मतभेदों के बावजूद मजबूत हुए ‘भारत-बंगलादेश संबंध’

punjabkesari.in Thursday, Oct 03, 2019 - 12:50 AM (IST)

‘‘1971 में पाकिस्तानी सेना ने 30 लाख लोगों की हत्या की और दो लाख महिलाओं से बलात्कार किया। दुनिया को याद रखना चाहिए कि वह भारत ही था जिसने पाकिस्तानी सेना के 93,000 सैनिकों को समर्पण के लिए मजबूर किया, जिससे बंगलादेश की स्वतंत्रता संभव हुई’’ 

- शेख हसीना वाजेद, प्रधानमंत्री, बंगलादेश 
जिस दिन संयुक्त राष्ट्र महासभा में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान कश्मीर पर मानवाधिकारों की दुहाई और परमाणु युद्ध की धमकी दे रहे थे, उस दिन, उसी सभा में शेख हसीना उन्हें 1971 में पाकिस्तानी अत्याचारों की याद दिला कर आईना दिखा रही थीं। आश्चर्य नहीं कि जब भारत ने इमरान खान के उन्मादी भाषण का जवाब दिया तो उसमें शेख हसीना के भाषण का उल्लेख भी किया। अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत और बंगलादेश का यह सद्भाव नया नहीं है। 

चाहे मुस्लिम देशों का संगठन ‘‘ऑर्गेनाइजेशन आफ इस्लामिक कॉआप्रेशन’’ (ओ.आई.सी.) हो या दक्षिण एशियाई देशों का समूह ‘साऊथ एशियन एसोसिएशन फार रीजनल कॉआप्रेशन’’ (सार्क) या अन्य कोई और संगठन, बंगलादेश ने लगभग हर अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारत का साथ दिया है। पाकिस्तान के हमलावर तेवरों और हठधर्मिता के बाद जब मोदी सरकार ने सार्क से हाथ खींचने शुरू कर दिए और अपनी ‘‘लुक ईस्ट, एक्ट ईस्ट पॉलिसी’’ के तहत ‘‘बे आफ बंगाल इनिशिएटिव फार मल्टी-सैक्टोरल टैक्नीकल एंड इकॉनॉमिक कॉऑप्रेशन’’ (बिमस्टेक) समूह को बढ़ावा देना आरम्भ किया, तब भी बंगलादेश ने पूरा सहयोग किया। बिमस्टेक पूर्वी एशिया के 7 देशों का समूह है जिसमें भारत के अलावा बंगलादेश, भूटान, म्यांमार, नेपाल, श्रीलंका और थाईलैंड शामिल हैं। 

संबंध मजबूत बनाने के लिए प्रयास
इसमें कोई संदेह नहीं कि मोदी सरकार ने भारत-बंगलादेश संबंधों को बहुत महत्व दिया है और इन्हें मजबूत बनाने के लिए अनेक प्रयास किए हैं। वर्ष 2014 में बंगलादेश में एक सर्वेक्षण हुआ जिसमें 70 प्रतिशत लोगों ने भारत के प्रति अनुकूल राय व्यक्त की। इसके पीछे खास कारण था तब की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की बेहद सफल यात्रा जिसमें दोनों देशों ने 5 महत्वपूर्ण मुद्दों पर समझौते किए। इनमें अपराधियों के प्रत्यर्पण और पूर्वोत्तर भारत तक सामान पहुंचाने के लिए रास्ता देने के महत्पवूर्ण समझौते शामिल थे। इसके बाद दोनों देशों ने आतंक पर लगाम कसने के लिए नए जोश से सहयोग शुरू किया। 

इसके पश्चात 2015 में प्रधानमंत्री मोदी का ऐतिहासिक बंगलादेश दौरा हुआ जिसमें 22 समझौतों पर हस्ताक्षर हुए। इस यात्रा में सीमा विवाद सुलझाने पर भी महत्वपूर्ण सहमति हुई। दोनों देशों ने आपसी विश्वास की मिसाल सितम्बर 2018 में भी पेश की जब बंगलादेश ने पूर्वोत्तर राज्यों तक सामान ले जाने के लिए चटगांव और मोंगला बंदरगाहों के इस्तेमाल की इजाजत दी। ध्यान रहे चटगांव बंदरगाह पर चीन की भी नजर थी लेकिन बंगलादेश ने भारत को ही वरीयता दी।

बंगलादेश में जब रोहिंग्या शरणार्थियों की बाढ़ आई तो भारत ने इस विषम परिस्थिति से निपटने में तत्परता से उसका साथ दिया और म्यांमार से उन्हें वापस लेने का अनुरोध भी किया। हालांकि ताजा स्थिति यह है कि अब भी लाखों शरणार्थी बंगलादेश में मौजूद हैं और अंतर्राष्ट्रीय दबाव के बावजूद म्यांमार की सेना उन्हें वापस लेने के लिए तैयार नहीं है। बंगलादेश ने रोङ्क्षहग्या बहुल इलाकों में कंटीले तारों की बाढ़ लगाने का काम शुरू किया है, लेकिन मानवीय आधार पर फिलहाल इसे रोक दिया गया है। 

