हाऊडी मोदी : विश्व पटल पर नए रूप में भारत

punjabkesari.in Tuesday, Sep 24, 2019 - 12:51 AM (IST)

‘यह जो मुश्किलों का अम्बार है,
यही तो मेरे हौसलों की मीनार है।’ 
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का अपनी कविता की लाइन सुनना क्या था, मानो 50,000 अमरीकी-भारतीय किसी भावातिरेक में खड़े होकर चिल्लाने लगे-मोदी-मोदी। स्थान भारत का कोई शहर नहीं था, बल्कि दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश अमरीका के टैक्सास राज्य के ह्यूस्टन शहर का स्टेडियम था, आयोजन किया था एक संघ-समॢथत स्वयंसेवी संस्था ने और मौजूद थे अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प।  समारोह का नाम था-हाऊडी मोदी। अमरीका में हाऊ-डू-यू-डू (आप कैसे हैं)? को आम बोलचाल में हाऊडी कहते हैं। 

किसी घटना के विश्लेषण में तथ्यों को व्यापकता में न देखना अंतिम परिणाम को दुराग्रह से आच्छादित कर देता है। लिहाजा यह मानना कि अमरीकी राष्ट्रपति अपने देश के ह्यूस्टन शहर में किसी भारतीय प्रधानमंत्री के लिए आयोजित मैगा शो में सिर्फ इसलिए पहुंचे कि देश में रह रहे 50,000 अमरीकी-भारतीय नागरिकों का वोट मिल जाएगा, संकीर्ण विश्लेषण माना जा सकता है। ये भारतीय कल ही अमरीका के मतदाता नहीं बने हैं और फिर अमरीका में 16 करोड़ मतदाता हैं।

दरअसल यह मैगा शो और इसमें ट्रम्प का आना, मोदी का उनके लिए वोट देने की अपील करना ‘अब की बार ट्रम्प सरकार’ और फिर ट्रम्प का मोदी का हाथ पकड़े हुए जनता के बीच जाना एक गहरे विश्लेषण का विषय है। राष्ट्रपति ट्रम्प के पहुंचने के कारणों को तभी समझा जा सकता है जब हम मोदी की विश्व पटल पर स्वीकार्यता समझ सकेंगे। मोदी आज दुनिया में सामूहिक सकारात्मक सक्रियता (कलैक्टिव कंस्ट्रक्टिव एक्शन) के मसीहा माने जा रहे हैं। 

इस पर विवाद हो सकता है कि इसके नकारात्मक पहलू मॉब ङ्क्षलङ्क्षचग को कैसे लिया जाए जो भारत में मोदी-शासन में आम बात होने लगी है और जिसके शिकार अखलाक, पहलू खान तथा जुनैद जैसे कई लोग हो चुके हैं, लेकिन देश में एक उत्साह है और विदेश में रह रहे भारतीय भी उससे पूरी तरह प्रभावित हैं। लिहाजा ट्रम्प को अमरीकी लोगों के वोट इस बात पर भी मिलेंगे कि वह और मोदी समान सोच और एक्शन को प्रतिङ्क्षबबित करते हैं। दरअसल मोदी ने अपने भाषण में अमरीका के 9/11 व मुम्बई के 26/11 हमलों को एक साथ जोड़ कर वहां के नागरिकों को संदेश दिया कि ये दोनों नेता एक साथ आतंकवाद खत्म कर सकते हैं। 

अमरीका में भी आर्थिक संकट
अमरीका भी भारत की तरह आर्थिक संकट से जूझ रहा है लेकिन मोदी की कविता ‘यह जो मुश्किलों का अम्बार है, यही तो मेरे हौसलों की मीनार है’, 34 करोड़ अमरीकी लोगों और 15.40 करोड़ मतदाताओं को आश्वासन था कि दोनों देश वर्तमान स्थिति को बदलने में सक्षम हैं। 

