चीन के जे.एफ.-17 को पछाड़ कर भारत के तेजस ने मलेशिया में मारी बाजी

punjabkesari.in Tuesday, Jul 12, 2022 - 05:41 AM (IST)

मलेशिया भारत का स्वदेशी हल्का लड़ाकू विमान तेजस खरीदने जा रहा है। हालांकि मलेशिया के अलावा फिलीपींस पहले ही तेजस खरीदने में अपनी दिलचस्पी दिखा चुका है। फिलीपींस ने तेजस के साथ धु्रव हैलीकॉप्टर और सामान ढोने वाले हैलीकॉप्टरों में भी अपनी दिलचस्पी दिखाई है। मिस्र और अर्जेंटीना ने भी तेजस खरीदने में दिलचस्पी दिखाई है। दुबई एयर शो में बाजी मारने के बाद तेजस पर दुनिया की निगाहें टिकने लगी हैं। 

मलेशिया अपने वायुसेना के बेड़े में पुराने विमानों की जगह नए तेजस को जगह देने जा रहा है। तेजस ने मलेशिया में कई देशों के लड़ाकू विमानों को पछाड़ कर बाजी मारी है, जिनमें चीन, रूस और दक्षिण कोरिया शामिल हैं। तेजस ने मलेशिया में चीन के जे.एफ.-17, दक्षिण कोरिया के एफ.ए.-50, रूस के मिग-35 और याकोवेलेव-130 को हराकर यह सौदा अपने नाम किया है। तेजस विमान को भारत की सरकारी विमान कम्पनी हिन्दोस्तान एयरोनॉटिक्स बनाती है। 

तेजस की खूबियों की बात करें तो इसमें इलैक्ट्रानिक स्कैन्ड ऐरी राडार सिस्टम लगा हुआ है, इसे कोई उपकरण इंटरसैप्ट नहीं कर सकता। यह कई लक्ष्यों का एक साथ सटीकता से पता लगा सकता है। नजर से भी अधिक दूरी तक तेजस की मिसाइल प्रहार कर सकती है। इसमें इलैक्ट्रानिक युद्ध कौशल सूट लगा है, इसमें हवा में ही ईंधन भरा जा सकता है। तेजस के किसी प्रतिस्पर्धी विमान में ऐसी व्यवस्था नहीं थी। एक तेजस एम1के लड़ाकू विमान की कीमत 309 करोड़ रुपए और ट्रेनर विमान की 280 करोड़ रुपए है। उच्चतम तकनीक के साथ इतनी कम कीमत में कोई दूसरा विमान मलेशिया को उपलब्ध नहीं था। 

भारत ने मलेशिया को तेजस के सौदे के साथ एक और प्रस्ताव दिया है, जिसकी वजह से मलेशिया बहुत खुश है। दरअसल मलेशिया के लड़ाकू विमानों के बेड़े में रूस निर्मित सुखोई-30 विमान भी शामिल हैं और रूस खुद पर पश्चिमी देशों के लगे प्रतिबंधों के चलते इन विमानों के रखरखाव के लिए कलपुर्जे मलेशिया को नहीं दे सकता। मलेशिया भी रूस पर लगे इन प्रतिबंधों के कारण सुखोई-30 विमानों के कलपुर्जे नहीं खरीद पा रहा था। ऐसे में भारत ने मलेशिया की मदद करते हुए सुखोई-30 लड़ाकू विमानों की मुरम्मत, रखरखाव और उसके कलपुर्जों के बदलाव की भी पेशकश की है। यह मलेशिया की जरूरत के अनुसार एक बेहतर प्रस्ताव है, दुनिया का कोई दूसरा देश मलेशिया को यह प्रस्ताव देने की स्थिति में नहीं है।

हिन्दोस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड के अध्यक्ष आर. माधवन ने बताया कि दोनों देशों के बीच तेजस को लेकर समझौता अपने अंतिम चरण में है। अगर देश में कोई अप्रासंगिक घटना नहीं होती तो मलेशिया के साथ यह सौदा तय है। अगर तेजस का मलेशिया के साथ सौदा पूरा हो जाता है तो बाकी देशों के लिए भी तेजस का बाजार खुल जाएगा। 

अगर बाकी लड़ाकू विमानों से तेजस की तुलना की बात करें, तो चीन का जे.एफ.-17 विमान मलेशिया को तेजस की तुलना में सस्ता तो पड़ रहा था, लेकिन तकनीकी तौर पर चीनी विमान तेजस से पिछड़ गया और चीन सुखोई-30 जैसा प्रस्ताव भी मलेशिया को नहीं दे सका। अंतर्राष्ट्रीय हथियारों के जानकारों के अनुसार, मलेशिया चीन से कोई सौदा नहीं करना चाहता, क्योंकि उसे इस बात की गहरी आशंका है कि चीन से लिया हुआ सामान बेहतर नहीं होगा और किस्तों में पैसे देने की चीन की शर्तें पारदर्शी नहीं होतीं, जिससे हो सकता है अंतत: मलेशिया को चीन के जे.एफ.-17 की खरीद में धन का भी नुक्सान हो जाए। तकनीकी तौर पर और बजट के लिहाज से दक्षिण कोरिया और रूस के विमान भी मलेशिया को नहीं भाए, इसलिए मलेशिया ने इतने विमानों की सूची में से तेजस को ही चुना। 

नॉर्वे की संस्था सिपरी के अनुसार भारत इस समय दुनिया में सऊदी अरब के बाद दूसरा सबसे बड़ा हथियार आयातक है। 2017 से 2021 तक की इस रिपोर्ट में सऊदी और भारत दोनों ने दुनिया के हथियार आयातकों में 11-11 प्रतिशत की हिस्सेदारी निभाई, लेकिन अब भारत हथियारों के आयातक देश की बजाय अपना नाम हथियारों के निर्यातक देश के रूप में विकसित कर रहा है। बड़े स्तर पर इसकी शुरूआत फिलीपींस द्वारा ब्रह्मोस मिसाइल की खरीद से हो चुकी है।

भारत सरकार अगले 2 वर्षों में, यानी वर्ष 2024 तक हथियारों के निर्यात को बढ़ाकर 5 अरब डालर का करने वाली है। भारत के लिए ऐसा करना एक चुनौती तो जरूर है, लेकिन जिस तेजी से देश में इस क्षेत्र में नित्य नए प्रयोग और नए हथियारों का निर्माण किया जा रहा है, उसे देखते हुए लगता है कि यह लक्ष्य भारत हासिल कर लेगा।


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