सबसे अहम मांग तो भूले किसान संगठन

punjabkesari.in Friday, Feb 23, 2024 - 05:01 AM (IST)

दुनिया भर में आम चर्चा चल रही है कि अगर तीसरा विश्व युद्ध छिड़ा तो वह राजनीतिक नहीं बल्कि पानी के मुद्दे पर होगा। हालांकि यह भविष्यवाणी संयुक्त राष्ट्र के पूर्व महासचिव बुतरस घाली ने मध्य पूर्व देशों के संबंध में की थी, लेकिन आज के समय में यह पूरी दुनिया की समस्या बन गई है। 

पंजाब के लिए भी यह एक बड़ी समस्या बन गई है क्योंकि पंजाब का भूजल स्तर लगातार नीचे की ओर जा रहा है। विशेषज्ञ लगातार संदेह व्यक्त कर रहे हैं कि यदि इसी गति से पंजाब के भूजल का दोहन होता रहा तो 2039 तक जल स्तर 300 मीटर यानी 1000 फुट तक नीचे चला जाएगा और यह पानी न तो पीने योग्य रहेगा और न ही खेती के लिए उपयुक्त रहेगा। लेकिन आश्चर्य की बात है कि किसान संगठनों ने पानी के मुद्दे को गंभीरता से नहीं लिया। जबकि पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के बीच जल विवाद पिछले कई दशकों से चला आ रहा है। पंजाब से सतलुज-यमुना लिंक नहर (एस.वाई.एल.) के निर्माण के पक्ष में भारत के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद यह मुद्दा और अधिक गंभीर हो गया। इस मुद्दे को सुलझाने के लिए पंजाब, हरियाणा और केंद्र सरकार ने कई बैठकें कीं, लेकिन सभी बैठकें लंबित हैं।

इन बैठकों के दौरान किसान संगठन अपनी आवाज उठाते रहे और केंद्र पर पानी के मुद्दे पर पंजाब को धमकाने का आरोप लगाया। लेकिन अब जब किसान संगठनों ने अपनी मांगें मनवाने के लिए केंद्र सरकार के खिलाफ बड़ा आंदोलन शुरू कर दिया है, तो इन मांगों में पंजाब के लिए पानी की मांग शामिल नहीं की गई है। जबकि किसान नेता अच्छी तरह जानते हैं कि पंजाब के केंद्रीय भूजल बोर्ड द्वारा 2019 में 2017 तक किए गए सर्वेक्षण में यह दावा किया गया था कि मध्य पंजाब में जल स्तर 150 से 200 मीटर की गहराई तक पहुंच गया है। पंजाब के 146 ब्लॉकों में से 117 ब्लॉक आवश्यकता से अधिक पानी खींच रहे हैं और 13 अर्ध-खतरनाक और 3 खतरनाक स्थिति में हैं। रिपोर्ट के अनुसार, पंजाब में केवल 11.3 प्रतिशत ब्लॉक सुरक्षित क्षेत्र में हैं। 

रिपोर्ट के मुताबिक, 2029 तक पंजाब का भूजल स्तर 200 मीटर तक नीचे चला जाएगा और 2039 में 300 मीटर तक पहुंच जाएगा। ऐसे में किसानों के लिए बड़ी समस्या खड़ी हो जाएगी और खेती करना आसान काम नहीं रहेगा क्योंकि इस स्थिति में किसान को 1000 फुट गहरा बोर करना पड़ेगा जिसमें लाखों रुपए अतिरिक्त खर्च होंगे। गहरे ट्यूबवैल के लिए बड़ी बिजली की  मोटरें लगानी होंगी, जिससे बिजली की खपत भी बढ़ेगी और पानी के नमूने भी जांचने होंगे कि यह पानी खेती के लिए उपयुक्त है या नहीं।

पंजाब के किसान संगठनों को यह समझना चाहिए कि वे केंद्र सरकार से अन्य मांगें तो मनवा सकते हैं लेकिन अगर पंजाब के पास खेती के लिए पर्याप्त पानी नहीं होगा तो एम.एस.पी., पैंशन और अन्य मांगें किसी काम की नहीं रहेंगी और अगर पंजाब का एक छोटा किसान खेती नहीं कर पाएगा और उसे किसान होने का दर्जा नहीं मिलेगा तो वह स्वीकृत मांगों का लाभ नहीं ले पाएंगे। इसलिए किसान नेताओं और संगठनों की जिम्मेदारी है कि वे पंजाब के पानी के लिए कानूनी और राजनीतिक लड़ाई लड़ें और पंजाब की खेती को बचाने का प्रयास करें।

