती है जो अर्थव्यवस्था के लिए सबसे घातक है।

दूसरा यह कि यदि अनुमान से अध्कि काला धन जमा होने लगा तो हर वस्तु के दाम आसमान में जाने लगेंगे। उक्त दोनों की कारणों से एक समानांतर अर्थव्यवस्था निर्मित हो जाती है, जिसके चलते अमीर और गरीब के बीच खाई इतनी बढ़ जाती है कि समाज में असंतोष और विद्रोह पनपने लगता है। नगद के अत्यध्कि प्रचलन, जाली नोटों की भरमार और बेहिसाब काले ध्न से नक्सलवाद, आतंकवाद और माफियाओं की समानांतर सरकार कायम हो जाती है जिसके चलते राज्य में विद्रोह और अपराध्कि गतिविधियां इतनी बढ़ जाती है कि जिन्हें संभालना मुश्किल हो जाता है। ‘बैंक फाॅर इंटरनेशनल सेटलमेंट’ की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार स्वीडन जल्दी ही विश्व का पहला कैशलेस ;नकदी का न्यूनतम चलनद्ध देश बनने वाला है। कैशलेस देश होने का सरल अर्थ है कि ‘पैसों का लेन-देन बैंकिंग के इलेक्ट्राॅनिक सिस्टम से हो।

अर्थात डेबिट कार्ड, क्रेडिट कार्ड और मोबाइल बैकिंग का इस्तेमाल किया जाए।’ नोटबंदी के बाद से प्रधनमंत्राी नरेंद्र मोदी देश की अर्थव्यवस्था को कैशलेस बनाने के लिये हर संभव प्रयास करते दिख रहे हैं। इन दिनों वह अपने सभी भाषण में लोगों से नकदी रहित लेन देन सीखने पर बल दे रहे हैं, साथ ही ये भी बता रहे हैं कि कैशलेस ट्राजेक्शन ज्यादा सुरक्षित और पारदर्शी है। मोदी सरकार ने ई-बैकिंग, डेबिट कार्ड, कार्ड स्वाइप या पाॅइंट आॅफ सेल ;पीओएसद्ध मशीन और डिजिटल वाॅलेट की जानकारी देने के लिए विशाल सोशल मीडिया कैंपेन भी चलाया है। लेकिन आपको शायद ये नहीं पता है कि देश को कैशलेस बनाने की राह में कई अड़चने आ रही हैं। आज हम आपको बताने जा रहे हैं ऐसी ही 5 प्रमुख बाधएं जो नकदी रहित अर्थव्यवस्था की राह में आ रही हैंः

1.    देश में 34.2 करोड़ इंटरनेट यूजर हैं, यानी 27 फीसदी आबादी ;ट्राई और केलिनर काउफिल्ड एंड बायर्स के आंकड़ों के मुताबिकद्ध, लेकिन दूसरी तरफ 73 फीसदी आबादी या 91.2 करोड़ लोगों के पास इंटरनेट नहीं है। इंडियास्पेंड की मार्च की रपट में बताया गया कि इंटरनेट यूजर का वैश्विक औसत 67 फीसदी है। इसमें भारत विकसित देशों से तो पीछे है ही, नाइजीरिया, केन्या, घाना और इंडोनेशिया से भी पिछड़ा है।


2.    स्मार्टफोन केवल 17 फीसदी लोगों के पास हैं। यह कम आय वर्ग में केवल सात तथा अमीरों में 22 फीसदी लोगों के पास है।


3. 1.02 अरब लोगों के पास ब्राडबैंड है, लेकिन केवल 15 फीसदी भारतीयों को ही उपलब्ध् है। इनमें ट्राई के मुताबिक 90 फीसदी कनेक्शन ही चालू हैं।


4. मोबाइल इंटरनेट की धीमी स्पीड- भारत में पेज लोड होने का औसत समय 5. 5 सेकेंड है, जबकि चीन में 2.6 सेकेंड और दुनिया में सबसे तेज इजरायल में 1.3 सेकेंड है। श्रीलंका और बांग्लादेश में भी भारत से ज्यादा क्रमशः 4.5 और 4.9 सेकेंड है।

