‘अलविदा चुनावी राजनीति-उत्सव मना रहा हूं’

punjabkesari.in Thursday, Apr 04, 2019 - 02:10 AM (IST)

मेरे लिए इस बार का लोकसभा चुनाव,चुनाव ही नहीं चुनावी राजनीति की विदाई का एक उत्सव भी है। मैं इस उत्सव को सब प्रकार से एक बहुत बड़ी सफलता के समारोह के रूप में मना रहा हूं। मैंने कहा था कि इस बार मैं चुनाव लड़ाने का आनंद लूंगा। मैं सचमुच आनंद ही नहीं ले रहा हूं, जीवन की एक बहुत बड़ी उपलब्धि का समारोह भी मना रहा हूं। इस अवसर पर कुछ पुरानी यादों के इस सफर के अनुभव अपने पाठकों से सांझा करने की मेरी इच्छा स्वाभाविक है। 

आज से 66 वर्ष पूर्व 1953 में 19 वर्ष की आयु में मैंने राजनीति का सफर बैजनाथ से शुरू किया था। 1951 में मैट्रिक करने के बाद संघ का प्रचारक बन कर घर से चला गया। जीवन भर प्रचारक रहने का विचार था। मां ने विशेष आग्रह करके घर पर बुलाया और कहा-‘‘तुम्हारे पिताजी का स्वर्गवास हो गया है। घर में जवान बहन का विवाह करना है, तू हमें छोड़ कर चला गया। अपनी बहन का विवाह करने हेतु कुछ समय के लिए घर आओ। उसके बाद भले ही चले जाना।’’ 

मां की आंखों में चिंता व्यथा और क्रोध के आंसू देखकर मैंने मां का आदेश माना। संघ अधिकारियों को कहा कि बहन के विवाह के बाद मैं फिर से प्रचारक बन जाऊंगा। घर आया। पिताजी के एक मित्र पं. अमर नाथ सनातन धर्म सभा की ओर से स्कूल चलाते थे। उनके पास गया। उन्होंने बैजनाथ के पास कृष्णानगर स्कूल में मुझे अध्यापक लगा दिया। बैजनाथ बाजार की एक दुकान के ऊपर किराए पर एक कमरा लिया। एक साइकिल का प्रबंध किया। बैजनाथ से साइकिल पर कृष्णानगर स्कूल जाने लगा। 

नौकरी लगे अभी 17 दिन हुए थे। डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के नेतृत्व में भारतीय जन संघ ने कश्मीर आंदोलन शुरू किया। शेख अब्दुल्ला ने जम्मू-कश्मीर को भारत से अलग करने का षड्यंत्र किया था। पूरे देश से कार्यकत्र्ता सत्याग्रह के लिए आ रहे थे। पालमपुर के संघ प्रचारक देवराज जी मेरे पास आए और कहा कि मुझे कांगड़ा जिला से एक जत्था लेकर पठानकोट में सत्याग्रह करना है। यह सुन कर मैं चिंतित भी हुआ और हैरान भी। मैंने कहा कि बहन का विवाह करने के लिए घर आया हूं और नौकरी मिले अभी 17 दिन हुए हैं। मेरी बात बीच में काट कर श्री देवराज जी ने कहा ‘‘हम सब संघ के स्वयं सेवक हैं, सबसे पहले देश-बाकी सब उसके बाद।’’ मैं तैयार हो गया। दूसरे दिन शनिवार था। घर आया। कुछ कह न सका। एक तरफ देश के लिए सत्याग्रह करने का उत्साह, दूसरी तरफ मां-बहन सबको यूं छोड़ कर जाने की पीड़ा। सोमवार प्रात: परिवार के लिए मैं स्कूल जा रहा था परंतु मैं सत्याग्रह के लिए घर से निकल रहा था। बहन पुष्पा कुछ अस्वस्थ थी, कहने लगी भाई जी अगले शनिवार को टमाटर जरूर लेकर आना। 

