विरासत, पहचान और जिंदा रहने का जरिया है हिमाचल
punjabkesari.in Monday, Dec 08, 2025 - 05:44 AM (IST)
एक पक्की हिमाचली होने के नाते, जिसे प्रदेश, सीधे-सादे लोग और खूबसूरत पहाड़ पसंद हैं, मुझे चिंता है कि हिमाचल प्रदेश में जमीन कभी भी सिर्फ एक आर्थिक संपत्ति नहीं रही है। यह हमारी संस्कृति, हमारी स्थिरता और हमारे नाजुक पहाड़ी पारिस्थितिकी की नींव है। टेनैंसी एंड लैंड रिफॉम्र्स एक्ट का सैक्शन 118 ठीक इसी समझ के साथ बनाया गया था कि हिमालयी राज्य में जमीन को एक वस्तु की तरह नहीं माना जा सकता तथा लोगों, इलाके और लंबे समय तक चलने वाली स्थिरता पर पडऩे वाले नतीजों पर विचार किए बिना आजादी से ट्रेड नहीं किया जा सकता। जैसे-जैसे सैक्शन 118 को कम करने या खत्म करने पर बहस तेज हो रही है यह समझना जरूरी है कि असल में क्या दांव पर लगा है। हिमालय कोई आम इलाका नहीं है।
यह दुनिया के सबसे ज्यादा भूकंप के लिहाज से एक्टिव इलाकों में से एक है, जिसे भूकंप के लिए रैड जोन माना जाता है और यह लैंडस्लाइड, ढलान टूटने और अचानक बाढ़ के लिए बहुत ज्यादा संवेदनशील है। इस लैंडस्केप में जोड़ी गई हर सड़क, होटल, रिटेनिंग वॉल, पहाड़ी का कटाव या कंकरीट स्लैब इसकी स्थिरता को बदल देता है। ऐसे राज्य में जहां पहाड़ों पर पहले से ही दबाव है, बड़े पैमाने पर बाहरी निवेश के लिए जमीन खोलने के विचार पर आज जितनी गंभीरता से बातचीत हो रही है,उससे कहीं ज्यादा गंभीरता से बातचीत करने की ज़रूरत है।
बदलाव के समर्थक तर्क देते हैं कि जमीन के नियमों में ढील देने से निवेश आएगा, पर्यटन बढ़ेगा और ग्रोथ बढ़ेगी लेकिन यह कहानी कड़वी सच्चाई को नजरअंदाज करती है कि हिमालय में ज्यादा निवेश का मतलब जरूर ज्यादा निर्माण होगा जिसमें ज्यादा होटल, होमस्टे,सड़कें, मॉल,विला, रियल एस्टेट प्रोजैक्ट,वेयरहाऊस और कमर्शियल कॉम्प्लैक्स शामिल होंगे। और हिमाचल के मामले में, ‘ज्यादा कंस्ट्रक्शन’ सिर्फ विकास का सवाल नहीं है, यह आपदा जोखिम गुणक है। हम पहले ही देख चुके हैं कि बिना सोचे-समझे किया गया विकास कैसा दिखता है। शिमला, मनाली, धर्मशाला और कसौली जैसे शहर बिना कंट्रोल के हो रही बिल्डिंग एक्टिविटी के बोझ तले दबे हुए हैं। उन्होंने अपनी सुंदरता खो दी है और झुग्गी-झोंपडिय़ों जैसे दिखते हैं। कंकरीट के लिए जगह बनाने के लिए पहाडिय़ों को सीधा काटा जा रहा है, नालियों को ब्लॉक किया जा रहा है, जंगल कम किए जा रहे हैं, ढलानों को अस्थिर किया जा रहा है और बिना भू-तकनीकी आकलन के फुटपाथों को सड़कों में बदल दिया जा रहा है। मानसून के दौरान बार-बार होने वाले लैंडस्लाइड और सड़कों और मल्टी-स्टोरी इमारतों का डरावने ढंग से गिरना कोई हादसा नहीं है ये तो इसके नतीजे हैं।
सैक्शन 118 को हटाने या कमजोर करने से न सिर्फ इस ट्रैंड को बढ़ावा मिलेगा बल्कि यह और तेज हो जाएगा। तर्क आसान है। जब जमीन बाहरी अमीर लोगों के खरीदने के लिए खुल जाती है तो कीमतें बढ़ जाती हैं, डिवैल्पर्स आ जाते हैं और रियल एस्टेट खेती, बागवानी या इकोलॉजी से ज्यादा फायदेमंद हो जाता है। नजारा रहने की जगहों से कंस्ट्रक्शन हॉटस्पॉट में बदल जाता है। एक हिमालयी राज्य के लिए यह विकास नहीं है, यह एक इकोलॉजिकल टिपिंग पॉइंट है।
सुधार के समर्थक अक्सर कहते हैं कि सैक्शन 118 आर्थिक क्षमता को रोकता है। लेकिन हिमाचल की अर्थव्यवस्था इसकी इकोलॉजी में है, सेब के बागों, सीढ़ीदार खेतों, झरनों, हिमालय की बायोडायवॢसटी, कुदरती खूबसूरती में बसा टूरिज्म और ऐसे पहाड़ों में जो टूरिस्ट को इसलिए खींचते हैं क्योंकि वे कंकरीट में डूबे नहीं हैं। जमीन को एक वस्तु की तरह मानना उस संपत्ति को नजरअंदाज करना है जो हमें बनाए रखती है। हिमाचल में असली विकास स्थिरता के आस-पास होना चाहिए, अंदाजों के आस-पास नहीं। इंफ्रास्ट्रक्चर टूरिज्म को बढ़ावा देने, हमारी संस्कृति दिखाने और वल्र्ड क्लास स्पा और होटलों का ज्यादा स्वागत करने के लिए हो जिससे नौकरी के मौके भी मिलेंगे। हमें खुद से पूछना चाहिए कि क्या होता है जब बिना नियम के कंस्ट्रक्शन अस्थिर जियोलॉजी से मिलती है? हम इसका जवाब पहले से ही जानते हैं जो लैंडस्लाइड, अचानक बाढ़, दरारें, डूबते शहर, टूटती सड़कें और जान-माल का भयानक नुकसान के रुप में है। सैक्शन 118 अधूरा है। इसमें सुधार की जरूरत है, हां। लेकिन इसका हल सुरक्षा उपायों को मज़बूत करना, ट्रांसपेरैंंसी में सुधार करना, गलत इस्तेमाल पर रोक लगाना और जमीन के प्रबंधन को आधुनिक बनाना है न कि उस सिस्टम को खत्म करना जो हमारे पहाड़ों की रक्षा करता है।
हिमाचल की जमीन कोई वस्तु नहीं है। यह विरासत, पहचान, इकोलॉजी और जिंदा रहने का जरिया है। इसके साथ लापरवाही से छेड़छाड़ करना हिमाचल की सोच के साथ धोखा है। अगर हम आज अपने पहाड़ों की रक्षा करने में नाकाम रहे तो कल पहाड़ हमें उस नाकामी की याद दिलाएंगे। हमारी आने वाली पीढिय़ां हमें कभी माफ नहीं करेंगी क्योंकि हम उनसे उनकी शांतिपूर्ण जिंदगी और उनकी ताजी हवा ही नहीं बल्कि हमारे राज्य के खूबसूरत नजारे भी छीन लेंगे। उन्हें हर साल कंकरीट के बदसूरत स्ट्रक्चर और लैंडस्लाइड और बाढ़ के साथ छोड़ देंगे।-देवी एम. चेरियन
