गिलगित-बाल्टिस्तान के लोगों की तमन्ना पूरी करे भारत

punjabkesari.in Friday, Jan 20, 2023 - 05:06 AM (IST)

भीतरी खतरों, सभी ओर से मुसीबतों से घिरा तथा आर्थिक तंगी का शिकार पड़ोसी देश पाकिस्तान अब भारत के आगे गिड़गिड़ा रहा है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ का यह कहना है कि भारत के साथ 3 युद्धों के बाद पाकिस्तान अपना सबक सीख चुका है। यह बात वास्तविकता से कोसों दूर है। हकीकत तो यह है कि इस मुल्क के 2 टुकड़े होने के बावजूद भी वह अपनी घिनौनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा तथा उसकी हेंकड़ी अभी भी बरकरार है। 

यदि शहबाज के इरादे नेक होते तो हाल ही में सऊदी अरब, कभी कजाकिस्तान तथा संयुक्त अरब अमीरात तथा यू.एन.ओ. में पहुंच कर कश्मीर का राग न अलापा जाता। फिर परमाणु युद्ध की धमकी दी जा रही है तथा दूसरी ओर अबूधाबी के शासक को भारत के साथ मध्यस्थता की बात भी की गई। 

पाकिस्तान सरकार की दमनकारी तथा भेदभावपूर्ण नीतियां, बेरोजगारी तथा महंगाई से तंग लोगों के अंदर बेचैनी तथा खौफ है। उल्लेखनीय है कि गिलगित-बाल्टिस्तान के स्थानीय लोगों ने उनकी जमीनों पर नाजायज कब्जों, खाद्य सामग्री पर सबसिडी की बहाली, पावरकट तथा प्राकृतिक स्रोतों के शोषण तथा जन आंकड़ों में तबदीली जैसे मुद्दों को लेकर कई दिनों से पाकिस्तान सरकार के खिलाफ जबरदस्त प्रदर्शन जारी रखा हुआ है। अब जबकि गिलगित-बाल्टिस्तान के नागरिक भारत के साथ मिलना चाहते हैं तो फिर हमारी सरकार को भी चाहिए कि उन लोगों की उम्मीदों पर खरा उतरे। यही सुनहरा मौका है कि जब अपने से टूटे अंग को अपने साथ जोड़ा जाए, मगर ऐसा कैसे और क्यों हो? 

असली हकदार कौन? : पाकिस्तान के उत्तर में पड़ते नाजायज कब्जे वाले 72,791 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र के भीतर गिलगित एजैंसी, लद्दाख प्रशासन का जिला बाल्टिस्तान तथा पहाड़ी रियासतें हुंजा और नगर को मिलाकर इसका नाम गिलगित-बाल्टिस्तान रखा गया है। इसको 14 जिलों में बांटा हुआ है तथा इसकी कुल आबादी पिछली जनगणना के अनुसार 12.5 लाख के करीब है।

उत्तर की ओर इसकी सीमा अफगानिस्तान तथा उत्तर-पूर्व की ओर इसकी सीमा चीन के मत के अनुसार स्वायत: राज्य शिनजियांग के साथ लगती है। पश्चिम की ओर पाकिस्तान का अशांत उत्तर-पश्चिमी फ्रंटियर क्षेत्र पड़ता है। इसके दक्षिण में पाक अधिकृत कश्मीर तथा दक्षिण पूर्व की ओर जम्मू-कश्मीर की सरहद लगती है। 

गिलगित-बाल्टिस्तान दिल्ली सल्तनत का हिस्सा था। सोलहवीं सदी में यह मुगल साम्राज्य में चला गया। वर्ष 1757 में एक इकरारनामे के तहत इस उत्तरी क्षेत्र का अधिकार पद मुगलों से अहमद शाह दुरानी ने ले लिया तथा यह अफगानिस्तान का हिस्सा बन गया। वर्ष 1819 में महाराजा रणजीत सिंह ने अफगानियों के ऊपर हमला कर इस क्षेत्र को अपने अधीन ले लिया। जब वर्ष 1935 में रूस ने कश्मीर से लगते क्षेत्र शिनजियांग के ऊपर जीत प्राप्त की तथा फिर यह इलाका ब्रिटेन के लिए विशेष महत्वपूर्ण हो गया। वास्तव में 1846 के आसपास इस हिस्से ने भी जम्मू-कश्मीर शहंशाही रियासत का दर्जा हासिल किया। 