सत्ता छोड़ी पर साथ नहीं
हम पठानकोट पहुंचे। केदार नाथ साहनी सत्याग्रह का संचालन कर रहे थे। एक गुप्त स्थान पर हम सबको रखा गया। दो दिन बाद सत्याग्रह किया और उसके बाद गुरदासपुर जेल में बंद कर दिया गया। एक सप्ताह के बाद 20 वर्ष से कम आयु के हम 20 युवकों को हिसार जेल में ले जाया गया। जून महीने की भयंकर गर्मी और अपने जिले कांगड़ा से मैं पहली बार बाहर गया। पूरे 8 महीने वहां केवल बनियान और निक्कर में कटे। तब से लेकर आज तक राजनीति का मेरा सफर चल रहा है। जीवन के 66 वर्ष-एक लम्बा सफर-बहुत कुछ देखा और बहुत कुछ पाया। भारतीय जन-संघ, उसके बाद जनता पार्टी और फिर भारतीय जनता पार्टी। अपनी पार्टी के इस पूरे सफर का मैं प्रत्यक्षदर्शी सहयोगी हूं। मुझे प्रसन्नता और गर्व है कि मैंने सिद्धांतों से कभी समझौता नहीं किया। सत्ता छोड़ी पर सत्य नहीं छोड़ा। मूल्य भी चुकाया। न कभी रुका, न थका, न झुका। 

पंचायत चुनाव से शुरू किया राजनीतिक सफर
आज से 56 वर्ष पहले 1963 में मैंने चुनाव की राजनीति में प्रवेश किया। अपने गांव गढ़-जमूला की पंचायत का पंच बना, फिर समिति सदस्य बना, फिर जिला परिषद का उपाध्यक्ष और फिर अध्यक्ष बना। पंचायत राज के ये सभी चुनाव जीते। उस समय कांगड़ा जिला पंजाब प्रदेश का हिस्सा था। पहली बार जिला परिषद बने थे। उस समय जिला कांगड़ा में कांग्रेस के बाद साम्यवादी पार्टी दूसरे स्थान पर एक मजबूत पार्टी थी। पूरे जिले में उसका संगठन था। कांग्रेस के मुकाबले पर ही उनकी बड़ी-बड़ी रैलियां होती थीं। उनके मुकाबले हम तो कहीं दिखते भी नहीं थे। जिला परिषद में भी उनके बहुत सदस्य जीते थे। 

साम्यवादी पार्टी ने जिला परिषद अध्यक्ष पद के लिए धर्मशाला के वकील राणा कुलतार चन्द को खड़ा कर दिया। जन-संघ के मेरे मित्रों की इच्छा मुझे अध्यक्ष पद पर लड़ाने की थी परन्तु हमारे पास अधिक समर्थन न था। उस समय के धर्मशाला के जन-संघ के जिला सचिव और मेरे परम मित्र अभिमन्यु चोपड़ा ने सुझाव दिया कि राणा कुलतार चन्द के मुकाबले पर कांग्रेस के सदस्यों से मिल कर चुाव लडऩा चाहिए। उस समय के हमीरपुर जिला और आज के ऊना जिला से रणजीत सिंह कांगे्रस के नेता जिला परिषद में जीते थे। मैं अभिमन्यु चोपड़ा, रणजीत सिंह और उनके मित्र ओंकार चंद कहीं मिले, बातचीत हुई, सांझा चुनाव लडऩे का निर्णय किया गया। कांगड़ा जिला की राजनीति में भारतीय जन-संघ और कांग्रेस का यह गठबंधन आज शायद सबको अचम्भा-सा लगे। प्रमुख नेता बैठे और यह निर्णय किया कि अध्यक्ष पद के लिए रणजीत सिंह और उपाध्यक्ष पद के लिए मैं चुनाव लड़ूं। कांग्रेस पार्टी ने मेरे विरुद्ध गगल के एक प्रसिद्ध ज्योतिषी बिद्धु राम को खड़ा कर दिया।

