भारत में अवैध आप्रवासी और उन्हें वापस भेजने का संकट

punjabkesari.in Wednesday, Nov 06, 2024 - 06:04 AM (IST)

वर्ष 1975 की गर्मियों में साइगोन के पतन के बाद राजनीतिक उत्पीडऩ के भय से दक्षिण वियतनाम से हजारों लोगों ने पलायन किया। वे लकडिय़ों की टूटी-फूटी नाव में सवार होकर वहां से बच निकले, जो आधुनिक इतिहास में समुद्र के रास्ते शरण लेने वालों का सबसे बड़ा पलायन था और इसके चलते इन लोगों को ‘बोट पीपुल’ की संज्ञा दी गई। विश्व समुदाय ने उन्हें शरणाॢथयों के रूप में स्वीकार किया। अमरीका के अलावा कनाडा, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया, थाईलैंड, मलेशिया और जापान, यहां तक कि छोटे से देश बरमूडा ने भी उन्हें शरण दी। 

14 वर्ष बाद 1989 में विश्व समुदाय की सोच में बदलाव आया और ये ‘बोट पीपुल’ उनके गले की फांस बन गए। यही नहीं, ‘बोट पीपुल’ की एक नई पीढ़ी तैयार हुई जिनमें आॢथक शरणार्थी अर्थात किसान, फैक्टरी के कामगार और श्रमिक सुखद भविष्य के लिए पलायन करने लगे। 49 वर्ष बाद भारत में इतिहास अपनी पुनरावृत्ति कर रहा है। यहां के ‘बोट पीपुल’ अर्थात अवैध आप्रवासी चर्चा में हैं। 

पड़ोसी देशों से नई आॢथक संभावनाओं की तलाश में लाखों की संख्या में ऐसे अवैध अप्रवासी भारत में आ रहे हैं और इसकी शुरुआत 1971 के युद्ध के बाद बंगलादेश से हुई तथा उसके बाद पाकिस्तान व म्यांमार से ऐसे अवैध आप्रवासी आए और तब से लगभग चाढ़े 4 करोड़ अवैध आप्रवासी भारत के गले की फांस बने हुए हैं। तथापि अब स्थिति बदल रही है। 

जिस तरह वर्ष 1989 में बोट पीपुल ने विश्व समुदाय की सहानुभूति खोई, भारत भी अब इस बारे में जागरूक हो गया है और उसने अपनी सोच बदली है। भारत सरकार अब उनके प्रत्यर्पण के बारे में विचार कर रही है। भारत के गृह मंत्री अमित शाह ने कहा है कि ऐसे ढाई करोड़ अवैध बंगलादेशी आप्रवासियों की पहचान कर उन्हें वापस भेजा जाए। इसी के साथ ही 11700 पाकिस्तानी, जो भारत में निर्धारित अवधि से अधिक समय से रह रहे हैं, उन्हें भी वापस भेजा जाए। 

पिछले सप्ताह झारखंड में चुनाव प्रचार करते हुए असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा सरमा ने कहा कि जनांकिकी में बदलाव मेरे लिए एक बड़ा मुद्दा है। यह राजनीतिक मुद्दा नहीं, अपितु हमारे जीवन-मरण का मुद्दा है। मैं अवैध घुसपैठियों के विरुद्ध बिगुल बजाता हूं। हमें झारखंड को उनसे मुक्त करना होगा। मदरसों के माध्यम से ऐसे अवैध अप्रवासियों को आधार कार्ड जारी किए जा रहे हैं। आदिवासियों की संख्या घट रही है और मुसलमानों की संख्या बढ़ रही है। 

उन्होंने यह भी कहा कि आज असम में मुसलमानों की जनसंख्या 40 प्रतिशत है जबकि 1951 में 12 प्रतिशत थी और असम के 9 जिले मुस्लिम बहुल जिले बन चुके हैं तथा राज्य के 126 विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों में उनका वर्चस्व है। खुफिया रिपोर्टों का कहना है कि पिछले 70 वर्षों में असम की जनसंख्या 32,90,000 से बढ़कर 1,46 करोड़ हो गई है अर्थात इसमें 343.77 प्रतिशत की वृद्धि हुई जबकि इस अवधि के दौरान भारत की जनसंख्या में 150 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। 

