पाकिस्तान में हाफिज सईद ‘जननायक’ क्यों

punjabkesari.in Friday, Apr 13, 2018 - 03:13 AM (IST)

कुख्यात आतंकी हाफिज सईद को लेकर जिस प्रकार का घटनाक्रम पाकिस्तान में देखने को मिल रहा है, उससे एक प्रश्न खड़ा हो रहा है कि आखिर वह कौन-सी मानसिकता है, जो संयुक्त राष्ट्र सहित विश्व के कई देशों द्वारा प्रतिबंधित और 26/11 के मुम्बई हमले के मुख्य साजिशकत्र्ता हाफिज सईद को ‘‘जननायक’’ बनाती है? 

गत दिनों लाहौर उच्च न्यायालय ने आतंकी संगठन जमात-उद-दावा के आका और लश्कर-ए-तोयबा के सह-संस्थापक हाफिज सईद के मामले में पाकिस्तानी सरकार को दिशा-निर्देश जारी करते हुए कहा था, ‘‘हाफिज सईद को सरकार परेशान न करे।  सरकार उन्हें उनके ‘सामाजिक कल्याण’ से जुड़े कार्य करने की स्वतंत्रता दे। अगले आदेश तक किसी भी तरह से परेशान करने की नीति नहीं अपनाई जाए।’’ इसी बीच, पाकिस्तान द्वारा हाफिज सईद पर ‘‘स्थायी प्रतिबंध’’ लगाने संबंधी विधेयक लाने की भी खबर है, जिसका विरोध भी शुरू हो गया है। 

पाकिस्तान में हाफिज सईद पर कार्रवाई की छटपटाहट स्वाभाविक नहीं है। इस दबाव का प्रमुख कारण आतंकवादियों को वित्त-पोषण की निगरानी रखने वाली अंतर्राष्ट्रीय संस्था ‘‘फाइनैंशियल एक्शन टास्क फोर्स’’ (एफ.ए.टी.एफ.) का वह निर्णय है, जिसमें उसे आतंकवादियों को संरक्षण देने की नीति के कारण ‘ग्रे’ सूची में डाला गया है। यूं तो आतंकवाद को नीतिगत प्रश्रय देने के मामले में पाकिस्तान को वैश्विक स्तर पर कलंकित होने का लंबा अनुभव है, किंतु एफ.ए.टी.एफ. द्वारा स्वीकृत प्रस्ताव को उसके ‘‘विश्वासपात्र’’ सऊदी अरब और चीन के समर्थन ने उसे अपनी धरती पर सक्रिय आतंकवादियों पर ‘‘नाटकीय कार्रवाई’’ के लिए विवश कर दिया। 

आतंकवादियों पर पाकिस्तान का वर्तमान रुख किसी की आंखों में धूल झोंकने जैसा ही है। एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तानी खुफिया एजैंसी आई.एस.आई. की सहायता से हाफिज सईद ने जम्मू-कश्मीर में 2 नए संगठन बना दिए हैं, जिनका मुख्य काम आतंकी गतिविधियों के लिए आवश्यक धन जुटाना होगा। इन संगठनों के नाम- जम्मू-कश्मीर मूवमैंट (जे.के.एम.) और रैस्क्यू, रिलीफ एंड एजुकेशन फाऊंडेशन (आर.आर.ई.एफ.) हैं। हाफिज सईद के ‘‘सामाजिक कल्याणकारी’’ कार्र्यों की प्रशंसा करने वाले लाहौर उच्च न्यायालय के न्यायाधीश अमीनुद्दीन खान तक ही सीमित नहीं हैं। सईद के भारत विरोधी वक्तव्यों और उसके क्रिया-कलापों को भी पाकिस्तान में भारी जनसमर्थन प्राप्त है। जहां हाफिज सईद भारत सहित शेष विश्व के सभ्य समाज के लिए बड़ा खतरा और ‘‘खलनायक’’ है, वहीं पाकिस्तान में उसे ‘‘जननायक’’ का दर्जा प्राप्त है और उसे इस्लाम के रक्षक व समाजसेवक के रूप में देखा जाता है। 