राणा कुलतार चंद और बिद्धु राम शक्तिशाली उम्मीदवार समझे जाने लगे। बिद्धु राम एक प्रसिद्ध ज्योतिषी थे। पंजाब के उस समय के मुख्यमंत्री प्रताप सिंह कैरों तक उनके पास आया करते थे। कुछ मित्रों ने मुझे समझाया। पहली बार एक प्रमुख चुनाव लड़ रहा हूं। कहां प्रसिद्ध ज्योतिषी बिद्धु राम और कहां मैं- उस समय हम सब कार्यकत्र्ता बड़ी मस्ती और जनून से काम करते थे। अभिमन्यु चोपड़ा ने सबके सामने कहा-हम सिद्ध करेंगे कौन बड़ा ज्योतिषी है। चुनाव हुआ और उसमें अध्यक्ष पद के लिए रणजीत सिंह और उपाध्यक्ष के लिए मैं विजयी हो गया। बिद्धु राम ज्योतिषी की ज्योतिष भी उसके बाद धीरे-धीरे बहुत कम हो गई। 

33 वर्ष की आयु में लड़ा पहला विधानसभा चुनाव
1967 में 33 वर्ष की आयु में मैंने विधानसभा का पहला चुनाव लड़ा। आज तक के इन 56 वर्षों में मैंने विधानसभा और लोकसभा के कुल 13 चुनाव लड़े। 9 बार जीता और 4 बार हारा। 1977 में 43 वर्ष की आयु में मुख्यमंत्री बना और फिर कई बार लोकसभा में भी जीता। आज तक जीवन के पूरे 33 वर्ष मैं विधायक और सांसद रहा। पंचायत से लेकर लोकसभा, राज्यसभा और विश्व की सबसे बड़ी संसद राष्ट्र संघ में भी मुझे एक शिष्टमंडल में 15 दिन न्यूयार्क में रहने का मौका मिला और उसमें 3 बार भाषण करने का सौभाग्य भी मिला। 

मैं 1970 से लगातार राष्ट्रीय कार्यसमिति का सदस्य हूं। राष्ट्रीय पदाधिकारी भी रहा। इस समय राष्ट्रीय कार्यसमिति में मुझ से वरिष्ठ केवल लाल कृष्ण अडवानी जी हैं। श्री मुरली मनोहर जोशी भी मेरे बाद आए। लगातार 50 वर्षों से राष्ट्रीय कार्यसमिति का सदस्य होना मेरा परम सौभाग्य है। 66 वर्ष की राजनीति का सफर चलता रहेगा परंतु 56 वर्ष के इस गौरवशाली चुनाव राजनीति के सफर को आज विदा कहते हुए मैं बहुत अधिक प्रसन्नता का अनुभव कर रहा हूं। मैं जब पार्टी में आया था तो कुछ भी नहीं था पार्टी के पास। सड़कों पर नारेबाजी, पुलिस की लाठियां और जेलें। चुनाव लड़ते थे, हारते थे, फिर खड़े हो जाते थे। आज मेरी पार्टी विश्व की सबसे बड़ी पार्टी है। दिल्ली से लेकर शिमला तक हमारी सरकार है। एक गौरवशाली राजनीतिक साम्राज्य छोड़ विदा ले रहा हूं। भाग्यशाली हूं, प्रभु का धन्यवाद करता हूं। 

बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, बेईमानी की राजनीति का परिणाम
बचपन में मां ने गीता पढऩी सिखाई थी। बाद में स्वामी विवेकानंद को पढ़ा। स्वामी विवेकानंद के जीवन व सम्पूर्ण साहित्य पर पुस्तक लिखी और उनको अपने जीवन में जीने की भी कोशिश की। निष्काम कर्मयोग मेरे जीवन का सिद्धांत बना और मूल्य आधारित राजनीति तथा सिद्धांतों के अनुसार राजनीति जीवन का लक्ष्य बना। चुनाव के इन दिनों टी.वी. पर दलबदल के समाचारों से पीड़ा होती है। कई बार प्रश्र पैदा होता है कि चुनाव हो रहे हैं या कहीं-कहीं नेताओं की मंडियां लगी हैं। केवल टिकट के लिए नेताओं की इस प्रकार की उछल-कूद शायद पहले कभी नहीं हुई थी। 

