देश के प्रजातांत्रिक ढांचे को ‘छिन्न-भिन्न’ करने के मंसूबे

punjabkesari.in Wednesday, Nov 25, 2015 - 11:39 PM (IST)

(ईश्वर डावरा): पिछले 20 नवम्बर के दिन पटना के गांधी मैदान में भारतीय प्रजातंत्र के साथ बड़ा शर्मनाक मजाक सभी ने टी.वी. चैनलों पर देखा। मौका था नीतीश कुमार की ताजपोशी का जिसे वह अपने राज्य के भ्रष्ट व आपराधिक तत्वों के सहयोग से अंजाम दे रहे थे। साथ ही देश की विकास विरोधी, भ्रष्ट परिवारवादी राजनीतिक संस्कृति के लगभग सभी क्षेत्रीय दिग्गज उनके साथ शायां-शायां खड़े भविष्य में होने वाली देश की दुर्गति का चित्र दिखा रहे थे। 

इस बार नीतीश कुमार के  पांचवें अभिषेक की शुरूआत बहुत ही भयावह थी। जातीयता के सहारे चुने गए दो नौसिखिए लड़कों को नीतीश ने अपनी सरकार की बागडोर का बड़ा हिस्सा पकड़़ा दिया। कितना अनर्थ है देश की शासन प्रणाली, देश के विकास व जनता के हित के साथ? अफसोस यही है कि मंच पर बैठे सभी खलीफे देश की इस ‘चीरहरण’ प्रक्रिया का अनुमोदन कर रहे थे। 

 
परिवारवाद का हर प्रतिनिधि वहां मौजूद था। परिवारवाद यानी घोर जातीयता, भ्रष्टाचार व क्षेत्रीय स्वार्थ लोलुपता। पता नहीं सत्ता की यह अंधी दौड़ देश को कहां ला खड़ा करेगी।  
 
गैर-फिल्मी गीतों का अलग ही आनंद है हमारे गायकों कुंदन लाल सहगल, मोहम्मद रफी, तलत महमूद, मुकेश, हेमंत कुमार, सी.एच. आत्मा वगैरह ने 50 वर्ष से अधिक समय तक हमारा भरपूर मनोरंजन किया। वह भी क्या दिन थे जब फिल्में इन्हीं के दम पर चलती थीं। कई बार तो दिल में उतर जाने वाला एक ही गीत फिल्म की किस्मत बना देता था। आज भी इनके एवर-ग्रीन संगीत की धरोहर हममें से कइयों के इमोशनल अस्तित्व को सहारा देती है।
 
इन अमर गायकों के फिल्म संगीत की सदाबहार खूबसूरत यादों में खोए हमें अक्सर उनकी गैर- फिल्मी विरासत याद ही नहीं रहती। इनमें से कइयों के फिल्मी पर्दे से बाहर के गाए रोमांटिक व भावुक गीत आज भी हमें भावातिरेक से वशीभूत कर देते हैं। सहगल, तलत व रफी ने देश के महान कवियों के कलाम को अमर संगीत में ढाल कर उन्हें बेहद लोकप्रिय बना दिया है। चाहे वह गालिब हों, दाग या जौक हों या अकबर-इलाहाबादी हों सभी को इनके गानों ने अमरत्व प्रदान किया है। कुछ गीतों व गजलों का जिक्र करना ही चाहिए। पहले कुछ हृदयाग्रही गीतों की बात करें:
 
‘‘तस्वीर तेरी दिल मेरा बहला न सकेगी
मैं बात करूंगा तो यह खामोश रहेगी
सीने से लगा लूंगा तो यह कुछ न कहेगी
आराम वह क्या देगी जो तड़पा न सकेगी।’’
 
कवि $फयाका हाशमी का यह गीत तलत महमूद ने 17-18 वर्ष की आयु में 1941 में एच.एम.वी. रिकाॄडग कम्पनी के लिए गाया था। 75 वर्ष के बाद इस रोमांटिक व प्यार भरे गीत की अपील आज भी वैसी ही है। तलत ने एक बहुत ही दर्द भरा गीत इन्हीं दिनों गाया :
 
