अफगानिस्तान में कोई जल्दबाजी न दिखाए भारत

punjabkesari.in Saturday, Jun 18, 2022 - 06:43 AM (IST)

1990 से लेकर 2021 तक अफगानिस्तान में भारी निवेश को देखते हुए तथा पाकिस्तान और चीन पर अंकुश लगाने के लिए अनिवार्य कदम उठाने के लिए भारत को तालिबान के साथ अपने कूटनीतिक रिश्तों को सामान्य करने के लिए कदम उठाने चाहिएं। हाल ही में भारत ने काबुल में नए प्रशासन के साथ बातचीत के लिए आधिकारिक शिष्टमंडल को भेजने का एक सराहनीय कदम उठाया। तालिबान के साथ रिश्तों की कड़वाहट को तोडऩे के लिए भारत के ऐसे प्रयासों की जरूरत थी। तालिबान ने भी दोनों देशों के बीच रिश्तों की मजबूती के लिए ऐसे कदमों को एक अच्छी शुरूआत बताया है। 

पर्यवेक्षकों का मानना है कि तालिबान को अंतर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त करने के लिए जुटाए जाने वाले समर्थन की सख्त जरूरत है और भारत को इस स्थिति का फायदा उठाना चाहिए। दूसरा यह कि भारत के साथ वार्ता के दौरान तालिबान ने भी सकारात्मक रूप से प्रतिक्रिया दी है। भारतीय विदेश मंत्रालय के एक वरिष्ठ कूटनीतिक जे.पी. सिंह के नेतृत्व वाले शिष्टमंडल ने अफगानिस्तान के कार्यवाहक विदेश मंत्री मावलवी अमीर खान मुत्ताकी के साथ वार्ता की। 

अपनी प्रतिक्रिया को जताते हुए अफगानिस्तान के अमीर खान ने ट्वीट के माध्यम से कहा है कि तालिबान भारत के साथ रिश्तों को बेहतर बनाना चाहता है। उन्होंने कहा कि यह वार्ता भारत-अफगान कूटनीतिक रिश्तों, द्विपक्षीय व्यापार तथा मानवीय सहायता पर अपना लक्ष्य केंद्रित करेगी। 

अफगानिस्तान में अभी भी महिलाएं झेल रहीं यातनाएं : अफगानिस्तान में महिलाओं के अधिकारों तथा उनकी स्थिति के बारे में भारत को निश्चित तौर पर तालिबान प्रशासन के साथ बातचीत करनी चाहिए। वहां पर महिलाओं की स्थिति काफी बदतर है और तालिबान इस समय नारी विरोधी अपनी छवि से बाहर नहीं आ पा रहा। महिलाओं को इज्जत देने का अपना वायदा तालिबान भूल चुका है और इसी बात ने पूरे विश्व को व्याकुल किया था। सत्ता में आने के बाद तालिबान ने वायदा किया था कि उनकी सरकार इस्लामिक कानून के नियमों के तहत महिलाओं के अधिकारों को सुरक्षित करेगी, लेकिन महिलाओं की स्थिति अभी भी एक तमाशे से कम नहीं। 

विदेशी मामलों के पर्यवेक्षक यह भी मानते हैं कि यूक्रेन में चल रहे युद्ध के बीचों-बीच एशियाई राष्ट्रों को तालिबान पर दबाव बनाना चाहिए और उसे याद दिलाना चाहिए कि वह महिलाओं के अधिकारों को अपनी जागीर न समझे। विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि भविष्य में वार्ता का अगला लक्ष्य भारत-अफगान कूटनीतिक रिश्तों, द्विपक्षीय समझौतों तथा मानवीय सहायता पर केंद्रित होना चाहिए। इससे दोनों देशों के बीच बेहतर समझदारी बढ़ेगी। 15 अगस्त 2021 को अफगानिस्तान में सत्ता में आने के बाद देश में गरीबी और भुखमरी अपने उच्चतम स्तर पर है। 

भारत की मानवीय सहायता जारी रहनी चाहिए : विशेषज्ञों का कहना है कि विदेश मंत्रालय के अधिकारियों की यात्रा को इतना बढ़ा-चढ़ा कर पेश करना उचित न होगा और भारत भी अफगानिस्तान में तालिबान सरकार को मान्यता देने में जल्दबाजी न दिखाए। भारत को यह बात अपने आकलन तथा राष्ट्र की प्राथमिकताओं पर आधारित करनी चाहिए। भारत ने कोविड-19 वैक्सीन की 5 लाख खुराकें, 13 टन दवाइयां, करीब 20,000 टन गेहूं तथा काफी तादाद में सर्दियों के कपड़े अफगानिस्तान को दान किए। 

पिछले अगस्त में भारत ने काबुल में अपना दूतावास बंद कर दिया था। हालांकि कूटनीतिक रिश्तों के सामान्य होने का समय कोई निश्चित नहीं है, मगर स्थानीय स्टाफ अभी भी कार्य कर रहा है और अपने दूतावास की देख-रेख कर रहा है। इससे पता चलता है कि भारत भविष्य में अपने दूतावास को फिर से खोलने की चाह रखता है। 

भारत से तालिबान को दूर रखना चाहता है चीन : अफगानिस्तान से अमरीका की वापसी के बाद चीन वहां पर कूटनीतिक कदमों तथा अपनी भड़काने वाली कार्रवाइयों को जारी रखे हुए है। चीन वहां के समृद्ध प्राकृतिक संसाधनों को अपने काम में लाना चाहता है। वहां पर 60 मिलियन मीट्रिक टन कॉपर तथा 2.2 बिलियन टन लोहे के भंडार हैं। इसके अलावा अफगानिस्तान में एल्यूमिनियम, गोल्ड, सिल्वर इत्यादि भी हैं। इसके अलावा चीन तालिबान की मदद से अपने चाइना-पाकिस्तान इकोनॉमिक कोरिडोर (सी.पी.ई.सी.) की सुरक्षा भी चाहता है। 

इसके अलावा चीन अफगानिस्तान के साथ अपने वित्तीय तथा मूलभूत ढांचे के विस्तार  को भी आगे बढ़ाना चाहता है। तालिबान, पाकिस्तान और चीन की ‘तिकड़ी’ यह यकीनी बनाना चाहती है कि भारत पाकिस्तान के बलूचिस्तान में किसी प्रकार की गड़बड़ न कर सके। तालिबान चीन को अपना दोस्त मानता है और इसीलिए ड्रैगन भारत को पाकिस्तान की मदद से इस क्षेत्र से दूर रखना चाहता है। 

पाकिस्तान के साथ रिश्ते खटास भरे : आशाओं के विपरीत विशेषज्ञों का कहना है कि तालिबान और पाकिस्तान के बीच निकट रिश्ते हैं जोकि पाकिस्तानी सेना द्वारा तालिबान को सत्ता हथियाने में मिली मदद के कारण बने। भारतीय दूतावास से उपलब्ध आंकड़े दर्शाते हैं कि भारत का अफगानिस्तान को निर्यात एक बिलियन अमरीकी डालर का था। वहीं, भारत का अफगानिस्तान से आयात करीब 530 मिलियन अमरीकी डालर का रहा है। भारत को अफगानिस्तान के साथ रिश्तों को सामान्य करने के लिए कोई जल्दबाजी नहीं दिखानी चाहिए और उसे विश्व के रवैये तथा विचारों को साथ लेकर चलना चाहिए।-के.एस. तोमर
 


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