भावनात्मक मुद्दा है शराबबंदी!

punjabkesari.in Sunday, Apr 09, 2017 - 08:51 PM (IST)

यह बताने की जरूरत नहीं है कि नशा अच्छी चीज नहीं है। हर मत, हर समाज, हर धर्म इसे बुरा मानता है। यह जहां सेहत को नुकसान पहुंचाता है, परिवारों की तबाही का कारण बनता है, वहीं सरकार की आमदनी का अहम स्रोत होने के साथ ही वोटरों को खुश रखने का भी महत्वपूर्ण जरिया है। बहुत से समाजों में तो शराब धार्मिक अनुष्ठानों का जरूरी हिस्सा होती है।

संभवत: यही कारण रहे होंगे कि हमारे संविधान निर्माताओं ने भी शराब आदि पर संविधान में सीधे तौर पर कोई पाबंदी न लगाते हुए अनुच्छेद 47 के तहत राज्य के नीति-निर्देशक सिद्धान्तों में इसे रखा, जिसमें कहा गया है कि राज्य कोशिश करेगा कि वह नशा पैदा करने वाले पेय अथवा अन्य पदार्थों पर चिकित्सीय उद्देश्यों को छोड़कर पाबन्दी लगाए। इसी उद्देश्य से हमारे यहां अलग-अलग राज्य समय-समय पर शराब बंदी लागू करते रहे हैं...

हरियाणा में बंसीलाल ने मुख्यमंत्री बनने पर जुलाई 1996 में शराबबंदी लागू की थी। इसका मुख्य कारण महिलाओं की भारी मांग थी कि प्रदेश में शराब को बंद किया जाए। चुनावों के पहले इसे लेकर काफी आंदोलन भी हुए, जिन्हें देखते हुए बंसीलाल ने महिलाओं के वोट लेने के लिए अपने चुनाव घोषणापत्र में वादा किया कि उनकी सरकार बनते ही शराब पर पाबंदी लगाई जाएगी। इस पर महिलाओं ने उन्हें बड़ी संख्या में वोट भी दिए। अत: मुख्यमंत्री बनते ही अपना वादा पूरा करते हुए बंसीलाल ने सबसे पहले यही कदम उठाया, लेकिन दो साल में ही 1 अप्रैल, 1998 को उन्हें अपना फैसला वापस भी लेना पड़ा। इसके पीछे के कई कारणों में एक कारण उन्हीं महिलाओं की नाराजगी भी थी, जिन्होंने शराबबंदी के लिए आंदोलन चलाए थे। पंजाब, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, चंडीगढ़, उत्तराखण्ड तथा राजस्थान से घिरे हरियाणा के लगभग सारे जिलों की सीमाएं किसी न किसी राज्य से लगती हैं, जहां शराब खुली हुई थी। नतीजा हुआ कि तस्करी धड़ल्ले से शुरू हो गई।

शराब आने के रास्ते इतने ज्यादा थे कि यदि पुलिस रोकना भी चाहे तो नहीं रोक सकती थी। तस्करों ने अपने काम के लिए स्कूली बच्चों तक का इस्तमाल शुरू कर दिया। ऐसे मामले भी सामने आए कि स्कूली बच्चों के बैग से बोतलें और शराब के पाउच बरामद होने लगे। महिलाओं ने शराबबंदी के पहले आंदोलन इसलिए चलाए थे कि उनके पति व घर के अन्य मर्द शराबखोरी ज्यादा कर रहे थे, लेकिन शराबबंदी के बाद इन्हीं महिलाओं की परेशानी और बढ़ गई। यों कहा जाए कि पुरानी वाली खत्म नहीं हुई, नई और शुरू हो गई।

पहले तो पति शराब पीकर घर आ जाते थे, लेकिन शराबबंदी लागू होने पर सिलसिला ये शुरू हो गया कि वे दफ्तर से छूटकर सीधे राज्य की सीमा पर जाते थे और शराब पीकर वहीं सो जाते थे। अगले दिन वहीं से दफ्तर और शाम को वापस ठेके पर। हरियाणा से लगने वाली दूसरे राज्यों की सीमाओं पर तमाम ठेके खुल गए। वहां न केवल खाने-पीने का बढिय़ा इंतजाम हो गया, बल्कि ठेके वालों ने सोने के लिए चारपाइयों, शौच और नहाने-धोने के भी बढिय़ा इंतजाम कर दिए। हरियाणा की पुलिस कुछ कर इसलिए नहीं सकती थी, क्योंकि ये ठेके और जगह पड़ोसी राज्यों की सीमा में थे। कहने का अर्थ है कि पियक्कड़ों ने घर जाना ही बन्द कर दिया।