हालांकि, अब हरियाणा द्वारा राजस्थान को पानी देने के लिए किए गए नए समझौते से पंजाब का पानी का मामला स्वाभाविक रूप से मजबूत हो गया है और पंजाब को एक बड़ा तर्क मिल गया है कि जिस राज्य के पास अपना पानी दूसरे राज्य को देने की शक्ति है वह पंजाब के पास से अधिक पानी की मांग कैसे कर सकता है। यदि किसान संगठन इस जिम्मेदारी को पूरा नहीं कर सके, तो इतिहास उन्हें प्रसिद्ध शायर मुजफ्फर रज्मी द्वारा लिखित शे’र  ‘लम्हों ने खता की थी, सदियों ने सजा पाई’ की तर्ज पर याद रखेंगे। 

हजूर साहिब प्रबंधन कमेटी विवाद पंजाब के सिख नेताओं के लिए एक सबक है : सिख समुदाय के 5 तख्तों में से एक तख्त सचखंड श्री हजूर अबचल नगर साहिब की प्रबंधन समिति को बदलने की महाराष्ट्र सरकार की कोशिश ने सिख समुदाय के लिए एक बड़ी समस्या पैदा कर दी है। क्योंकि पहले से ही कई मुद्दों से घिरे देश के 5 तख्तों में से एक का प्रशासन इस बदलाव से सीधे सरकार के हाथों में आना था और सिखों के लिए इसे सहन करना बहुत मुश्किल था। 

तख्त श्री हजूर साहिब का प्रबंधन नांदेड़ सिख गुरुद्वारा सचखंड श्री हजूर अबचल नगर साहिब अधिनियम 1956 के तहत किया जाता है। इस अधिनियम के अनुसार, कुल 17 सदस्य, जिनमें आंध्र प्रदेश सरकार से एक-एक सदस्य और महाराष्ट्र सरकार से नांदेड़ के एक कलैक्टर और लोकसभा से 2 सिख सदस्य केंद्र सरकार द्वारा नामित होते हैं। 4 सदस्यों को एस.जी.पी.सी. द्वारा नामित किया जाता है, 4 सदस्यों को सचखंड हजूरी खालसा दीवान द्वारा नामित किया जाता है और एक सदस्य को चीफ खालसा दीवान अमृतसर द्वारा नामित किया जाता है। महाराष्ट्र के 7 जिलों से 3 सदस्य चुने जाते हैं। प्रस्तावित संशोधन के माध्यम से, नामांकित सदस्यों की संख्या 17 में से 12 कर दी गई। इस तरह, तख्त श्री हजूर साहिब का प्रशासन सीधे सरकार के नामित सदस्यों के अधीन आना था। 

इस कारण इस संशोधन का पूरे सिख समुदाय ने विरोध किया। लेकिन महाराष्ट्र की सिख संगत और एक सदस्य को मुख्य खालसा दीवान अमृतसर द्वारा नामित किया जाता है। महाराष्ट्र के 7 जिलों से 3 सदस्य चुने जाते हैं। प्रस्तावित संशोधन के जरिए 17 में से नामांकित सदस्यों की संख्या घटाकर 12 करने का प्रस्ताव किया गया। इस तरह तख्त श्री हजूर साहिब का प्रबंधन सीधे सरकार के नामित सदस्यों के अधीन आना था। इस कारण इस संशोधन का पूरे सिख समुदाय ने विरोध किया। 

लेकिन जिस तरह से महाराष्ट्र के सिख संघ ने एकजुट होकर विरोध मार्च निकाला, उसने सरकार को सोचने पर मजबूर कर दिया और सरकार को इस संशोधन को विधानसभा में पेश न करने की घोषणा करनी पड़ी। यह पंजाब के सिख नेताओं के लिए निश्चित रूप से एक सबक है क्योंकि महाराष्ट्र जहां सिखों की आबादी बहुत कम है, ने तो सरकार से उनकी मांग मान ली है, लेकिन पंजाब, जहां सिखों की संख्या सबसे ज्यादा है, वहां की सरकार ऐसा नहीं कर पाई है। उनके मुद्दों का समाधान करें। इसलिए मुद्दों को सुलझाने के लिए पंजाब के सिखों को एकता का पाठ सीखना होगा।-इकबाल सिंह चन्नी(प्रवक्ता भाजपा पंजाब)
 


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