भारत का कश्मीर किस दिशा में बढ़ रहा है?

punjabkesari.in Wednesday, Jul 17, 2024 - 05:21 AM (IST)

सुरम्य कश्मीर की समस्याएं जस की तस हैं। हाल ही में कुलगाम और कठुआ में सुरक्षाकर्मियों की जघन्य हत्याएं इस बात का प्रमाण हैं कि घाटी में आतंकवादी हिंसा की लहर बढ़ती जा रही है, जिससे भारत का सुरक्षा तंत्र चिंतित है और इस बीच शुक्रवार को खबर आई कि केन्द्र ने उपराज्यपाल की शक्तियां बढ़ा दी हैं। यह इस ओर संकेत करता है कि केन्द्र राज्य में उच्चतम न्यायालय के निर्देश पर 6 वर्ष के अंतराल के बाद 30 सितंबर को होने वाले विधानसभा चुनावों से पूर्व मुख्य शक्तियां अपने पास रखना चाहता है और इससे एक निर्वाचित सरकार की शक्तियों के बारे में आशंका पैदा होती है। इससे यह विचारणीय प्रश्न भी पैदा होता है कि जम्मू-कश्मीर किस दिशा में जा रहा है। इस संशोधन ने जम्मू-कश्मीर में राज्य का दर्जा बहाल करने के बारे में ही प्रश्न चिन्ह लगा दिया है, जिसके बारे में केन्द्र ने वायदा किया था। 

यदि जम्मू-कश्मीर को पुन: राज्य का दर्जा दिया गया तो केन्द्र की शक्तियां किस तरह कार्य करेंगी? जम्मू-कश्मीर संघ राज्य क्षेत्र दूसरा संशोधन नियम 2024 के अनुसार सरकारी विभागों, नियुक्तियों, अखिल भारतीय सेवाओं के वरिष्ठ सिविल और पुलिस अधिकारियों अर्थात प्रशासन के शीर्ष स्तर के अधिकारियों की नियुक्ति और स्थानांतरण के मामले में राज्यपाल की शक्तियां बढ़ा दी गई हैं। इसके अलावा लोक व्यवस्था और मुख्य विभागों के मामले में उसकी स्वीकृति आवश्यक बनाई गई है। एडवोकेट जनरल और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों की नियुक्ति में उपराज्यपाल की स्वीकृति अनिवार्य है और मुकद्दमे चलाने की अनुमति देने के मामले में भी उपराज्यपाल की अनुमति आवश्यक बना दी गई है। केन्द्र ने इन संशोधनों को किसी तरह की अस्पष्टता को दूर करने के लिए उचित बताया क्योंकि इससे प्रक्रिया के बारे में स्पष्टता आएगी ताकि प्रशासन सुचारू रूप से कार्य कर सके। 

क्षेत्रीय दलों ने इन संशोधनों पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। अब्दुल्ला का कहना है कि यह अलोकतांत्रिक है। लोग शक्तिहीन, रबर स्टैंप मुख्यमंत्री से बेहतर की अपेक्षा करते हैं क्योंकि ऐसा मुख्यमंत्री अपने चपरासी की नियुक्ति के लिए भी उपराज्यपाल के द्वार खटखटाएगा। एक पी.डी.पी. नेता का कहना है कि अब निर्वाचित सरकार एक नगर पालिका के समान रहेगी। नि:संदेह आतंकवादग्रस्त संघ राज्य क्षेत्र की एक विशेष स्थिति है और यदि वहां पर हिंसा को समाप्त करना है तो एक कुशल प्रशासन की आवश्यकता है। 

इसके अलावा क्षेत्र में बढ़ते कट्टरपन को देखते हुए स्थानीय लोगों में भय की भावना बढ़ी है और यह इस बात को भी दर्शाता है कि किस तरह आतंकवादी घाटी में अंदर तक घुस आए हैं और वहां पर शांति भंग और वातावरण खराब कर रहे हैं। नेता केन्द्र की एक कदम आगे बढऩे और दो कदम पीछे हटने की नीति पर प्रश्न उठा रहे हैं। इन घटनाओं ने सरकार के इस भ्रम को तोड़ दिया है कि घाटी से आतंकवाद लगभग समाप्त हो गया है, सुरक्षा मजबूत हो गई है और इसके परिणामस्वरूप लोगों में सुरक्षा की भावना पैदा हो रही है, फलत: घाटी में विकास कार्य गति पकड़ रहे हैं। सुरक्षा कर्मियों की मौत की इन घटनाओं ने 2019 के बाद राज्य में राजनीतिक रिक्तता का प्रभाव दर्शाया है, इसलिए आवश्यक है कि घाटी में लोकतांत्रिक प्रक्रिया बहाल की जाए। हाल के संसदीय चुनावों में भारी मतदान इस बात का संकेत है कि लोग क्या चाहते हैं। केन्द्र सरकार को विश्वास है कि उसके द्वारा कश्मीरियों को मुख्य धारा में लाने के उपायों का प्रभाव दिखेगा। 