आशानुरूप इंडिया गठबंधन के धर्मनिरपेक्ष नेता जो अल्पसंख्यक वोट बैंक के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं, उन्होंने इस मुद््दे का सांप्रदायीकरण किया और अपने वोट बैंक को बढ़ाने के लिए अवैध आप्रवासियों को अविवेकपूर्ण ढंग से बसाया, जिससे स्थानीय मूल लोगों की आजीविका और पहचान संकट में आ रही है। भारत में 3,84,00,826 बंगलादेशी, 1 लाख बर्मी और 11,18,865 रोहिंग्या परिवार रह रहे हैं। बिहार के 7 जिले, बंगाल, पूर्वोत्तर क्षेत्र और राजस्थान इससे प्रभावित हैं। दिल्ली में 15 लाख से अधिक ऐसे लोग रहे रहे हैं। महाराष्ट्र में 1 लाख से अधिक अवैध बंगलादेशी रह रहे हैं। मिजोरम में बाहरी लोगों के विरुद्ध आक्रोश के चलते वहां आंदोलन होते रहते हैं। पिछले 2 दशकों में नागालैंड में अवैध बंगलादेशीयों की संख्या लगभग 3 गुना हुई है, जो 1991 में 20,000 थी परंतु 2001 में बढ़कर 75,000 से अधिक हो गई। 

त्रिपुरा में इन लोगों ने स्थानीय पहचान को समाप्त कर दिया है। 1951 में स्थानीय लोगों की जनसंख्या 59.1 प्रतिशत थी जो 2011 में घटकर 31.1 प्रतिशत रह गई। राजस्थान, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में अवैध बंगलादेशीयों और रोङ्क्षहग्याओं ने राशन कार्ड प्राप्त करने के लिए कानून का लाभ उठाया। केरल में भी उनकी संख्या बढ़ रही है क्योंकि वहां पर कुशल और अर्ध कुशल श्रमिकों की मजदूरी पश्चिम बंगाल और असम की तुलना में अधिक है और उन्हें वैध दस्तावेज भी उपलब्ध कराए गए हैं। 

अवैध बंगलादेशी आप्रवासी पश्चिम बंगाल के उत्तर 24 परगना और मुॢशदाबाद जिले में प्रवेश करते हैं और वहां पर स्थानीय लोगों की मदद से बटाई पर खेती करते हैं, जिससे जहां 1951 में मुसलमानों की जनसंख्या  19.25 प्रतिशत थी, वह 2011 में बढ़कर 36.1 प्रतिशत हो गई। यही स्थिति उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल की भारत-नेपाल सीमा पर भी है। पिछले 3 सालों से इस सीमा पर मस्जिदों और मदरसों की बढ़ती संख्या से गंभीर सुरक्षा ङ्क्षचता पैदा हुई है।  

इस समस्या का समाधान भारत के मूल सुरक्षा हितों, इसकी एकता, अखंडता और स्थिरता को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए। बंगलादेश इस्लामिक कट्टरवादियों पर दबाव बनाने में विफल रहा है, इसलिए ऐसे इस्लामिक कट्टरवादी गैर-सरकारी संगठनों के कार्यकलापों की आड़ में खुलेआम घूम रहे हैं। इसके साथ ही बंगलादेश और म्यांमार पर चीन का प्रभाव बढऩे से भारत की सुरक्षा के लिए बड़ा संकट पैदा हो सकता है।  

नि:संदेह सरकार इसके समाधान के लिए प्रयासरत है। इसके लिए केन्द्र तथा राज्यों को हमारी सामाजिक प्रणाली में आई कमियों को दूर करना होगा। नई सोच अपनानी होगी और कड़े प्रतिरोधक उपाय करने होंगे। व्यावहारिक दृष्टि से पुलिस व्यवस्था को सुदृढ़ करना और सीमा प्रबंधन आवश्यक है। पुलिस बल में स्थानीय लोगों की भर्ती की जानी चाहिए। यदि अवैध अप्रवासियों को सीमा पर नहीं रोका गया तो फिर उनको वापस भेजना कठिन है।  

दक्षिण एशिया की आधे से अधिक जनसंख्या ऐसे क्षेत्रों में रहती है जिन्हें वर्ष 2050 तक जलवायु परिवर्तन से गंभीर रूप से प्रभावित क्षेत्रों की श्रेणी में रखा गया है। यदि इन क्षेत्रों से बड़ी संख्या में लोगों का विस्थापन हुआ तो पलायन और बढ़ेगा। समय की मांग है कि अवैध आप्रवासियों के साथ गंभीरता से निपटा जाए और इस संबंध में समयबद्ध उपाय किए जाएं। इतिहास में विनाश हमेशा सरकार की गलतियों और राष्ट्रीय हितों के विरुद्ध नीतियों के कारण हुए हैं। केवल कठोर बातें करने के अलावा मोदी सरकार को अवैध आप्रवासियों की बड़ी मोटी बिल्ली के गले में घंटी बांधनी होगी। -पूनम आई. कौशिश


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