डिजिटल अरैस्ट : मुश्किल नहीं ठगों को आईना दिखाना

punjabkesari.in Wednesday, Nov 13, 2024 - 05:49 AM (IST)

देश में डिजिटल अरैस्ट के नाम पर ठगी रुकने का नाम नहीं ले रही। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात के 115वें एपिसोड में डिजिटल अरैस्ट से सजग रहने का आह्वान करते हुए आवाम को इससे बचने के लिए एक मंत्र भी दिया था- रुको, सोचो और एक्शन लो। इसके बाद भी लोग ठगों के जाल में फंस रहे हैं और अपनी खून-पसीने की कमाई से हाथ धो रहे हैं। एकदम किसी पर यकीन कर लेने और हर दृश्य को सच मान लेना तथा खुद पर यकीन करना छोड़कर स्क्रीन पर दिखाई देने वाली वर्दी, दस्तावेज, कोर्ट रूम, पुलिस के दफ्तर आदि के दृश्यों को सही मान लेने जैसी कमजोरी इस खतरनाक अपराध की जमीन बन जाती है। यह कमजोरी अपनी इज्जत दांव पर लगने के डर से पैदा होती है। 

आज के दौर में किसी आदमी को पुलिस जैसी ड्रैस पहने किसी व्यक्ति का व्हाट्सएप कॉल या स्काइप के जरिए कॉल आ जाती है कि आपके द्वारा भेजा गया पार्सल या आपके पते पर आने वाला पार्सल पकड़ा गया है जिसमें खतरनाक ड्रग्स हैं। कभी नकली पासपोर्ट या नकली करंसी पकड़े जाने की बात कही जाती है। सी.बी.आई., पुलिस, नारकोटिक्स विभाग, कस्टम, साइबर पुलिस, ई.डी. या किसी ऐसी ही सरकारी एजैंसी के नाम से ऐसे फोन किए जाते हैं। कभी मनी लांङ्क्षड्रग का काल्पनिक केस होना दर्शाया जाता है या कभी बेटे या बेटी के किसी संगीन अपराध में गिरफ्तार होने की सूचना देकर यह ठगी की जाती है।

साइबर ठग ऐसा कोई भी जाल बुनते समय संबंधित व्यक्ति के विषय में थोड़ी-बहुत बुनियादी जानकारी जरूर एकत्र कर लेते हैं, ताकि अपने शिकार को यकीन दिला सकें कि पूरा विवरण उनके (फर्जी अधिकारी के) पास है। इसके बाद की जानकारी बातों में उलझा कर और खौफ पैदा करके वे अपने शिकार से निकलवाते हैं। जिस पर जाल फैंका जाता है, उससे कुछ ही सैकेंड बात करने के बाद ठगों को पता चल जाता है कि यह उनका शिकार बनेगा भी या नहीं। आपके चेहरे पर पसरते खौफ और आवाज से उन्हें अहसास होने लगता है कि उनका जाल टाइट होने लगा है या नहीं।

डिजिटल अरैस्ट जैसा कोई शब्द कानून की किताबों में नहीं है। हमारे देश में डिजिटल अरैस्ट जैसा कुछ होता ही नहीं। किसी की डिजिटल गिरफ्तारी का कोई प्रावधान ही नहीं है। फिर भी डिजिटल अरैस्ट शब्द लोगों को इस कदर क्यों डरा देता है कि वे आमतौर पर किए जाने वाले सामान्य तर्क करना भी छोड़ देते हैं और ठगों की बातों को सच मानकर उनके कहे मुताबिक कार्य करने लगते हैं। इसका जवाब उत्तराखंड की मनोवैज्ञानिक डॉ. कंचन यादव देती हैं। वह कहती हैं कि ठगी का यह पूरा तानाबाना कन्वैंसिंग पावर से जुड़ा है, जो ठगों की स्ट्रांग होती है और वे मैनिपुलेशन के ट्रिक्स बहुत अच्छे से जानते हैं। सामने वाले से बात करना शुरू करते ही भांप लेते हैं कि उनके शब्द उस व्यक्ति पर कितना और कैसा असर डाल रहे हैं।   

डॉ. कंचन कहती हैं कि ये ठग मानवीय व्यवहार और कमजोरी की काफी जानकारी रखते हैं और उसी के जरिए आतंकित करके ठगी करते हैं। खुद को सच दर्शाने के लिए कोर्ट रूम में तथाकथित डिजिटल सुनवाई चलने या सी.बी.आई. या पुलिस के दफ्तर के नकली सैट बनाकर ये जहां डर पैदा करते हैं, वहीं सहानुभूति भी प्रकट करते हुए सामने वाले के सही निर्णय करने की क्षमता की तारीफ करके उसे गलत फैसला लेने के लिए प्रेरित भी करते हैं। आमतौर से इनके आसान शिकार वे लोग बनते हैं जो किन्हीं कारणों से पहले से किसी समस्या से जूझ रहे होते हैं और उनका सैल्फ कॉन्फिडैंस कम होता है।

