भविष्य में अब केवल दो राजनीतिक दल आमने-सामने रहेंगे

punjabkesari.in Saturday, Oct 19, 2024 - 05:15 AM (IST)

भारत विश्व में सबसे बड़ा और श्रेष्ठ प्रजातांत्रिक पद्धति सम्पन्न राष्ट्र है जो स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के लिए विशेष स्थान रखता है। हरियाणा और जम्मू-कश्मीर में नई सरकारें बन चुकी हैं। जम्मू-कश्मीर में धारा 370 हटाए जाने के पश्चात आतंकवाद तथा दहशतगर्दी से करीब-करीब निजात पा ली गई है और चुनावों में भारी संख्या में लोग विशेषकर महिला मतदाताओं ने अपने वोट का इस्तेमाल पूरी स्वतंत्रता के साथ किया। इस प्रदेश के बारे में जिस तरह के परिणामों के अनुमान लगाए जा रहे थे वह भी करीब-करीब उसी तरह के आए। 

हरियाणा में पिछले 10 वर्षों से भाजपा अपने साथियों सहित शासन कर रही थी। इस चुनाव में सत्ता विरोधी लहर के कारण कांग्रेस के सत्ता में आने की उम्मीद थी। चुनाव से पहले करीब-करीब सारा मीडिया तथा समाचार पत्रों में कांग्रेस की जीत का ही जिक्र हो रहा था। कांग्रेस के शीर्ष और प्रदेश के नेताओं को यह पूर्ण विश्वास था कि इस बार हरियाणा में कांग्रेस अवश्य  सत्ता पाने में कामयाब होगी। परंतु चुनाव परिणामों ने कांग्रेस के नेताओं और कार्यकत्र्ताओं को आश्चर्यचकित ही नहीं किया बल्कि हैरतअंगेज, ङ्क्षचताजनक,असमंजसता की स्थिति में डाल दिया। भाजपा ने अपनी राजनीतिक एवं प्रशासनिक कमियों-कमजोरियों को दूर करने के लिए अपने मुख्यमंत्री को हटा कर एक नए चेहरे को मुख्यमंत्री के पद पर सुशोभित कर दिया। इस तरह उसने अपनी सत्ता विरोधी खामियों को दूर करने में शानदार नीति अपनाई। इस सच्चाई से इंकार नहीं किया जा सकता कि ठीक समय पर ठीक फैसला न करने से कभी भी आशानुरूप परिणाम नहीं निकलते।  पिछले 10 वर्षों से हरियाणा प्रदेश कांग्रेस अपने संगठनात्मक ढांचे को मजबूत करने में बुरी तरह असफल रही है जिसके परिणामस्वरूप कई बूथों पर कांग्रेस  कार्यकत्र्ता ही नदारद रहे। नेता जलसों में भीड़ जुटाने में तो कामयाब रहे परंतु भीड़ को वोटों में बदलने में बुरी तरह असफल रहे हैं। 

संसदीय चुनाव में 5 सीटें जीतने पर वे अत्यधिक आत्मविश्वास के मायाजाल में फंस गए और चुनाव जीतने के लिए जितनी लगन और मेहनत से काम करना चाहिए था उसमें उदासीनता आ गई। कांग्रेस का ‘आप’ से समझौता न करना भी महंगा पड़ा। हकीकत में वह अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी के जाल में ही बुरी तरह फंस गई। इस चुनाव में क्षेत्रीय दलों का सफाया हो गया। ‘आप’ भी पूरी तरह हाथ मलती रह गई। चौधरी देवीलाल, चौधरी बंसीलाल, चौधरी भजनलाल और अन्य परिवारवाद के समर्थकों को भी भारी झटका लगा। कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व को अपने थिंक टैंक को लोक हितैषी और प्रगतिशील नीतियों के निर्माण के लिए पूरी तरह से पुनर्गठित करना चाहिए। रूढि़वादी के स्थान पर विकास शील नीतियों को अपनाना होगा। कांग्रेस को डा. मनमोहन सिंह के 10 वर्षों के कार्यकाल में अपने संगठनात्मक ढांचे को मजबूत करने का सुनहरी अवसर मिला था जिसका पार्टी के नेताओं ने कोई फायदा नहीं उठाया। 

वर्षा कितनी भी हो यदि डैम बनाकर पानी को रोका नहीं जाएगा तो बारिश का सारा पानी व्यर्थ हो जाएगा। कांग्रेसी नेताओं को आरामपरस्त होटल संस्कृति को त्याग कर जनसाधारण से रिश्ते कायम करने होंगे। चापलूसों और मौका परस्तों से सावधान रहना होगा। इंटक को पुनर्गठित करना होगा ताकि उद्योग क्षेत्र और कृषि क्षेत्र से संबंधित मजदूरों का एक विशाल ढांचा बनाया जा सके। आर.एस.एस. और सेवा दल करीब-करीब एक ही समय में अस्तित्व में आए थे। आर.एस.एस. की देश में अनगिनत शाखाएं हैं और लाखों सक्रिय सदस्य हैं, जबकि सेवा दल एक नाममात्र संगठन बनकर रह गया है। इसी तरह यूथ कांग्रेस, महिला कांग्रेस और अन्य संगठन भी अपनी भूमिका निभाने में बड़े कमजोर नजर आ रहे हैं। कांग्रेस में जब अति प्रभावशाली, कार्यकुशल और लोकप्रिय नेता पंडित जवाहरलाल नेहरू और श्रीमती इंदिरा गांधी थे तो वह राजनीतिक प्रतिकूल बहाव को भी बदल देते थे। अब समय बदल गया है । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक अति प्रभावशाली नेता बनकर उभरे हैं।

भारत के भविष्य में अब अमरीका, इंगलैंड, कनाडा, आस्ट्रेलिया की तरह केवल 2 राजनीतिक दल आमने-सामने रहेंगे। एक भाजपा और दूसरी कांग्रेस। क्षेत्रीय दल धीरे-धीरे अपना वर्चस्व खो देंगे। नेताओं को लोगों के जज्बातों, महत्वाकांक्षाओं और आवश्यकताओं को समझने के लिए एक शे’र नजर करता हूं-
आदमी खुद को कभी यूं भी सजा देता है,
अपने दामन से खुद शोलों कों हवा देता है।
मुझे उस हकीम की हिकमत पर तरस आता है,
भूखे लोगों को जो सेहत की दवा देता है।-प्रो. दरबारी लाल पूर्व डिप्टी स्पीकर, पंजाब विधानसभा
 


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