‘मुफ्तखोरी’ कई राज्यों का बजट बिगाड़ रही

punjabkesari.in Saturday, Aug 26, 2023 - 05:40 AM (IST)

अपने स्वतंत्रता दिवस के संबोधन में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भारत के पूरे 14 अरब लोगों को प्रतिमाह 200 यूनिट बिजली मुफ्त देने का वायदा करते हुए कहा कि इसकी लागत प्रति वर्ष 150,000 करोड़ रुपए होगी। उन्होंने आगे कहा कि जब मोदी सरकार देश के 4 शीर्ष उद्योगपतियों को दिए गए 150,000 करोड़ रुपए के ऋण माफ कर सकती है, तो ‘आप’ सरकार लोगों को मुफ्त बिजली क्यों नहीं दे सकती, जिसकी लागत उतनी ही होगी? दिल्ली में केजरीवाल पहले से ही 200 यूनिट प्रतिमाह की खपत करने वाले सभी घरों (एच.एच.) को मुफ्त बिजली दे रहे हैं और 200-400 यूनिट प्रति माह की खपत करने वाले घरों को 800 रुपए की एक फ्लैट सबसिडी दे रहे हैं। 

पंजाब में भी, आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार प्रति माह 600 यूनिट तक खपत करने वाले प्रत्येक घरों को मुफ्त बिजली दे रही है। राज्य स्तर पर राजनीति के इस ब्रांड की सफलता का स्वाद चखने के बाद यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि वह पूरे भारत में मुफ्त बिजली की आपूर्ति का वायदा कर रहे हैं। यह विचित्र बात है, आइए केजरीवाल के दृष्टिकोण की खामियों पर नजर डालते हैं। 

सबसे पहले उनके प्रस्ताव की सांकेतिक लागत बहुत कम बताई गई। एक घर में औसतन 5 व्यक्तियों और 1400 मिलियन की आबादी को शामिल करने पर घरों की संख्या 280 मिलियन हो जाती है, इसके अलावा बिजली की एक यूनिट की आपूर्ति की लागत (खरीद मूल्य+व्हीलिंग और वितरण लागत) लगभग 5 रुपए यानी प्रति माह 200 यूनिट की आपूर्ति की लागत 1000 रुपए प्रति घर है। 280 मिलियन घरों के लिए यह सालाना 28,000 करोड़ रुपए या 336,000 करोड़ रुपए होगा। 

केजरीवाल द्वारा दिया गया अनुमान इस संख्या से आधे से भी कम है। वह 150,000 करोड़ रुपए पर कैसे पहुंचे? ऐसा प्रतीत होता है कि वह घरों पर लागू टैरिफ के कारण 3 रुपए प्रति यूनिट की कम लागत का उपयोग कर सकते थे जिसकी खपत 200 यूनिट से कम है। लेकिन यह एक रियायती दर है जिसका भुगतान उच्च उपभोग वर्ग में एच.एच. से अधिक चार्ज करके किया जाता है। केजरीवाल के प्रस्ताव के सबसिडी प्रभाव की गणना के लिए इसका उपयोग करना अताॢकक है। इसके अलावा 3 रुपए प्रति यूनिट के साथ भी प्रभाव 201, 600 करोड़ रुपए बैठता है। यहां आंकड़ों को दबाने की कोशिश दिख रही है। 

दूसरा व्यवसायियों के 150,000 करोड़ रुपए के ऋण माफ (कथित) का हवाला देकर वह यह आभास देते हैं कि सभी 1.4 अरब लोगों को मुफ्त बिजली प्रदान करने से सरकारी खजाने पर कोई असर नहीं पड़ेगा क्योंकि माफी से बचकर बचाए गए पैसे से इसकी भरपाई हो जाएगी। यह तर्क तर्कसंगत नहीं है क्योंकि बैंकों ने कर्ज माफ नहीं किया है। जब एक निश्चित समय सीमा से अधिक ऋण की वसूली में देरी होती है तो बैंकों को ‘राइट-ऑफ’ करने की आवश्यकता होती है। बैलेंस शीट में इसके लिए पूर्ण प्रावधान करने का एक शब्दजाल है। आर.बी.आई. द्वारा निर्धारित विवेकपूर्ण मानदंडों के अनुसार यह एक तकनीकी जरूरत है। बैंक की बैलेंस शीट (बी.एस.) को साफ-सुथरा रखने के लिए यह जरूरी है। इसे ऋण माफी के रूप में नहीं बांधा जा सकता क्योंकि बैंक चूककत्र्ता, उधारकत्र्ता से ऋण की वसूली के लिए प्रयास जारी रखता है। 

