गैर-जरूरी ‘नाटक’ खेलकर लोगों का ध्यान भटकाने की साजिश

punjabkesari.in Thursday, Sep 29, 2022 - 05:04 AM (IST)

दुनिया के बड़े नेताओं के सामने दिए भाषण में संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एन्टोनियो गुटारेस द्वारा विश्व में फैली आर्थिक मंदी, अमीर-गरीब में बढ़ रहा अंतर, साम्प्रदायिक विभाजन तथा दुनिया भर में खतरनाक युद्धों के जाल का जिक्र करना मौजूदा असाधारण स्थितियों का स्वीकारनामा भी है और चेतावनी भी। इन हालातों के प्रति विश्व भर के संवेदनशील लोग काफी चिंतित हैं। इन हालातों के लिए जिम्मेदार कोई दैवीय शक्ति नहीं बल्कि चंद धनवान लोगों की अधिक से अधिक पूंजी एकत्र करने की अथाह भूख है।

ऐसी परिस्थितियों बारे वैश्विक पूंजीपतियों के कुछ सलाहकार तथा नीतियां बनाने वाले भी फिक्रमंद हैं क्योंकि मानवीय मेहनत से पैदा हुई चीज को जेब से खाली गरीब तथा बेरोजगार लोग जब नहीं खरीद सकेंगे तो अनबिकी ‘फालतू पैदावार’ के कारण औद्योगिक सरगर्मियां ठप्प होकर रह जाएंगी। सभी खतरों तथा चेतावनियों के बावजूद अभी विश्व भर के कार्पोरेट घराने तथा बहुराष्ट्रीय कार्पोरेशनें कोई सबक नहीं सीख रहीं, जिस कारण मंदी के बादलों का और घना होना जारी है तथा सब कुछ होने के बावजूद विश्व के कामगार लोगों का बड़ा हिस्सा भुखमरी, कुपोषण, गरीबी, अनपढ़ता तथा असुखद जीवन हालातों का शिकार बना हुआ है।

इंगलैंड में पहले लीसैस्टर पर, अब बॄमघम शहर में हिंदू-मुसलमानों में पैदा हुआ साम्प्रदायिक तनाव हमारे लिए बड़ी ङ्क्षचता का विषय है। विश्व व्यापी ऐसी परिस्थितियों को देश में बढ़ रही सिद्धांतहीन राजनीति से जोड़ कर देखने की जरूरत है। मोदी सरकार लोगों को दरपेश समस्याओं के समाधान के लिए ठोस कदम उठाने की बजाय भ्रष्टाचार के नाम पर हर विरोधी दल के नेताओं को ई.डी., सी.बी.आई., आयकर विभाग आदि सरकारी एजैंसियों के छापों के माध्यम से भयभीत करने को अपनी बड़ी उपलब्धि समझ रही है।

ऐसा सिलसिला भाजपा के राजसी विरोध को पूरी तरह समाप्त या कम करने तथा जेल का डर दिखाकर भाजपा में शामिल होने के लिए दबाव बनाने के तौर पर दिख रहा है अन्यथा जब कोई दागी नेता दल बदली करके भाजपा में शामिल होता है तो भ्रष्टाचार के नाम पर सरकारी एजैंसियों की कार्रवाई बंद करने की जरूरत क्यों है? भाजपा के लिए भी ऐसे दागी तथा मौकापरस्त नेता तुरन्त दूध के धुले बन जाते हैं बल्कि वे इस अत्यंत अवसरवादी पैंतरे को ‘सैद्धांतिक रूप’ देने का प्रयास भी करते हैं।

‘गांधीवाद तथा गोडसेवाद’, ‘धर्मनिरपेक्षता व धार्मिक कट्टरवाद’, ‘साम्प्रदायिक सद्भावना तथा साम्प्रदायिक नफरत’ का अंतर इन मौकापरस्त लोगों ने पूरी तरह धुंधला कर दिया है। वैसे भ्रष्टाचारी तथा गैर-कानूनी कार्रवाइयों में अनेक भाजपा नेता भी पूरी तरह डूबे हुए हैं मगर ‘सत्ता’ सब कुछ ठीक कर देती है इसलिए देश के लोगों को दरपेश मुश्किलों की पहचान, विचार-चर्चा तथा संभावित उपाय आज की मौकापरस्त राजनीति में और भी मुश्किल काम बन जाता है। देश की 26 प्रतिशत आबादी भर पेट रोटी खाने में असमर्थ है।