ऐसे में अगले दिन कांग्रेस के नेताओं की यह टिप्पणी कि मोदी ने अमरीकी राष्ट्रपति को जिताने की अपील करके कूटनीतिक सिद्धांतों की अवहेलना और दूसरे सम्प्रभु देश के आंतरिक मामलों में दखलअंदाजी की है, बचकाना भी है और पार्टी के लिए नुक्सानदायक भी। मोदी से टकराने की स्थितियां अलग होती हैं और वे हैं पर 130 साल पुरानी पार्टी को दिखाई नहीं देतीं। यह कांग्रेस के प्रधानमंत्री नहीं थे जो 1960 (नेहरू), 1966 (इंदिरा गांधी) में अमरीका से अनाज और आॢथक मदद लाए तो देश की भूख खत्म हुई। यह अलग बात है कि इसी पार्टी ने हरित क्रांति और श्वेत क्रांति में आज देश को अनाज और दूध के उत्पादन में अग्रणी बना दिया लेकिन आज जब मोदी को अमरीकी राजनीति का नियंता (जैसा कांग्रेस आरोप लगा रही है) समझा जा रहा है तो क्या आज से कोई अमरीकी राष्ट्रपति या दल भारत की अवहेलना कर सकेगा? 

अमरीकी अखबारों और टी.वी. चैनलों ने हाऊडी मोदी को अपूर्व कवरेज इसलिए नहीं दिया कि महज 50,000 मतदाता ट्रम्प को जिताने में सक्षम हैं बल्कि मोदी का ‘अब की बार ट्रम्प सरकार’ समूचे  अमरीकी मतदाताओं के लिए एक संदेश था-एक ऐसा साहसिक कदम जो कूटनीतिक पैरामीटर्स को लांघता हुआ रिस्क की सीमा में चला जाता है। मान लीजिए चुनाव में ट्रम्प की जीत नहीं हुई तो उस समय दुनिया के इस सबसे ताकतवर देश के साथ क्या भारत अच्छे और मित्रवत संबंध रख सकेगा? शायद विश्व में यह पहली घटना है कि भारत का कोई नेता इस काबिल समझा गया कि वह अमरीका सरीखे देश का चुनाव प्रभावित कर सकता है, न केवल 50,000 भारतीयों के बूते पर बल्कि वहां की मूल जनता पर भी अपने प्रति सकारात्मक स्वीकार्यता के साथ। 

विकासशील देश के इतिहास में नया मोड़
कहना न होगा कि कटोरा लेकर पी-एल 480 के समझौते और एक भारतीय प्रधानमंत्री के 45 मिनट अमरीकी राष्ट्रपति के ऑफिस के बाहर मुलाकात के लिए इंतजार से आज हम काफी दूर आ गए हैं और यह किसी एक विकासशील देश के इतिहास के लिए एक नया मोड़ है। अगर आज से कुछ दिन पहले तक जिस अनुच्छेद 370 का हटना असंभव माना जाता था उसे हटाने के बाद भी मोदी को भारत तो छोडि़ए अमरीका में जनसमर्थन, देशों द्वारा अनुमोदन हासिल हो रहा है तो कांग्रेस को सोचना पड़ेगा कि मुद्दे ये नहीं हैं मोदी की आलोचना के लिए बल्कि बेरोजगारी, आर्थिक संकट और बढ़ती गरीब-अमीर की खाई है, किसानों की दुर्दशा है और महंगाई है न कि मोदी का जनमंचों पर परफॉर्मैंस। यह वही अमरीका है जिसने 70 साल में दर्जनों बार कश्मीर में मानवाधिकार के उल्लंघन की रट सभी अंतर्राष्ट्रीय मंचों से लगाई और व्हाइट हाऊस आए भारतीय प्रधानमंत्री से चेतावनी के तौर पर कहा था। 

मोदी सरकार ने पाकिस्तान जाकर अगर बालाकोट में हमला किया और इसे अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने गलत नहीं माना तो विश्लेषकों को मोदी के विश्लेषण का चश्मा बदलना होगा और कांग्रेस को मजबूत विपक्ष के रूप में राजनीतिक हमला करने का पारम्परिक तरीका (हर बात का विरोध) भी, अन्यथा यह हाराकीरी या सैल्फगोल ही हो सकता है। इस आयोजन में भीड़ के पास जाते हुए अगर मोदी का हाथ जब ट्रम्प जैसा नेता नहीं छोड़ता तो इस विजुअल्स के मुकाबले भारत की भावनात्मक जनता को मोदी पर कूटनीतिक-व्यावहारिक सिद्धांतों की अवहेलना का आरोप लगा कर कांग्रेस अपनी रणनीतिक अदूरर्दूशिता का ही मुजाहिरा कर रही है।-एन.के. सिंह


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News