ऊंटनी के दूध की विदेशों में भारी मांग

punjabkesari.in Saturday, Jul 14, 2018 - 04:36 AM (IST)

ऊंटनी के दूध का जिक्र सुनकर आप शायद नाक सिकोड़ लें, मगर जब रियल्टी टी.वी. स्टार किम कार्दाशियां ने इंस्टाग्राम पर ऊंटनी के दूध से भरे गिलास का चित्र शेयर किया तो उसे लगभग एक लाख लाइक मिले। आज अन्य बहुत से लोग पूछते हैं कि ‘‘क्या ऊंटनी का दूध मिला?’’ 

ब्रिटेन की सुपरमार्कीट्स में यह उपलब्ध है, अमरीका के कुछ राज्यों में ऊंटनी के दूध के फार्म हैं और यहां तक कि नीदरलैंड्स में भी एक है तथा ई-टेलर्स (इंटरनैट पर बेचने वाले) इसे सुदूर भारत से पाऊडर के रूप में मंगवाते हैं। यह एक सनक हो सकती है मगर ऊंटनी के दूध की विदेशों में मांग ने इसकी कीमतों में उबाल ला दिया है तथा राजस्थान व गुजरात के ऊंट पालकों के चेहरों पर मुस्कान ला दी है। 

20-20 ग्राम के 5 सैशिज का एक पैक एमेजोन डॉट कॉम पर 21 डालर (लगभग 1440 रुपए) में सूचीबद्ध है। बीकानेर, कच्छ तथा सूरत की उत्पादक इकाइयों का दावा है कि वे दूध की प्रोसैसिंग पर प्रति लीटर 400 रुपए खर्च करती हैं। चूंकि कीमत अधिक है इसलिए रिटेल पैक्स छोटे हैं, यहां तक कि भारत में भी। जहां दूध 200 मिलीलीटर के कार्टन में बेचा जाता है, पाऊडर 200 ग्राम तथा 500 ग्राम के पैक्स में उपलब्ध है। यद्यपि यह दूध भारत में ऊंट चराने वाले समुदायों से बाहर लोकप्रिय नहीं है, स्वास्थ्य लाभ के दावों के कारण इसकी मांग में वृद्धि हुई है। 

आपको बाड़मेर का वर्माराम जाट याद होगा। जब वह 2006 में 88 वर्ष की उम्र में बच्चे का पिता बना तो उसने अपने पौरूष का श्रेय रोज ऊंटनी का दूध पीने को दिया था। उसके एक वर्ष बाद राजस्थान के ही 90 वर्षीय नानूराम जोगी ने उसका रिकार्ड तोड़ दिया और स्वीकार किया कि वह भी ऊंटनी का दूध पीता है। ऊंटनी के दूध में वसा कम होती है, इसमें गाय के दूध के मुकाबले 5 गुणा अधिक विटामिन सी तथा 10 गुणा अधिक आयरन होता है और इससे कोई एलर्जी नहीं होती। ऐसा कहा जाता है कि यह मधुमेह, जोड़ों के दर्द तथा कुछ अन्य बीमारियों से पीड़ित लोगों के लिए भी लाभकारी होता है। एक शोध के अनुसार इस दूध के आत्मविमोह, मधुमेह से पीड़ित लोगों पर सकारात्मक प्रभाव दिखाई दिए हैं। 

जहां ऊंटनी के दूध की मांग में उछाल आया है, वहीं आपूर्तिकत्र्ता इसे पूरा करने में कठिनाई महसूस करते हैं। बीकानेर की आदविक फूड्स एंड प्रोडक्ट्स प्रा.लि. ने एक वर्ष पूर्व ऊंटनी का दूध बेचना शुरू किया था और अब प्रति माह एमेजोन डॉट कॉम को 6000 लीटर की शिपिंग करती है। कम्पनी के संस्थापक हितेश राठी ने बताया कि सबसे बड़ी चुनौती दूध इकट्ठा करना है, जो राजस्थान तथा गुजरात के कुछ ही इलाकों में उपलब्ध है। उन्होंने बताया कि पीढिय़ों से ऊंट का इस्तेमाल कृषि के साथ-साथ आवागमन के साधन के तौर पर किया जाता था। दूध बेचना ऊंट पालकों के लिए बिल्कुल नया अनुभव है और उनकी टीमें उन्हें उत्पादन बढ़ाने तथा संग्रह होने तक बचाए रखने के लिए प्रशिक्षित करती हैं। 

वडोदरा की डी.एन. एस. ग्लोबल भी विदेश में ऊंटनी के दूध का पाऊडर बेचती है। इसके संस्थापक दिव्येश अजमेरा ने बताया कि इसके स्वास्थ्य लाभों बारे जानकारी का फैलाव होने के बाद ऊंटनी के दूध की मांग कई गुणा बढ़ गई है। चरवाहों तथा डेयरियों के अतिरिक्त ऊंटों ने दूध व्यवसाय को भी लाभ पहुंचाया। राजस्थान द्वारा 2014 में ऊंट को अपना राजकीय पशु घोषित किए जाने के बाद से इसे मारे जाने पर प्रतिबंध लग गया है जिससे ऊंट पालक एक बंधन में बंध गए हैं क्योंकि वे अतिरिक्त आय के लिए स्थानीय तौर पर अपने पशुओं को नहीं बेच सकते। बंगलादेश को व्यापक तस्करी के कारण ऊंटों की संख्या में कमी आई है, मगर ऊंटनी के दूध की विदेशों में बढ़ती मांग ने ऊंटों को फिर से विकासक्षम बना दिया।-एस. खान


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Pardeep

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