सब कुछ ‘राष्ट्र हित’ में ही था तो ...

punjabkesari.in Sunday, Feb 23, 2020 - 03:17 AM (IST)

16 फरवरी को वाराणसी में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संविधान के अनुच्छेद 370 को हटाने तथा नागरिकता संशोधन कानून को लागू करने के निर्णय पर बोलते हुए कहा कि इन निर्णयों को राष्ट्रीय हित में लिया गया, ये जरूरी थे। विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय दबावों के बावजूद इन निर्णयों पर हम खड़े हैं तथा उनके साथ निरंतर खड़े रहेंगे। इसमें सबसे जादुई शब्द मुझे ‘राष्ट्रीय हित’ लगा। इन्हें कोई यथार्थता नहीं चाहिए। यह तो अंतिम स्थिति की ओर संकेत करते हैं क्योंकि प्रधानमंत्री ने घोषणा की कि निर्णयों को राष्ट्रीय हित में लिया गया। वह ऐसी आशा करते हैं कि सभी तरह की आलोचना खत्म हो तथा सभी प्रकार की बहस पर भी विराम लगना चाहिए। 

मैंने भाजपा/राजग के पीछे के सालों की तरफ देखा तथा केन्द्र सरकार द्वारा लिए गए निर्णयों तथा कार्यों को गिनने की कोशिश की क्योंकि सरकार के दावे राष्ट्रीय हित में थे। यह सूची बेहद लंबी और विवादास्पद है। यहां पर मैं इसका संकलन करना चाहता हूं। 

नोटबंदी तथा जी.एस.टी.
नोटबंदी और जी.एस.टी. राष्ट्रीय हित में थे और सरकार बार-बार यह बात दोहराती रही है। आलोचकों का कहना है कि यह सबसे बड़ी स्मारकीय भूल थी और इसके घातक परिणाम थे। कृषि, निर्माण, खुदरा व्यापार तथा बेरोजगारी जैसी अर्थव्यवस्था के पैसे की मार झेल रहे सैक्टरों के सिस्टम से पैसे को चूस लिया गया। लघु तथा छोटे उद्यमियों को अपने व्यवसाय बंद करने पर मजबूर किया गया और हाल यह है कि ऐसे कुछ अभी तक बंद पड़े हैं। जिन्होंने अपने रोजगार खो दिए वे उसके बाद भी काफी समय तक बेरोजगार ही रहे। अब निर्णय इस बात का लेना है कि क्या वाकई में नोटबंदी राष्ट्र हित में थी या फिर इसके खिलाफ। 

जी.एस.टी. का कानून पास किया गया। सरकार के अनुसार यह भी राष्ट्रीय हित में था कि यह एक प्रशंसनीय तर्क होता यदि कानून ध्यानपूर्वक डिजाइन किया गया होता। दर एक उदारवादी दर थी, साफ्टवेयर तैयार था, प्रशासनिक मशीनरी प्रशिक्षित थी तथा वह भी तैयार थी। करीब दो वर्षों के बाद जी.एस.टी. संग्रह अनुमान से नीचे था। वायदे के मुताबिक राज्यों को मुआवजे दिए जाने के लिए मुआवजा सैस अपर्याप्त था। रिफंड भी सरकार तथा व्यवसायियों के बीच विवाद का विषय था। यह राष्ट्रीय हित में न होगा कि जी.एस.टी. को वापस लिया जाए। यह भी राष्ट्रीय हित में नहीं था कि वर्तमान डिजाइन तथा दरों के साथ दृढ़ रहा जा सके। इस कारण क्या यह राष्ट्रीय हित में है? 

अनुच्छेद 370 तथा एन.आर.सी.-सी.ए.ए.
अनुच्छेद 370 के इस्तेमाल से अनुच्छेद 370 से पीछा छुड़ाना था, ऐसा तर्क सरकार देती है। जम्मू-कश्मीर राज्य को तोड़ कर दो केन्द्र शासित प्रदेश बनाना राष्ट्रीय हित में था। 5 अगस्त 2019 से घाटी पर तालाबंदी करना भी राष्ट्रीय हित में था। बिना आरोप तीन मुख्यमंत्रियों को 6 माह के लिए हिरासत में रखा गया। उनको दो सालों के लिए और हिरासत में रखने हेतु नागरिक सुरक्षा एक्ट का आह्वान किया गया, यह भी राष्ट्रीय हित में था। यथास्थिति बनाने की याचिकाओं की सुनवाई को 7 माह के लिए रोकना भी राष्ट्रीय हित में था। यह सूची बड़ी लम्बी है और कश्मीर में ऐसा कोई भी न होगा जो इन बातों से सहमत हो। 

