कृषि कानूनों को निरस्त करने के आर्थिक व राजनीतिक मायने

punjabkesari.in Sunday, Nov 21, 2021 - 04:41 AM (IST)

एक हैरानीजनक कदम उठाते हुए, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की कि सरकार संसद के शीतकालीन सत्र में कृषि कानूनों को निरस्त कर देगी। मोदी ने कहा कि सरकार किसानों के लिए एक नया पैकेज लाने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों के प्रतिनिधियों, कृषि-विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों की एक समिति का गठन करेगी। उन्होंने अपनी घोषणा करने के लिए गुरुपर्व के अवसर को चुना। क्या यह रणनीतिक वापसी है या आत्मसमर्पण? निर्णय के आर्थिक और राजनीतिक रूप से संभावित निहितार्थ क्या हैं? 

जहां तक कृषि का सवाल है, यह लगभग एक दशक या उससे भी अधिक समय से जिस रास्ते पर चल रही है, उस पर चलती रहेगी। मोदी सरकार के पहले 7 वर्षों में कृषि-जी.डी.पी. वृद्धि 3.5 प्रतिशत प्रतिवर्ष रही है, मनमोहन सिंह सरकार के पहले 7 वर्षों के समान। इस प्रवृत्ति के जारी रहने की उम्मीद है, यद्यपि वर्षा के पैटर्न के आधार पर कृषि-जी.डी.पी. में मामूली बदलाव हो सकते हैं। खाद्य सबसिडी बढ़ती रहेगी और बड़े पैमाने पर रिसाव होगा। उत्तर-पश्चिमी राज्यों में भूजल स्तर घटता रहेगा और मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड पर्यावरण को प्रदूषित करती रहेंगी। कृषि-बाजारों में धांधली जारी रहेगी और कृषि सुधार आने वाले कुछ समय के लिए मायावी बने रहेंगे, जब तक कि वादा की गई समिति अधिक सार्थक समाधान नहीं लाती। 

एन.एस.ओ. के नवीनतम स्थिति आकलन सर्वेक्षण से पता चलता है कि भारत में कृषक-घरों की औसत आय 2018-19 में प्रति माह केवल 10,218 रुपए थी। आज की कीमतों में अनुवाद करें, और वास्तविक आय में लगभग 3.5 प्रतिशत प्रति वर्ष की वृद्धि को लागू करते हुए, कृषक-घरों की औसत आय आज लगभग 13,000 रुपए होगी। पी.एम.-किसान योजना के तहत प्रति माह 500 रुपए और जोड़ें और यह मोटे तौर पर हमारे कार्यबल के सबसे बड़े वर्ग (लगभग 45 प्रतिशत) के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में पारिवारिक मासिक आय का स्तर है, जो कि कृषि में लगा हुआ है। यह बहुत खुशी की स्थिति नहीं है और ग्रामीण आय को निरंतर बढ़ाने के लिए सभी उपाय किए जाने की आवश्यकता है। 

यह देखते हुए कि औसत जोत का आकार सिर्फ 0.9 हैक्टेयर (2018-19) है और वर्षों से सिकुड़ रहा है, एक किसान मूल मुख्य उपजों के उत्पादन से जो आय अर्जित कर सकता है, उसका अनुमान लगाना कठिन नहीं है। जब तक कोई उच्च मूल्य वाली कृषि के लिए नहीं जाता, जहां किसी को रसद, भंडारण, प्रसंस्करण, ई-कॉमर्स और डिजिटल प्रौद्योगिकियों में निजी निवेश के माध्यम से खेत से कांटे तक कुशल कामकाजी मूल्य शृंखला की आवश्यकता होती है, किसानों की आय में बहुत अधिक वृद्धि नहीं हो सकती। इसमें कोई संदेह नहीं कि यह क्षेत्र उत्पादन के साथ-साथ इनपुट के विपणन में सुधारों के लिए रो रहा है, जिसमें भूमि पट्टा बाजार और सभी इनपुट- सब्सिडी-उर्वरक, बिजली, ऋण और कृषि मशीनरी का प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण शामिल है। 

हालांकि प्रधानमंत्री के इस ऐलान का सबसे दिलचस्प असर राजनीतिक होने वाला है। चर्चा है कि इस सामरिक ‘पीछे हटने’ के पीछे एक राजनीतिक जुआ है। इस बात की प्रबल संभावना है कि भाजपा पूर्व मुख्यमंत्री अमरेन्द्र सिंह के साथ हाथ मिलाए, उन्होंने इस बारे में मीडिया में खुलकर बात की है, और पंजाब में सत्ता वापस जीतने के लिए उनके साथ काम करे। पंजाब कांग्रेस के भीतर की उथल-पुथल इसमें भाजपा के काम आ सकती है। 

दूसरी संभावना यह है कि पार्टी पंजाब में अकालियों के साथ अपने टूटे हुए समीकरण को सुधार सकती है। पंजाब में आने वाले दिनों में दिलचस्प नतीजे सामने आएंगे। लेकिन कुल मिलाकर, अगर पंजाब में कांग्रेस को सत्ता से हटा दिया जाता है, और भाजपा के समर्थन से राज्य में एक और पार्टी सत्ता में आती है तो मोदी को लग सकता है कि कृषि कानूनों पर उनकी रणनीतिक वापसी ने उन्हें अच्छी तरह से वापस भुगतान किया है। 

हालांकि, यू.पी. के चुनाव में भाजपा का दांव पंजाब से कहीं ज्यादा है। कृषि सुधारों पर यू-टर्न का उद्देश्य राकेश टिकैत के उदय को रोकना हो सकता है। यह कहना मुश्किल है कि भाजपा पश्चिमी यू.पी. में इस लक्ष्य को हासिल कर पाएगी या नहीं, लेकिन एक बात तय है कि इस ‘जीत’ से आंदोलन करने वाले किसान नेता और विपक्षी दल निश्चित रूप से उत्साहित होंगे। किसान नेता पहले से ही 23 कृषि जिंसों के लिए एम.एस.पी. की कानूनी गारंटी की मांग कर रहे हैं। वस्तुओं की एक बड़ी संख्या शामिल करने के लिए उनकी मांग बढ़ सकती है। इसी तरह, सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों के निजीकरण सुधारों को रोकने की मांग हो सकती है, उदाहरण के लिए, एयर इंडिया, या ऐसे मामले में किसी अन्य सुधार को रोकने के लिए। 

परिणामस्वरूप आॢथक सुधार धीमे होने की संभावना है, जो विकास को गति देने के लिए बेहद जरूरी हैं। इसकी बजाय हम राज्यों के चुनावों में मुफ्त उपहारों की बौछार देख सकते हैं। इसके बाद 2024 में आम चुनाव से पहले और भी मुफ्त उपहार मिल सकते हैं। यह प्रतिस्पर्धी लोकलुभावनवाद गरीबों को अल्पावधि में कुछ राहत दे सकता है, जिसके वे हकदार हैं, महामारी के कारण बुरी तरह से पीड़ित हैं, लेकिन इस संबंध में सीमा से बाहर जाने से निवेश और इस तरह विकास और रोजगार सृजन धीमा हो सकता है।-अशोक गुलाटी 


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