ओलिम्पिक के दौरान दिखाई दी मानवता

punjabkesari.in Thursday, Aug 15, 2024 - 05:12 AM (IST)

मेरे लिए हाल ही में सम्पन्न ओलिम्पिक खेलों से सबसे बड़ी उपलब्धि 2 महिलाओं, 2 माताओं की आवाज थी, जिनमें से एक भारतीय और दूसरी पाकिस्तानी थी। रजिया परवीन, जिनके बेटे अरशद नदीम ने भाला फैंक में स्वर्ण पदक के लिए हमारे हीरो नीरज चोपड़ा को पछाड़ दिया, को जब बताया गया कि उनके बेटे ने प्रतियोगिता जीत ली है, तो उन्होंने कहा कि नीरज भी उनका बेटा है और अगर परिणाम उलट होता तो भी उन्हें उतनी ही खुशी होती। 

एक मां के लिए यह कहना एक बहादुरी की बात थी। लेकिन दूसरी महिला ने भी कुछ ऐसा ही विचार व्यक्त किया। नीरज की मां सूरज देवी ने कहा कि अरशद भी उनका बेटा है। 2 पड़ोसी देशों की 2 मांएं, जो 75 वर्षों से चली आ रही बैरिकेडिंग सीमा और आपसी दुश्मनी से अलग हैं, न केवल खेलों में अपने-अपने बेटों के प्रदर्शन से खुश और गौरवान्वित थीं बल्कि इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि उन्होंने एक गरिमा और शालीनता का प्रदर्शन किया, जो केवल बुद्धिमत्ता और सज्जनता ही पैदा कर सकती है। अगर 2 लगातार युद्धरत देशों के आम नागरिक एकजुट हो जाएं और अपने शासकों के विचारों और कार्यों में कुछ समझदारी ला सकें, तो गरीबी और दुख, जो वर्तमान में उनकी आबादी के एक बड़े हिस्से का भाग हैं, से लड़ा जा सकता है और उस पर विजय पाई जा सकती है। इस तरह के परिवर्तन का नतीजा राष्ट्रों के समुदाय में स्वर्ण और रजत की स्थिति में तो नहीं आएगा, लेकिन निश्चित रूप से इतना अच्छा होगा कि दोनों को उच्च स्थान मिल सके। मजबूत अर्थव्यवस्था के साथ भारत निश्चित रूप से वहां पहुंच जाएगा। 

रजिया परवीन ने नीरज को पाकिस्तानी पंजाब के खानेवाल जिले के मियां चन्नू गांव में अपने घर आमंत्रित किया है। अगर वह प्रस्ताव स्वीकार करता है तो क्या पाकिस्तान सरकार उसे वीजा देगी? यह अरबों डालर का सवाल है, जिसका जवाब देना बहुत मुश्किल है। रोमानिया में मेरे कार्यकाल के दौरान पाकिस्तान के राजदूत की एक स्कूल जाने वाली बेटी थी, जिससे मेरी मुलाकात तब हुई जब मैं और मेरी पत्नी उनके घर पर रात्रि भोज के लिए आमंत्रित किए गए थे। 30 साल बाद मुझे उस लड़की का एक ईमेल मिला जिसमें बताया गया था कि वह एक विदेशी भूमि पर कार्यरत थी, जहां उसकी मुलाकात भारत के एक हिंदू सहकर्मी से हुई और उसने उससे विवाह कर लिया। वे अपने-अपने जीवनसाथी के माता-पिता से मिलना चाहते थे, लेकिन उन्हें वीजा प्राप्त करने में कठिनाई हो रही थी। क्या मैं मदद कर सकता हूं? मैंने उस समय की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को पत्र लिखा। वह पंजाब के दिनों से मेरी पुरानी परिचित थीं। एक विनम्र महिला, उन्होंने अगले ही दिन जवाब दिया कि उन्होंने अपने मंत्रालय को प्रक्रिया में तेजी लाने का निर्देश दिया है। उसके बाद मुझे उस अनुरोध के बारे में कुछ नहीं पता चला, न तो मंत्रालय से और न ही मेरे युवा पाकिस्तानी मित्र से। 

बंगलादेश के इस माइक्रो-क्रैडिट जादूगर को अब अपनी मातृभूमि में सरकार चलाने का कठिन काम सौंपा गया है, लेकिन उन्हें पता है कि उनका प्राथमिक कार्य बंगलादेश में अल्पसंख्यक हिंदुओं को खत्म करने पर आमादा अपने देश के धार्मिक चरमपंथियों की प्रवृत्तियों पर लगाम लगाना है। उन्होंने अपने अंतरिम प्रशासन में उनके प्रतिनिधियों को शामिल किया है, शायद उग्रवादियों को खुश करने के लिए। व्यक्तिगत रूप से, मुझे संदेह है कि यह कारगर होगा। सभी धर्मों के धार्मिक चरमपंथी किसी भी देश में खतरा हैं और बंगलादेश के कट्टरपंथी हसीना के शासन के 15 वर्षों के बाद खुद को बेकाबू पाते हैं। यह उन्हें दोगुना खतरनाक बनाता है। दुनिया भर के मानवतावादियों के लिए यह भावनात्मक रूप से संतोषजनक है कि जब इन चरमपंथियों ने हिंदू मंदिरों और हिंदू घरों को नष्ट करने की धमकी दी, तो भारत की मित्र शेख हसीना को सत्ता से हटाने वाले छात्रों ने खुद ही मंदिरों, घरों और दुकानों को धर्म-प्रेरित बर्बरता से बचाने के लिए एक जागरण अभियान शुरू किया और स्वयंसेवकों को तैनात किया। 

सरकारी नौकरी में सेवा की गुणवत्ता बहुत कम होने के बावजूद कार्यकाल की सुरक्षा सुनिश्चित होती है। बंगलादेश के कई टिप्पणीकारों ने शेख हसीना के खिलाफ एक शिकायत के तौर पर अपने देश और भारत के बीच घनिष्ठ संबंधों का उल्लेख किया। भारत में इस टिप्पणी को अच्छी तरह से स्वीकार नहीं किया गया। यहां, आम आदमी का हमेशा से मानना रहा है कि बंगलादेशियों को पाकिस्तान से आजादी हासिल करने में मदद के लिए हमेशा भारत का आभारी रहना चाहिए। कुछ और साहसी कांग्रेसी नेताओं ने वहां जो हुआ है और हमारे अपने देश में जो हो रहा है, उसके बीच समानताएं बताई हैं। वे भूल जाते हैं कि किसी भी शासक को मजबूर करने के लिए बंगलादेश में छात्रों की तरह ही जनांदोलन की आवश्यकता होती है। यहां ऐसा होने की संभावना नहीं है। बंगलादेश से सीखे गए सबक हमारे शासकों द्वारा अवश्य ही पढ़े गए होंगे। उनके पास उससे सीखने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। यदि वे ऐसा करने में लापरवाही बरतते हैं, तो वे अपने ही जोखिम पर ऐसा करेंगे।-जूलियो रिबैरो(पूर्व डी.जी.पी. पंजाब व पूर्व आई.पी.एस. अधिकारी)


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