अवैध प्रवासी: मानवीय पहलू पर भी ध्यान देना जरूरी

punjabkesari.in Monday, Aug 06, 2018 - 04:17 AM (IST)

दशकों के दौरान मैंने बहुत से देशों की यात्राएं की हैं, संभवत: 30 या 40 के करीब। किसी भी अन्य देश में मैंने किसी मेहमान अथवा किसी अंजान व्यक्ति, जो बिन बुलाए आपके घर आ जाता हो, को एक गिलास पानी पिलाने की परम्परा नहीं देखी है। मेरी मां ने मुझे ऐसा करना विशेष तौर पर नहीं सिखाया मगर क्योंकि जब भी कोई घर आता था तो वह हर बार ऐसा ही करती थीं तो मुझ में भी वह आदत विकसित हो गई। 

चार दशक पूर्व के समय के मुकाबले इन दिनों हम में से अधिकांश के घरों के दरवाजों पर अधिकतर अंजान लोग दस्तक देते हैं। कोरियर डिलीवरी करने वाले लोग अथवा केबल टैलीविजन रिपेयर करने वाले या वैसे ही अन्य लोग लगभग हर रोज दरवाजे पर आते हैं। उन्हें उन सभी घरों, जिनमें वे जाते हैं, उनसे मेहमानों की तरह व्यवहार करने की आशा नहीं होती मगर क्योंकि यह मेरी आदत है, मैं अभी भी उनसे पूछता हूं कि यदि वे चाहें तो बैठ कर एक गिलास पानी पी सकते हैं। 

जब कुछ समय पूर्व मैंने वाल्मीकि रामायण पढ़ी (जो संस्करण मैंने पढ़ा उसका शानदार अनुवाद मेरे मित्र अशर््िाया सत्तार ने किया था और प्रकाशन पेंगुइन का था), मुझे यह देखकर हैरानी हुई कि यही परम्परा श्री राम के समय में भी अस्तित्व में थी। हर बार जब वह किसी नए स्थान पर जाते थे, चाहे वह जंगल में किसी ऋषि की कुटिया होती थी अथवा गांव में किसी गरीब व्यक्ति का घर, उन्हें रस्म के तौर पर एक गिलास का एक पानी दिया जाता था। यह हमारी भारतीय परम्परा है और हमें इस पर गर्व होना चाहिए विशेषकर इस कारण से, जैसा कि मैंने कहा है कि मैं नहीं समझता कि दुनिया में कोई भी ऐसा करता नजर नहीं आता हो। 

हम सभी ‘अतिथि देवो भव’ की पंक्ति से वाकिफ हैं, जो हमारे उपनिषदों में से एक से ली गई है। सही पंक्ति है ‘मातृ देवो भव, पितृ देवो भव, आचार्य देवो भव, अतिथि देवो भव’ और हमें यह वाक्य सूरत स्थित हमारे स्कूल में सिखाया जाता था। इसका अर्थ यह है कि माता, पिता, अध्यापक तथा मेहमान का भगवान की तरह ही सम्मान किया जाना चाहिए। हममें से जो लोग खुद को हिन्दू मानते हैं, उन्हें अवश्य यह विचार करना चाहिए कि हमारे ग्रंथों से लिए गए ऐसे निर्देशों की रोशनी में ङ्क्षहदू होने का वास्तविक अर्थ क्या है? क्या हमने ऐसा ही सम्मान और यहां तक कि सहानुभूति भी असम में मताधिकार से वंचित किए जाने के कार्य के दौरान लोगों के साथ होती देखी है? आरोप यह है कि 40 लाख लोग जो 1971 से खुद की भारतीय नागरिक के रूप में पहचान करवाने में सक्षम नहीं हैं, वे वास्तव में बंगलादेशी हैं। 

भारत के पूर्व राष्ट्रपति फखरूद्दीन अली अहमद के संबंधियों जैसे लोगों के साथ कुछ सहानुभूति है जो ऐसा करने में सफल नहीं हुए। मगर अनुमान यह है कि यह वास्तविक तथा पात्र भारतीय हैं जिन्हें छोड़ दिया गया है। मेरी चिंताएं उन सभी के लिए हैं। यहां तक कि यदि कोई किसी बंगलादेशी का बच्चा अथवा उसके बच्चे का बच्चा है या खुद प्रवासी बंगलादेशी ही है, तो क्या हुआ? मेरी संस्कृति तथा मेरा धर्म और मेरा पालन-पोषण मुझे बताता है कि मुझे उनके साथ मानवतापूर्ण व्यवहार करना चाहिए। विशेषकर उनके साथ जो गरीब तथा कमजोर हैं। मैं नहीं समझता कि हम यह हिंदू मानवता तथा मानवतावाद नैशनल रजिस्टर आफ सिटीजन्स की प्रक्रिया में दिखा रहे हैं जो मुझे स्वाभाविक रूप से क्रूर दिखाई देता है। 