विश्व में इन दो अलग-अलग आकलनों के पीछे की मानसिकता के केन्द्र में इस्लामी कट्टरवाद और गैर-मुस्लिम देशों-विशेषकर ‘‘काफिर’’ भारत की मौत की परिकल्पना है। बकौल हाफिज सईद, ‘‘जब तक भारत मौजूद है, शांति संभव नहीं। भारत को इतने टुकड़ों में काट देना चाहिए कि वह घुटने टेककर दया की भीख मांगे।’’ यही नहीं, 2016 के पठानकोट आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान में हजारों-लाखों लोगों की अपनी एक सभा में हाफिज ने कहा था, ‘‘भारत को पठानकोट जैसे दर्द अभी आगे और भी झेलने पड़ेंगे।’’ 

जिन लोगों को पाकिस्तान की आंतरिक अराजकता, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उसके अलग-थलग होने और उसकी सर्वकालिक अव्यवस्था का कारण जानना है, वे हुसैन हक्कानी द्वारा लिखित पुस्तक ‘‘रिइमेजनिंग पाकिस्तान: ट्रांसफॉॄमग ए डिस्फंक्शन न्यूक्लियर स्टेट’’ को पढ़ सकते हैं। 62 वर्षीय हुसैन हक्कानी पाकिस्तान के प्रख्यात बुद्धिजीवियों में से एक हैं, जो नवाज शरीफ, बेनजीर भुट्टो सहित कुल 3 पाकिस्तानी प्रधानमंत्रियों के सलाहकार और वर्ष 2008-11 तक अमरीका में पाकिस्तान के राजदूत रह चुके हैं। अपनी सुस्पष्टता के कारण वह अमरीका में निर्वासितों की भांति जीवन-यापन कर रहे हैं और अक्सर पाकिस्तान में इस्लामी कट्टरपंथियों व सेना के निशाने पर रहते हैं। 

पाकिस्तान में जनता द्वारा निर्वाचित सरकार की भूमिका सीमित है। भले ही वहां लोकतंत्र होने का ढोल पीटा जाता हो, किंतु पाकिस्तान की स्थापना का उद्देश्य ही इस खोखले दावे का सबसे बड़ा विरोधाभास है। सच तो यह है कि पाकिस्तानी चिंतन का आधार इस्लामी कट्टरवाद और भारत के प्रति घृणा है। वहां के अधिकतर नागरिकों को बाल्यकाल से ही गैर-मुसलमानों, विशेषकर ‘‘काफिर’’ हिंदू-सिख और भारत विरोधी शिक्षा दी जा रही है। पाकिस्तान के न्यायिक तंत्रों सहित सत्ता-अधिष्ठानों में इस्लामी कट्टरपंथियों और सेना की जड़ें कितनी मजबूत हैं, उसका विवरण हुसैन हक्कानी की कुछ वर्ष पूर्व प्रकाशित हुई पुस्तक ‘‘पाकिस्तान : बिटवीन द मॉस्क एंड द मिलिट्री’’में विस्तार से है। 

हक्कानी ने 70 वर्ष के पाकिस्तानी इतिहास और उसके चिंतन को अपनी पुस्तकों में समाहित किया है, जिसमें प्रमुख रूप से पाकिस्तानी राजनीतिक दलों और सत्ता अधिष्ठानों द्वारा कट्टरपंथी मजहबी भावनाओं के दबाव में निर्णय लेना या उसे परिवर्तित करना शामिल है। वर्ष 1953 में जब अहमदिया समुदाय के विरुद्ध इस्लामी कट्टरपंथियों ने लाहौर में हिंसक प्रदर्शन प्रारंभ किया, तब मुहम्मद जफरुल्ला खान- जोकि स्वयं अहमदिया समाज से थे और पाकिस्तान के संस्थापकों में से एक थे, को तत्कालीन सरकार ने विदेश मंत्री के पद से इसलिए हटा दिया, क्योंकि वह पाकिस्तानी बहुसंख्यकों द्वारा मान्य इस्लाम के ‘‘सच्चे अनुयायी’’ नहीं थे। 

