बढ़ती साइबर धोखाधड़ी गंभीर चिंता का विषय

punjabkesari.in Thursday, Nov 30, 2023 - 05:00 AM (IST)

हाल के वर्षों में साइबर अपराधों और साइबर धोखाधड़ी की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई है, खासकर देश में यूनिफाइड पेमैंट इंटरफेस (यू.पी.आई.) की शुरूआत के बाद। भारत इस तकनीक को शुरू करने वाले अग्रणी देशों में से एक था और यह बहुत गर्व की बात है कि बहुत कम देश हमारे देश में प्रचलित समान व्यापक और सुविधाजनक वित्तीय प्रणाली का दावा कर सकते हैं। 

एक रिपोर्ट के अनुसार अब हमारी कुल 140 करोड़ की आबादी में से लगभग 80 करोड़ मोबाइल फोन उपयोगकत्र्ता हैं और वित्तीय लेन-देन के लिए यू.पी.आई. का उपयोग तेजी से बढ़ रहा है। अब हम मजदूरों या सब्जी वालों या यहां तक कि सड़क किनारे रेहड़ी विक्रेताओं को पे.टी.एम. जैसे विभिन्न प्लेटफार्मों के माध्यम से यू.पी.आई. के द्वारा छोटी रकम स्वीकार करते हुए पाते हैं। इसका परिणाम यह हुआ कि बहुत से लोग अपने साथ बिल्कुल भी नकदी नहीं रखते और सभी भुगतान अपने मोबाइल हैंडसैट के माध्यम से करते हैं। हालांकि इससे काफी सुविधा हुई है, लेकिन प्रौद्योगिकी के कारण साइबर अपराध और धोखाधड़ी में भी तेजी से वृद्धि हुई है। साइबर अपराधी उन लोगों को धोखा देने के लिए नए-नए तरीके ढूंढते हैं जिनमें ज्यादातर साइबर साक्षरता का अभाव है। 

भारतीय कम्प्यूटर आपातकालीन प्रतिक्रिया टीम द्वारा रिपोर्ट और ट्रैक की गई जानकारी के अनुसार, 2022 में दुर्भावनापूर्ण मोबाइल एप्लीकेशन फिशिंग और रैंसमवेयर जैसी साइबर सुरक्षा घटनाओं की संख्या 13.91 लाख थी। यह स्पष्ट है कि बड़ी संख्या में इसी तरह के अपराध दर्ज नहीं किए गए होंगे। जैसा कि बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थानों द्वारा रिपोर्ट किया गया है, वास्तविक धोखाधड़ी के मामले 7.05 लाख थे, जिसकी कीमत वित्तीय वर्ष 2021 में 542.7 करोड़ रुपए थी। यह मात्रा बढ़कर 12.27 लाख हो गई, जिसका कुल मूल्य 2022 में 1,357.06 करोड़ रुपए हो गया और 19.94 लाख बढ़कर इस वित्तीय वर्ष में 2,537.35 करोड़ रुपए हो गए। पूरे देश में दर्ज किए गए वित्तीय अपराधों की मात्रा के बारे में गृह मंत्रालय ने बताया कि वित्तीय वर्ष 2020-21 में दर्ज किए गए वित्तीय अपराधों की मात्रा 2.62 लाख थी। 2022 में यह 6.94 लाख हो गई है। 

घोटालेबाज मोबाइल हैंडसैट के माध्यम से किए गए लेन-देन से संबंधित लोगों को धोखा देने के लिए नए-नए तरीके ढूंढ रहे हैं। धोखेबाजों द्वारा उपयोग किए जाने वाले सामान्य तरीकों में से एक इंटरनैट पर फर्जी हैल्पलाइन नंबर डालना और लोगों को एक साधारण लेन-देन के लिए भेजे गए ओ.टी.पी. का खुलासा करने के लिए फंसाना है। एक और अक्सर इस्तेमाल किया जाने वाला तरीका जमा पर बहुत अधिक ब्याज की पेशकश करना है। उनके द्वारा अपनाया गया एक और नया तरीका यह है कि अपने खाते में पैसे ट्रांसफर करें और फिर दावा करें कि यह गलती से हुआ है। जब आप उन्हें पैसे लौटा देते हैं तो वे बैंक खाता साफ कर देते हैं, जिससे अनजाने में बैंक विवरण का खुलासा हो जाता है। चौंकाने वाली बात यह है कि ऐसी धोखाधड़ी आवश्यक रूप से शिक्षित या तकनीकी विशेषज्ञों द्वारा नहीं बल्कि अर्ध-साक्षरों द्वारा की जाती है। हाल ही में दिल्ली पुलिस ने ग्रामीण युवाओं के एक गिरोह का भंडाफोड़ किया, जो फरीदाबाद और गाजियाबाद के पास अर्ध-जंगली इलाकों से इन गतिविधियों में शामिल थे। निर्दोष या अनजान लोगों को ब्लैकमेल करना इन लोगों द्वारा पैसे ऐंठने का एक और तरीका है। 

सरकार ऐसे साइबर धोखाधड़ी के खिलाफ जागरूकता अभियान चला रही है लेकिन फिर भी संख्या तेजी से बढ़ रही है। ऐसा प्रतीत होता है कि ऐसे अपराधी अधिकारियों से एक कदम आगे रहते हैं और इसलिए एक विशेष एजैंसी स्थापित करने की तत्काल आवश्यकता है जिसके पास ऐसे अपराधियों का पता लगाने और उन्हें पकडऩे के लिए व्यापक अधिकार क्षेत्र होना चाहिए। ऐसी पृष्ठभूमि में जहां ऐसे मामलों की संख्या तेजी से बढ़ रही है, भारत में अपराधों से निपटने के लिए केवल 312 साइबर पुलिस स्टेशन और कानून का एक समूह है। देश में इन पुलिस स्टेशनों की कमी के अलावा, मौजूदा नियामक ढांचा डिजिटल वित्तीय पारिस्थितिकी तंत्र के उभरते खतरों और कमजोरियों का अनुमान लगाने और उनसे निपटने में असमर्थ है। 

पिछले हफ्ते सरकार ऐसे अपराधों पर लगाम लगाने के लिए यू.पी.आई. लेन-देन पर कुछ प्रतिबंध लगाने का प्रस्ताव लेकर आई थी, जिसमें 2000 रुपए से अधिक के भुगतान के हस्तांतरण में 4 घंटे की देरी करना शामिल था। यह एक अच्छा कदम साबित हो सकता है लेकिन जाहिर तौर पर यह पर्याप्त नहीं है। कानून प्रवर्तन एजैंसियों को साइबर अपराधियों द्वारा अपनाए जाने वाले तरीकों का अनुमान लगाने या कम से कम उनके साथ तालमेल बिठाने का एक तरीका खोजना चाहिए। लोगों, विशेषकर वरिष्ठ नागरिकों के बीच जागरूकता को और बढ़ाने की भी आवश्यकता है। ऐसे अपराधों में तेज वृद्धि को देखते हुए साइबर अपराध कानूनों को मजबूत किया जाना चाहिए और शीघ्र न्याय प्रदान करने के लिए विशेष अदालतें स्थापित की जानी चाहिएं। ऐसे किसी धोखेबाज को कोई अनुकरणीय सजा दिए जाने की खबरें आना दुर्लभ है। अब कानून प्रवर्तन एजैंसियों और न्याय वितरण प्रणाली के लिए कार्रवाई करने का समय आ गया है।-विपिन पब्बी


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