5. देश में प्रति 10 लाख की आबादी पर महज 856 पीओएस मशीने हैं। आरबीआई की अगस्त 2016 की रपट के मुताबिक कुल 14.6 लाख पीओएस मशीनें हैं। ब्राजील जिसकी आबादी भारत से 84 फीसदी कम है, 39 गुणा अध्कि पीओएस मशीनें हैं।

हालांकि भारत में अमेरिका से ज्यादा इंटरनेट उपयोगकर्ता हैं, लेकिन बहुत कम लोगों के पास स्मार्टफोन और इंटरनेट की सुविध है। एक समाचार पत्रा के विश्लेषण के मुताबिक, देश में करीब 90 फीसदी लेन देन नकद में होती हैं। इसके बावजूद साल का अंत आते-आते कागजी मुद्रा बीते दौर की बात होती जा रही है। नया साल अपने साथ भारत के कैशलेस होने का वादा लेकर आ रहा है, जहां 1.3 अरब की जनसंख्या को डिजिटल अर्थव्यवस्था की ओर भेजा जा रहा है। आज बहुत से ऐसे यूजर हैं, जो पहली बार प्लास्टिक मनी से रूबरू हो रहे हैं। यहां तक कि बहुत पढ़े-लिखे लोग भी डिजिटल दुनिया में ऐसी गलतियां कर जाते हैं, जो काफी महंगी साबित हो सकती हैं। इसलिए, नए प्रयोगकर्ताओं के लिए यह एक ऐसा जोखिमपूर्ण क्षेत्रा है, जहा मोलभाव करने के लिए बहुत समझदारी की जरूरत होती है। इस साल की शुरूआत में, देश के सबसे बड़े बैंक-भारतीय स्टेट बैंक से 32 लाख क्रेडिट और डेबिट कार्ड की जानकारी कथित तौर पर चोरी हो गई थी और आज तक जांच एजेंसियां ज्यादा कुछ प्रगति नहीं कर पाई हैं। एक ऐसा देश जहां संयुक्त राष्ट्र के अांकड़ों के मुताबिक, 28.7 करोड़ व्यस्क अब भी निरक्षर हैं, वहां कैशलेस लेनदेन में शामिल होना कैसे सुरक्षित है? कुछ लोगों का कहना है कि डिजिटल दुनिया के डकैत और लुटेरे कभी चंबल घाटी में राज करने वाले कुख्यात डकैतों से ज्यादा बेदर्द हैं।

एक रिपोर्ट का कहना है कि वर्ष 2015 के एक माह में साइबर अपराध्यिों ने 100 से अध्कि बैंकों को वैश्विक तौर पर निशाना बनाया और एक अरब डाॅलर हथिया लिए। डिजिटल दुनिया का एक हिस्सा सुरक्षा के लिहाज से बेहद संवेदनशील है क्योंकि अमेरिकी रक्षा प्रतिष्ठान पेंटागन के सबसे अध्कि सुरक्षित कंप्यूटरों की सुरक्षा भी कुछ समय पहले खतरे में पड़ चुकी है और उनसे संवेदनशील डेटा चुराया जा चुका है। ऐसे में भारत अपनी डिजिटल संपति की सुरक्षा के प्रबंध्न में कितना समर्थ है और इलेक्ट्राॅनिक वाॅलेट एवं पेमेंट गेटवे का इस्तेमाल करने के दौरान मुझे और आपको क्या करना चाहिए? इन चीजों के लिए कोई सरल उपाय नहीं हैं और सारा बोझ उन प्रयोगकर्ताओं पर आ पड़ा है, जिन्होंने अपने ध्न को कंप्यूटर के कूट संकेतों में रखा हुआ है। रिपोर्टो का कहना है कि नवंबर में, साइबर अपराध्यिों ने एक ब्रितानी बैंक से 50 लाख डाॅलर लूट लिए।

