आरोप सही हुए तो गुनाहों का खामियाजा भुगतने से बच नहीं सकते नवाज

punjabkesari.in Monday, Jun 26, 2017 - 11:32 PM (IST)

उस समय एक नया इतिहास सृजित हुआ जब पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित संयुक्त जांच दल (जे.आई.टी.) के समक्ष यह बताने के लिए पेश हुए कि उन्होंने विदेशों में बेपनाह सम्पत्ति कैसे अर्जित की है। वैसे तो बहुत संतोषजनक ढंग से यह दलील दी जा सकती है कि अतीत में भी खुद शरीफ और उनके पूर्ववर्ती प्रधानमंत्री सर्वशक्तिमान सत्ता तंत्र के हाथों प्रताडि़त होते रहे हैं। 

जुल्फिकार भुट्टो को तानाशाह जिया-उल-हक ने आज्ञाकार अदालतों की बदौलत फांसी पर लटका दिया था और अब तो इस पूर्व प्रधानमंत्री के कट्टर विरोधी भी यह मानते हैं कि भुट्टो की मौत ‘न्यायिक हत्या’ थी। भुट्टो की बेटी बेनजीर भुट्टो को भी 2 बार सत्ता में से खदेड़ा गया और आखिर रावलपिंडी की सड़कों पर उनका कत्ल कर दिया गया। जब बेनजीर विपक्ष में थीं तो ‘शरीफ के जल्लाद’ सैफ उर्फ रहमान के नेतृत्व में जवाबदारी ब्यूरो ने उन पर हर किस्म के भ्रष्टाचार के मुकद्दमे ठोक दिए थे। वैसे इन आरोपों में सच्चाई थी या नहीं तो भी आम तौर पर यह माना जाता है कि वे राजनीति से प्रेरित थे। 

इसी अवधि दौरान बेनजीर के पति आसिफ अली जरदारी को भी 8 वर्ष तक दयनीय स्थितियों में सडऩा पड़ा था। यहां तक कि पूर्व प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी को भी मुख्य न्यायाधीश इफ्तखार मोहम्मद चौधरी के नेतृत्व वाली शीर्ष अदालत में अदालती अवमानना का आरोप लगाकर त्यागपत्र देने को मजबूर किया गया था। शरीफ और उनके परिवार के विरुद्ध चल रही वर्तमान जांच तो इन सबकी तुलना में बहुत ही सभ्य दिखाई देती है। प्रधानमंत्री शरीफ जब पेशी भुगतने के लिए ज्यूडीशियल अकादमी में जे.आई.टी. के समक्ष गए तो वह आत्मविश्वास से काफी सराबोर दिखाई दे रहे थे। लेकिन जब वह बाहर आए तो यह आत्मविश्वास काफी कम हो चुका था। 

35 वर्षों में राजनीति में छाए हुए शरीफ न केवल पाकिस्तान के सबसे बड़े प्रांत के मुख्यमंत्री रह चुके हैं बल्कि प्रधानमंत्री की कुर्सी पर भी तीसरी बार बैठे हैं। ऐसे में उन्हें अनुभवहीनता का उलाहना नहीं दिया जा सकता। वह जानते हैं कि अपने पैंतरे पर कैसे डटना है। अपना ध्यानपूर्वक तैयार किया हुआ बयान रिपोर्टरों के समक्ष पढ़ते हुए वह किसी भी तरह विचलित दिखाई नहीं दे रहे थे। बातों-बातों में प्रधानमंत्री ने यह उल्लेख किया कि उनके विरुद्ध व्यापक स्तर पर साजिश रची जा रही है। लेकिन उन्होंने इस बात को अधिक स्पष्ट करने का मामला भविष्य पर टाल दिया। शरीफ ने दलील दी कि जो जांच चल रही है वह उनकी व्यक्तिगत सम्पत्ति के संबंध में है न कि लम्बे समय तक चले उनके प्रधानमंत्री काल के बारे में। वैसे प्रधानमंत्री का दावा अवांछित और आत्म केन्द्रित है। 

