रूस-यूक्रेन युद्ध के भारत पर प्रभाव

punjabkesari.in Monday, Mar 07, 2022 - 05:07 AM (IST)

सारी दुनिया यूक्रेन-रूस युद्ध को लेकर बेचैन है। भारत की बड़ी चिंता उन विद्यार्थियों को लेकर है जो यूक्रेन में अभी फंसे हुए हैं। इसके साथ ही इस युद्ध से जो दूसरी बड़ी चुनौती है उसके भी दूरगामी परिणाम हम भारतवासियों को भुगतने पड़ सकते हैं। 

सुप्रसिद्ध अर्थशास्त्री प्रो. अरुण कुमार के अनुसार, वैश्वीकरण के कारण किसी भी जंग का दुनिया के हर हिस्से पर असर पड़ता है। वह युद्ध चाहे खाड़ी के देशों में हो या अफ्रीका में। परंतु रूस-यूक्रेन जंग इन सबसे अलग है। यह युद्ध नहीं बल्कि विश्व की 2 महाशक्तियों के बीच टकराव है। इस युद्ध में एक ओर रूस की सेना है, जबकि दूसरी ओर अमरीका व नाटो द्वारा परोक्ष रूप से समर्थित यूक्रेन की सेना, जिनकी तनातनी भारत पर भी असर छोड़ सकती है। 

यूक्रेन और रूस के बीच होने वाला यह युद्ध तात्कालिक तौर पर वैश्विक कारोबार, पूंजी प्रवाह, वित्तीय बाजार और तकनीकी पहुंच को भी प्रभावित करेगा। इस युद्ध में भले ही रूस ने हमला बोला है, लेकिन उस पर प्रतिबंध भी लागू हो गया है। 

फिलहाल दुनिया भर में रूस गैस और तेल का बहुत बड़ा आपूर्तिकर्ता है। अभी इन उत्पादों के कारोबार भले ही प्रतिबंधित नहीं किए गए हैं, लेकिन मुमकिन है कि जल्द ही रोक लगाई जा सकती है। जाहिर है, इसके बाद इनके दाम बढ़ सकते हैं। दूसरी ओर, यूक्रेन गेहूं और खाद्य तेलों के बड़े निर्यातकों में से एक है। भारत भी वहां से लगभग 1.5 बिलियन डालर का सूरजमुखी तेल हर साल मंगाता है। ऐसे में, भारत में इन वस्तुओं के आयात प्रभावित होने से खाद्य उत्पादों पर भी असर पड़ेगा। यानी यह युद्ध ऊर्जा, धातु और खाद्य उत्पादों के वैश्विक कारोबार को काफी हद तक प्रभावित कर सकता है। 

प्रो. कुमार के अनुसार, जब बाजार में अनिश्चितता का दौर आता है, तो बिक्री शुरू हो जाती है। विदेशी निवेशक अपनी पूंजी वापस निकालने लगते हैं, जिससे प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफ.डी.आई.) और विदेशी संस्थागत निवेश (एफ.आई.आई.) का आना भी कम हो जाता है। जंग के हालात में सभी देश अपने-अपने निवेशकों को अपने-अपने मुल्क में ही निवेश करने की सलाह देते हैं। ऐसा इसलिए होता है ताकि उनकी अर्थव्यवस्था मजबूत बनी रहे। तकनीक भी इन सबसे अछूती नहीं रहती। चूंकि युद्ध में आधुनिक तकनीक की जरूरत बढ़ जाती है, इसलिए बाकी क्षेत्रों के लिए उसकी उपलब्धता कम हो जाती है। एक क्षेत्र ऐसा है जहां युद्ध फायदा कराता है और वह है सैन्य साजो-सामान से जुड़े उद्योग। 

यह सब कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि यूक्रेन-रूस युद्ध कितने समय तक चलता है। विशेषज्ञों का अनुमान यही है कि यह जंग लंबी नहीं चलने वाली। रूस 1979-89 में हुई अफगानिस्तान वाली गलती को शायद ही दोहराना पसंद करेगा। इसलिए दोनों देशों के बीच बातचीत की मेज सजने की भी खबर आ रही है। मगर इतना तो तय है कि हाल-फिलहाल में जंग भले ही खत्म हो जाए, परंतु युद्ध उपरांत शीतयुद्ध थमने वाला नहीं। इस बार 1950 के दशक जैसा दृश्य नहीं होगा। उस समय सोवियत संघ (वामपंथ) और पश्चिम (पूंजीवाद) की वैचारिक लड़ाई थी। अब तो रूस और चीन जैसे देश भी पूंजीवादी व्यवस्था अपना चुके हैं। इसलिए यह वैचारिक लड़ाई नहीं, वर्चस्व की लड़ाई है। 

इसका मतलब यह भी निकाला जा सकता है कि इस युद्ध से दुनिया भर में मंदी और महंगाई बढ़ सकती है। रूस की कंपनियों पर प्रतिबंध लग जाने से वैश्विक कारोबार प्रभावित होगा। हालांकि, पश्चिमी देश इस कोशिश में हैं कि वे पैट्रो उत्पादों का अपना उत्पादन बढ़ा दें और ओपेक देशों से भी ऐसा करने की गुजारिश की जा सकती है। फिर भी पैट्रो उत्पादों की घरेलू कीमतें बढऩा तय है। इनकी कीमत बढ़ते ही अन्य चीजों के दामों में भी तेजी आएगी। 

अभी चूंकि बाजार में बहुत ज्यादा पूंजी नहीं है, इसलिए माना जा रहा है कि पहले की तुलना में महंगाई ज्यादा असर डाल सकती है। आयात बढऩे और निर्यात कम होने से भी भुगतान-संतुलन बिगड़ जाएगा। इस अनिश्चितता के दौर में सोने की मांग भी बढ़ सकती है, जिससे इसका आयात भी बढ़ सकता है। इन सबसे रुपया कमजोर होगा और स्थानीय बाजार में इसकी कीमत बढ़ सकती है। 

प्रो. कुमार का मानना है कि यूक्रेन-रूस युद्ध से दुनिया भर के देशों का बजट बिगड़ सकता है। सभी देश अपनी सेना पर ज्यादा खर्च करने लगेंगे। इससे वास्तविक विकास तुलनात्मक रूप से कम हो जाएगा और राजस्व में भी भारी कमी आएगी। महंगाई से कर वसूली बढ़ती जरूर है, लेकिन इनसे राजस्व घाटा बढ़ता जाता है, जिसके बाद सरकारें सामाजिक क्षेत्रों से अपने हाथ खींचने लगती हैं। इससे स्वाभाविक तौर पर देश की गरीब जनता प्रभावित होती है। मुमकिन है कि वैश्वीकरण की अवधारणा से भी जब सरकारें पीछे हटने लगें, जिसका नुक्सान विशेषकर भारत जैसे विकासशील देशों को होगा।-विनीत नारायण


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