पानी में डूब रहीं सांसें, उठाने होंगे कदम

punjabkesari.in Saturday, Aug 05, 2023 - 05:29 AM (IST)

पिछले दिनों मध्यप्रदेश के देवास में डूब रहे एक व्यक्ति को बचाने के लिए इंस्पैक्टर राजाराम वास्कले की भी जान चली गई। बीते हफ्ते ही उत्तर प्रदेश के उन्नाव नदी में नहाने गए 2 दोस्त तेज बहाव की चपेट में आ गए। जुलाई महीने में ही बिहार के भोजपुर स्थित सीहान गांव में नदी में डूबने से जान गंवाने वाले 2 युवकों के घर में मातम पसरा है। उत्तराखंड के देवप्रयाग में झील में नहाने गए युवक की डूबने से जीवनलीला समाप्त हो गई। बेंगलुरु के रामनाथपुरा झील में जरा सी लापरवाही में 4 दोस्तों को जान से हाथ धोना पड़ा। महीने भर में डूबने से होने वाली मौतों की ये चंद घटनाएं हैं। देश में ऐसा शायद ही कोई दिन हो जब डूबने से सांसों के थमने की खबरें न मिलती हों। नदी, नाले, तालाब और झील से आए दिन शव बरामद किए जाते हैं। इन हादसों में इंसानी लापरवाही सामने आती है। मरने वालों में युवा और बच्चे सबसे अधिक होते हैं। 

विश्व स्वास्थ्य संगठन :  डब्ल्यू.एच.ओ. की एक रिपोर्ट के मुताबिक डूबने की वजह से दुनिया भर में सालाना पौने 4 लाख लोगों की जान जाती है। डब्ल्यू.एच.ओ. का यह भी मानना है कि डूबने से जुड़े अधिकांश पीड़ित हॉस्पिटल नहीं पहुंच पाते। ऐसे में मृतकों की संख्या और अधिक है। देश में किसी भी प्राकृतिक व मानव जनित आपदा के मुकाबले यह भयावह शक्ल ले चुकी है। राज्यों से मिलने वाले आंकड़े इसकी तस्दीक करते हैं। बिहार में 2021 में 1200 से अधिक मौतें डूबने की वजह से हुई हैं। पिछले साल ओडिशा में 1476 लोगों को जान गंवानी पड़ी। राजस्व एवं आपदा प्रबंधन की स्थायी समिति ने बताया है कि किसी भी प्राकृतिक आपदा के मुकाबले डूबने से होने वाली मौतों में इजाफा हुआ है। बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों में डूबने से होने वाली मौत को राज्य आपदाओं की श्रेणी में रखा गया है। ग्रामीण इलाकों में नदियों, झील, कुओं, घरेलू जल भंडार में सबसे अधिक ऐसे हादसे होते हैं। 

स्टंट और लापरवाही बन रही जानलेवा : विश्व स्वास्थ्य संगठन ने डूबने से होने वाली मौतों में बच्चों की मृत्यु के 10 बड़ी वजहों में एक माना है। ऐसी घटनाओं के शिकार सबसे अधिक 5 से 14 साल के बच्चे होते हैं। इनमें अधिकांश हादसों के पीछे लापरवाही सबसे बड़ी वजह होती है। बच्चे तैराकी, मौज-मस्ती और स्टंट के चक्कर में तेज बहाव में चले जाते हैं। बरसात के दिनों में ऐसे हादसे और अधिक बढ़ जाते हैं। चूंकि मानसून की वजह से नदी-नाले उफान पर होते हैं। ग्रामीण इलाकों में स्थित वाटर बॉडीज के पास एहतियात और सुरक्षा के अमूमन कोई उपाय नहीं होते हैं। स्थानीय पुलिस और पंचायतें जागरूकता के मोर्चे पर बिल्कुल भी गंभीर नहीं होतीं। हालांकि इसके पीछे मानव संसाधन की कमी भी बड़ी चुनौती है। 

ऐसी घटनाओं में अक्सर देखने में आता है कि मदद के लिए आगे आने वाले भी हादसे का शिकार हो जाते हैं। चूंकि उनके पास राहत कार्यों से जुड़ा कौशल नहीं होता। जब तक स्थानीय पुलिस और अमला पहुंचता है तब तक काफी देर हो जाती है। नाव में जरूरत से अधिक सवारियां भरने और लापरवाहीपूर्वक चलाने से भी कई बार बड़े हादसे होते हैं। डूबने की घटनाओं में सबसे पहले स्थानीय पुलिस और राजस्व अमला मदद के लिए आगे आता है। ऐसे में सबसे पहले उन्हें प्रशिक्षित करना होगा। 

बचाव के उपाय : जल जनित हादसों से बचने के लिए नदी, तालाब, झील व अन्य वॉटर बॉडीज में पक्के घाट और बैरियर बनाए जाएं। नहर और झील के किनारे फैंसिंग अनिवार्य रूप से होनी चाहिए। जल निकाय के पास खतरे से जुड़ी सूचनाएं सरल शब्दों में स्थानीय भाषा में लिखी हों। कई बार हादसे के वक्त स्थानीय पुलिस और राहत दल का नंबर न होने से समय पर मदद नहीं मिल पाती। स्कूल व स्थानीय महाविद्यालयों को आपदा प्रबंधन कार्यक्रम से जोड़कर ऐसे हादसों में जनहानि कम की जा सकती है। खास तौर पर एन.सी.सी. जैसे ट्रेङ्क्षनग प्रोग्राम इसमें काफी मददगार होंगे। स्थानीय पुलिस और पंचायतों को आपदा प्रबंधन के लिए पर्सनल फ्लोटेशन डिवाइस, लाइफ जैकेट तथा अन्य जरूरी वस्तुओं की उपलब्धता सुनिश्चित की जानी चाहिए। राष्ट्रीय स्तर पर एक वाटर सेफ्टी प्लान होना चाहिए। 

बंगलादेश, थाईलैंड और वियतनाम ने ऐसे हादसों पर रोक लगाने के लिए ग्रामीण इलाकों में न्यूनतम प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किया है। चूंकि इस तरह के हादसे सबसे अधिक निम्न और मध्यम आय वाले देशों में होते हैं। ऐसे में यूनिसेफ और डब्ल्यू.एच.ओ. जैसी संस्थाएं डूबते बचपन को बचाने के लिए इस क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय पहल को मजबूती दे सकती हैं।-अरविंद मिश्रा


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