क्या केजरीवाल ने मोदी का तोड़ निकाल लिया है

punjabkesari.in Thursday, Mar 31, 2022 - 04:55 AM (IST)

अब यह बात शीशे की तरह साफ है कि यू.पी. में गरीबों को मुफ्त राशन और लाभार्थियों की बदौलत भाजपा फिर से सत्ता में आई है। विपक्ष का न तो महंगाई का नारा चला और न ही बेरोजगारी का। लेकिन भाजपा की जीत के बाद यह बात भी शीशे की तरह साफ है कि देश में महंगाई और बेरोजगारी सबसे बड़े मुद्दे हैं। लेकिन सवाल उठता है कि क्या विपक्ष इसे समझ रहा है? ममता बनर्जी एक बार फिर विपक्ष को एक मंच पर आने का आह्वान कर रही हैं, लेकिन मुद्दा केंद्रीय जांच एजैंसियों की धौंस पट्टी का है। शरद पवार से लेकर उद्धव ठाकरे भी ऐसा ही राग अलाप रहे हैं। लेकिन क्या इस मामले को लेकर मोदी सरकार के खिलाफ मोर्चाबंदी की जानी चाहिए? या फिर लंबी लकीर खींचने की जरूरत है? 

लंबी लकीर खींचनी है, इस बात को  केजरीवाल न केवल समझ गए हैं, बल्कि इस पर अमल भी करने लगे हैं। वह अपना नया वोट बैंक तैयार करने में लगे हैं। यह वोट बैंक है युवा का, गरीबों का। दिल्ली में स्टार्टअप और पंजाब में गरीबों को घर-घर राशन। केजरीवाल ‘दिल्ली मॉडल’ और ‘पंजाब माडल’ को देश भर में प्रचारित प्रसारित करने में लगे हैं। सवाल उठता है कि क्या अरविंद केजरीवाल ने नरेन्द्र मोदी का तोड़ निकाल लिया है? क्या अरविंद केजरीवाल दिल्ली और पंजाब मॉडल को गुजरात मॉडल की तर्ज पर अखिल भारतीय स्तर पर बेचने निकल पड़े हैं? हाल ही में प्रशांत किशोर ने एक इंटरव्यू में कहा था कि केजरीवाल ने ऑऊट ऑफ बाक्स आइडिया तलाश लिया है। 

केजरीवाल समझ गए हैं कि इस समय मोदी सरकार ऐसा नैरेटिव बनाने में लगी है जिसके तहत ममता, शरद पवार, सोनिया-राहुल गांधी, के.सी. आर., उद्धव ठाकरे को भ्रष्ट घोषित करने की कोशिश हो रही है। भाजपा राष्ट्रवाद, ईमानदारी, समावेशी विकास और चोरी-चकारी के खिलाफ  जीरो टालरैंस की बात करती है। इसमें हिंदुत्व का तड़का अलग से लगाया जाता है। केजरीवाल भी कट्टर राष्ट्रवाद, ईमानदारी और इंसानियत की बात कर रहे हैं। ङ्क्षहदुत्व की जगह इंसानियत की बात हो रही है क्योंकि केजरीवाल समझ रहे हैं कि आने वाले कुछ सालों में हिंदुत्व पर इंसानियत की जीत हो सकती है। 

बड़ा सवाल उठता है कि ममता बंगाल जीतती हैं तो सीधे गोवा पहुंच जाती हैं, वहां कांग्रेस के खिलाफ चुनाव लड़ती हैं, सोनिया राहुल उनके निशाने पर रहते हैं, कांग्रेस को मरी-पिटी पार्टी बताती हैं। विपक्षी दलों के साथ दिल्ली में बैठक करती हैं। उसमें खुद को विपक्ष की धुरी साबित करने की कोशिश करती हैं या यूं कहा जाए कि कांग्रेस को हाशिए पर डाल देती हैं। लेकिन भतीजे अभिषेक बनर्जी पर छापे पड़ते हैं, नौ लोगों को जिंदा जलाने के मसले पर सी.बी.आई. जांच की बात होती है तो ममता को कांग्रेस याद आने लगती है।

विपक्षी एकता में कांग्रेस की मौजूदगी जरूरी लगने लगती है। यही हाल शरद पवार का है। वैसे तो पवार ने कभी भी कांग्रेस को दरकिनार नहीं किया, लेकिन ऐसा लगता है कि सारी राजनीति भतीजे अजीत पवार और सहयोगी अनिल देशमुख को बचाने के लिए हो रही है। 

संदेश ऐसा जा रहा है कि जब-जब छापे पड़ते हैं तब-तब ममता को विपक्षी एकता की बात याद आती है। संदेश ऐसा जा रहा है कि तेलंगाना में मजबूत होती भाजपा से डरे के.सी.आर. को विपक्षी एकता की कमी महसूस होने लगी है। संदेश यह जा रहा है कि मातोश्री की लाज बचाने के लिए उद्धव ठाकरे ज्यादा हाथ-पैर मार रहे हैं। इसका फायदा ही भाजपा उठा रही है। या यूं कहा जाए कि भाजपा सोची-समझी रणनीति के तहत इन सब नेताओं को जांच एजैंसियों के जरिए सताने में लगी है, ताकि असली मुद्दों से जनता का ध्यान भटकाया जा सके और लगे हाथ इन्हें भ्रष्ट घोषित करने की कोशिश की जाए। 

