भाजपा के लिए गंभीर खतरा बनने से कांग्रेस अभी कोसों दूर

punjabkesari.in Thursday, Aug 24, 2023 - 04:45 AM (IST)

एक प्रसिद्ध कहावत है ‘सत्ता भ्रष्ट करती है और पूर्ण सत्ता पूर्णतय: भ्रष्ट कर देती है’। भ्रष्टाचार का मतलब सिर्फ गैर-कानूनी तरीके से पैसे का लेन-देन करना, ठेका और सौदा करना नहीं है। इसमें सरकार के आलोचकों और विपक्षी दलों के सदस्यों का शिकार करने या उन्हें धमकाने के लिए शक्ति का उपयोग करना भी शामिल है। 

भारत खुद को सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में गौरवान्वित करता है और यह सही भी है लेकिन जो भी सत्ता में है उसके द्वारा लोकतांत्रिक आदर्शों को लगातार खतरा बना हुआ है। वर्तमान सरकार कोई अपवाद नहीं है और शायद वह अपने पूर्ववर्तियों की तुलना में अपनी शक्तियों का कहीं अधिक दुरुपयोग कर रही है। ई.डी., आयकर और सी.बी.आई. जैसी जांच एजैंसियों को पहले की तरह हथियार बनाया गया है। जनता पर मनमाने फैसले थोपे जाते हैं और संसद और बाहर पर्याप्त बहस के बिना विधेयक पारित कर दिए जाते हैं। लोकतंत्र पर ऐसे खतरों का मुकाबला करने के लिए राष्ट्र को एक मजबूत और रचनात्मक विपक्ष की जरूरत है। दुर्भाग्य से पिछले लगभग 10 वर्षों में विपक्ष निर्बल हो गया है और दुखद स्थिति के लिए प्राथमिक दोष भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का है, जो अखिल भारतीय उपस्थिति के साथ मुख्य विपक्षी पार्टी बनी हुई है। 

आम आदमी पार्टी (आप) सहित अन्य सभी राजनीतिक दलों की पहुंच सीमित है। हालांकि एक सम्पन्न लोकतंत्र के लिए ऐसे सभी दलों की भी बहुत जरूरत है। हाल ही में कांग्रेस पुनरुत्थान के कुछ संकेत दिखा रही है और यद्यपि एक व्यवहार्य और विश्वसनीय विपक्ष बनने के लिए भी उसे बहुत लम्बी दूरी तय करनी है। हाल के घटनाक्रम से उसने राष्ट्रीय स्तर पर एक प्रभावशाली विपक्ष प्रदान करने और अपनी ताकत को मजबूत करने की कुछ उम्मीदें जगाई हैं। पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा की गई ‘भारत जोड़ो यात्रा’ ने पार्टी के उन सदस्यों को जगाने में मदद की है जो गहरी नींद में सोए हुए थे। इससे उनकी अपनी छवि सुधारने में भी मदद मिली और वे राजनीति को लेकर गंभीर नजर आए और इसकी सर्वोच्च संस्था-कांग्रेस कार्यसमिति या सी.डब्ल्यू.सी. का लम्बे समय से प्रतीक्षित गठन आखिरकार हो गया। 

यह युवा नेताओं के प्रवेश, महिलाओं, आदिवासियों और विभिन्न अन्य समुदायों के सदस्यों को प्रतिनिधित्व और यहां तक कि विद्रोहियों और उन लोगों को दिए गए पदों को संतुलित करने सहित विभिन्न कारकों को संतुलित करने की एक कवायद है जिन्होंने अतीत में विद्रोह की धमकी दी थी।  इसमें पूर्ववर्ती जी-23 के सदस्य शामिल हैं जो नेताओं का एक समूह है जिन्होंने गांधी परिवार के खिलाफ झंडा उठाया था या विद्रोह किया था। कपिल सिब्बल और गुलाम नबी आजाद जैसे दिग्गजों के पार्टी से इस्तीफे के बाद यह समूह निष्क्रिय हो गया है। अब कुछ बचे सदस्यों या मनीष तिवारी और अनंत शर्मा जैसे नेताओं को पार्टी की सर्वोच्च निर्णय लेने वाली संस्था में मौका दिया गया। पुराने नेताओं और नए चेहरों को शामिल करके भी अच्छा संतुलन बनाया गया है। पी. चिदम्बरम, दिग्विजय सिंह और ए.के. एंटनी जैसे अधिकांश वरिष्ठ नेताओं को बरकरार रखते हुए खरगे ने तरुण गोगोई, अलका लांबा और कन्हैया कुमार जैसे युवा नेताओं को शामिल किया है। 

यहां तक कि खरगे के खिलाफ पार्टी अध्यक्ष का चुनाव लडऩे वाले शशि थरूर का शामिल होना भी एक महत्वपूर्ण संकेत देता है। फिर सचिन पायलट और कुमारी शैलजा जैसे युवा नेताओं को शामिल करने के फैसले का उद्देश्य असंतुष्टों या पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व से नाराजगी रखने वालों तक पहुंचाया है। साल के अंत से पहले 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं और आम चुनाव 10 महीने से भी कम समय के लिए दूर हैं। यही समय सही है कि पार्टी को मिलकर काम करना चाहिए। इसे बिना किसी जाल में फंसे या हर किसी को खुश करने की कोशिश किए बिना संतुलन बनाने का काम करते रहना होगा। पार्टी सत्तारूढ़ भाजपा के लिए गंभीर खतरा बनने से अभी काफी दूर है जिसने बार-बार खुद को एक अच्छी चुनावी मशीन साबित किया है लेकिन हमारे लोकतंत्र की राजनीतिक व्यवस्था में बुनियादी जांच और संतुलन के पुनरुद्धार के उसके प्रयासों का स्वागत किया जाना चाहिए।-विपिन पब्बी 
 


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