‘हाथियों और बाघों के अस्तित्व पर संकट’

punjabkesari.in Friday, Dec 11, 2020 - 04:02 AM (IST)

पिछले सप्ताह एक बारहसिंघा भटक कर पंचकूला के एक खेत में आ गया। उसने गेहूं का एक गोला खा लिया और बाद में पता चला कि यह एक घर में बनाया गया बम था और उसका जबड़ा तथा गला फट गया। राहगीरों ने उसे खून बहते हुए सड़क के किनारे शांति से बैठे हुए देखा। उन्होंने वन विभाग को खबर भेजी। वे विलक्षण लोग 4 घंटे में पहुंचे और फिर उसे एक स्थानीय चिकित्सक के पास ले गए, जिसने उसे पैरासिटामोल इंजैक्शन दिया और फिर उसे मोरनी वन्य जीव केंद्र में छोड़ दिया। वहां पहुंचने तक वह मर गया था। इस तरह की घटनाआें पर मुझे बहुत गुस्सा आता है।

अप्रशिक्षित अज्ञानी लोगों से भरा हुआ वन विभाग, निरर्थक पशुपालन विभाग जिसमें कोई प्रशिक्षित या यहां तक कि दयालु पशुचिकित्सक नहीं हैं। और वे भयानक किसान जिसने गंभीर रूप से लुप्तप्राय: प्रजातियों की सूची में शामिल एक हानिरहित सुंदर हिरण को मार डाला? उन्हें अभी भी गिरफ्तार नहीं किया गया है और डाक्टर तथा उनकी एस्पिरिन, वन्यजीव विभाग के निरीक्षक, जिन्होंने एक मील दूर से आने में 4 घंटे लगाए, को हटाया नहीं गया है।

हर साल किसानों द्वारा दर्जनों हाथियों को इसी तरह समाप्त कर दिया जाता है। केरल अब एक भली-भांति ज्ञात गाथा है और मेरे पहली मौत के साथ सार्वजनिक रूप से अपना आपा खो देने के बाद चार और की मौत हो चुकी है। छत्तीसगढ़ में जहर खाने से पांच की मौत हो गई, और आेडिशा में किसान बस हाथियों को पीटते हैं या गोली मारते हैं या जंगल के लोग उनके लिए एेसा करते हैं। बहाना हमेशा एक ही  होता है-जानवर ने उनकी फसलों को नुक्सान पहुंचाया है। 

अफ्रीका के कुछ समाधान यहां दिए गए हैं, जहां ऐसा ही हो रहा है, केवल हाथियों के साथ नहीं, बल्कि जिराफों के साथ भी, जो अब किसानों द्वारा मारे जा रहे हैं, क्योंकि वे पानी तक पहुंचने के अपने रास्ते में खेतों में प्रवेश करते हैं। उनके पर्यावास का 20 प्रतिशत से कम अब औपचारिक संरक्षण के तहत है। हाथी अब वन क्षेत्रों और पार्कों में मिलने वाले भोजन की थोड़ी मात्रा के साथ खुद को बचाए रखने में असमर्थ हंै। वे उन खेतों में आ जाते हैं जहां ये प्रचुर मात्रा में होते हैं और फसलों को खाते हैं। इसलिए किसान उन्हें मार देते हैं। 

प्रस्तावित किया गया एक अवरोधक बिजली की बाड़ है, लेकिन यह बहुत महंगी है और बिजली की वोल्टेज भिन्न-भिन्न होती है और हाथी तथा हर दूसरे जानवर को मार सकती है। (भारत में कई किसान गांठों वाली कांटेदार तारों के साथ बाड़ लगा रहे हैं और ये स्टील की गांठें हर महीने सैंकड़ों भूखे मवेशियों की त्वचा को फाड़ देती है। मेरे बरेली के अस्पताल में बहुत सारी गायें और नील गाएं लाई जाती हैं, जिनके पैर और छाती की हड्डी तक कट जाती है।) हाथी मधुमक्खियों से घबराते हैं।

जब वे हमला करती हैं तो उनकी सूंड में प्रवेश कर जाती हैं और भीतर के संवेदनशील टिशुआें पर डंक मारती हैं, यह दर्द हाथी कभी नहीं भूलते। इसलिए हाथियों की पीढिय़ों ने मधुमक्खियों को दर्द से जोडऩा सीख लिया है और उनके पास एक विशेष ‘मधुमक्खी एलर्ट’ काल भी है, जो भिनभिनाने की आवाज सुनते ही भागने लगते है। उन्हें मधुमक्खी की आवाज से डराने की कोशिश की जा सकती थी, लेकिन हाथी बहुत जल्दी खाली खतरों को पकड़ लेते हैं। लेकिन, जैसा कि वैज्ञानिकों ने दर्शाया है, अगर किसान वास्तव में 10 फुट के अंतराल पर एक लंबी धातु के तार से उन्हें एक साथ जोड़ते हुए लकड़ी के तख्तों से मधुमक्खियों के छत्तों को लटकाते हैं, तो यह एक सुरक्षात्मक बाड़ बन जाती है। जब हाथी तार से टकराता है, तो छत्ते हिल जाते हैं और क्रोधित मधुमक्खियां अपने घरों की रक्षा के लिए बाहर निकलती हैं। 

