चुनाव परिणाम दिखाएगा कि ऊंट किस करवट बैठता है

punjabkesari.in Monday, May 27, 2024 - 05:25 AM (IST)

चुनाव के बाद का परिदृश्य विजेताओं और हारने वालों के सरल द्वंद्व से बहुत दूर है। यह एक जटिल और पेचीदा राजनीतिक परिदृश्य है जिसमें अनिश्चितता और संभावित परिणाम अभी सामने आने बाकी हैं। चुनाव के बाद का परिदृश्य केवल अपेक्षित परिणामों के बारे में नहीं है। यह अप्रत्याशित गठबंधनों की संभावना, सत्ता की गतिशीलता में नाटकीय बदलाव और नई राजनीतिक ताकतों के उद्भव के बारे में है। एक संभावित राजनीतिक पुनर्गठन चुनाव के बाद के राजनीतिक परिदृश्य को नया आकार दे सकता है। इससे अप्रत्याशित गठबंधन, नाटकीय सत्ता परिवर्तन और नई राजनीतिक ताकतों का उदय हो सकता है जो भारतीय राजनीति के भविष्य के बारे में प्रत्याशा पैदा कर सकता है। 

चुनाव में भाजपा की जीत कमोबेश तय है। दो संभावित परिदृश्यों पर बहस चल रही है, जिनमें से प्रत्येक के अपने निहितार्थ हैं। एक परिदृश्य में भाजपा के लिए भारी जीत की कल्पना की गई है, यहां तक कि 400 का आंकड़ा भी पार कर लिया जाएगा। दूसरा कम सीटों के साथ अधिक मामूली परिणाम का सुझाव देता है। भाजपा को भारी जीत मिल सकती है। संभावित रूप से राजनीतिक ताकतों को पुन: संगठित करने का मार्ग प्रशस्त होगा। यदि भाजपा 2019 के चुनाव की तुलना में कम सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरती है, तो वह अन्य दलों की मदद से सरकार बनाएगी। यह उम्मीद मुख्य रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा समर्थकों के अटूट विश्वास पर आधारित है। कांग्रेस पार्टी द्वारा लिए गए रणनीतिक निर्णय, जैसे चुनाव लडऩे वाले निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या कम करना, भारतीय राजनीति की गहराई और जटिलता को उजागर करते हैं। प्रत्येक कदम एक बड़े लक्ष्य की ओर एक सुविचारित कदम है। 

अगर भाजपा सत्ता में लौटती है तो भारतीय राजनीति में एक प्रमुख खिलाड़ी, ‘इंडिया’ गठबंधन सिकुड़ सकता है। पंजाब में आम आदमी पार्टी (आप) और पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस ने गठबंधन सहयोगियों की सांझेदारी में शामिल होने से परहेज करने का विकल्प चुना है, जिससे कांग्रेस की स्थिति कमजोर हो रही है। भाजपा की जीत से ‘इंडिया’ गठबंधन की रणनीति का पुनर्मूल्यांकन हो सकता है, कुछ सांझेदार भाजपा के साथ जुडऩा चुन रहे हैं और अन्य नई सांझेदारी या स्वतंत्र रास्ते तलाश रहे हैं। यदि भाजपा अधिक सीटें हासिल करती है, तो छोटी पाॢटयां गठबंधन में शामिल होने के लिए आगे आ सकती हैं। अपने राजनीतिक हितों को सुरक्षित करने के लिए विजयी पक्ष के साथ जुडऩे की छोटी पार्टियों की इच्छा से प्रेरित यह महत्वपूर्ण घटनाक्रम, चुनाव के बाद के परिदृश्य को आकार दे सकता है। कुछ लोग मोदी का विरोध करना चाहते हैं, जबकि अन्य गठबंधन को असफल प्रयासों के रूप में देखते हैं। 

दूसरे, भले ही भाजपा को कम सीटें मिलें, पार्टी विजेता के साथ जुडऩे के इच्छुक अन्य दलों का समर्थन सुरक्षित कर सकती है। इससे नवगठित ‘इंडिया’ गठबंधन भी खत्म हो सकता है। इस गठबंधन में कई अच्छे दोस्त हैं जो केवल अपने स्वार्थ को देखते हुए किसी भी पार्टी के साथ गठबंधन कर सकते हैं। अधिक सीटें सुरक्षित करने या अन्य दलों का समर्थन हासिल करने की भाजपा की क्षमता राजनीतिक परिदृश्य पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकती है, जिससे संभावित रूप से राजनीतिक ताकतों का पुनर्गठन हो सकता है। 

हालांकि, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि ये संभावित परिदृश्य हैं और पुष्ट परिणाम नहीं हैं। चुनाव परिणाम सहित विभिन्न कारक इसे प्रभावित कर सकते हैं। एन.डी.ए. सबसे बड़े दल के रूप में उभर सकता है, जिससे सरकार बन सकती है। वैकल्पिक रूप से यह असफल हो सकता है और गठबंधन सरकार बनाने के लिए अन्य दलों से समर्थन मांग सकता है। भारतीय राजनीति में एक प्रमुख खिलाड़ी, एन.डी.ए. बहुमत हासिल करके या सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरकर सरकार बनाएगा। भले ही एन.डी.ए. पिछड़ जाए, लेकिन वह नवीन पटनायक, जगन मोहन रैड्डी, के.चंद्रशेखर राव, मायावती जैसे अन्य प्रभावशाली नेताओं के नेतृत्व वाली पार्टियों से समर्थन हासिल करने की कोशिश करेगा। मोदी ने नवीन पटनायक की तारीफ की, जो इस बात का संकेत है। भाजपा ने शिअद, शिव सेना, जद (यू) आदि जैसे महत्वपूर्ण सहयोगियों के जाने का भी अनुभव किया है। अब, जद (यू) और  तेदेपा वापस आ गए हैं। उदाहरण के लिए एन.डी.ए. की पूर्व सहयोगी तमिलनाडु की अन्नाद्रमुक चुनाव के बाद अपने प्रदर्शन के आधार पर एन.डी.ए. में फिर से शामिल हो सकती है। 

यहां तक कि सत्तारूढ़ द्रमुक भी चुनाव के बाद के परिदृश्य पर विचार कर रही है। पार्टी एन.डी.ए. और पी.एम. मोदी के साथ मजबूत कामकाजी रिश्ते की जरूरत को पहचानती है। ये संभावित गठबंधन और सत्ता की गतिशीलता में बदलाव चुनाव के बाद के परिदृश्य पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकते हैं। 4 जून के चुनाव परिणाम दिखाएंगे कि राजनीति का ऊंट किस करवट बैठता है। वे यह भी संकेत देंगे कि क्या भाजपा अपनी हैट्रिक के साथ और अधिक अहंकारी हो जाएगी?-कल्याणी शंकर
 


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