बेरोजगारी गत 45 सालों की सबसे ऊंची दर पर पहुंच गई है। लूट-खसूट, डाके तथा गैंगस्टरों की असामाजिक कार्रवाइयां पूरे यौवन पर हैं। जवानी को नशों ने तबाह कर दिया है। शहरों तथा गांवों में घूम रहे बेरोजगार तथा बेघर लोग एक ‘जानलेवा बम’ की तरह हैं जो कभी भी फट सकते हैं, भूख बड़ी खतरनाक चीज है। न केंद्र और न ही राज्य सरकारों के पास लोगों को दरपेश मुश्किलों का कोई समाधान है तथा न ही गंभीरता से सोचने का समय। देश के बड़े नेता ‘6 चीतों’ को भारत लाने को ‘बड़ी सफलता’ बता रहे हैं और दावा कर रहे हैं कि इससे ‘पर्यटन’ उद्योग को बढ़ावा मिलेगा तथा रोजगार के बड़े मौके पैदा होंगे।

दूसरी ओर ‘चीतों के पार्क’ के इर्द-गिर्द लोगों की अपनी जमीन तथा घर-बार गंवाने के डर से नींद उड़ गई है तथा उधर ‘चीतों’ की आमद के जश्र मनाए जा रहे हैं। कितने असंवेदनशील तथा गैर-जिम्मेदार हो गए हैं हमारे राजनेता। लगभग हर प्रांत में साम्प्रदायिक हिंसा, दलित महिलाओं पर हमलों तथा संविधान की मर्यादाओं की धज्जियां उड़ाने का सिलसिला निरंतर तेजी पकड़ रहा है। टी.वी. पर करवाई जा रही उत्तेजित बहसों तथा एंकरों की एकतरफा सोच बारे सुप्रीमकोर्ट के माननीय जज साहिबान ने बहुत गंभीर टिप्पणी तथा सरकार की तमाशाई बने रहने की प्रवृत्ति की सख्त शब्दों में निंदा की है।

जज साहिबान ने इस संबंध में एक कानून बनाए जाने की जरूरत पर जोर दिया है तथा और कानून बनने तक केंद्र सरकार को कोई ‘लिखित मसौदा’ तैयार करने की हिदायत की है। क्या यह आवाज हाकिमों के कानों तक पहुंचेगी या नहीं, यह तो अमल ही बताएगा।मौजूदा खतरों वाला समय देश तथा इसके 140 करोड़ लोगों के लिए चुनौतियों भरा है, सरकारें इससे बेपरवाह हैं। वे विदेशी लुटेरे, साम्राज्यवादी देशों की भारत के प्रति की गई प्रशंसापूर्ण टिप्पणियों (खुदगर्जी के लिए) का आनंद ले रहे हैं।

विश्व स्तर पर देश की अर्थव्यवस्था के चौथे स्थान से खुश हाकिम भुखमरी का शिकार 116 देशों की सूची में भारत के 110वें स्थान पर पहुंचने की शर्मनाक स्थिति को लोगों की नजरों से छुपाना चाहते हैं। इसलिए ‘चीतों’ जैसे विभिन्न तरह के गैर-जरूरी ‘नाटक’ खेल कर लोगों के ध्यान को भटकाने की साजिश रच रहे हैं। इस स्थिति से बाहर निकलने का एकमात्र रास्ता आम लोगों का चेतन रूप में असलियत से जानकार होकर जोरदार विरोधी आवाज बुलंद करना ही है, जिससे 2024 के लोकसभा चुनावों में कुछ सार्थक नतीजे निकाले जा सकते हैं।-मंगत राम पासला


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