‘‘रो रो बीता जीवन सारा
खुशियों के सब दीप जलाकर
प्यार का जलता दीप बुझा कर
लूट लिया है दे के सहारा
मैं हूं अकेला पथ अंधियारा’’
 
तलत की कांपती आवाज में इस गीत के सुनने का आनंद ही अलग है। तलत के अन्य यादगारी गीतों में मुख्य हैं ‘‘मेरा प्यार मुझे लौटा दो। मैं जीवन में उलझ चुका हूं फिर से जीना सिखला दो’’ और ‘‘मैं नहीं जिसके मुकद्दर में’’ और ‘‘तुमने यह क्या सितम किया।’’
 
तलत के गीतों व गजलों का न मिटने वाला जादू हमेशा कायम रहेगा। गालिब की प्रसिद्ध गजल ‘‘फिर मुझे दीदा-ए-तर याद आया’’ को भी तलत ने बाखूबी गाया है। गीतों ही की बात करते चलें यानी गैर-फिल्मी गीतों की तो मुकेश व रफी के भी कुछ गीत लासानी हैं। मुकेश का गाया यह गीत बहुत भावभीना है।
 
‘‘मेरे महबूब मेरे दोस्त नहीं यह भी नहीं 
मेरी बेबाक तबीयत का तकाजा है और’’
 
ऐसे दिल में टीस जगाने वाले न गीत रहे और न उन्हें गाने व सुनने वाले। मुकेश का एक और गीत है जो दुखी प्रेमी के दिल की पुकार है :
‘‘मिल न सका दिल को अगर प्यार तुम्हारा
आना पड़ेगा मुझको दुनिया में दोबारा’’
रफी का ऐसे गीतों में अपना ही स्टाइल है।
 
‘‘तुम सामने बैठी रहो मैं गीत गाऊं प्यार के’’ और यह भी : ‘‘प्यार किसी का गाता है’’  उर्दू के महान शायरों की कृतियों को भी रफी ने गाकर अमर कर दिया है—फिल्मों में भी और फिल्मों के बाहर भी। बहादुर शाह ‘जफर’ की गजल ‘‘लगता नहीं है जी मेरा उजड़े प्यार में’’ सभी याद करते हैं। ‘‘सुनो सुनो ए दुनिया वालो बापू की यह अमर कहानी’’—रफी की आवाज इस गीत के साथ हर वर्ष गांधी पर्व पर सारे देश में गूंजती है। 
 
कुछ और गीतों का जिक्र करें तो मुझे हेमंत दा के गाए दो गीत बहुत पसंद हैं : 
‘‘कितना दुख उठाया तूने प्यारी’’
 और ‘‘मोहब्बत का नतीजा हमने दुनिया में बुरा देखा’’ 
सी.एच. आत्मा का गाया एक नॉन फिल्मी गीत था ‘‘प्रियतम आन मिलो।’’ बाद में इसी गीत को गीता दत्त ने गुरुदत्त की फिल्म ‘‘मिस्टर एंड मिसेज 55’’ में बड़े सोका में गाया। 
 
बतौर गकाल किंग के.एल. सहगल का कोई मुकाबला नहीं। उनकी गाई कुछ नायाब $गकालें हैं : 
‘‘लाई हयात आए ककाा ले चली चले
अपनी खुशी न आए हम न अपनी खुशी चले।’’ 
 
—काौक और 
‘‘रहमत पे तेरी मेरे गुनाहों को नाका है
बंदा हूं जानता हूं बंदा नवाज है’’
और ‘‘दुनिया में हूं दुनिया का तलबगार नहीं हूं
बाजार से गुजरा हूं खरीदार नहीं हूं।’’
 
—अकबर अलाहाबादी
और ‘‘शमां को जलना है यह सोजिशे परवाना है
चंद लफ्काों में यही इश्क का अफसाना है।’’
और ‘‘फिर मुझे दीदा-ए-तर याद आया।’’
 
—गालिब
और ‘‘नुक्ताचीं है गमे दिल ...’’
 

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