2002 में मधुमक्खी के छत्ते की बाड़ का आविष्कार किया गया जब एन.जी.आे. सेव द एलिफैंट के वैज्ञानिकों ने पता लगाया कि हाथी मधुमक्खी के छत्ते वाले पेड़ों से बचते हैं। ऑक्सफोर्ड यूनिवॢसटी के प्राणीविज्ञानी लुसी किंग ने बाड़ का डिजाइन तैयार किया और इसे 2008 में कीनिया में आजमाया गया था। उनके द्वारा इस विषय पर वैज्ञानिक अध्ययनों के परिणामस्वरूप हाथी और मधुमक्खी नामक एक परियोजना चलाई गई है और इसे सेव द एलिफैंट्स, ऑक्सफोर्ड यूनिवॢसटी और डिजनीज एनिमल किंगडम द्वारा सपोर्ट किया गया है जो किसानों को हाथियों द्वारा फसल नष्ट किए जाने वाले क्षेत्रों के खेतों के आस-पास मधुमक्खी की बाड़ बनाने में मदद करता है। 

दस से अधिक अफ्रीकी देशों ने अब इसे अपना लिया है। साइलेंट हीरोज फाऊंडेशन तंजानिया में मधुमक्खी की बाड़ का निर्माण कर रहा है। उनकी सफलता की दर 80 प्रतिशत है और इनका निर्माण सस्ता है। किंग लिखते है कि और भी बेहतर यह है कि - उनसे पैसा बनता है। किसानों द्वारा शहद ‘एलीफैंट फ्री हनी’ लेबल के साथ बेचा जाता है और यह दुनिया भर के बाजारों में जाता है। मधुमक्खी छत्तों की बाड़ आविष्कार की गई पहली हाथी-निरोधक बाड़ है जिससे वास्तव में लागत से अधिक पैसा कमाया जाता है। 

मधुमक्खियां किसानों की फसलों और आस-पास के पौधों का भी परागण करती हैं, जिससे आस-पास के क्षेत्र को पारिस्थितिकीय और आॢथक बढ़ावा मिलता है। उन्हें बिजली की आवश्यकता नहीं होती और वे स्थान के लिए फसलों के साथ प्रतिस्पर्धा नहीं करते हैं। किंग लिखते हैं ‘‘यद्यपि, बाड़ केवल 80 प्रतिशत हाथियों को बाहर रखने में प्रभावी है, यह एक वैकल्पिक आय, जिसका प्रबंधन पुरुष या महिला द्वारा किया जा सकता है, प्रदान करके भीतर आ जाने वाले उन 20 प्रतिशत हाथियों के नुक्सान की भी भरपाई कर देती है।’’ 

हाथी सूखे नदी बेड़ों में पानी के लिए छेद खोदने, सैंकड़ों फलों के पेड़ों की प्रजातियों को अपने गोबर के साथ फैलाने, जो दर्जनों कीटों और छोटे जानवरों की प्रजातियों को भोजन मुहैया कराते हैं, और जंगल के रास्ते बनाने, जो आग को फैलने को रोकते हैं, जैसे आवश्यक कार्य करते हैं। यह सब क्षेत्र की पारिस्थितिकी में मदद करता है, मधुमक्खियों के छत्तों से होने वाली अतिरिक्त  आय से किसानों को हाथियों को जीवित रखने के लिए और भी अधिक प्रोत्साहन मिलता है। अफ्रीका ने गणना की है कि प्रत्येक हाथी पर्यटक धन के रूप में प्रति वर्ष 23,000 डॉलर लाता है। 

अगर भारत सरकार इस बात को समझ ले तो वह हाथी को जीवित रखने के लिए एक विकल्प के रूप में किसानों के लिए मधुमक्खी बाड़ में निवेश करना शुरू कर देगी। ऐसे कई अन्य सरल उपाय हैं। काली मिर्च की बाड़ जैसे आसान तकनीक वाले निरोधक होते हैं, जो मधुमक्खी के जहर के बजाय हाथियों की संवेदनशील नाक को कैपसाइसिन से निशाना बनाते हैं। बाघों और हाथियों की मौजूदगी से रहित भारत एक एेसा देश होगा जिसने अपनी आत्मा खो दी है। दोनों जानवर विलुप्त होने के करीब हैं और अगर हम उन्हें मरते हुए देखते रहे तो यह विनाशकारी होगा।-मेनका गांधी


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