कानूनी तौर पर प्रधानमंत्री सहित राष्ट्रीय असैम्बली के प्रत्येक सदस्य को चुनाव आयोग के समक्ष शपथनामा दायर करके अपनी सम्पत्ति का खुलासा करना होता है। सार्वजनिक प्रतिनिधि बनने के बावजूद इस मामले में उनके और प्राइवेट लोगों के बीच किसी प्रकार की लाल लकीर नहीं खींची गई। चुनाव आयोग द्वारा की गई नवीनतम घोषणाओं के अनुसार शरीफ और उनके प्रबल प्रतिद्वंद्वी इमरान खान दोनों ही अरबपति हैं और 2013 के बाद उनकी दौलत में छप्पर-फाड़ ढंग से वृद्धि हुई है। शायद प्रधानमंत्री शरीफ को इस बात का सम्पूर्ण विश्वास है कि उनके व उनके परिवार के विरुद्ध बदले की भावना से कार्रवाई की जा रही है, हालांकि पाकिस्तान में अतीत में हर निर्वाचित सरकार के साथ ऐसा ही व्यवहार होता रहा है। सुप्रीम कोर्ट बैंच के समक्ष पेश की गई रिपोर्ट में जे.आई.टी. ने भी कुछ ऐसा ही प्रभाव दिया है। 

8 पृष्ठों की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि सिक्योरिटी एंड एक्सचेंज कमीशन (एस.ई.सी.पी.), फैडरल ब्यूरो आफ रैवेन्यू (एफ.बी.आर.), राष्ट्रीय जवाबदारी ब्यूरो (एन.ए.बी.) तथा फैडरल इन्वैस्टीगेशन एजैंसी (एफ.आई.ए.) जैसे सरकारी विभागों ने उनकी जांच में अड़ंगे लगाने की कोशिश की है। इसने इंटैलीजैंस ब्यूरो तथा प्रधानमंत्री कार्यालय पर जालसाजी का भी आरोप लगाया है लेकिन इन सभी आरोपों को संबंधित अधिकारियों द्वारा नकार दिया गया है। दूसरी ओर नैशनल बैंक आफ पाकिस्तान के अध्यक्ष सईद अहमद, शरीफ के बेटे हुसैन शरीफ और भतीजे तारिक शफी ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष शिकायत की है कि जे.आई.टी. ने उनके साथ दुव्र्यवहार किया है। 

जो भी निकाय सफेदपोश लोगों द्वारा किए गए अपराधों की जांच करता है उसे यह सतर्कता बरतनी चाहिए कि आरोपियों के साथ सामान्य अपराधियों जैसा व्यवहार न किया जाए। हुसैन शरीफ को तो नीचा दिखाने के लिए उनकी कटघरे में खड़े होकर सवालों का उत्तर देते समय खींची गई फोटो जानबूझ कर मीडिया को लीक की गई। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने बहुत तत्परता से इसका संज्ञान लिया फिर भी पता नहीं क्यों अपना फैसला उसने आरक्षित  रख लिया। यह आरोप लगाया गया है कि जे.आई.टी. कार्यालय के परिसर में जासूस भरे पड़े हैं। कुछ अपुष्ट रिपोर्टों के अनुसार आई.एस.आई. और सैन्य इंटैलीजैंस के प्रतिनिधि वहां हर कामकाज पर छाए हुए हैं। यदि यह आरोप सच है तो जे.आई.टी. को यह सुनिश्चित करना होगा कि किसी भी कीमत पर इसकी खुद की विश्वनीयता बनी रहे।

प्रधानमंत्री ने दावा किया है कि देश को पहले ही इस तरह की साजिशों की भारी कीमत अदा करनी पड़ी है। उन्होंने यह भी कहा कि अब दूसरों के हुक्म पर नाचने वाली पुतलियों का जमाना नहीं रहा। फिर भी उन्हें इस बात की अनदेखी नहीं करनी चाहिए कि ‘पनामा लीक्स’ केवल उनके विरोधियों की कपोल कल्पना मात्र नहीं हैं। इनमें दुनिया भर के अनेक ऐसे जाने-माने नेता संलिप्त हैं जिन्होंने दूसरे देशों में बेपनाह अघोषित आय जमा करवा रखी है। इनमें से कुछेक को तो त्यागपत्र भी देने पड़े हैं और कई एक को तो गलियों और सड़कों पर लोगों के कोप का सामना करना पड़ा। 

शरीफ के सामने भी इस्तीफा देने का विकल्प मौजूद था लेकिन उन्होंने यह कहते हुए कुर्सी से चिपके रहना बेहतर समझा कि उन्होंने कोई गलत काम नहीं किया और जिस सम्पत्ति को उनकी बताया जा रहा है वह वास्तव में उनके बाल-बच्चों की है। पाकिस्तान की न्याय व्यवस्था में कितनी भी हेराफेरियां क्यों न होती हों लेकिन शरीफ पर लगे आरोप सही सिद्ध हो गए तो वह अपने गुनाहों का खामियाजा भुगतने से बच नहीं पाएंगे।                        


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