ब्रिटेन सरकार ने गिलगित के क्षेत्र को जम्मू-कश्मीर के राजा के पास से 60 सालों के लिए पट्टे पर ले लिया जो वर्ष 1995 में समाप्त होना था। इस सीमा क्षेत्र की देख-रेख के लिए ब्रिटेन ने गिलगित स्काऊट का निर्माण किया जिसमें केवल अंग्रेज अधिकारी ही थे तथा इसका प्रबंधकीय नियंत्रण कर्नल बिकन के सुपुर्द किया गया था। 

जुलाई 1947 में ब्रिटेन-भारत सरकार के समय से पहले अनुबंध को रद्द कर यह इलाका वापस जम्मू-कश्मीर के महाराजा हरि सिंह के सुपुर्द कर दिया गया। एक अगस्त 1947 को डोगरा शासन की रियासत की सेना में ब्रिगेडियर घनसारा सिंह को गिलगित -बाल्टिस्तान में गवर्नर नियुक्त किया गया। बाकी की रियासतों के जैसे ही जम्मू-कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने भी भारत में शामिल होने के लिए समझौता किया। जिसकी पुष्टि गवर्नर जनरल ऑफ इंडिया लार्ड माऊंटबैटन ने 27 अक्तूबर को की। इस तरह जम्मू-कश्मीर गिलगित-बाल्टिस्तान सहित भारत का अभिन्न अंग बन गया। 

बाज वाली नजर : अपनी अलग पहचान रखने वाला उच्च पर्वतीय क्षेत्र गिलगित-बाल्टिस्तान पाक अधिकृत कश्मीर सहित भारत का अभिन्न अंग है। इस समय पाकिस्तान में 4 राज्य पंजाब, सिंध, खैबर पख्तूनखवा तथा बलूचिस्तान हैं। पाकिस्तान सभी संवैधानिक और प्रशासनिक कमियों को दूर कर इस क्षेत्र को अपने पांचवें राज्य के तौर पर हड़पना चाहता है। 

इस क्षेत्र में खनिज पदार्थों का एक बहुत बड़ा भंडार है मगर उसका फायदा उत्तरी क्षेत्र के नागरिक नहीं ले सकते क्योंकि यहां की सरकार को प्राकृतिक स्रोतों, जल तथा खनिज पदार्थ इत्यादि बारे किसी किस्म का कोई कानून बनाने का अधिकार नहीं है। मगर चीन पाकिस्तान की रजामंदी से इस क्षेत्र में लाखों डालरों की लागत से खोज, आर्थिक कोरिडोर तथा ‘वन बैल्ट-वन रोड’ स्कीम के द्वारा जल शक्ति से बिजली पैदा करने वाले मैगा प्लांट, सड़कें, रेल, हवाई अड्डों तथा मिसाइल ठिकानों का जाल बिछाकर सैन्य रणनीति वाले अड्डे कायम कर रहा है। इससे पहले कि पाकिस्तान कश्मीर का कोई अन्य टुकड़ा चीन के सुपुर्द कर दे, भारत सरकार को चाहिए कि वहां के नागरिकों की भावनाओं के बारे में गौर करे। 

वैसे तो हमारी सरकारें अक्सर समस्त पाक अधिकृत कश्मीर को लेने के बारे में बयानबाजी करती हैं मगर ऐसी बातों को असली जामा पहनाने की जरूरत है। भारत को चाहिए कि ‘मुक्ति वाहिनी’ जैसी फोर्स का निर्माण किया जाए। इसे युद्ध करने के लिए 2 भागों में बांटा जाए। एक एल.ओ.सी. के सामने पी.ओ.के. में तथा दूसरी गिलगित-बाल्टिस्तान स्थापित की जाए।-ब्रिगे. कुलदीप सिंह काहलों (रिटा.)


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