दादरी कांड में ‘वोट बैंक की राजनीति’ दुर्भाग्यपूर्ण

punjabkesari.in Friday, Oct 09, 2015 - 01:42 AM (IST)

(कल्याणी शंकर): किसी ने नहीं सोचा था कि बीफ तथा मांस पर प्रतिबंध अथवा आरक्षण बिहार में मुख्य चुनावी मुद्दे बन जाएंगे। मगर अब प्रमुख राजनीतिक दल तुष्टीकरण के इन दो मुद्दों से जूझ रहे हैं। जबकि विकास, जो प्रधानमंत्री मोदी तथा राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार दोनों का मंत्र था, पृष्ठभूमि में चला गया। अब गाय, जिसे हिन्दू पवित्र मानते हैं, अब एक राजनीतिक हथियार में बदल गई है।

सब जानते हैं कि एक मामूली सी चीज भी साम्प्रदायिक घटना को हवा दे सकती है। मगर दादरी में जो कुछ हुआ, वह इससे कहीं अधिक था क्योंकि भीड़ द्वारा उत्तर प्रदेश के दादरी क्षेत्र में 50 वर्षीय मोहम्मद अखलाक द्वारा मांस खाए जाने की अफवाह के बाद उसे मार देने से सारा देश हत्प्रभ रह गया। यह घटना कहीं दूर बिहार में एक मुख्य चुनावी मुद्दा बन गई। इसका असर 2017 में होने वाले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों पर भी अवश्य पड़ेगा। 
 
दुख की बात यह है कि सभी दलों के राजनीतिज्ञ अपने वोट बैंक की राजनीति के लिए इस दुर्घटना को भुनाने में लगे हैं। जहां भाजपा अपने हिन्दू वोटों को संगठित करने का प्रयास कर रही है, अन्य तथाकथित धर्मनिरपेक्ष पाॢटयों की नजर मुस्लिम वोट बैंक पर है। दोनों ही तरफ के दरकिनार किए गए तत्व सक्रिय हो गए हैं और उत्तर प्रदेश व अन्य स्थानों पर कानून व्यवस्था को उथल-पुथल करने में जुटे हैं। 
 
बड़ी संख्या में सारे देश से नेता दादरी पहुंच कर उत्तेजक भाषण दे रहे हैं। इस सारी प्रक्रिया में प्रभावित परिवार अपनी सुरक्षा के लिए दिल्ली चला गया है।  जबकि नागरिकों की सुरक्षा करना राज्य का कत्र्तव्य है। हैरानी की बात है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल ने कहा कि ‘इससे किसको लाभ होगा? न हिन्दू को न मुसलमान को, इस घटना से केवल राजनीतिक दलों तथा राजनीतिज्ञों को फायदा होगा’। प्रभावित परिवार से मिलने के बाद वह यह भूल गए कि वह भी उन्हीं में से एक हैं। 
 
समाजवादी पार्टी का मामला देखते हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव 2017 में राज्य में होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए तैयारी करने में व्यस्त हैं। दरअसल बहुत से नेता दादरी की घटना को विधानसभा चुनावों के लिए रिहर्सल के तौर पर देखते हैं क्योंकि यह वोटों के ध्रुवीकरण के लिए भाजपा के साथ-साथ समाजवादी पार्टी के लिए भी अनुकूल है। 
 
हालांकि मुख्यमंत्री ने अपनी सरकार की आलोचना को यह कह कर खारिज कर दिया कि समाजवादी पार्टी कभी भी ऐसी घटनाओं पर राजनीति नहीं करेगी। उन्होंने अखलाक की मां असगरी, भाई मोहम्मद अफजल तथा बेटी शाइस्ता से मिलने के बाद आरोप लगाया कि ‘चूंकि समाजवादी पार्टी सत्ता में है इसलिए कुछ ताकतें विपरीत माहौल बनाने की कोशिश कर रही हैं।’ यद्यपि उन्होंने परिवार को 45 लाख रुपए का मुआवजा, घर, पूर्ण सुरक्षा के साथ-साथ परिवार के एक सदस्य को नौकरी देने का वायदा किया है। स्वाभाविक है कि परिवार दादरी में नहीं रहना चाहता।  वैसे सपा प्रमुख ‘मौलाना’ मुलायम सिंह यादव कहां हैं? 
 