यदि किसी के विचार बदल गए तो उसे बहुत पहले अपनी पार्टी छोड़ कर दूसरी पार्टी में आ जाना चाहिए था परंतु निर्लज्जता के साथ केवल टिकट के लालच में बड़े-बड़े नेता खुलेआम बिकते हुए दिखाई दे रहे हैं। हिमाचल प्रदेश में भी पं. सुखराम जैसे नेता कई बार दल बदलते रहे। इस बार पुत्र नहीं, पौत्र मोह में विचलित होकर गिड़गिड़ाते रहे और पौत्र समेत पार्टी बदली। यदि आज सोने की चिडिय़ा कहे जाने वाले भारत में गरीबी, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार है तो यह इसी बेईमानी की राजनीति का परिणाम है। ऐसी राजनीति सरकारें बनाती और तोड़ती रहेगी। परंतु सच्चे अर्थों में शहीदों के सपनों का एक खुशहाल भारत नहीं बन सकता। इसी कारण सत्तर साल के बाद भी नहीं बना। 

सुखराम हिमाचल के पुराने प्रमुख नेता हैं। मैं उनका बड़ा सम्मान करता हूं परंतु उनके व्यवहार से मुझे बड़ी वेदना हुई है। उन्हें तो किसी से मांग कर टिकट लेना था परंतु मेरे जीवन में एक ऐसा मौका आया था जब मेरे पास देने के लिए दो टिकट थे। दो नहीं तो एक तो अपने परिवार में किसी को दे ही सकता था। 1989 में मैं पहली बार लोकसभा का सदस्य बना। कुछ समय बाद हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव का नेतृत्व करने के लिए मुझे भेज दिया गया। मैंने दो विधानसभा क्षेत्रों पालमपुर और सुलह से चुनाव लड़ा और इन दोनों क्षेत्रों से जीत गया। मैं एक ही समय लोकसभा और दो विधानसभाओं का सदस्य था। यह भी एक नया रिकार्ड था। मुझे मुख्यमंत्री बनाया गया। दो स्थानों से मुझे त्यागपत्र देना था। 

बहुत से कार्यकत्र्ताओं का दबाव पडऩे लगा कि कम से कम एक सीट पर मैं अपनी धर्मपत्नी या बेटे को चुनाव लड़ाऊं। मैं मुख्यमंत्री था जो कुछ चाहता-करता परंतु मैं परिवारवाद के हमेशा विरुद्ध रहा। मैं ऐसा नहीं करना चाहता था। कुछ संबंधियों, मित्रों और कार्यकत्र्ताओं का दबाव बढऩे लगा। मुझे डर लगा कि कहीं मेरी धर्मपत्नी भी तैयार न हो गई हो। मैंने परिवार को बिठाया और कहा कि मैं इस समय तीन स्थानों से जीता हुआ हूं। दो स्थानों से मुझे त्यागपत्र देना है। कुछ कार्यकत्र्ता परिवार से किसी को टिकट देने का आग्रह कर रहे हैं। इससे पहले कि मैं कुछ और कहता, मेरी धर्मपत्नी ने गुस्से से कहा-‘‘आप क्या कह रहे हैं। परिवार में आप मुख्यमंत्री बन गए। क्या यह कम है। अब और किसी को परिवार में कोई पद देने की आवश्यकता नहीं। 

आप दो कार्यकत्र्ता चुनें, एक विधानसभा में और एक लोकसभा में भेजें।’’ मुझे बहुत बड़ी राहत मिली। मेरे जीवन के हर कदम पर मेरी धर्मपत्नी ने मेरा पूरा साथ दिया है। यदि वह ऐसा न कहती तो भी मैं परिवार में किसी को आगे न लाता परंतु परिवार में समस्या पैदा हो जाती। पालमपुर विधानसभा से डा. शिव कुमार और कांगड़ा-चम्बा लोकसभा से मेजर खनूरिया जी को टिकट दिए और चुनाव जिताया। आज पूरे देश में राजनीति का अवमूल्यन हो रहा है। भ्रष्टाचार और परिवारवाद ने राजनीति को एक व्यवसाय बना दिया है। भारतीय जनता पार्टी इस दृष्टि से अभी काफी अलग है। भगवान करे पूरी अलग रहे।-शांता कुमार


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