सरकार ऐसा दावा करती है कि असम के लिए एन.आर.सी. की रचना भी राष्ट्रीय हित में थी। 19,06,657 लोगों को विदेशी या अवैध आप्रवासी चिन्हित करना भी राष्ट्रीय हित में था। उन्हें ‘घुसपैठिया’ तथा 2024 तक उन्हें बाहर फैंकने की बात भी क्या राष्ट्रीय हित में थी। उनमें से 12 लाख से ऊपर लोगों की पहचान कर उन्हें विदेशी कहा गया, जोकि हिन्दू थे तथा राष्ट्रीय हित में नागरिकता कानून 1955 में संशोधन का द्वेषपूर्ण विचार भी राष्ट्रीय हित में था। 72 घंटों में एक कानून को ड्राफ्ट तथा पास किया गया जिससे गैर-मुस्लिमों को रहने की अनुमति मिलेगी जबकि मुसलमानों को देश छोडऩा पड़ेगा। वह भी राष्ट्रीय हित में था। ऐसे राष्ट्रीय हितों में लिए गए निर्णयों ने पूरे देश में अभूतपूर्व उथल-पुथल मचा दी। राष्ट्रीय हित में 15 दस्तावेजों पर आधारित जुबेदा बेगम के भारतीय नागरिक होने के दावे को भी नकार दिया। 

देशद्रोह तथा बजट 
* नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ जिन्होंने आवाज उठाई उन पर देशद्रोह का तमाचा लगाया गया। क्या ये सब राष्ट्रीय हित में था? शांतमय ढंग से प्रदर्शन कर रहे लोगों पर लाठियां तथा पानी की बौछारें व गोलियां बरसाना भी क्या राष्ट्रीय हित में था। (केवल उत्तर प्रदेश में ही 23 लोगों की हत्या हुई) एक नाटक के दौरान सी.ए.ए. की आलोचना कर रहे एक शिक्षक तथा एक अभिभावक को हिरासत में लेना भी राष्ट्रीय हित में था।
*चुनावी रैलियों में चिल्ला कर बोलना कि ‘गोली मारो’ तथा एक मुख्यमंत्री को ‘आतंकी’ बुलाना भी क्या राष्ट्रीय हित में था। भाजपा तथा ‘आप’ में चुनावी जंग को भारत-पाक युद्ध की संज्ञा देना क्या राष्ट्रीय हित को बचाना था। 
*160 मिनटों के बजट भाषण को पढऩा राष्ट्रीय हित में था? कार्पोरेट टैक्स दर में अनुमानित 1,45,000 करोड़  की राशि कुछ कार्पोरेट्स को राहत के तौर पर देना भी क्या राष्ट्रीय हित में था। कृषि, खाद्य सुरक्षा, मिड-डे मील स्कीम, स्किल डिवैल्पमैंट, आयुष्मान योजना इत्यादि पर खर्चा घटाना (संशोधित अनुमान) भी 
राष्ट्रीय हित में था। बेरोजगारी बढऩे की रिपोर्ट देने वाले एन.एस.एस. के सर्वे को दबाना (2017-18 में 6.1 प्रतिशत) तथा उपभोग में गिरावट (2017-18 में 3.7 प्रतिशत) भी क्या राष्ट्रीय हितों की रक्षा करने हेतु था। जागरूकता फैलाने के लिए नारेबाजी करना भी क्या राष्ट्रीय हित में था। 
*नीरव मोदी, मेहुल चोकसी, विजय माल्या, जतिन मेहता, संदेश्रा ब्रदर्स तथा अन्य को चुपके से देश से 
बाहर जाने की अनुमति देना भी क्या राष्ट्रीय हित में था। यू.के. सरकार पर ललित मोदी के निर्वासन को लेकर दबाव न डालना भी तो राष्ट्रीय हित में था। 
*राष्ट्रीय हित की सूची बहुत लंबी है। राष्ट्रीय हित में सरकार कई निर्णय लेने पर अपना समय गंवा रही है। यह समय ही बताएगा, इससे पहले कि जी.डी.पी. 5 ट्रिलियन डालर की हो जाए तथा भारत विश्व की सबसे महत्वपूर्ण शक्ति बन जाएगा।-पी. चिदम्बरम


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