‘हाजी’, जो कुम्भ में कर रही हैं किन्नर अखाड़े का नेतृत्व

punjabkesari.in Thursday, Jan 31, 2019 - 04:30 AM (IST)

वह 13 साल की हुईं तो उनके परिवार और दोस्तों को उनकी असली पहचान के बारे में मालूम हुआ कि वह एक किन्नर हैं। इसके बाद से चुलबुली भवानी का जीवन कभी पहले जैसा नहीं रहा। उन्हें स्कूल से निकाल दिया गया। उनके घरवाले भी उनसे शॄमदगी महसूस करते थे। एक साल बाद उन्होंने घर छोड़ दिया और फिर कभी वापस लौटकर नहीं गईं। उनकी यात्रा ने उन्हें एक अन्य धर्म से जोड़ा और कुछ समय बाद वह मक्का पहुंच गईं। इसके कुछ साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने जब तीसरे लिंग को पहचान दी तो यहीं से उनके जीवन में अहम मोड़ आया। 

भवानी आज संभवत: एकमात्र हिन्दू साध्वी होंगी, जिन्हें हाजी का पद मिलने वाला है। 2015 में उज्जैन कुम्भ से पहले भवानी ने किन्नर अखाड़े की नींव रखी थी लेकिन यह इतना आसान नहीं था। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने इसे एक अलग 14वें अखाड़े का दर्जा देने से इंकार कर दिया, जिससे उन्हें शाही स्नान में शामिल होने का मौका नहीं मिल सका। धीरे-धीरे 2017 तक किन्नर अखाड़े को पहचान और सम्मान मिला। भवानी उत्तर भारत के लिए अपने अखाड़े की महामंडलेश्वर बनीं। इस साल कुम्भ से पहले जूना अखाड़े ने किन्नर अखाड़े को अपनी इकाई के तौर पर खुद में शामिल कर लिया और इस महीने शाही स्नान के लिए किन्नर अखाड़े को भी मौका मिला। 

जीवन की कठिन सच्चाइयों का किया सामना 
भवानी अपने संघर्ष को याद करते हुए कहती हैं, ‘‘पहचान के संकट का सामना करना आसान नहीं है। मैं अपने आसपास कई लोगों के लिए अनजान बन गई जबकि मेरी कोई गलती नहीं थी।’’ भवानी सिर्फ 14 साल की थीं जब वह घर से भाग गई थीं। अगले कुछ साल उन्होंने जीवन की कठिन सच्चाइयों का सामना किया। उन्हें उम्मीद की किरण तब दिखाई दी जब किन्नर गुरु हाजी नूरी से 2007 में उनकी मुलाकात हुई और उनके नामकरण के साथ भवानी के जीवन का नया अध्याय शुरू हुआ। दुनिया के लिए वह शबनम बन गईं, जो दिल्ली के कुलीन वर्ग के घरों के दरवाजे पर गाने गाती थीं। जल्द ही उनकी प्रतिष्ठा बढऩे के साथ उनके प्रतिद्वंद्वी भी तैयार हो गए जो उन पर हमले करने के मौके ढूंढते थे। 

इस्लामिक सिद्धांतों का पालन 
वह कहती हैं, ‘‘मेरे धर्म को लेकर अस्पष्टता उनके विरोध की वजह बन गई।’’ भवानी के गुरु ने उन्हें इस्लाम अपनाने का आदेश दिया। भवानी कहती हैं, ‘‘मैंने इस्लाम अपना लिया क्योंकि इससे मैं हिजड़ा समाज का हिस्सा बन सकती थी। एक मुस्लिम के रूप में मैंने इस्लाम के हर सिद्धांत का पालन किया। रमजान के दौरान रोजे रखे और 2012 में हज का भी मौका मिला लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने तीसरे लिंग की पहचान को मान्यता देकर इतिहास रच दिया।’’ वह कहती हैं, ‘‘जब मुझे वैसे ही जीने का मौका मिला जिस रूप में मैंने जन्म लिया था तो मैंने फिर से अपना नाम और पहचान स्वीकार कर ली और उन रिवाजों का पालन किया, जिनमें मैंने जन्म लिया था।’’ भवानी कहती हैं कि उनका समूह चाहता है कि तीसरे लिंग के लिए एक अलग वॉशरूम बनाया जाए क्योंकि सामान्य वॉशरूम में जाने से उन्हें परेशानी होती है। उन्होंने कहा कि यह उनकी अगली लड़ाई होगी।-एस. शारदा


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