अगर ऐसा है तो ममता प्लस नेता क्या भाजपा के जाल में उलझ तो नहीं गए? अब अनिल देशमुख ने 6 महीने टाल-मटोल की तो सुप्रीम कोर्ट से भी राहत नहीं मिल पाई। इसकी बजाय आगे बढ़ कर जांच में सहयोग की बात की जाती तो जनता तक बात पहुंचती कि देखिए हम नेताओं के पास छुपाने के लिए कुछ नहीं है और उन्हें झूठे मामलों में फंसाने की कोशिश हो रही है। ममता को भी कहना चाहिए था कि मोदी सरकार बंगाल की जनता का विकास नहीं चाहती, इसीलिए जांच के नाम पर बेवजह के अड़ंगे लगाए जा रहे हैं। इसके साथ साथ किसी नई विकास योजना की घोषणा कर देनी चाहिए थी या किसी पुरानी योजना का नाम और स्वरूप बदल कर उसे नए सिरे से पेश कर दिया जाना चाहिए था। 

यह काम केजरीवाल कर रहे हैं। उन्होंने एम.सी.डी. चुनाव को लेकर भाजपा पर गंभीर आरोप लगाए और साथ ही यह भी घोषणा कर दी कि पंजाब में गरीब लोगों को घर-घर राशन पहुंचाया जाएगा। भोजन के अधिकार के तहत ऐसे एक करोड़ से ज्यादा लोगों के घर तक राशन पहुंचाने की व्यवस्था की जाएगी। पहले फोन जाएगा, फिर एक नफीस बैग में राशन जाएगा। जाहिर है कि बैग पर अरविंद केजरीवाल की तस्वीर होगी, साथ में मुख्यमंत्री भगवंत मान भी होंगे। 

केजरीवाल समझ रहे हैं कि अगर भाजपा यू.पी. में 5 किलो अनाज मुफ्त देकर चुनाव जीत सकती है तो आम आदमी पार्टी घर-घर राशन पहुंचा कर चुनाव  क्यों नहीं जीत सकती। सबसे बड़ी बात यह है कि केन्द्र की मुफ्त राशन योजना अगले 3 महीनों तक ही है, ज्यादा से ज्यादा 6 महीने, लेकिन पंजाब में अगले 5 साल घर-घर राशन पहुंचाएंगे केजरीवाल, उससे ज्यादा देश भर में इसे भुनाएंगे। 

उधर दिल्ली में केजरीवाल युवा वोटर का नया वर्ग बनाने में लगे हैं। उन्होंने 11वीं और 12वीं के स्कूली छात्रों को स्टार्टअप के मौके देने का व्यापक कार्यक्रम बनाया है। ऐसे 3 लाख युवकों से बिजनैस आइडिया मांगे गए। 51,000 आइडिया छांटे गए। ऐसे युवकों को खुद का रोजगार तलाशने के मौके दिए जाएंगे। जाहिर है कि जब 2025 में अगले विधानसभा चुनाव होंगे तो यह वोटर पहली बार वोट डालेगा। अब यह वोटर किसे वोट देगा यह समझाने की जरूरत नहीं है। 

दिल्ली में वैश्य समाज के लिए सालाना बाजार त्यौहार, कपड़ों के बाजार का हब बनाना,  जबकि फूड ट्रक, क्लाउड किचन के माध्यम से व्यापारियों, पर्यटन क्षेत्र के लोगों और रेस्तरां मालिकों को खुश करने की कोशिश भी की जा रही है। इसके 2 फायदे हैं। एक, वैश्य समाज भाजपा का परंपरागत वोटर रहा है, जो अब टूट सकता है। दो, चुनावों के समय चंदा भी ज्यादा मिल सकता है। 

कुल मिलाकर केजरीवाल वहां-वहां चोट कर रहे हैं जहां-जहां भाजपा को दुखे, उसे चोट का अहसास हो। उधर ममता पर भाजपा वहां-वहां चोट कर रही है जहां-जहां ममता को दुखे भी और चुभे भी। केजरीवाल की चोट का भाजपा के पास फिलहाल कोई इलाज नहीं दिख रहा। ममता चाहे तो चोट की दर्द भूलकर उलटे भाजपा के वोट बैंक पर केजरीवाल की तरह सेंध लगाने का काम कर सकती हैं लेकिन फिलहाल वह जांच एजैंसियों से मिले दुखड़े सुनाने, भुनाने में लगी हैं, जिनमें जनता के दुख शामिल नहीं हैं। यह बात ममता जितनी जल्दी समझ जाएं उतना अच्छा।-विजय विद्रोही
 


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