फरवरी में हैकरों के निशाने पर एक बांग्लादेशी बैंक था। उन्होंने इस बैंक को एक अरब डाॅलर चुराने की कोशिश की थी। कैशलेस डिजीटल दुनिया में खुद को सुरक्षित बनाने के कोई आसान उपाय नहीं हैं लेकिन खतरे को कम करना सर्वश्रेष्ठ विकल्प हो सकता है। भारत द्वारा डिजिटल अर्थव्यवस्था को अपना लिए जाने पर आने वाले नए साल में बेहद सावधन रहना होगा। साइबर सेंध्मारी के खतरों को देखते हुए, कम नकदी एक बात है लेकिन पूरी तरह कैशलेस हो जाना दूसरी बात है। इस प्रकार भारत देश से काले ध्न को खत्म करने के लिए भारत सरकार ने 500 और 1000 के नोटों को बंद कर दिया है और कैशलेस यानि बिना नकदी इस्तेमाल किए लेनदेन और खरीद फरोख्त के काम को बढ़ाया दिया जाने की सलाह दी जा रही है। भारत की सकल अर्थव्यवस्था में घरेलू उत्पाद में भारत में कैश जीडीपी का अनुपात 12 से 13 प्रतिशत है जो अमरीका और यूरोप से अध्कि है पर जापान से कम है। एक ओर उभरती अर्थव्यवस्था इण्डोनेशिया लगभग 5 प्रतिशत की बहुत कम अनुपात है। कैशलेस देश को अर्थव्यवस्था में बदलने के लिए बड़े प्रयासों के हिस्से के रूप में सरकार ने भी एक पैनल सभी सरकारी नागरिक लेनदेन के लिए डिजिटल भुगतान करने के लिए स्थापित किया गया है।

समिति अनुकूल डिजिटल पेमेंट को यूजर फ्रेंडली बनाने के लिए काम करेगी। एक अनुमान के मुताबिक नोटबंदी के बाद आॅनलाइन भुगतान 300 प्रतिशत तक बढ़ा है। नोटबंदी का कदम अर्थव्यवस्था को कैशलेस बनाने का सोचा समझा कदम है। कैशलेस लेेनदेन को बढ़ावा देने के लिए ‘इण्डियन रेलवे कैटरिंग एण्ड टूरिज्म काॅरपोरेशन लिमिटेड ;आईआरसीटीसीद्ध’ ने अपने परिचालन के डिजिटलीकरण के लिए खासतौर से ई-कैटरिंग, ई-टिकटिंग और पर्यटन खण्ड में प्रौद्योगिकी का लाभ उठाने का फैसला किया है। मार्गन स्टेनले की रिपोर्ट के मुताबिक भारत का इंटरनेट आधरित बाजार फिलहाल 16 अरब डाॅलर का है जो साल 2020 तक 159 अरब डाॅलर का हो जायेगा, जोकि दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती ई-काॅमर्स अर्थव्यवस्था है। यद्यपि भारत जैसे एक पिछड़े एवं विकासशील देश में कैशलेस व्यवस्था न तो इतना आसान है और न ही इतनी व्यवस्थित व्यवस्था बन पा रही है फिर भी यह एक सार्थक कदम के रूप में देखा जा सकता है।

जिस प्रकार ग्रामीण भारत की जनता ईवीएम की मशीन से मत देने के लिए दक्ष व सहज हो चुकी है। गांव के बच्चे से लेकर बड़े-बूढ़े मोबाइल फोन का आवश्यकता के अनुसार उपयोग करने लगे हैं। उसी प्रकार कैशलेस लेनदेन को भी समुचित प्रशिक्षण के उपरान्त प्रशिक्षित होकर अपना सकती है। भारत सरकार प्रदेश सरकार के माध्यम से प्रत्येक प्राइमरी बेसिक तथा इन्टर काॅलेज में प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित कर बच्चों व जानकारों को सिखाये फिर वे अगले क्रम में कम पढ़े लिखों को क्रमब सिखा सकते हैं।  

                                                       ये लेखक के अपने विचार है।


                                                         डाॅ. लाखा राम चौधरी

 
 

 

                                                     

                                                       

 

                             


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