दिल्ली गुरुद्वारा चुनाव में नई सामाजिक क्रांति का ‘सूत्रपात’

punjabkesari.in Friday, Sep 17, 2021 - 03:36 AM (IST)

20वीं शताब्दी की शुरूआत में अंग्रेजों के पंजाब में बढ़ते ईसाईकरण के विरोध में कुछ जागरूक सिखों ने गुरुद्वारों में सिख मर्यादा को लागू करने के लिए सिंह सभा लहर शुरू करने का बीड़ा उठाया था, जो बाद में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एस.जी.पी.सी.) और शिरोमणि अकाली दल के अस्तित्व में आने का कारण बनी थी। उसके बाद प्रबुद्ध सिखों ने गुरुद्वारों के रोजमर्रा के कार्यों तथा जन्म और मृत्यु तक के संस्कार को लेकर सिख रहत मर्यादा की रचना की लेकिन आज सिख रहत मर्यादा को लेकर 100 साल बाद दिल्ली के सिख जागरूक हो रहे हैं। 

दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी का एक्ट, जोकि 1975 में अस्तित्व में आया था, में उस समय के प्रबुद्ध सिखों ने सिख रहत मर्यादा के तहत सैक्शन-10 मेें कमेटी सदस्य बनने के लिए उम्मीदवार की जरूरी योग्यताएं निर्धारित की थीं लेकिन जैसे-जैसे सिख रहत मर्यादा से अनजान लोगों का गुरुद्वारा प्रबंध से जुडऩा शुरू हुआ, कौम का नुक्सान भी हुआ। अब उसी मर्यादा को लागू करवाने के लिए जागरूक लोग भी आगे आने लगे हैं। 

आज से पहले तक खुद को अमृतधारी होने का शपथपत्र देने से ही उम्मीदवार योग्य हो जाता था लेकिन 2021 के आम चुनाव में (25 अगस्त को हुए) विरोधी उम्मीदवारों के द्वारा कई उम्मीदवारों के शपथ पत्र पर ऐतराज दर्ज किए गए। इसमें केशों की बेअदबी से लेकर गुरमुखी भाषा न पढ़ पाने आदि से संबंधित मामले थे। हालांकि मौके पर मौजूद चुनाव अधिकारियों द्वारा कार्रवाई न करने पर ऐतराज दर्ज कराने वाले उम्मीदवारों को अदालतों की शरण लेनी पड़ी। इस जन जागृति का फायदा यह हुआ कि को-आप्शन चुनाव के दौरान गुरमुखी पढऩे में असमर्थ रहे अकाली उम्मीदवार रविन्द्र सिंह आहूजा का नामांकन रद्द हो गया और अब एस.जी.पी.सी. की ओर से प्रस्तावित नामजद सदस्य व मौजूदा कमेटी अध्यक्ष मनजिंद्र सिंह सिरसा की उम्मीदवारी का मामला दिल्ली हाईकोर्ट पहुंच गया है।

इस जन जागृति का खमियाजा सिंह सभा गुरुद्वारों में लंबे समय से कब्जा करके बैठे प्रबंधकों को भी भुगतना पड़ सकता है। अकाल तख्त साहिब का स्पष्ट आदेश है कि किसी भी गुरुद्वारे का प्रबंधक गैर-अमृतधारी नहीं हो सकता लेकिन बहुत सी सिंह सभाओं में इस आदेश की अवहेलना हो रही है। जैसे-जैसे इस बारे में जागरूकता बढ़ रही है, आने वाले समय में होने वाले सभी गुरुद्वारा चुनावों में नामांकन को चुनौती दी जा सकती है। 

गुरुद्वारा चुनाव सिस्टम बन चुका है ‘बॉडी कैंसर’ : राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व चेयरमैन एवं पूर्व सांसद तरलोचन सिंह गुरुद्वारा कमेटी चुनावों मेें शराब, पैसा, अवैध चीजों की बंदरबाट और उसके बाद सत्ता के लिए मचे बवाल से आहत हैं। इसको लेकर उन्होंने सिखों को नसीहत देते हुए गुरुद्वारों में कमेटी चुनावों को बंद करने की सलाह दी है। उनका कहना है कि जब हम गुरुद्वारों में सेवा करने आ रहे हैं तो आपस में लड़ाइयां क्यों कर रहे हैं? चुनाव की बजाय कोई और रास्ता निकाला जाना चाहिए क्योंकि वर्तमान में गुरुद्वारा चुनाव सिस्टम ‘बॉडी कैंसर’ बन चुका है। लिहाजा, गुरुद्वारा कमेटी चुनाव नहीं होने चाहिएं। 

उनके मुताबिक दुनिया के किसी भी धर्म में कोई चुनाव नहीं होता, फिर गुरुद्वारों में क्यों? सिखों में यह शौक क्यों है? उन्होंने कहा कि दुनिया में एक ही गुरुद्वारा ऐसा है, जहां कोई चुनाव नहीं होता। वह है बैंकाक में, जो एकमात्र 6 मंजिला ऐतिहासिक गुरुद्वारा है। सबसे ज्यादा चढ़ावा वहां आता है लेकिन आज तक कभी चुनाव नहीं हुआ।  

सिरसा को देनी होगी ‘धार्मिक परीक्षा’ : दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी में आम चुनाव के बाद कोआप्शन में कमेटी (एस.जी.पी.सी.) की  नुमाइंदगी वाली सीट को लेकर बवाल तेज गया है। इस सीट के लिए नामित प्रतिनिधि मनजिंद्र सिंह सिरसा को अब कमेटी में अध्यक्ष बनने से पहले एक नई प्रक्रिया धार्मिक परीक्षा से गुजरना होगा, जो दिल्ली हाईकोर्ट के एक आदेश के तहत हुआ है।

कमेटी सदस्य हरविंद्र सिंह सरना ने अदालत में गुहार लगाई है कि दिल्ली कमेटी एक्ट के सैक्शन-10 में दिल्ली कमेटी सदस्य चुनने की जरूरी योग्यता का सिरसा पालन नहीं कर रहे। साथ ही शिरोमणि कमेटी द्वारा सिरसा को नामजद करते वक्त तय प्रक्रिया का पालन नहीं हुआ। इसके अलावा हाईकोर्ट में दावा किया गया कि सिरसा अमृतधारी नहीं हैं और न ही उन्हें गुरमुखी पढऩी आती है। इस पर हाईकोर्ट के जस्टिस प्रतीक जालान ने सिरसा को निदेशक गुरुद्वारा निदेशालय के सामने पेश होकर सैक्शन-10 के तहत अपनी योग्यता साबित करने का आदेश दिया है।-दिल्ली की सिख सियासत सुनील पांडेय
 


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