शारीरिक सक्रियता में पिछड़ता भारत वर्ष

punjabkesari.in Tuesday, Jul 16, 2024 - 05:56 AM (IST)

भारतीय सभ्यता स्वस्थ, कर्मठ एवं सक्रिय जीवनशैली के लिए प्रख्यात रही है। व्यायाम हों या योगासन, शारीरिक रूप  से चुस्त-दुरुस्त बने रहने के लिए इन्हें सदैव ही जीवन में अधिमान दिया जाता रहा किंतु समय का बदलता रुख देखें तो वर्तमान स्वास्थ्य स्थिति को लेकर एकत्र आंकड़े इस संदर्भ में भारतीयों की एक अलग ही तस्वीर पेश कर रहे हैं।‘द लैंसेट  ग्लोबल हैल्थ जर्नल’  में प्रकाशित अध्ययन बताता है कि विश्व के 197 देशों में से भारत अपर्याप्त शारीरिक गतिविधि मामले में 12वें स्थान पर पहुंच चुका है। बालिगों के शारीरिक रूप से सक्रिय नहीं होने के मामले में भारत उच्च आय वाले एशिया-प्रशांत क्षेत्र में दूसरे स्थान पर है। 

शोधकत्र्ताओं द्वारा वर्ष 2000 से 2022 तक 197 देशों में पर्याप्त शारीरिक गतिविधियों में संलिप्त बालिगों की संख्या का अनुमान लगाने हेतु जनसंख्या आधारित सर्वेक्षणों का विश्लेषण करने वाले इस अध्ययन में दावा किया गया कि दुनिया भर में शारीरिक गतिविधियों में पिछडऩे वाले वयस्कों की संख्या 5' बढ़कर 31.3' हो गई है, जबकि 2010 में 26.4 प्रतिशत  वयस्क शारीरिक रूप से सक्रिय नहीं थे। आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2000 में भारत के 22 प्रतिशत  वयस्क शारीरिक रूप से पर्याप्त सक्रिय नहीं पाए गए। 2010 में यह आंकड़ा 34 प्रतिशत  से होता हुआ वर्तमान में 50 प्रतिशत पर पहुंच चुका है। इसे सुधारा नहीं जाता तो 2030 तक 60 प्रतिशत भारतीय अस्वस्थ की श्रेणी में शुमार होंगे। इस संदर्भ में महिलाओं की संलिप्तता 57 प्रतिशत है अर्थात पुरुषों के 42 प्रतिशत की तुलना में वे अधिक निष्क्रिय पाई गईं। रिपोर्ट में भारतीय महिलाओं की स्थिति पड़ोसी देशों बंगलादेश, भूटान तथा नेपाल से भी बदतर बताई गई जोकि गहन चिंता का विषय है। भारतीय महिलाओं का आंकड़ा अधिक रहने का कारण खंगालें तो अधिकतर महिलाएं घरेलू कार्यों को ही शारीरिक व्यायाम का विकल्प मानती हैं, जोकि आंशिक तौर पर ही सत्य है। 

घरेलू चक्की द्वारा आटा पीसने, मथानी से दूध बिलौने, हाथ से कपड़े धोने, सिल्ल-बट्टा प्रयुक्त करने आदि की पुरातन प्रक्रियाओं में भले ही कुछ व्यायाम होने संबंधी संभावनाएं बनी रहती हों किंतु आधुनिक युग में ये कार्य भी बीते दिनों की भेंट चढ़ चुके हैं। तकनीकी प्रगति के चलते अब अधिकांश कार्य निपटान मशीनी सहायता से होता है। पुरातनपंथी सोच, सांस्कृतिक कारण, ऑफिस व घर के दोहरे दायित्व निर्वहन में समयाभाव के चलते अधिकतर महिलाओं द्वारा स्वास्थ्य देखभाल प्राथमिकता में स्वयं को पीछे धकेलना आदि भी असक्रियता आंकड़ों में उनके आगे रहने का कारण बनते हैं।  इसमें कोई दोराय नहीं, भारत सहित पूरे दक्षिण एशिया में बढ़ते शहरीकरण ने उपभोक्तावाद को अत्यधिक विस्तार की स्थिति में ला खड़ा किया। जीवन तो सुविधाजनक बना किंतु बदली कार्यशैली ने अनचाहे रोगों को भी न्यौता दे डाला। 

जीवन जीने का ढंग बदल जाए तो स्वास्थ्य पर इसका प्रभाव पडऩा भी स्वाभाविक है। डब्ल्यू.एच.ओ. के मुताबिक, परिश्रम न करने से हृदयाघात, पक्षाघात, टाइप 2 मधुमेह, भूलने की समस्या तथा पेट के कैंसर जैसी बीमारियों का खतरा कई गुणा बढ़ जाता है। लैंसेट के डाटा अनुसार, 2021 में भारत में 10.10 करोड़ लोग मधुमेह, 31.50 करोड़ उच्चा रक्त चाप तथा 25.40  करोड़ मोटापे से पीड़ित थे। सुस्त जीवनशैली के कारण पनपने वाले ये रोग दुनिया भर में स्वास्थ्य सेवा प्रणालियों पर अवांछित बोझ बढ़ा रहे हैं।-दीपिका अरोड़ा 
 


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