ऋण संबंधी अपनी मानसिकता बदलें किसान

punjabkesari.in Thursday, Jun 01, 2017 - 11:35 PM (IST)

हर रोज एक-दो किसानों द्वारा खुदकुशी करने की खबर अखबारों में पढऩे को मिलती है। पता नहीं, कब और कैसे रुकेंगी ये खुदकुशियां? कभी भी प्रबुद्ध लोगों और सरकारों ने यह सोचने की कोशिश नहीं की कि उनकी पृष्ठभूमि क्या है। सरकारों ने तो अपना उल्लू सीधा करने तथा किसान वोट बैंक को अपने पक्ष में करने के लिए सार्वजनिक क्षेत्रों के बैंकों, सहकारी बैंकों, ग्रामीण बैंकों को निर्देश दिए होते हैं कि किसी भी किसान को उसकी जरूरत के अनुसार कर्जा दिया जाए। कोई भी किसान कर्जे से वंचित न रह जाए ताकि वह बढिय़ा फसलें पैदा करके अपनी आमदन में बढ़ौतरी कर सके। 

परंतु खेद की बात है कि किसानों ने कर्जा  जिस उद्देश्य के लिए लिया होता है उसके लिए प्रयुक्त नहीं करते। इक-दूजे दी देखा-देखी और झूठी मान-मर्यादा के लिए सभी यह कोशिश करते हैं कि बेटी-बेटे की शादी पर उन्होंने इतना खर्चा किया है कि दूसरों को पीछे छोड़ दिया है। लेकिन ये शादियां करने के लिए जो कर्र्ज लिया जाता है उसे चुकाने की किसी को कोई ङ्क्षचता नहीं होती। किसी ने देखा- देखी ट्रैक्टर-ट्रालियां खरीद लीं चाहे जमीन 3-4 एकड़ ही हो। इसी प्रकार  के कई फिजूल खर्च किए जाते हैं जिनके बिना भी काम चल सकता है। कई कम जमीन वालों ने तो खामख्वाह ही कर्र्जे का फंदा गले में डाल रखा है। खर्चे बढ़ गए हैं, जबकि खेतों की पैदावार कम हो गई है। बेटे-बेटियां पढऩे-लिखने से रह गए, घर में क्लेश बढ़ गया। बैंकों वाले, आढ़तिए कर्ज की किस्तें अदा करने की मांग करते हैं। ऐसी स्थिति में कर्ज के बोझ तले दबा किसान घर के क्लेश से तंग आकर खुदकुशी का रास्ता अपनाता है।

खुदकुशी व्यक्ति की बुजदिली होती है और परिवार को बहुत बड़ा धोखा देने के तुल्य है। ऐसे इंसान को परमात्मा के घर भी ठिकाना नहीं मिलता। हम इसको बिन आई मौत भी कहते हैं। ऊपर से हमारी किसान यूनियनों के नेताओं ने सरकारों से अपना मतलब निकालने के लिए किसानों को अपने पीछे लगाकर सरकारों के विरुद्ध खड़ा किया हुआ है। यूनियनों के नेता तो सरकारों से कुर्सियां हासिल कर लेते हैं और फिर सरकारों को कहते हैं कि खुदकुशी करने वाले का सरकार कर्जा माफ करे। उसके परिजनों की वित्तीय सहायता करे और घर के सदस्य को सरकारी नौकरी दे। ऐसी स्थिति में कर्ज को नाजायज प्रयुक्त करने वाला व्यक्ति घर के क्लेश से तंग आकर खुदकुशी कर लेता है ताकि उसके मरने के बाद घर सुखी हो जाए। उसे यह उम्मीद होती है कि परिवार कर्जा मुक्त हो जाएगा, बेटोंं  को सरकारी नौकरी मिल जाएगी और ऊपर से सरकारी सहायता भी मिलेगी। 

कर्ज लेने वाले किसान भाइयों की यह मानसिकता कितनी घटिया तथा समाजविरोधी है। सरकारें भी वोट लेने के लिए कर्ज माफ करने की बात करती हैं। भाइयो, बहनो और दोस्तो, जरा सोचो और समझो। हमें सरकारों के पीछे लगकर कर्ज में नहीं डूबना चाहिए। अपनी बेसमझी और सरकार की स्वार्थी मानसिकता के कारण ही किसान आढ़तियों का कर्जदार बना है। यदि किसी किसान के घर व खेतों में काम करने के लिए कोई गरीब परिवार उसका ‘सीरी’ बन जाता है तो उसका सम्पूर्ण परिवार किसान के घर काम करता है। यदि यह गरीब ‘सीरी’ परिवार अपने घरेलू खर्च के लिए उस किसान से कुछ रुपए उधार लेता है लेकिन इन्हें लौटाने से असमर्थ हो तो किसान उसको परेशान करने से बाज नहीं आता। अक्सर ऐसा होता है कि वह उस गरीब परिवार के घर में से गाय-भैंसें खोलकर ले जाता है या उस परिवार को तब तक काम से हटने नहीं देता जब तक वह उसके पैसे नहीं लौटाता। 

यदि हम स्वयं किसी को दिए हुए पैसे माफ नहीं कर सकते तो क्या हमारा भी यह कत्र्तव्य नहीं बनता है कि नेक नीयत से कमाई करें, फिजूल खर्ची और ऋण के बोझ से बचें और बैंकों से जो ऋण लेते हैं उसे लौटाने का प्रयास करें। ऐसा होने पर भगवान भी हमारा साथ देंगे और जीवन में खुशहाली दस्तक देगी, संतानें पढ़-लिख जाएंगी और बढिय़ा तरीके से खेती करने के योग्य होंगी। आज हमें ऋण के संबंध में अपनी मानसिकता बदलने की जरूरत है। कर्ज जरूरत अनुसार ही लेना चाहिए और उसका सही उपयोग करना चाहिए। ऐसा करके ही हम समय पर कर्ज की अदायगी कर सकेंगे और घर के काम-धंधे भी सुचारू ढंग से चलते रहेंगे। 


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