महिलाओं के लिए ये स्थिति पहले वाली से ज्यादा खतरनाक थी। ऐसे में नाराजगी तो होनी ही थी। इसके अलावा कानून-व्यवस्था के हालात पर भी असर पडऩे लगा, शराब का कारोबार तो रुका नहीं, सरकार की आमदनी और खत्म हो गई, सामाजिक तनाव बढऩे लगा। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि ऐसा कुछ भी नहीं हुआ, जिसे शराबबंदी की उपलब्धि के रूप में गिनाया जा सके। आखिरकार, अगले चुनाव में उन्हीं महिलाओं ने बंसीलाल सरकार को बाहर का रास्ता दिखाया, जिन्होंने उसे सत्ता दिलाई थी। नवम्बर, 2015 में बिहार ने भी शराबबंदी का फैसला किया है। क्या वहां सही रूप में शराबबंदी सफल हो पाई? इसका पता कुछ समय बाद ही चलेगा। तमिलनाडु में भी कई बार शराब को बंद किया गया और फिर खोला गया। वर्ष 2001 का सबसे ताजा उदाहरण है, जब शराबबंदी को खत्म करते हुए इस कारोबार को सरकारी निगम को सौंपा गया। महाराष्ट्र में 1948 से 1950 तक और फिर 1958 से शराबबंदी रही। गुजरात को तो 'ड्राई स्टेटस ही कहा जाता है। मई, 1960 से वहां शराब पर पाबंदी है, लेकिन क्या वास्तव में वहां शराब बंद है?

केरल में 24 अगस्त, 2014 को शराब बंद की गई। वहां के वर्तमान मुख्यमंत्री पिनारायी विजयन ने 2016 में कहा कि अध्ययनों से पता चला है कि शराब पर पूर्ण पाबंदी सम्भव नहीं है, अत: उनकी सरकार शराब सेवन को नियंत्रित करने की कोशिश करेगी। लक्ष्यद्वीप अकेला केन्द्र शासित राज्य है, जहां शराबबंदी है। समुद्र से घिरे इन टापुओं पर हो सकता है कि शराबबंदी सफल हो लेकिन इस बारे में निश्चित रूप से कोई जानकारी नहीं है। नागालैंड में 1989 से शराबबंदी लागू है लेकिन वहां आसानी से मिलती है। आंध्र प्रदेश में शराब बंद करके कई बार खोली जा चुकी है। इनके अलावा भी कई राज्य हैं जहां शराब को बंद किया गया लेकिन फिर बाद में खोल दिया गया। इससे साफ हो जाता है कि शराबबंदी व्यावहारिक के बजाय भावनात्मक मुद्दा ज्यादा है।

पंजाब में समस्या दूसरे किस्म की है। वहां नशे की शिकायतें बहुत अधिक हैं, लेकिन अभी तक किसी सरकार ने यह कोशिश नहीं की कि शराब को बंद करे। पंजाब में शराब से ज्यादा दूसरे और अधिक घातक नशों का चलन ज्यादा है इसलिए उसका दोषारोपण शराब पर कम ही होता है। वहां तो उल्टे सरकार ने अपने कुछ राजमार्गों को डीनोटिफाई किया है, ताकि उन पर मौजूद ठेकों, होटलों, बार व पब को हाल के सुप्रीम कोर्ट के फैसले की जद से बाहर किया जा सके।

1. हरियाणा में क्या हुआ था?--- जुलाई, 1996 में शराबबंदी लागू हुई थी। शराब के शौकीन दफ्तर से सीधे राज्य की सीमा पर जाते थे और शराब पीकर वहीं सो जाते थे 2. पंजाब की समस्या क्या है? -- अभी तक किसी सरकार ने यह कोशिश नहीं की कि शराब को बंद करे। शराब से ज्यादा दूसरे और अधिक घातक नशों का चलन ज्यादा 3. केरल के सीएम ने क्या कहा? ---विजयन ने कहा, अध्ययनों से पता चला है कि शराब पर पूर्ण पाबंदी संभव नहीं, अत: सरकार शराब सेवन नियंत्रित करने की कोशिश करेगी ---जिंदगी पहले या रोजगार?


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News