वर्ष 2017 में शेख हसीना के भारत दौरे में दोनों देशों ने पहली बार दो सुरक्षा समझौतों पर भी हस्ताक्षर किए। इनके तहत भारत बंगलादेश के सैनिकों को प्रशिक्षण देगा और दोनों देश संयुक्त सैनिक अभ्यास करेंगे। यही नहीं, भारत बंगलादेश में सैनिक उपकरण बनाने के लिए कारखाने लगाएगा और उसे हथियार खरीदने के लिए 50 करोड़ डॉलर की सहायता भी देगा। भारत के पड़ोस में चीन के बढ़ते हुए दखल और प्रभाव को देखते हुए यह समझौता बहुत महत्वपूर्ण है। हालांकि बंगलादेश में चीन अब भी बड़े पैमाने पर निवेश कर रहा है। 

पाक प्रायोजित आतंकवाद
भारत और बंगलादेश दोनों ही पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद से त्रस्त हैं। पाकिस्तानी सैन्य खुफिया एजैंसी आई.एस.आई. बंगलादेश में अनेक आतंकी समूहों को बढ़ावा देती है जिनमें प्रमुख है जमात-उल-मुजाहिदीन बंगलादेश (जे.एम.बी.)। इसके आतंकवादी बंगलादेश में आतंकी गतिविधियां करने के बाद भारत में छुपते हैं और पाकिस्तान की शह पर नकली नोटों और मादक पदार्थों की तस्करी करते हैं। आई.एस.आई. रोङ्क्षहग्या मुसलमानों को भी आतंकी गतिविधियों का प्रशिक्षण दे रही है, जिससे बंगलादेश ही नहीं, भारत को भी खतरा है। भारत और बंगलादेश ने इस विषय में परस्पर और निजी तौर पर अनेक उपाय किए हैं, लेकिन अब भी इस पर पूरी तरह नियंत्रण नहीं पाया जा सका है। 

केन्द्र सरकार द्वारा नैशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन (एन.आर.सी.) पर कड़ा रुख अपनाने से पश्चिम बंगाल और असम के बंगलादेशी शरणार्थी बहुल इलाकों में ही नहीं, बंगलादेश में भी तनाव बढ़ गया है। ऐसे में कुछ समय पूर्व जब संयुक्त राष्ट्र महासभा में मोदी और हसीना की मुलाकात हुई तो हसीना ने एन.आर.सी. पर चिंता जताई थी। इस पर मोदी ने उन्हें ङ्क्षचता न करने की सलाह दी। ‘वॉयस आफ अमेरिका’ को दिए अपने साक्षात्कार में हसीना ने कहा कि मैंने नरेन्द्र मोदी से इस विषय में बात की है और उन्होंने कहा है कि उनका ‘अवैध प्रवासियों’ को वापस भेजने का कोई इरादा नहीं है। दोनों देशों में तीस्ता नदी जल बंटवारे पर भी विवाद है। जब तक पश्चिम बंगाल सरकार  सहमति नहीं देती, इसे हल करना मुश्किल है। आजकल प्याज की कीमतें भी बंगलादेश में चर्चा का विषय बनी हुई हैं क्योंकि भारत द्वारा प्याज के निर्यात पर रोक लगाए जाने के बाद वहां इसके दाम 120 टका प्रति किलो तक पहुंच गए हैं। 

कई समझौते होंगे
अब शेख हसीना, प्रधानमंत्री मोदी के निमंत्रण पर 4 दिन (3-6 अक्तूबर) के आधिकारिक दौरे पर भारत आ रही हैं। भारत और बंगलादेश में कुछ समय पूर्व हुए आम चुनावों के बाद यह उनका पहला दौरा है। इस दौरान वह राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से भेंट करेंगी और 5 अक्तूबर को प्रधानमंत्री मोदी के साथ द्विपक्षीय वार्ता में भाग लेंगी। दोनों प्रधानमंत्री वल्र्ड इकोनॉमिक समिट द्वारा आयोजित इंडिया इकोनॉमिक समिट में भाग लेंगे और वीडियो लिंक से अनेक परियोजनाओं का उद्घाटन भी करेंगे। 

कभी पूर्वी पाकिस्तान कहलाने वाले बंगलादेश की आर्थिक स्थिति आज पाकिस्तान से कहीं बेहतर है। भारत के साथ सांस्कृतिक विरासत सांझा करने वाला बंगलादेश एशिया के महत्वपूर्ण मैन्युफैक्चरिंग हब के रूप में उभरा है और इसके अनुभवों से भारत भी बहुत कुछ सीख सकता है। मोदी सरकार ने पूर्वोत्तर भारत को पूर्वी एशिया के साथ जोडऩे की महत्वाकांक्षी योजनाएं बनाई हैं जिनमें बंगलादेश की महत्वपूर्ण भूमिका है। आज बंगलादेश हमारा व्यापारिक भागीदार ही नहीं, महत्वपूर्ण रणनीतिक और रक्षा सहयोगी भी है। उम्मीद की जानी चाहिए कि प्रधानमंत्री हसीना की यात्रा दोनों देशों और समूचे पूर्वी एशिया में संबंधों और सहयोग को नया आयाम देगी।-समहित निंदन
 


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