क्या हम यह कल्पना कर सकते हैं कि जो लोग बंगलादेश में पैदा हुए हैं अथवा जिनके अभिभावक वहां पैदा हुए थे और हमारे देश में काम कर रहे हैं? इसकी तुरंत प्रतिक्रिया एक आम आरोप के रूप में यह होगी कि वे हमारे देश में आतंकवाद फैला रहे हैं और हमारे समाज में घुसपैठ कर उन चीजों का लाभ उठा रहे हैं जो हमारे पास हैं। ऐसा ही एक आरोप अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के अंतर्गत भी लग रहा है। उन्होंने कहा है कि वह ‘गंदे देशों’ से प्रवासी नहीं चाहते बल्कि केवल नार्वे जैसे देशों से। इसका अर्थ यह हुआ कि वह अफ्रीका तथा भारत से नहीं (फिर भी बहुत से भारतीय प्रवासी अत्यंत मूल्यवान एच1बी वीजा के लिए आवेदन करते हैं जो अमरीकी अर्थव्यवस्था में योगदान डालता है), बल्कि श्वेत देशों से लोगों को चाहते हैं। 

उनका मुख्य गुस्सा मैक्सिकन लोगों की ओर लक्षित है क्योंकि वे ‘भीख मांगना’ चाहते हैं। यह एक अमरीकी अभिव्यक्ति है जिसका अर्थ एक ऐसे व्यक्ति से है जो देश द्वारा उपलब्ध करवाई गई सुविधाओं पर जीता है, जैसे कि मुफ्त आवास तथा सस्ता सार्वजनिक परिवहन और बेरोजगारी के लाभ मगर सामान्य तौर पर आलसी है। मैं अमरीका को अच्छी तरह से जानता हूं और मेरे अनुभव के अनुसार मैक्सिकन प्रवासी अवैध गुजराती पटेल प्रवासी के साथ मिलकर उस देश में सर्वाधिक मेहनती लोगों में से हैं। हम पटेल मोटल्स के बारे में जानते हैं मगर हमें यह भी जानना चाहिए कि इनमें से अधिकतर लोग बिना किसी उचित वीजा के वहां पहुंचे और मोटलों के कमरों की सफाई करके अपने करियर शुरू किए, जिसके लिए कड़ी शारीरिक मेहनत की जरूरत होती है। 

ऐसा ही कुछ बंगलादेशीयों के साथ अथवा उन लोगों के साथ हो रहा है जो संभवत: भारतीय हैं मगर उन्हें बंगलादेशी समझा जाता है। यदि हम देश भर में रेस्तरांओं में सर्विस स्टाफ तथा चौकीदारों और अन्य ऐसे लोगों को देखें तो उनमें से बहुत से बंगाल से हैं, चाहे वह पूर्वी हो अथवा पश्चिमी। इटली में सारे देश में बहुत से अवैध बंगलादेशी प्रवासी हैं मगर वे बिना प्रश्र उद्यमी तथा कड़ी मेहनत करने वाले हैं और वे इसलिए वहां आए क्योंकि वे सोचते थे कि यह रहने के लिए एक अच्छा तथा सभ्य स्थान है। हम क्यों ऐसे लोगों पर थूकते हैं जो हमारे पास इस कारण से आए हैं कि वे वास्तव में हमारे देश को उनके खुद के देश से अधिक पसंद करते हैं। 

मैं पाठकों को यह बताना चाहता हूं जो आपको पहले से ही पता है कि अमरीका तथा यूरोप की तरह हमारे यहां नि:शुल्क अथवा सबसिडी युक्त सार्वजनिक आवास नहीं हैं, हम बेरोजगारी के लाभ प्राप्त नहीं करते और न ही हमारे पास अच्छी जनस्वास्थ्य सेवाएं हैं। भारत किसी ऐसे व्यक्ति के रहने के लिए एक बहुत कठिन देश है जो गरीब है। जब हम इस बात पर चर्चा करें कि इन लोगों को विदेशी घोषित करने की ओर हमारी यात्रा का अगला चरण क्या होगा और यह निर्णय लें कि उनके साथ क्या करना है, हमें यह सब अपने दिमाग में रखना चाहिए। हमें, विशेषकर उन लोगों को जो सत्ता के पदों पर बैठे हैं और हमारी संस्कृति तथा परम्पराओं और धर्म को लेकर गर्व महसूस करते हैं, खुद से पूछना चाहिए कि हम ऐसे व्यक्तियों के लिए अतिथि देवो भव की क्या व्याख्या कर रहे हैं।-आकार पटेल


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Pardeep

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