अमीरों को मत खाओ, इससे बाकियों को नुकसान होगा

punjabkesari.in Saturday, Jun 01, 2024 - 05:41 AM (IST)

24 मई को, थॉमस पिकेटी की वल्र्ड इनइक्वलिटी लैब ने अपने पहले प्रकाशित पेपर, ‘इंकम एंड वैल्थ इनइक्वलिटी इन इंडिया, 1922-2023 द राइज ऑफ द बिलियनेयर राज’ का अनुवर्ती नोट जारी किया। भारत में चरम असमानताओं से निपटने के लिए एक संपत्ति कर पैकेज का प्रस्ताव नोट में दिखाई दिया। 10 करोड़ से अधिक की शुद्ध संपत्ति पर 2 प्रतिशत कर लगाने और समानता में वृद्धि की समस्या से निपटने के लिए 33 प्रतिशत विरासत कर लगाने की वकालत यह नोट करता है। शिक्षा, स्वास्थ्य और कल्याण कार्यक्रमों पर खर्च करने के लिए अतिरिक्त संसाधन उत्पन्न करना भी इसकी अन्य विशेषताएं हैं। 

अध्ययन का अनुमान है कि यह उपाय वयस्क आबादी के केवल 0.4 प्रतिशत को प्रभावित करेगा, जबकि सकल घरेलू उत्पाद का 2.73 प्रतिशत या लगभग 9 लाख करोड़ रुपए के अतिरिक्त संसाधन पैदा करेगा। इसने अंतरजातीय असमानताओं पर भी प्रकाश डाला। यह इंगित करते हुए कि भारत में एच.एन.आई. ज्यादातर उच्च जातियों से संबंधित हैं और इसलिए यह उपाय सामाजिक न्याय के साथ जोड़ा जाएगा। कई देशों ने इन करों के माध्यम से अमीरों पर कर लगाने का प्रयास किया है, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। वे मूल रूप से सरल आर्थिक तर्क के विरुद्ध काम करते हैं और उनके संग्रह पर अनुपातहीन राशि खर्च की जाती है और इससे कर चोरी आसान होती है। धन का आकलन करना कठिन है और इसे आसानी से कृषि या रियल एस्टेट में छिपाया जा सकता है। कर भी उद्यम को हतोत्साहित करते हैं और पूंजी के पलायन को बढ़ावा देते हैं जिससे विकास प्रभावित होता है। 

भारत में 1967 से वित्त वर्ष 2015 तक धन कर लगाया गया था जब इसे अधिभार से बदल दिया गया था, जो अब एच.एन.आई. द्वारा भुगतान किए गए आयकर पर 10 प्रतिशत से 25 प्रतिशत तक है, यदि उनकी कर योग्य आय नई कर व्यवस्था के तहत 50 लाख से अधिक है। संपत्ति कर अधिनियम 1957 के तहत व्यक्तियों और कॉरपोरेट्स पर 30 लाख से अधिक की शुद्ध संपत्ति पर 1 प्रतिशत कर लगाया जाता है, जिसमें भूमि और घर, फर्नीचर, परिवहन, आभूषण और 150,000 से अधिक नकदी शामिल है, इसके अलावा पति या पत्नी और बच्चों की हस्तांतरित संपत्ति भी शामिल है। वित्त वर्ष 2015 में, संपत्ति कर से 12 लाख के कुल कर राजस्व में से केवल 1,086 करोड़ रुपए प्राप्त हुए, जबकि प्रतिभूतियों और लेन-देन  टैक्स को मिलाकर संग्रह की लागत 686 करोड़ थी। 

किसी भी अतिरिक्त लागत से बाहर और वर्तमान बजट में अनुमान के अनुसार यह बढ़कर 73,000 करोड़ हो गया है। यह पिकेटी एट अल द्वारा सुझाए गए समाधान की तुलना में असमानता को संभालने का एक बेहतर तरीका है, जो अनिवार्य रूप से घरेलू और विदेशी निवेश को समाप्त कर देगा और विकास को बाधित करेगा। तब देश ‘सदाबहार समान गरीबी’ में डूब जाएगा। असमानता विकास की लागत है, लेकिन जब कमजोर समूहों की समस्याओं को कम करने के लिए अन्य उपाय किए जाते हैं तो यह समस्या कम होती है। इसके लिए अब विभिन्न योजनाओं के माध्यम से मुफ्त या अत्यधिक सबसिडी वाले खाद्यान्न के रूप में एक मजबूत सामाजिक सुरक्षा जाल उपलब्ध है, जो 80 करोड़ लोगों के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करता है और आयुष्मान भारत, जो 50 करोड़ लोगों को कवर करता है। 

नीति आयोग द्वारा अनुमानित भारत में बहुआयामी गरीबी 2022-23 में केवल 11 प्रतिशत थी, जबकि एक दशक पहले यह लगभग 30 प्रतिशत थी। इसकी तुलना 22 प्रतिशत अनुपात से करें जब योजना आयोग द्वारा अंतिम बार मासिक प्रति व्यक्ति उपभोग व्यय के आधार पर गरीबी का अनुमान वित्त वर्ष 2012 में लगाया गया था। संपत्ति कर वाले देशों की संख्या 1990 में 12 से घटकर अब केवल 5 रह गई है। विरासत कर के मामले में भी लगभग यही कहानी है। भारत ने 1953 में कृषि भूमि सहित सभी विरासत में मिली चल और अचल संपत्तियों पर कर लगाने के लिए संपत्ति शुल्क के रूप में इसकी शुरूआत की, जिसकी दरें 85 प्रतिशत के शिखर पर पहुंच गईं। इसकी उच्च प्रशासनिक लागत के कारण इसे 1965 में समाप्त कर दिया गया था। बहुत से देश शुल्क लगाते हैं।

विरासत कर-फ्रांस 60 प्रतिशत, जापान 55 प्रतिशत, दक्षिण कोरिया और जर्मनी 50 प्रतिशत और ब्रिटेन और अमरीका 40 प्रतिशत  लगाते हैं, लेकिन यह समानता के साथ मेल नहीं खाता है। भारत में, जहां बहुत सारी बेनामी संपत्तियां हैं, इसका कार्यान्वयन हमेशा कठिन रहा है और रहेगा। इन दोनों करों का उपयोग पहले भी व्यक्तियों को मृत्यु के बाद भी परेशान करने के लिए किया जाता रहा है। (लेखक  पूर्व महानिदेशक,  नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक)-गोविंद भट्टाचार्जी


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