चुनावों में नशों पर अंकुश कैसे लगेगा

punjabkesari.in Wednesday, Jan 19, 2022 - 06:11 AM (IST)

पंजाब में आसन्न विधानसभा चुनावों के मद्देनजर, जमकर नशा प्रयोग होने की आशंका के चलते पंजाब-हरियाणा उच्च न्यायालय ने चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया है। प्रांत में फैले नशा कारोबार पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए उच्च न्यायालय ने कहा कि चुनाव में वोट के लिए नशे का इस्तेमाल न होने पाए, यह सुनिश्चित बनाना अनिवार्य है। 

उच्च न्यायालय की आशंका निराधार नहीं। पंजाब की ज्वलन्त समस्याओं की बात हो अथवा सियासी घमासान का मुख्य मुद्दा, नशा एक प्रमुख विषय के रूप में उभर कर सामने आ रहा है। पांच आबों के राज्य, स पन्नता एवं शूरवीरता के पर्याय रहे पंजाब के लिए निश्चय ही यह गहन चिंता का विषय है कि वर्तमान स्थिति में प्रांत के तीनों क्षेत्र मालवा, दोआबा और माझा मादक द्रव्यों की गिर त में हैं। 

अफीम उत्पादक राज्य न होने के बावजूद यहां प्रतिवर्ष 7500 करोड़ रुपए की अफीम का विक्रय होता है, जिसका मुख्य कारण पंजाब का गोल्डन क्रिसेंट ( पाक, अफगान तथा ईरानी क्षेत्र) से सटा होना है, जिसे विश्व का सबसे बड़ा अफीम उत्पादक क्षेत्र माना जाता है। अफीम, भुक्की से आर भ हुआ सिलसिला हैरोइन, स्मैक, कोकीन, सिंथैटिक ड्रग, आईस ड्रग जैसे महंगे नशे में परिवर्तित हो चुका है। एन.सी.आर. ब्यूरो के अनुसार, एन.डी.पी.एस. अधिनियम 1985 के तहत पंजाब में 2018 में 11,654 मामले दर्ज किए गए, जो प्रांतीय स्तर पर द्वितीय स्थान रखते थे तथा देश में दर्ज कुल मामलों का 19 प्रतिशत रहे। गत वर्ष बी.एस.एफ. ने 7 तस्करों को मार कर, 344 कि.ग्रा. हैरोइन बरामद की। 

दरअसल, सीमावर्ती प्रांत होने के कारण नशा तस्करों की निगाह पंजाब पर टिकी रहती है। पंजाब के 550 कि.मी. सीमाक्षेत्र से नशा भारत के अन्य क्षेत्रों में भेजा जाता है। चूंकि सीमावर्ती नदी, नहर, नाला क्षेत्रों पर नजर बनाए रखना कठिन होता है, तस्कर यहीं से अपने कृत्य को अंजाम देते हैं। 

मौसमी प्रभाव के कारण उपजी दृष्टिबाधिता भी नशा तस्करों को अपेक्षित अवसर प्रदान करने में सहायक सिद्ध होती है, जैसे कि मौजूदा दिनों में गहरी धुंध का फायदा उठाते हुए पाकिस्तान की तरफ से लगातार घुसपैठ की जा रही है। गत दिनों बी.एस.एफ. द्वारा चलाए गए सर्च ऑपरेशन के दौरान 2 दिनों में ही लगभग 5 किलो हैरोइन जब्त की गई। फिरोजपुर सैक्टर में भी सर्च ऑपरेशन के दौरान जवानों द्वारा 2 पैकेट बरामद किए गए, जिनमें 30.30 करोड़ रुपए कीमत की हैरोइन पाई गई। 

हकीकत यह भी है कि जहां नशे पर जमकर राजनीति होती है, वहीं मतदाताओं को लुभाने हेतु नशा उपलब्ध करवाना सबसे बड़ा चुनावी हथकंडा होता है। आगामी चुनावों में भी नशा एक अहम मुद्दा है। लगभग 5 वर्ष पूर्व, पंजाब में फैले नशा कारोबार पर ‘उड़ता पंजाब’ नामक बॉलीवुड फिल्म बनाई गई थी, जिसमें नशे की चपेट में आ रही पूरी पीढ़ी के किस्से दिखाए गए थे। इस फिल्म पर जहां प्रांत की छवि धूमिल करने के आरोप लगे, वहीं विपक्ष द्वारा ड्रग्स मामलों को लेकर तत्कालीन सरकार व उनके मंत्रियों पर राजनीतिक निशाना भी साधा गया। 

चुनाव जीतने के उपरांत नशा कारोबार पर लगाम लगाने तथा प्रांत को नशा मुक्त बनाने की उद्घोषणाएं भी हुईं। नि:संदेह विगत वर्षों के दौरान नशा मुक्ति केंद्रों की संख्या बढ़ी है एवं उपचार करवाने के इच्छुक युवाओं की सं या में भी वृद्घि हुई, किंतु यह भी सत्य है कि न तो नशे के कारोबार पर कोई अंकुश लग पाना संभव हुआ और न ही नशों के बढ़ते मामलों में कोई कमी आई। अब तक किसी भी दल से संबद्ध राज्य सरकार ऐसी व्यावहारिक व प्रभावी नीति नहीं बना पाई, जिससे निषेध मादक पदार्थों के क्रय-विक्रय को रोका जा सके। 

संभावना हो भी तो कैसे? विशेषकर, जब प्रांत के भाग्यविधाता, हमारे माननीय राजनीतिज्ञ ही प्रांत की आर्थिक खुशहाली के पुनस्र्थापन हेतु विकल्प रूप में मदिरा बिक्री प्रोत्साहन द्वारा राजस्व उगाही के स्वप्न संजोए हों। कदाचित वे इस बात से सर्वथा अनभिज्ञ हैं कि मदिरापान की लत नेे कितने घर उजाड़ डाले, कितने जीवन लील लिए? नशे के सरूर में कितनी महिलाएं घरेलू ङ्क्षहसा व दुष्कर्म जैसे जघन्य अपराधों की शिकार बनीं, कितने मासूम बर्बरता के उन्माद में जीवन भर के लिए अपाहिज बनकर रह गए? कितने युवा नशापूर्ति के लिए अपराधी बन बैठे। नशों की आंच पर स्वार्थ की रोटियां सेंकने वालों को इससे क्या? उनका ध्येय तो मात्र कुर्सी प्राप्ति है, किसी का घर जले या कोई मरे, उनकी बला से। अब चुनावी होड़ में वे नशे की लत को भुनाने का प्रयत्न न करें, ऐसा भला कैसे संभव है? 

8 जनवरी को चुनाव की घोषणा के एक सप्ताह के भीतर ही पंजाब में 38.93 करोड़ कीमत का नशा पकड़ा जा चुका है। इसके अलावा 81 लाख रुपए कीमत की शराब भी बरामद की गई।  नशे का रूप कोई भी हो, उपभोग सदैव घातक ही रहा। किसी प्रलोभन के आधार पर हुआ मतदान अंतत: लोकहित पर ही भारी पडऩे वाला है। देखना यह है कि क्या माननीय उच्च न्यायालय की चेतावनी के पश्चात हमारा प्रशासन इतना सजग व जागरूक हो पाएगा कि चुनावी रैलियों में नशों के इस्तेमाल पर वास्तव में अंकुश लग पाना संभव हो पाए, या फिर यह यक्ष प्रश्न भी नशे के दरिया में विसर्जित कर दिया जाएगा?-दीपिका अरोड़ा


 


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