पंजाब के एक प्रमुख व्यवसायी को झांसे में लेने के लिए जालसालों ने सुप्रीम कोर्ट में ऑनलाइन सुनवाई होने का भ्रम पैदा करने के लिए कोर्ट रूम की तरह का फिल्मों जैसा सैट तैयार कर लिया था। पद्मभूषण से सम्मानित इस अनुभवी और बहुत समझदार व्यवसायी ने अपनी खून-पसीने की कमाई के करीब 7 करोड़ रुपए ठगों के हवाले कर दिए। वह इस कदर डर चुके थे कि उन्होंने अपने मैनेजर को बुलाकर एकाऊंट में पैसे ट्रांसफर कराए लेकिन उन्हें भी यह नहीं बताया कि 
किसे और क्यों बड़ी रकम भेजी जा रही है।

इस तरह डिजिटल अरैस्ट के झांसे में आकर ठगी का शिकार होने वालों में रिटायर्ड अधिकारी, प्रोफैसर, इंजीनियर, डॉक्टर आदि उच्च शिक्षित और जिंदगी के तमाम खट्टे-मीठे अनुभव रखने वाले लोग शामिल हैं। गृह मंत्रालय की 14 मई, 2024 की रिपोर्ट के मुताबिक ये धोखेबाज आमतौर पर संभावित शिकार को कॉल करके कभी-कभी यह भी बताते हैं कि पीड़ित का कोई करीबी या प्रिय व्यक्ति किसी अपराध या दुर्घटना में शामिल पाया गया है और उनकी हिरासत में है। मामले को निपटाने के लिए संबंधित व्यक्ति से धन की मांग की जाती है। कुछ मामलों में बेखबर पीड़ितों को डिजिटल गिरफ्तारी से गुजरना पड़ता है और जब तक ठगों की मांग पूरी नहीं हो जाती, तब तक वे स्काइप या अन्य वीडियो कॉन्फ्रैंसिंग प्लेटफार्म पर धोखेबाजों के लिए दृश्यमान रूप से उपलब्ध रहते हैं। यकीन मानिए डिजिटल अरैस्ट के नाम पर होने वाली इस ठगी से बचना जरा भी मुश्किल नहीं, बस थोड़ी सी सावधानी और धैर्य की आवश्यकता है। इसके लिए सबसे पहले यह समझने की जरूरत है कि डिजिटल अरैस्ट जैसा कुछ होता ही नहीं। 

ऐसे ठगों का फोन आने पर वर्दी पहने किसी व्यक्ति का फोटो देखकर डर जाने की बजाय अपने नजदीकी थाने या वकील से बात करने को कह दिया जाए, तो पूरी समस्या वहीं खत्म हो सकती है। कोई सरकारी एजैंसी फोन पर या ऑनलाइन पूछताछ नहीं करती, यह तथ्य आपका डर दूर करने के लिए काफी होना चाहिए।

यह भी जरूरी है कि आपने किसी अंजान नंबर वाला ऐसे ठग का फोन उठा लिया है तो आप उसके जाल में फंसते जाने और अपनी तमाम जानकारियां देने की बजाय फोन डिस्कनैक्ट कर सकते हैं, लम्बी बातचीत करना खतरे को न्यौता देना हो सकता है। ठगों के फोन करने पर उनसे मिले बैंक खाते या आधार या अन्य किसी सूचना को गलत बताते हुए उन्हें सही जानकारी देना भी कम खतरनाक नहीं होता। ओ.टी.पी. तो किसी भी स्थिति में शेयर नहीं किया जाना चाहिए। साइबर ठगों से ज्यादा भरोसा आप अपने आप पर करें। गृह मंत्रालय ऐसे कॉल आने पर साइबर क्राइम हैल्पलाइन नंबर 1930 पर सम्पर्क करने या ष्4ड्ढद्गह्म्ष्ह्म्द्बद्वद्ग.द्दश1.द्बठ्ठ पर घटना की सूचना देने का सुझाव देता है। आप सावधानी बरतते हैं, तो यकीन मानिए साइबर ठग आपको नुकसान नहीं पहुंचा सकते।-डॉ. सुभाष गुप्ता
 


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