दूसरी ओर बहुजन समाज पार्टी ने समाजवादी पार्टी पर राज्य में कानून- व्यवस्था की स्थिति नियंत्रित रखने में असमर्थ रहने का आरोप लगाया है। मायावती ने दावा किया कि ‘भाजपा तथा सपा दोनों ही साम्प्रदायिक नफरत का माहौल बना रही हैं और इस घटना से यह साबित हो गया है। ऐसी स्थितियों में दोनों ही पाॢटयां मिल कर काम करती हैं।’
 
भाजपा अलग-अलग भाषाओं में बोलती है। जहां वित्त मंत्री अरुण जेतली ने इस घटना की ङ्क्षनदा की है तथा गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने उत्तर प्रदेश सरकार को इस घटना पर रिपोर्ट पेश करने के लिए कहने के अतिरिक्त राज्य को यह सलाह दी है कि ऐसे मामलों में शून्य सहिष्णुता होनी चाहिए, वहीं महेश शर्मा जैसे कुछ मंत्री तथा विवादास्पद भाजपा विधायक संगीत सोम अलग ही तीखी भाषा बोल रहे हैं। बिहार भाजपा नेता एवं मुख्यमंत्री पद के दावेदार सुशील मोदी ने वक्तव्य दिया है कि यदि उनकी पार्टी सत्ता में आती है तो राज्य में गौहत्या पर प्रतिबंध लगा दिया जाएगा। 
 
गौहत्या पर प्रतिबंध तथा आरक्षण दो ऐसे मुद्दे हैं, जिनसे भाजपा अपने वोट बैंक को मजबूत करने की आशा कर रही है। इसने 2014 के आम चुनावों में भाजपा की सहायता की थी और ऐसी आशा है कि बिहार के चुनावों में भी भगवा पार्टी को इसका लाभ पहुंचेगा। लालू प्रसाद यादव की इस टिप्पणी कि ‘बहुत से हिन्दू बीफ खाते हैं’, पर पहले ही पूर्व भाजपा मंत्री हुकुमदेव नारायण यादव ने पलटवार किया है। उन्होंने इसे ‘यदुवंशियों’ का अपमान बताया है जिनके लिए गाय एक पवित्र पशु है। 
 
कांग्रेस, जो उत्तर प्रदेश तथा बिहार में अपने महत्वपूर्ण मतदाता खो चुकी है, ने दावा किया है कि यह एक राजनीतिक-वैचारिक हत्या थी, जो उन कुछ लोगों ने की, जो देश की कहानी को बदलना चाहते हैं। उसने प्रश्र उठाया कि क्यों सरकार लोगों पर यह तानाशाही आदेश थोपना चाहती है कि उन्हें क्या खाना चाहिए, वे क्या पहनें, वे कैसे बात करें और उसने सभी सही सोच वाले लोगों से इसके खिलाफ खड़े होने की अपील की है। कांग्रेस को यह याद रखना चाहिए कि गांधी अपनी वैष्णव मान्यताओं के बावजूद इसे लेकर पूर्णतया स्पष्ट थे कि गौ हत्या को राजनीतिक मुद्दे के लिए एक हथियार के तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। 
 
आल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल मुसलमीन के नेता असदुद्दीन ओवैसी, जो अपना प्रभाव उत्तर प्रदेश तथा बिहार में फैलाने का प्रयास कर रहे हैं, ने दादरी में मोहम्मद अखलाक के परिवार को सांत्वना देने के बाद मोदी की चुप्पी पर प्रश्र उठाते हुए इसे एक ‘पूर्व नियोजित हत्या’ बताया। 
 
कम्युनिस्ट पार्टी आफ इंडिया के महासचिव एस. सुधाकर रेड्डी ने कहा कि उनकी पार्टी निर्दोष लोगों की ऐसी ‘अविवेकी तथा असहनशील हत्या’ पर मोदी की ‘चुप्पी’ से हैरान है।  तृणमूल कांग्रेस, जिसकी नजर मुस्लिम वोट बैंक पर है, ने प्रश्र उठाया कि प्रधानमंत्री मोदी इस मुद्दे पर चुप क्यों हैं?
 
चिंता इस बात की है कि यह गाय की सुरक्षा नहीं बल्कि भीड़ की नाइंसाफी है और राजनीति किस तरफ जा रही है। यह नई तथा गंदी राजनीति बहुसंख्यकवाद बनाम अल्पसंख्यकवाद की राजनीति में परिवर्तित हो रही है। दुर्भाग्य से उदारवादी तत्वों की आवाज नहीं सुनी जा रही क्योंकि दोनों तरफ से उग्रवादी तत्वों की आवाजें बहुत तीखी हैं। इनमें सहनशीलता तथा समाहित करने की आवाजें खो रही हैं। मारे गए व्यक्ति का बेटा सही था। जब उसने कहा कि समुदायों को बांटने का प्रयास न करें, यदि आप जोड़ नहीं सकते तो कम से कम परे रहें।            
 

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