जैसे ही ऋण की वसूली हो जाती है राशि वापस बैलेंस शीट में लिख दी जाती है। केजरीवाल द्वारा ग्रहण की गई बचत (पढ़ें : 150,000 करोड़ रुपए) जिसे वह मुफ्त बिजली के प्रस्ताव से उत्पन्न देनदारी के खिलाफ चुकाना चाहते हैं, उसका अस्तित्व ही नहीं है। तीसरा, मौजूदा प्रथा के अनुसार राज्य सीधे उपभोक्ताओं को सबसिडी नहीं देते हैं। इसके बजाय वे बिजली वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) से उपभोक्ताओं को बिल नहीं देने या पूर्व के निर्देशानुसार राशि (यद्यपि सबसिडी वाली) का बिल नहीं देने के लिए कहते हैं। समझ यह है कि राज्य सबसिडी राशि के लिए डिस्कॉम को समय पर प्रतिपूर्ति करेगा लेकिन अधिकांश राज्य प्रतिपूर्ति नहीं करते हैं या आंशिक रूप से करते हैं। जब वे ऐसा करते भी हैं तो यह काफी देरी के बाद होता है। 

यह संभावना नहीं है कि जब केजरीवाल के अखिल भारतीय प्रस्ताव को लागू करने की बात आएगी तो राज्य अपने तरीके बदल देंगे। कल्पना कीजिए अगर सालाना 300,000 करोड़ रुपए से अधिक की भारी-भरकम सबसिडी बकाया कुछ महीनों के लिए भी अटक जाए। यह डिस्कॉम को गंभीर वित्तीय संकट में धकेल सकता है जिससे बिजली की निर्बाध आपूर्ति पर बड़ा खतरा पैदा हो सकता है। ‘दिल्ली में बिजली कटौती नहीं होगी’ का ढिंढोरा पीटने वाले मुख्यमंत्री को अपने विचार के नतीजे के बारे में पता होना चाहिए। 

चौथा, जब कोई राज्य आवश्यक वस्तु या सेवा नि:शुल्क या रियायती मूल्य पर प्रदान करने का इरादा रखता है तो लक्ष्य लाभार्थी आवश्यक रूप से एक गरीब व्यक्ति होना चाहिए। ऐसी महिला होनी चाहिए जो अपनी अल्प आय के कारण अच्छी/सेवा के लिए भुगतान करने में सक्षम न हो, लेकिन केजरीवाल सभी 140 करोड़ लोगों को मुफ्त बिजली देने की बात करते हैं। उनकी योजना के तहत उच्च आय वाले करोड़पति, अरबपति सहित हर कोई यहां तक कि भारत का सबसे अमीर व्यक्ति भी पात्र है। यह एक कल्याणकारी योजना के प्रमुख सिद्धांतों का मजाक उड़ाता है। 

ऐसा नहीं है कि केजरीवाल को अपने प्रस्ताव की मूर्खता का एहसास नहीं है, सचमुच वह है अन्यथा वह पिछले साल दिल्ली में मुफ्त बिजली योजना में बदलाव लेकर नहीं आए होते। यह हवाला देते हुए कि किसी एच.एच. ने उन्हें सूचित किया था कि वे सबसिडी नहीं चाहते हैं। उन्होंने सभी दिल्ली वासियों से लिखित में अपनी पसंद देने को कहा। क्या उनका इरादा बेहतर लोगों को सबसिडी नहीं देने का था? हरगिज नहीं। कौन कहेगा,‘‘मुझे सबसिडी नहीं चाहिए?’’ इस अभ्यास का नतीजा यह हुआ कि अधिकांश घर जो पहले मुफ्त बिजली का आनंद ले रहे थे उन्हें अब भी यह मिल रही है। उनके ट्रैक रिकार्ड को देखते हुए यह आश्चर्य की बात नहीं है कि पूरे भारत में मुफ्त बिजली की बात करते समय केजरीवाल गरीबों व अमीरों के बीच अंतर नहीं करते हैं और वह और अन्य राजनीतिक दल (मोदी के बिना) ऐसा करते हैं क्योंकि यह एक बिक्री योग्य प्रस्ताव है। 

इससे पहले कि बहुत देर हो जाए मुफ्तखोरी के संकट पर अंकुश लगाने की जरूरत है। पिछले साल सुप्रीमकोर्ट ने राजनीतिक दलों से एक ऐसा कानून  बनाने को कहा था जो मुफ्त चीजों पर रोक लगाता हो। खुद पर छोड़ दिया जाए तो वे ऐसा नहीं करेंगे। इसके बजाय वह मामले को ठंडे बस्ते में डाल देंगे। तो फिर आगे का रास्ता क्या है? सुप्रीमकोर्ट को मुफ्त चीजों पर रोक  लगाने वाला एक आदेश पारित करना चाहिए जिसे रद्द करना उनके लिए मुश्किल होगा।-उत्तम गुप्ता


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