गिरता जलस्तर : बारिश और बाढ़ के पानी का संरक्षण हो

punjabkesari.in Wednesday, Jul 19, 2023 - 04:53 AM (IST)

यदि अत्यधिक वर्षा होती है (हमें सूखे की स्थिति का भी सामना करना पड़ता है), तो कभी-कभी यह विनाश और बाढ़ का कारण बनती है। विभिन्न लबालब बांधों से भारी मात्रा में पानी छोडऩा पड़ता है। यह सारा पानी या तो बर्बाद हो जाता है या फिर समुद्र में चला जाता है, जिसका स्तर पहले से ही काफी ऊंचा है। इसके विपरीत, पंजाब और कुछ अन्य क्षेत्रों में हर साल जलस्तर नीचे जा रहा है, जो गंभीर चिंता का विषय है।

वास्तव में, बाढ़ ईश्वर का एक आनंदमय और छिपा हुआ उपहार है। हमें बुराई में से अच्छाई निकालनी है। बारिश का पानी अपने साथ बहुत सारे खनिज लाता है, जो भूमि को अधिक उपजाऊ बनाते हैं। हमें इसका उपयोग करने की आवश्यकता है। बाढ़ से भारी तबाही के बाद भी देश, राज्य और संबंधित क्षेत्र की अर्थव्यवस्था को फायदा होता है। जलस्तर बढ़ता है। नील नदी इसका उदाहरण है। 

सरकार द्वारा मतदाताओं को खुश और तुष्ट करने के लिए निरर्थक योजनाओं पर बहुत सारा पैसा खर्च किया जाता है। यदि वर्षा-संचयन प्रणाली, धरती में बोरिंग, सामान्य भूमि में कुएं और तालाब खोदने आदि की मदद से इस अतिरिक्त पानी को वापस धरती में डालने के लिए परियोजनाएं शुरू की जाएं, तो जलस्तर को बढ़ाया जा सकता है और बाढ़-आपदाओं की तीव्रता को कम किया जा सकता है, यदि टाला न जा सके। इस सब के लिए ज्यादा धन की आवश्यकता नहीं होगी। केवल 15-20 फुट की खुदाई के बाद धरती भारी मात्रा में पानी सोख सकती है। हम लोगों को प्रोत्साहित करके और सरकार को इसके लिए जागृत करके आने वाली पीढिय़ों को जल संरक्षण का उपहार दे सकते हैं। 

लोगों को कम पानी की खपत के लिए समझाना कठिन है, लेकिन अतिरिक्त पानी के संरक्षण के लिए समझाना तुलनात्मक रूप से आसान है। पंजाब के अधिकांश जिलों के लिए धान कभी भी उपयुक्त फसल नहीं थी। धान, यूकेलिप्टस (सफैदा) और चिनार धरती से अत्यधिक पानी खींचते हैं। कुछ जागृत लोग पहले दिन से ही इन पेड़ों की खेती के खिलाफ थे लेकिन लोग निहित स्वार्थ के लिए ऐसा करने से बाज नहीं आए। अब, जब हम पानी कम उपभोग करने और बचाने की बात करते हैं तो कोई ध्यान नहीं देता। 

एकमात्र संभावना और व्यवहार्यता यह है कि हम उन्हें इसके संरक्षण के लिए राजी कर सकें। मौजूदा ‘कच्चे’ तालाबों को समग्र रूप से चौड़ा और गहरा किया जा सकता है या बीच में 15-20 फुट गहरी खाई खोदी जा सकती है, जो पर्याप्त होगी और उद्देश्य को समान रूप से पूरा करेगी। नए तालाब सार्वजनिक भूमि पर भी खोदे जा सकते हैं। किसान खेतों में ‘कच्ची खुई’ (छोटे कुएं) खोद सकते हैं। मिट्टी की गुणवत्ता के आधार पर, केवल 3-4 फुट व्यास का और रेत शुरू होने पर 15-20 फुट गहरा ‘कच्चा’ कुआं अतिरिक्त पानी को सोखने, जज्ब और जमा करने में चमत्कार कर सकता है। 

यदि उचित देखभाल की जाए तो 3-4 फुट व्यास वाले कुएं के मामले में मिट्टी खिसकने की संभावना बहुत कम होती है। एकमात्र सावधानी यह बरतनी है कि इसमें किसी मवेशी या इंसान के गिरने से बचने के लिए इसके गिर्द बाड़ लगा दी जाए। मिट्टी को पकडऩे के लिए किनारों और चारदीवारी को ईंटों की केवल 2-3 कतारों की एक परत की आवश्यकता होती है। अधिक से अधिक, समय के साथ कुएं को भर दिया जाएगा और दबा दिया जाएगा, लेकिन आसपास की भूमि अधिक उपजाऊ हो जाएगी और तुलनात्मक रूप से नमीयुक्त और तर बनी रहेगी। उस स्थिति में, हम एक नए कुएं के लिए जा सकते हैं। इस गतिविधि के लिए बहुत कम खर्च की आवश्यकता होती है। इसे केवल तीन लोग आधे दिन में ही खोद सकते हैं। मनरेगा के तहत श्रमिक को इस परियोजना में प्रतिनियुक्त किया जा सकता है। 

किसान को शिक्षित, प्रोत्साहित किया जाना चाहिए और सबसिडी दी जानी चाहिए, जिसमें बहुत कम राशि शामिल हो। सरकार द्वारा नदियों को साफ करने के लिए बड़ी रकम वाली कई परियोजनाएं शुरू की गई हैं। इसके लिए सरकार को भी जगाया जा सकता है। मान लीजिए कि हम काफी समृद्ध हैं और हमारे पास ढेर सारा सोना, हीरे और हर कीमती व विलासितापूर्ण वस्तु है, लेकिन पीने के लिए पानी नहीं है, तो हमारे लिए सभी भौतिक चीजों का क्या मतलब होगा? मैं कोई विशेषज्ञ नहीं, बल्कि एक जागरूक नागरिक हूं। हो सकता है मेरी राय सही न हो, लेकिन आने वाली पीढिय़ों के व्यापक हित में और गिरते जलस्तर के वर्तमान परिदृश्य को देखते हुए, बरसात और बाढ़ के पानी के संरक्षण पर व्यापक काम करने की जरूरत है, जिसे अगर गंभीरता से नहीं लिया गया और ईमानदारी से हमारे सामयिक हित बारे में नहीं सोचा गया तो यह घातक साबित हो सकता है।-एस.के.मित्तल 
 


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