व्यापार युद्ध : भारत के लिए अवसर और चुनौतियां

punjabkesari.in Saturday, Apr 12, 2025 - 05:58 AM (IST)

व्यापार  युद्ध क्या है इसका उदाहरण अमरीका द्वारा दुनिया के उन देशों पर जिनके साथ उसके व्यापारिक संबंध हैं, अपने बनाए टैरिफ को लागू करना है। यह कदम उन देशों, विशेषकर चीन जो एक महाशक्ति बन चुका है और वे जो उसे चुनौती दे सकते हैं, पर लगाम लगाने की कोशिश करना है। इसे ब्लैकमेल करना भी कह सकते हैं। जो उस पर निर्भर हैं वह सोच सकते हैं कि अमरीका उनकी बनाई चीजों का सबसे बड़ा खरीददार है इसलिए उसकी बात न मानना खतरे को न्यौता देना है। 
यह उसकी दरियादिली नहीं कि 3 सप्ताह तक चीन के अतिरिक्त बाकी देशों में टैरिफ  लागू नहीं होंगे बल्कि इस बात का संकेत है कि यह व्यक्ति योजनाबद्ध तरीके से काम कर रहा है। भारत को केवल अमरीका के संदर्भ से हटकर चीन के नजरिए से भी सोचना होगा क्योंकि वह महाशक्ति बन चुका है। 

भारत के लिए चुनौती : जहां तक हमारे देश का संबंध है, इस बात पर ङ्क्षचतन और मनन करना जरूरी हो जाता है कि जो देश हमसे 2 वर्ष बाद सन् 1949 में स्वतंत्र हुआ, वह आज हमसे बहुत आगे निकल गया तो कुछ तो इसके कारण होंगे। वर्तमान समय में यह तुलना आवश्यक ही नहीं आर्थिक विकास की नीतियों पर दोबारा सोचने के लिए भी महत्वपूर्ण है। चीन में भी राजशाही थी और भारत में भी राजे रजवाड़े, नवाब और शहंशाह हुकूमत करते थे। हमारी नीतियां कम्युनिस्ट चीन से कोई मेल नहीं खातीं जिसने अपने आपको एक ऐसे पर्दे में कैद कर लिया था जिसे भेदना आसान नहीं था जबकि हम वसुधैव कुटुंबकम् की बात करते रहे हैं। 

भारत और चीन : चीन न अपने यहां किसी को बुलाता है और न ही वहां बसने के लिए प्रेरित करता है। आज भी नौकरी या व्यापार के लिए चीन बेशक जाना पड़ जाए लेकिन जो लोग वहां गए हैं, वे चीन के विकास की ऊंचाइयों तक पहुंचने की बात तो करते हैं लेकिन उनके यहां के नियमों और पाबंदियों का हर किसी के लिए पालन करना मुश्किल है इसलिए वहां बसने की बात नहीं सोची जा सकती। चीन और भारत, आबादी तथा प्राकृतिक संसाधनों और खनिज संपदा में काफी मालामाल हैं। सन् 1978 के बाद चीन की अर्थव्यवस्था में क्रांतिकारी बदलाव आया। उनके नेताओं की चीन प्रथम की सोच थी जैसे अब ट्रम्प अमरीका प्रथम और हम भारत प्रथम कहते हैं। इसके लिए यह सोच बदलनी होगी कि किसी भी तरह विदेश जाओ और वहां से पैसे कमाकर भारत भेजो और कभी घूमने या अपनी जन्मभूमि की सैर करने का मन करे तो आ जाओ।

अपने बच्चों को दिखाओ कि हम किस देश से आए हैं जो उन्हें कभी अपना नहीं लगता और जल्दी से जल्दी यहां से चले जाना चाहते हैं। चीन के विकास की गति पकडऩे का कारण है कि सरकार के नियमों के अनुसार जहां जिसे रहने के लिए कहा जाए, कोई कारखाना लगाने या कारोबार करने के लिए कहा जाए, वह मना नहीं कर सकता। इसके लिए कैसी भी रुकावट पैदा करना देशद्रोह की तरह है। समय सीमा में कोई भी प्रोजैक्ट पूरा करना अनिवार्य है बल्कि ऐसे उदाहरण हैं कि तय समय से पहले ही वे पूरे हो गए, यदि किसी बात का विरोध भी करना है तो उसका जवाब चक्का जाम नहीं बल्कि अधिक उत्पादन कर के देना है। हमारे देश में समस्या है कि कोई प्रोजैक्ट शुरू होने के बाद उसके पूरे होने के समय की कोई गारंटी नहीं कि कब पूरा होगा।

चीन में स्त्री और पुरुष दोनों को काम करना पड़ता है और वह भी सरकार जिस तरह चाहे। कोई निठल्ला नहीं बैठ सकता। मानव संसाधन का भरपूर उपयोग कर अधिक उत्पादन करना और वेतन भी वही जो निश्चित है। चीनियों ने मैन्युफैक्चरिंग के क्षेत्र में सभी की जरूरत का ध्यान रखते हुए अपने उत्पाद तैयार किए, जैसी जिसकी जरूरत वैसे उसके दाम की नीति अपनाकर उसने निश्चित कर लिया कि ग्राहक कोई भी हो, उसके यहां से बिना खरीदे नहीं जाएगा। प्रत्येक उत्पाद में कोई न कोई चीनी पुर्जा लगता है। अमरीका की दुविधा है कि उसके यहां जो सामान बनता है उसमें एक न एक चीनी पुर्जे के इस्तेमाल की जरूरत होती है। चीन भी इसीलिए उससे डर नहीं रहा और वह जवाबी कार्रवाई कर रहा है। 

इस व्यापार युद्ध में इन दोनों देशों का जो होना होगा वो तो होगा ही लेकिन इसका असर दूसरे देशों पर पड़ेगा, यह निश्चित है। भू-मंडलीकरण के दौर में कोई भी अलग रहकर व्यापार नहीं कर सकता, उसे किसी से कुछ खरीदना या किसी को कुछ बेचना ही है। चीन और अमरीका के आपसी व्यापारिक संबंधों का असर दूसरे देशों पर भी पड़ता है। वे एक-दूसरे का सामान महंगा करते हैं तो बाक़ी देश भी प्रभावित होते हैं। यह टैरिफ  का मुद्दा नहीं विश्व व्यापार का है। जहां तक फ्री ट्रेड यानी मुक्त व्यापार का सवाल है तो वही देश कर सकते हैं जो बराबरी कर सकें।

भारत के लिए यह एक चेतावनी है कि अगर हमने अपनी व्यापारिक नीतियों में सुधार नहीं किया तो उसका असर अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा। सरकार की नीति है कि हमारी बनाई वस्तु हमें महंगी मिले और उसका निर्यात हो तो वह विदेश में सस्ती मिले। इसे बदलकर नए सिरे से किसी भी वस्तु के मूल्य तय करने की नीति बनानी होगी ताकि व्यापार संतुलन बनाए रखा जा सके। आत्मनिर्भर भारत की कल्पना यही है कि सबसे पहले देशवासियों की आवश्यकताएं पूरी हों। अधिकतम खुदरा कीमत के नाम पर बहुत ज्यादा बढ़ी हुई रकम का लेबल लगाया जाता है और मोलभाव करने पर कम दाम पर सौदा हो जाता है। यह गोरखधंधा है और देशवासी सिवाय यह कहने के कि बहुत महंगाई है, कुछ नहीं कर सकते।-पूरन चंद सरीन 
 


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