सरकार ‘परेशानियों’ को ‘नकारे’ नहीं

punjabkesari.in Monday, Oct 12, 2020 - 12:42 AM (IST)

मैं इस बात की पुष्टि नहीं करता कि मुझे एक परेशानी है तथा मैं उसका हल नहीं निकाल सकता। यदि परेशानी छोटी तथा कम महत्ता वाली है या फिर यूं कहें कि किसी हद तक मुझ पर प्रभाव छोडऩे वाली नहीं तब यह मात्र एक उत्तेजक करने वाली बात होगी यदि मैं इसे निरंतर ही नकारता जाऊं। यदि परेशानी प्रमुख है और केवल मुझे ही नहीं मेरे आस-पास के लोगों को प्रभावित करती है तब इसे किसी एक ठोस कारण से नकार नहीं सकते।  इसको संबोधित करने की बजाय इसे नकारना शायद ज्यादा महत्वपूर्ण होगा। 

भारत में कारों की बिक्री पिछले 5 वर्षों के दौरान बढ़ नहीं पाई। 2015-16 में भारतीयों द्वारा खरीदी गई कारों की गिनती 27 लाख यूनिट थी। 2019-20 में खरीदी गई कारों की गिनती 27 लाख यूनिट थी। भारत का मध्यम वर्ग या तो आगे बढ़ नहीं पा रहा या फिर खर्च नहीं कर पा रहा। सरकार कहती है कि कारों की बिक्री का रुकना कोई परेशानी वाली बात नहीं क्योंकि भारत के युवा उबर तथा ओला के इस्तेमाल को प्राथमिकता देते हैं। अमरीका ने पिछले वर्ष 2 करोड़ कारों को बेचा। उबर तथा ओला किसी भी तरह किसी दूसरे राष्ट्र को प्रभावित नहीं कर रहे। 

भारत में 2 पहिया वाहनों की बिक्री पिछले 4 वर्षों से धीमी पड़ी है। 2016-17 में 1.7 करोड़ यूनिट बेचे गए तथा 2019-20 में इतने ही यूनिट बेचे गए। यह वाहन निचले मध्यम वर्ग का है। पिछले 4 वर्षों से इसके उपभोग का आकार बढ़ नहीं पाया है। इसके लिए सरकार का सिद्धांत क्या कहता है हम यह नहीं जानते क्योंकि सरकार ने इसकी पुष्टि नहीं की थी कि यहां पर देश में कोई वृद्धि ही नहीं। वहीं पिछले 5 वर्षों में कमर्शियल वाहनों में भी कोई वृद्धि दिखाई नहीं दी। 2016-17 तथा 2019-20 में इसकी बिक्री 7 लाख यूनिट की रही। ऐसे वाहनों में ट्रक आते हैं जो वस्तुओं को या तो निर्माणकत्र्ताओं या फिर मार्कीट में ले जाते हैं। पिछले 4 वर्षों के दौरान यह मार्कीट किस तरह शून्य हो गई इसके बारे में आप सोच सकते हैं। 

पिछले 4 वर्षों के दौरान रियल एस्टेट का भी बुरा हाल है। 2016 में भारतीयों ने 2 लाख करोड़ मूल्य वाले रियल एस्टेट को खरीदा। 2019 में भी इतनी ही राशि रियल एस्टेट पर लगाई गई। भारत का निर्यात भी पिछले 6 वर्षों से बढ़ नहीं पाया है। मनमोहन सिंह सरकार के दौरान भी देश का निर्यात इसी मात्रा का था। यू.पी.ए. सरकार जब सत्ता से बाहर हुई तब भारत प्रतिवर्ष करीब 300 बिलियन डालर का निर्यात कर रहा था। 2019-20 में भी भारत ने 300 बिलियन डालर का ही निर्यात किया। आखिर ऐसा मामला क्यों है? हम इसके बारे में नहीं जानते क्योंकि सरकार ही इसके बारे में नहीं बोल पाती। जब भारत में आयात निर्यात से ज्यादा गिर गया तो सरकार ने इस क्षण को एक उपलब्धि के तौर पर मनाया। 

आखिर भारतीय रोजगार क्यों खो रहे हैं?
पिछले 6 वर्षों के दौरान रोजगार में भी कोई वृद्धि नहीं हुई। वास्तविकता यह है कि यह बहुत नीचे गिर चुका है। सरकार द्वारा प्रस्तुत एक रिपोर्ट ने दर्शाया कि यह 2018 में 6 प्रतिशत से ऊपर की दर पर था और ऐसी दर इतिहास में किसी अन्य के समय में नहीं देखी गई। आखिर भारतीय रोजगार क्यों खो रहे हैं। हम इसके बारे में नहीं जानते। सरकार ने इस मुद्दे को नकार दिया है और कहा है कि पकौड़ा विक्रेता तथा उबर ड्राइवर पारम्परिक कर्मचारियों का स्थान ले रहे हैं। 

यह सत्य है कि कोविड महामारी ने भारतीय अर्थव्यवस्था को गहरी चोट पहुंचाई है और ये निरंतरता जारी रहेगी। हम उस जी.डी.पी. आंकड़े को वापस नहीं ला सकते जिसे हमने इस वर्ष जनवरी में अन्य तीन वर्षों के लिए हासिल किया था। इसका अभिप्राय: यह है कि उस समय मोदी का दूसरा कार्यकाल खत्म होगा। आर्थिक तौर पर हम वहीं खड़े होंगे जहां पर हम इस वर्ष जनवरी में खड़े थे। जिन आंकड़ों का उल्लेख ऊपर किया गया है वे सब कोविड से पहले के हैं। हमारी अर्थव्यवस्था में रुकावट लॉकडाऊन से पहले की है तथा इसका वर्तमान संकट से कोई लेना-देना नहीं और यदि हम कभी कोविड से संबंधित परेशानियों से पार पा लेंगे तो हमारी अर्थव्यवस्था पहले की परेशानियों में फिर से वापस लौट जाएगी। 

कोविड से पहले भारत की जी.डी.पी. वृद्धि 10 तिमाहियों के लिए निरंतर गिरती गई। आखिर ऐसा क्यों हुआ? इसके बारे में हम नहीं जानते। इसका एक कारण हो सकता है या फिर इसके अनेकों कारण हो सकते हैं। यदि हम इस मुद्दे की पुष्टि नहीं करेंगे तब हम इसे हल भी नहीं कर पाएंगे। आप उन मुद्दों पर विचार-विमर्श तथा सही उपाय उठा पाएंगे यदि आप जरूरी कदमों को उठाने के लिए अपनी अनुमति दे दें। यदि आप यही सोचते जाएं कि यहां पर तो कुछ हुआ ही नहीं तब गहरी परेशानियों का कोई हल नहीं निकल पाएगा और आप उसमें ही उलझ कर रह जाएंगे। 

भारत सरकार का कहना है कि देश इस समय वैश्विक अर्थव्यवस्था में चमकता हुआ बिंदू है तथा विश्व में एक तेजी से बढऩे वाली अर्थव्यवस्था है। यह परेशानी प्रमुख है तथा यह केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर प्रभाव नहीं डालती बल्कि भारत के लाखों लोगों पर भी इसका असर होता है। इसको नकारने के लिए आपके पास एक ठोस कारण अवश्य होना चाहिए।-आकार पटेल


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