केन्द्र सरकार ने लोगों को नगर पालिका और पंचायत चुनाव लडऩे की अनुमति दी, साथ ही सरकार को कश्मीर में आॢथक मोर्चे पर और कदम उठाने होंगे और घाटी में सब लोगों की हकदारी बढ़ानी होगी, जो शेष भारत के आर्थिक कार्यकलापों से लाभान्वित होंगे। केन्द्र ने घाटी में विभिन्न विकास परियोजनाएं चलाई हैं और इसके लिए निवेश सम्मेलन भी किए जा रहे हैं। घाटी में बाहरी लोगों के रहने, काम करने और वहां पर संपत्ति खरीदने के प्रतिबंध को समाप्त करने के बाद कश्मीर धीरे-धीरे एक बड़ा व्यावसायिक निवेश आकॢषत कर रहा है। इस क्षेत्र में आई.टी. कंपनियां स्थापित हो सकती हैं। यहां पर विश्वस्तरीय पर्यटन सुविधाएं उपलब्ध कराई जा सकती हैं तथा आधुनिक उद्योगों के लिए एक नई अवसंरचना उपलब्ध कराई जा सकती हैं। बॉलीवुड, तेलुगू और तमिल फिल्म उद्योग इस क्षेत्र में लौट आया है और इस तरह यहां एक नए युग की शुरूआत हो रही है। घाटी में पर्यटन बढ़ रहा है किंतु सरकार को स्थानीय आवश्यकताओं के प्रति संवेदनशील होना होगा। निश्चित रूप से बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि भारत से लोग व्यापार और निवेश के लिए कितनी संख्या में वहां जाते हैं। 

देखना यह है कि क्या कश्मीर के लोग विकास के वायदे से संतुष्ट होंगे क्योंकि विकास के बारे में कश्मीर के लोगों को कभी शिकायत नहीं रही है। उनकी आपत्ति भारी संख्या में सुरक्षा बलों की तैनाती है, जिससे लोगों का विश्वास जीतने में कठिनाई हो रही है। कश्मीर को एक भावनात्मक पैकेज की आवश्यकता है, एक ऐसा पैकेज जो कश्मीरियों विशेषकर युवकों को पाकिस्तान के दुष्प्रचार से अलग करे और उन्हें अपने दुख और हताशा, गुस्से और घृणा को व्यक्त करने का अवसर दे। एक ऐसा वातावारण चाहिए, जिसमें उन्हें सम्मान मिले, उनकी गरिमा बहाल हो और उनके अपमान के घावों पर मरहम लगे। 

भारत को कश्मीरियों से जुडऩा होगा और उनके दिल और दिमाग को जीतना होगा। श्रीनगर में युवा डल लेक में सैर कर रहे हैं और महिलाएं रात को लाल चौक पर शॉपिंग कर रही हैं। भाजपा और उसके सहयोगी दल छात्र शिष्टमंडलों को कश्मीर भेज रहे हैं और वे वहां कश्मीरी युवाओं के साथ समय बिता रहे हैं। निश्चित रूप से बुरे तत्व सब जगह हैं, किंतु आशा की जाती है कि कश्मीरी मैत्री के लिए बढ़े हाथों को अस्वीकार नहीं करेंगे या उनका स्वागत हिंसा से नहीं करेंगे। सरकार को कश्मीर के लिए एक शैक्षिक पैकेज देने की आवश्यकता है, जो वास्तविकता बनना चाहिए। 

समय की आवश्यकता है कि कल्पनाशील होकर नए कदम उठाए जाएं और नए उपाय किए जाएं। कश्मीर एक ऐसा स्थान नहीं है, जहां पर लोग भय के साए में रहें। न ही यह एक ऐसा खिलौना है जिससे खेल कर छोड़ दिया जाए। यह एक राष्ट्रीय मुद्दा है और यह दलगत राजनीति, विचारधारा, दर्शन और सिद्धान्तों से ऊपर है। मोदी को अपने राष्ट्रीय हितों को आगे बढ़ाने और कश्मीरियों में यह भावना जगाने कि वे वास्तव में भारत के हैं, कोई कसर नहीं छोडऩी होगी और कश्मीरियों को भी आगे बढऩा होगा। गत दशकों में कश्मीर हमारे राजनेताओं के परीक्षणों और प्रयोगों का खेल का मैदान रहा है। वहां पर अनेक नए-नए प्रयोग किए गए हैं। पाकिस्तान के मंसूबों को हराया गया है, सीमा पार प्रायोजित आतंकवाद को समाप्त करने के प्रयास किए गए हैं, हालांकि विपक्ष और क्षेत्रीय दलों और कश्मीरियों में असंतोष भी रहा है। 

मोदी सरकार का मुख्य उद्देश्य नए कश्मीर का निर्माण करना होगा। इस दिशा में धीरे-धीरे कार्य प्रगति पर है, किंतु पारदर्शिता बरती जानी चाहिए। प्रधानमंत्री वायदा कर रहे हैं कि वे अपने सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास के नारे पर कायम हैं और वे कश्मीर को फिर से स्वर्ग बनाएंगे और उन्हें एक सुदृढ़ तथा सशक्त जम्मू-कश्मीर के निर्माण के अवसर प्रदान करने चाहिएं। देखना यह है कि क्या कश्मीर के बागों में फिर से चैरी खिलेगी और क्या वे कश्मीर के सपने को एक नई वास्तविकता बना पाएंगे और क्या वहां पर भी स्थायी शांति होगी।-पूनम आई. कौशिश
 


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