पाकिस्तान और उसका आंदोलन अपने जन्म से ही इस्लामी कट्टरता की जकड़ में है, किंतु उसकी विचारधारा और केंद्रीय राजनीति का औपचारिक इस्लामीकरण (शरीयत आधारित) जनरल जिया-उल-हक ने किया। इस सैन्य तानाशाह के अनुसार, ‘‘यदि पाकिस्तान के केंद्र में इस्लाम नहीं, तो उसे भारत का भाग रहने में कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए थी।’’ जिया कार्यकाल में कानून-ए-इहानते-रसूल बनाया गया, ताकि इस्लाम पर प्रश्न खड़ा करने का कोई अवसर ही पैदा न हो और उदारवाद व आधुनिक सोच की कोई जगह न बचे। हुसैन हक्कानी के अनुसार, इस्लामीकरण ने पाकिस्तान में कट्टर मुल्ला-मौलवियों को नीति-निर्धारकों और सत्ता-अधिष्ठानों का पहला अघोषित सहयोगी बना दिया है और सेना को अपने कत्र्तव्यों का अनुसरण कुरान के अनुरूप करने के लिए बाध्य कर दिया। 

पाकिस्तान में जिस प्रकार मजहबी कट्टरवाद की यात्रा एक पड़ाव से दूसरे पड़ाव की ओर अग्रसर है, उसका परिणाम यह हुआ है कि पाकिस्तान न तो अपने पड़ोसी भारत, ईरान या अफगानिस्तान के साथ शांति से रह पाया है और न ही पाकिस्तानी एक-दूसरे के साथ अमन के साथ रह सके हैं। इस देश में आए दिन होने वाले शिया-सुन्नी समुदायों में हिंसक टकराव और मस्जिदों पर आतंकवादी हमले- इसके उदाहरण हैं। यही नहीं, जनवरी 2011 में पाकिस्तानी पंजाब के तत्कालीन गवर्नर सलमान तासीर की हत्या उनके ही अंगरक्षक मुमताज कादरी ने केवल इसलिए कर दी थी क्योंकि ‘‘उदारवादी’’ तासीर ने ईशनिंदा के आरोप में जेल में बंद एक ईसाई महिला आसिया के प्रति संवेदना व्यक्त की थी। तासीर की हत्या के बाद हत्यारे कादरी ने कहा था, ‘‘मैं पैगंबर साहब का दास हूं और जो कोई भी ईशनिंदा करता है, उसकी सजा मौत है।’’ जब वर्ष 2016 में कादरी को फांसी दी गई, तो उसके जनाजे में न केवल हजारों-लाखों की संख्या में लोग एकत्रित हुए, अपितु सरकार से उसे शहीद का दर्जा देने की मांग भी करने लगे। 

हक्कानी का मानना है कि कश्मीर समस्या सुलझ जाने के बाद भी आतंकवाद और जेहाद का दौर नहीं रुकेगा क्योंकि पाकिस्तान में आतंकियों और तालिबानियों के लिए जेहाद का अर्थ उन लोगों को मौत के घाट उतारना है, जो ‘‘काफिर’’ हैं और उनका उद्देश्य मध्यकालीन इस्लामी व्यवस्था को स्थापित करना है। हम सभी इस सच से अधिक दिनों तक मुंह नहीं मोड़ सकते कि परमाणु संपन्न पाकिस्तान अपने वैचारिक दर्शन के नाम पर भारत को ‘‘हजारों टुकड़ों में बांटने’’ और यहां निजाम-ए-मुस्तफा स्थापित करने के लिए कितना आमादा है। 

सच यह भी है कि पाकिस्तान आज उन्हीं परमाणु हथियारों के हाफिज सईद जैसे आतंकियों के हाथों में पहुंचने का भय दिखाकर अमरीका सहित पश्चिमी देशों को अपने खिलाफ वस्तुनिष्ठ-निर्णायक कार्रवाई करने से बाधित कर रहा है। अपने अध्ययनों और निष्कर्ष में हुसैन हक्कानी अक्सर कहते हैं, ‘‘पाकिस्तान के लोग ही स्वयं के सबसे बड़े शत्रु हैं।’’ परंतु आपसी शत्रुभाव होते हुए भी अधिकांश पाकिस्तानी, विश्व के मानचित्र से भारत का नक्शा मिटाने को अपने मजहबी कत्र्तव्यों में से एक मानते हैं।-बलबीर पुंज


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Pardeep

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