साइबरस्पेस की वैश्विक चुनौतियां

punjabkesari.in Tuesday, Jul 27, 2021 - 05:03 AM (IST)

अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में भूगोल हमेशा एक महत्वपूर्ण अवधारणा है। विश्व का इतिहास इस बात का साक्षी है कि क्षेत्र के नियंत्रण ने राष्ट्रों को युद्ध की ओर अग्रसर किया। साथ ही हम इस बात को भी नजरअंदाज नहीं कर सकते कि अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में भी लगातार बदलाव एक महत्वपूर्ण बात है। यही करण है कि आज जब हम भूगोल, क्षेत्र, युद्ध आदि के तथ्य को समझते हैं तो इसमें नए आयामों को अनदेखा नहीं किया जा सकता। 

हम सभी जानते हैं कि वैश्विक शासन एक गतिशील क्षेत्र है, जिसमें वैश्वीकरण की एक अहम भूमिका है। वैश्वीकरण ने अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के प्रतिमान को बदल दिया है। तकनीकी नवाचार के उदय, संचार में प्रगति के कारण वैश्विक और घरेलू क्या है, इस तर्क में कई नई चुनौतियां खड़ी हुई हैं। आज जब हम भूक्षेत्र के बारे में सोचते हैं तो साइबरस्पेस एक वैकल्पिक भौगोलिक क्षेत्र बन गया है। इसी संदर्भ में एक और बात रखी जाती है कि पहले जहां युद्ध का विचार केवल सैन्य था, वहीं आज व्यापार युद्ध ने दिखाया कि युद्ध आर्थिक संसाधनों के माध्यम से भी हो सकता है। 

वैश्विक और घरेलू शासन चुनौती के रूप में साइबर स्पेस के महत्व को देखते हुए, अमरीका के राष्ट्रपति बाइडेन ने भी अपने टर्म की शुरूआत में ही साइबर सुरक्षा और इसके उल्लंघन से निपटने को सरकार द्वारा हर स्तर पर सर्वोच्च प्राथमिकता की बात रखी थी। अभी हाल में अमरीकी गठबंधन सहयोगियों, जिनमें व्हाइट हाऊस समेत नाटो, ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, कनाडा, जापान आदि शामिल हैं, ने भी चीनी सरकार पर साइबरस्पेस में बड़े पैमाने पर घोटालों का आरोप लगाया। चीन की नागरिक खुफिया एजैंसी की निंदा करते हुए आपराधिक अनुबंध हैकर्स के साथ मिलीभगत के लिए निजी क पनियों के खिलाफ रैंसमवेयर अभियान चलाकर लाखों डॉलर निकालने की मांग की बात पर भी परेशानी जताई गई। 

संयुक्त राष्ट्र में चीन के स्थायी प्रतिनिधि ने भी साइबरस्पेस में आधिपत्य, एकतरफावाद और संरक्षणवाद के खिलाफ चेतावनी देते हुए, साइबर अपराध के खिलाफ एक अंतर्राष्ट्रीय स मेलन के समर्थन की बात रखी। विश्लेषक इस बात पर बहस कर रहे हैं कि ट्रेडवॉर के बाद अब साइबर डोमेन अमरीका और चीन के बीच वैश्विक युद्ध का नया क्षेत्र होगा। प्रौद्योगिकी और इंटरनैट का हमारे जीवन पर बहुत प्रभाव है। हम सबने इस बात को देखा है कि जैसे ही हम इंटरनैट पर कुछ खोजते हैं, थोड़े समय में ही हमारा स्मार्टफोन हमें उससे संबंधित सुझाव, समाचार देने लगता है। इसी तकनीक ने न केवल राष्ट्रों को एकीकृत किया है, बल्कि नई सुरक्षा चिंताओं को भी जन्म दिया है।साइबर डोमेन की पहुंच, गति तथा अनाम प्रकृति से तकनीकी प्रगति एक फिसलन भरी ढलान पर आ जाती है। 

हमें यह बात समझनी होगी कि समस्याएं तब बढ़ जाती हैं, जब हम उनके सभी पहलुओं को नहीं पहचानते। आज सभी राष्ट्रों को साइबर सुरक्षा के प्रति प्रयास को राष्ट्रीय सुरक्षा की आवश्यकता की अवहेलना किए बिना पारदर्शिता, गोपनीयता, विश्वास सहित संतुलित करना होगा। साइबरस्पेस एक नया क्षेत्र है। अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में भी इसे लेकर ग्लोबल कॉमन्स के विषय पर काफी चर्चा हुई है। टैक्नोलॉजी के विस्तार के साथ राज्यों की संप्रभुता और उससे जुड़े कई मुद्दों ने कानून और व्यवस्था से संबंधित पहलुओं को उजागर किया है। साइबरस्पेस ने एक देश को दूसरे देश से जोड़ा तो है लेकिन इस पृष्ठभूमि में इससे संबंधित खतरों व मानवाधिकारों को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता। समकालीन समय में पाइरेसी, कॉपिंग आदि देश की सुरक्षा, विभिन्न व्यवसायों के लिए चुनौती के रूप में उभर कर आई हैं। 

पहले वैश्विक प्रक्रियाओं को कुछ क्षेत्रों में वर्चस्व और लाभ के कारण नुक्सान उठाना पड़ा। अब प्रत्येक राष्ट्र को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि साइबरस्पेस युद्ध का नहीं बल्कि लोगों के कल्याण का क्षेत्र बने। इन आदर्शों की अनदेखी करना विश्व राजव्यवस्था के लिए अच्छा नहीं होगा। दुनिया महामारी के कारण हुए नुक्सान के बाद उबर रही है। आर्टीफिशियल इंटैलीजैंस, रोबोटिक्स और साथ ही विभिन्न देश ‘इंडस्ट्री 5.0’ से संबंधित नए औद्योगिक मॉडल्स आदि ऐसे कई मामलों में एक समग्र नीति निर्माण की ओर प्रयास कर रहे हैं। भविष्य के वैश्विक और घरेलू शासन के लिए स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए साइबर सुरक्षा की चिंताओं के प्रति समग्र दृष्टिकोण भी महत्वपूर्ण है।-आमना मिर्जा


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